शब्दों के यायावर हम
कभी लगता है कि
शब्द सोहबत हैं
कभी महसूस होती है
इनके व्यामोह की तंग गिरफ्त
कभी दिखाई देता है
इनसे रचा जाता व्यूह
शब्द सोहबत हैं
कभी महसूस होती है
इनके व्यामोह की तंग गिरफ्त
कभी दिखाई देता है
इनसे रचा जाता व्यूह
कभी ये लगते हैं वहम जैसे
कभी इनके आदर्शों के
ताने बाने में जितने उलझती हूं
उतनी ही तीखी वंचना
छल जाती है
भर जाती है विषाद
शापित अर्थों के साये
रात दिन पीछा करते हैं
पुरानी ऊन की उधेड़ बुन से
अंगुलियों की सिकाई करते शब्द
इनकी ढाल में छिपकर हारी हुई
हर लड़ाई खोलती है तिलिस्म
और हर शब्द बन जाता है
विस्मृत इतिहास की पीड़ा सा
शब्द की खोह में
एक अनवरत अंतर्यात्रा
और इन सूनी यात्राओं में
नहीं मिलता साथी कोई
इन अंध यात्राओं के
अकेले यायावर हम .........
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