Saturday, February 21, 2009
दिल्ली विश्वविद्यालय ; एक नज़र यह भी
दिल्ली विश्वविद्यालय का मुख्य दरवाजा और विवेकानंद प्रतिमा के पास सपने बुनता बच्चा
Tuesday, February 17, 2009
सही काम का सही नतीजा उर्फ मारे गए गुलफाम
कल अपने बेटे की वैल्यू ऎजुकेशन की नोटबुक से उसे परीक्षा की तैयारी कराते हुए मुझे पहली बार पता चला कि गांधी जी ,इंदिरा गांधी और अब्राहिम लिंकन के मारे जाने के क्या कारण थे ! इस जानकारी का उत्स बच्चे को नैतिक ज्ञान का एक पाठ- राइट एंड रांग पढाते हुए हुआ ! इस पाठ में बताया गया था कि
- जो बच्चा सही काम करता है गॉड उसे बहुत पसंद करते हैं !
- सही काम करने के लिए करेज चाहिए !
- गलत काम करने वाले से समाज और गॉड नाराज हो जाते हैं !
- कोई भी कभी भी सही काम कर सकता है !
- सही काम का सही अंजाम होता है !
- सही काम करने के लिए करेज चाहिए इसके कुछ उदाहरण दीजिए -
गांधी जी वॉज़ शॉटडेड
इंदिरा गांधी वॉज़ ऑल्सो शॉट डेड
अब्राहिम लिंकन वॉज़ मर्डरड
वैल्यू या मॉरल ऎज्यूकेशन के नाम पर आठ नौ साल के बच्चे को परोसा गया यह माल भाषिक नैतिक शैक्षिक किस उद्देश्य की पूर्ति करता है ? एक बच्चे के लिए अच्छाई और बुराई की समाज निर्धारित परिभाषाओं को इस कुरूप और भयावह तरीके से पेश करना बच्चे की मानसिकता संरचना के साथ की गई आपराधिक कोटि की छेडछाड नहीं तो और क्या है ?
ईश्वर , धर्म ,सही -गलत , विनम्रता ,सहिष्णुता के सबकों को पढाने के लिए स्कूलों के पास तो समय है न ही सामर्थ्य ! पढाई के घंटों अलग -अलग विषयों में बंटा टुकडा -टुकडा सा समय , एक ही कमरे में पैंतालीस -पचास बच्चे , बच्चों की भीड झेलते शिक्षक ...! सिस्टम ही ऎसा है किसको दोष दें ! ले दे के सारा दोष हम अपने ऊपर ही ले लेते हैं ! चूंकि हम एक असमर्थ ,मध्यवर्गीय अभिभावक हैं जो सिस्टम की आलोचना तो कर सकते हैं पर उसको बदल डालने की हिम्मत और हिमाकत नहीं कर सकते !
एक हमारे सपूत हैं ! पक्के नास्तिक और शंकालु ! बेटे को भगवान और ड्रामाई बातों पर यकीन भी नहीं ,नंबर भी चाहिए ! नैतिक ज्ञान के अनूठे सवालों के हमारे द्वारा सुझाए जवाब भी नहीं वे लिख सकते क्योंकि मैडम की झाड पड सकती है ! नैतिकता की अवधारणाओं की रटंत से उकताया बच्चा सचमुच बडा निरीह जान पडता है !
सही क्या है ये तो आजतक बडों की दुनिया तक में भी अनिर्णीत , परिस्थिति सापेक्ष और गडमगड है ! बच्चा ऎसे सही -गलत के निर्णय की दुविधा को कैसे पार कर पाऎगा ! वे "सही " काम एक बच्चा कैसे कर पाएगा जिनका अंजाम मौत होती हो ! घर देश समाज की नज़रों में उठने के लिए और भगवान को प्यारे लगने के लिए नन्हे बच्चे को दिया गया यह करेज घुले सदाचार का पाठ तो बडे बडों को भी सदाचार से डराने वाला है ! बच्चे की रंगीन कल्पनाओं भरी दुनिया के ठीक कॉंट्रास्ट में हम ये क्या दुनिया पैदा कर रहे है ?
