Thursday, February 12, 2015


  दिल्ली विधानसभा चुनाव 2015 ; डायरी से 


आइ एडमिट कि मुझमें बदलाव और विरोध की तड़प है पर हिम्मत नहीं । आई एप्रिशिऎट कि उसमें बदलाव और विरोध की तड़प के साथ हिम्मत भी है । इसलिए अपनी ताकत मैं उसमें देखती हूं । बस चेक रखती हूं खुद पर कि जिंदगी में कभी बौद्धिकता के बोझ से झुका नौटंकीबाज बर्जुआ न बन जाउं । 
ज्ञान के लोड से टूटी कमर वाले बौद्धिक बुर्जुआ की दिक्कत है कि बहुत अल्ट्रा च्यूज़ी , ओवर सोफेस्टिकेटिड , एक्स्ट्रा क्रिटिकल , एनालिटिकल होकर क्रांति के वक्त खुद को सेव कर जाता है । उसके लिए क्रांति करने आसमान से देवता आएगा न जब वो हरकत में आएंग़ें । भाई लोगों आजकल भगवान ने अवतार लेना बंद कर दिया है इसलिए आप चादर तानकर सोवो या फिर सिगरेट के छ्ल्ले उड़ाते हुए अपनी आने वाली किताब पर और क्रांति के लूपहोल्स पर गप्प चेपो । वी लेट यू रेस्ट इन पीस ।
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वुडलैंड का सेल में खरीदा हुआ मेरा नया सैंडिल पच्च से ढेर सारे पाखाने में सन गया । जिस दरवाजे को हमने खटखटाया था उसमें से निकली महिला ने सहानूभूति जताते हुए कहा कि "यहां तो जी जानवर वगैरह का मल मूत्र और सीवरों से निकली हुई गंदगी ऎसे ही बिखरी रहती हैं , हम तो इसमें जीना जानते हैं ,आप जरा देखदाख के चलो बिटिया "। पता नहीं वह कौन सी चेतना थी भीतर कि न हीं कैसे मुंह से न छी निकला न ही आउच्छ ।
चुनाव प्रचार के लिए निकली हुए हमारी टोली जिसमें विश्वविद्यालय के कई शिक्षक , वकील , डॉक्टर वक रोजाना शहर से इसी तरह रूबरू हो रहे हैं । ऎसे कई नए लोगों से रोज परिचित होने का मौका मिलता है जो बस अपनी अंदर की आवाज़ के पीछे खिंचे चले आए हैं । हम घूमते हैं एक एक खुले दरवाजे को खटखटाते हुए । ....तंग बस्तियां बेहद तंग गलियां , तमाम तरह की गंदगी , ढेर सारी मुसीबतों के पहाड । किसी बुजुर्ग महिला या पुरुष से बात करने लगो तो गले लगाने से लेकर सरकारों को कोसने और अपनी किस्मत पर रोने तक सब कुछ गवाह बनना ; और अगर युवा वोटर है तो उसकी सलाहें और जोश और गुस्से को उम्मीद में बदलते देखना । आप तो जी बेफिक्र रहो . और किसे वोट देंगे , सब चोरों ने मिलकर देश को लूटा है अबतक , हां बेटा जी आप कह रहे हो तो जरूर वोट करेंगे ।
गलियों में घूमती एक टीम रोजाना हमसे टकरा जाती है रेवाड़ी से आई इस टीम में योगेन्द्र यादव जी की बहन अपने कई डॉक्टर्स , पेशेवर वकील और मीडिया व इकोनोमिक्स के विद्वान के साथ दिखती हैं । शक्ल मिलती लगी तो पूछ्ने पर पता चला कि वे तो यादव जी की बहन हैं ...।
सुविधा सम्पन्न , विकसित और जागरूक वर्ग का बदहाल और समाज के सताए हुए लोगों के साथ संवाद होता देखने भर से रोज रोज मुझमें नई उम्मीद जागती है । कई दिनों से मुझपर जम रही काई जैसे साफ हो रही हो । जंग खाए दिमाग की रिपेयरिंग हो रही हो मानो । फ्लसफों और निचुड़ी हुई संवेदनाओं से थका हारा क्रिऎटिव पीस उपजाने की शर्मिंदगी जरा जरा कम सी होती जाती है । आवाज बुलंद कर नारे लगाते हुए सीवर की बगल में पड़े शहर के मवाद से नफरत कम होती है क्योंकि मैं यह महसूस कर पा रही होती हूं कि ये वही मवाद और मल ही तो है जिसे हम सुविधाभोगियों ने इधर ट्रांस्फर कर दिया है ।
मुझ सफाई पसंद , नाजुक मिज़ाज को जमीन पर चलने के लिए मजबूर कर देने वाली इस उम्मीद को सलाम ।
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इस ऐतिहासिक जीत का अर्थ यही है कि लोकतंत्र में बडे से बडे तानाशाह को परास्त करने की ताकत होती है । लोक की शक्ति को किसी भी धन बल या विज्ञापन से जीतने की कोशिश करने का इतना तीखा प्रतिरोध कर जनता ने लोकतत्र की शक्ति प्रदर्शन का नमूना भर पेश किया है अभी तो ।
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अपने पैंरों में पड़े एक एक छाले पर प्यार आ रहा है उन सारी आंखों पर प्यार आ रहा है जो पांच साल कहने पर जवाब में केजरीवाल कहकर लाड बरसाती मिलीं . लपककर टोपी मांग लेने वाले मेहनतकश हाथों पर प्यार आ रहा है . मतलब आप सबके प्यार पर प्यार आ रहा है .
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अरविंद तो केवल एक प्रतीक भर हैं । आज वह हैं कल कोई और होगा । परिवर्तनविरोधी ताकतों का विरोध होते रहना चाहिए बस । इसका अगुवा संयोग से अरविंद हैं या हम उनमे यह क्षमता देख लेते हैं । निर्भय के कमेंट का केवल यही मतलब है शायद । या होना चाहिए । बाकी हम सब मित्र हैं और दिल से अच्छे हैं 
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यानि यह कि साहित्य की ही तरह राजनीति की भी साधनावस्था ही उद्वेलित करती है मुझे..राजनीति की सिद्दवस्था नहीं । ..
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