Sunday, December 14, 2014

शब्दों के  यायावर हम

कभी लगता है कि
शब्द सोहबत हैं
कभी महसूस होती है
इनके व्यामोह की तंग गिरफ्त
कभी दिखाई देता है 
इनसे रचा जाता व्यूह

कभी ये लगते हैं वहम जैसे
कभी इनके आदर्शों के
ताने बाने में जितने उलझती हूं
उतनी ही तीखी वंचना
छल जाती है
भर जाती है विषाद 

शापित अर्थों के साये
रात दिन पीछा करते हैं
पुरानी ऊन की उधेड़ बुन से
अंगुलियों की सिकाई करते शब्द
इनकी ढाल में छिपकर हारी हुई
हर लड़ाई खोलती है तिलिस्म
और हर शब्द बन जाता है
विस्मृत इतिहास की पीड़ा सा

शब्द की खोह में
एक अनवरत अंतर्यात्रा
और इन सूनी यात्राओं में
नहीं मिलता साथी कोई
इन अंध यात्राओं के
अकेले यायावर हम .........

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