मृत्यु और नैतिकता से इतनी सहजता और क्रूरता से साक्षात्कार करवाने स्कूलों को हमारा शत-शत नमन !
Friday, February 13, 2009
गुलाबी अंतर्वस्त्र आखिर किसको लजाएगा
आज सुजाता ने अपनी पोस्ट में मोस्ट चर्चित पिंक चड्डी अभियान के बारे में बात करते हुए बहस का फोकस तय करने की बात की है ! कुछ समय पहले अंतर्वस्त्रों में सडक पर मार्च पास्ट करती पूजा का विद्रोह एक उद्धत बहस का कारण बन गया था ! देखकर लगा कि जब स्त्री विमर्श किताबों और बहसों की दुनिया से बाहर पैर फैलाता है तो वह डराता है !
विद्वत समाजों में स्त्री की अस्मिता से जुडे सवालों पर सैद्धांतिक नजरिये से खूब बातें होती हैं ! स्त्री शोषित है यह भी मान लिया जाता है और उसके विक्टिमाइजेशन को रचनात्मकता के फोकस से देखकर उसे अलग अलग कला रूपों में भी ढाल लिया जाता है ! लेकिन स्त्री के पास अपने साथ हो रहे अन्याय के विरोध का क्या तरीका है इसपर गोष्ठियां खुद को मूक पाती हैं !
मैं पेशे से प्राध्यापक हूं ! वक्तव्य सुनना सुनाना इस पेशे का ही एक हिस्सा है ! कई बार तीन या चार हफ्तों वाले रिफ्रेशर कोर्स किए हैं ! साहित्य,भाषा ,समाज संस्कृति, स्त्री और दलित विमर्श पर बहसों में शिरकत की है ! ऎसी गोष्ठियों में स्त्री विमर्श पर बहस सुनी हैं ! यहां तक कि पिछ्ले साल विमेन स्टडीज पर हुए तीन हफ्ते के सम्मेलन में देश के विख्यात विद्वानों को सुना ! लेकिन उन स्त्री द्वारा विरोध के औजारों की पडताल और खोज पर चुप्पी दिखाई दी !
मर्दवादी देश में स्त्री की आत्मकथाएं उसकी सेक्सुअलिटी के उद्घाटन की पाठकीय समीक्षा में डूबती उतराती रह जाती हैं ! पूजा का विरोध सिनिकल या स्वयंसेवी संगठनों के द्वारा प्रायोजित लगता है ! मंग्लूर में पीटी गई लडकियों के हक में गुलाबी चड्डी अभियान में विरोध के कारण जायज और तरीके नाजायज लगने लगते हैं !
मुझे लगता है जिस समाज में पुरुषत्व बहुत् गहराई तक रचा बसा हुआ हो उस समाज को झंकझोरने के लिए अपनाए जाने तरीके सतही हों तो काम नहीं चलेगा ! जिस समाज में स्त्री -पुरुष की अवस्थिति बाइनरी ऑपोज़िट्स की तरह हो उस समाज में स्त्री और पुरुष द्वारा अपनाए गए विरोध के तरीके समान हों यह कैसे हो सकता है ! हाशिए पर खडी स्त्री विरोध के जमे जमाए औजारों को अपनाकर जड समाज में संवेदना पैदा नहीं कर पाएगी !
हम साफ देख सकते हैं कि हमारे समाज में पुरुष बेहतर स्थिति में है और उसके पास स्त्री समाज की संवेदना को उदबोधित करने के लिए न तो कोई कारण हैं और न ही चड्डी पहनकर और मशाल लेकर सडक पर निकल पडने की ज़रूरत ही है !
ब्रा बर्निंग आंदोलन की प्रतीकात्मकता के बरक्स गुलाबी चड्डी आंदोलन को देखें ! दोनों ही गैरबराबरी वाले समाज के अवचेतन को चोट पहुंचाने का काम करते हैं !