Tuesday, December 01, 2009

मेरी नाप की चप्पलें

मजबूत , आरामदेह और हल्की चप्पलें मैं हमेशा से खोजती रही हूं ! एक आध बार बाज़ार में ऎसी चप्पल मुझे मिली भी और उसे पाकर मुझे लगा कि मानो मैंने कोई मैदान मार लिया हो !

चप्पल और  कामकाजी औरत का नाता बहुत गहरा होता है ! यदि चप्पल साथ न दे तो बस के पीछे भागकर उसमें चढना , मेट्रो की बहती भीड को चीरकर आगे बढकर उसमें चढना , ऑफिस की सीढियां जब देर हो हो रही हो तो भागते फलांगते चढना ( वैसे देर तो अक्सर ही हो रही होती है ) बाजार से दूध ,सब्जी दवाई दालें और मेहमानों के लिए बिस्कुट नमकीन खरीदते हुए घर की ओर भागना ,.....अगर चप्पल  भी आजकल के प्रेमियों की तरह साथ देने से इंकार कर दे तो क्या हो ?

बाजार में कई तरह की अजीब - अजीब चप्पलें देखकर मुझे हमेशा से हैरानी होती रही है - रंग बिरंगी ,पतली-पतली ऊंची ऊंची एडी वाली , चिलकनी , लटकन, डोरी शीशा ,फर ,झूमर , कढाई जबतक न हो मानो औरतों के लिए चप्पल सैडिलें बन ही नहीं सकती ! जाहिर है कि कि इन चप्पलों की सूरत और सीरत में ओई तालमेल नहीं होगा ! इन्हें पहनकर कोई भी स्त्री दौड भाग तो दूर ठीक से खडी भी कैसे होती होगी मुझे ताज्जुब होता है ! फिर भी ये चप्पलें बन भी रही हैं और बिक भी रही हैं ! पतली कमर के साथ पतली लंबी हील के सैंडिल जबतक न हों - बलखाई  नजाकत भरी चाल और अदा कहां से आएगी ? शायद दुनिया की जूता कंपनियां फेमिनिटी के पोषक तत्वों पर काफी शोध कर चुकी हैं ! मजबूती टिकाऊपने और सहूलियत के तत्वों को गायब करके हमारे पांव के लिए सबसे दुर्गम डिजाइन वाली चप्पलें ही बनाई जाती हैं ! आपके लिए अच्छी चप्पल के मायने जूता कंपनियों की "अच्छी" की परिभाषा से उलट होंगें ! हमें घीमी , मदमाती गजगामिनी चाल इन्हीं चप्पलों की बदौलत ही तो मिल सकती है !image

हमारे सौंदर्य के मानदंडों में कद और सुंदरता का गहरा नाता है सो अच्छे लंबे कद के प्रदर्शन के फेर में स्त्री अपने लिए ऊंची से ऊंची हील की चप्पलों को पहनती हैं ! अक्सर इस तरह की चप्पलों से उनके पैरों के तकलीफ होती है , थकान बहुत होती है ,गिर पडने का खतरा बढ जाता है नोकदार ऎडी किसी गड्ढे, नाली के जालीदार ढक्कन या सीढी चढते हुए अटक जाती हैं - पर स्त्री को पीडा सहने की आदत होती है ! ब्यूटी और स्टाइल ही नहीं यहां अपने भीतर पनपी हीनता ग्रंथी को भी सवाल है ! कष्ट तो सहना ही होगा ! कष्ट तो शरीर पर वैक्सिंग करवाने , भौहें बनवाने और बच्चा जनने में भी होता है ! पीडा सहना तो हमारी आदत में शुमार है ! शायद पीडा सहने की प्रौक्टिस करते रहना हमारी विवशता है ... !

जब कभी स्पोर्ट्स जूतों में और आरामदेह चप्पलों में घूमती लडकियों को देखती हूं तो काफी राहत मिलती है ! स्त्री अपने शरीर को जब समाज और पुरुषों के नजरिये दसे न देखकर अपनी नज़रों से देखना शुरु करेगी तब उसे संज्ञान होगा कि उसने अपने और अपने शरीर के साथ कितना अन्याय किया है !

मुझे अपने लिए जैसे तैसे अपनी नाप की आरामदेह चप्पलें बहुत ढूंढ के बाद मिल ही जाती हैं ! उन्हें पहनकर आत्मविश्वास, तेज़ी  निर्भीकता से चलती हूं ! पर मेरी साथी औरतों को कैसे कहूं कि बस स्वयं को और कष्ट देना अब वे बंद करें ! साथिनों की क्या कहूं मैं तो अपनी छात्राओं तक को नहीं कह पाई !

एक बार अपने कॉलेज में परीक्षा कक्ष में मैंने बहुत मोटे और लंबे प्लेटफार्म वाली चप्पलों को पहने एक लडकी को देखा ! अति साधारण घर की लडकी ने जैसे तैसे समय और फैशन के साथ कदमताल मिलाए हुई थी ! फिल्मी तारिकाएं मानो उसका आदर्श थीं जिनकी नकल के बेहद सस्ते कपडे पहने हुए थी वह लडकी ! उसकी चप्पलें मानो मेरे पैरों में घाव किए दे रही थीं ! मुझसे रहा नहीं गया तो मैंने उससे कहा कि उसे ऎसी चप्पलें नहीं पहननी चाहिए इससे तबीयत खराब हो जाएगी ! उस लडकी ने बडे सपाट और ठंडे तरीके से  जवाब दिया - " मैडम अगर ऎसी चप्पलें नहीं पहनूंगी तो तबीयत खराब हो जाएगी " !

Wednesday, September 02, 2009

हाउस , फ्राउऎन , सेक्स - मार्गिट श्राइनर

अपनी पिछली पोस्ट में मैंने एक अनोखे तेवर वाले उपन्यास "  घर ,घरवालियां ,सेक्स "का नामोल्लेख  किया था !  कई मित्रों ने इस उपन्यास के बारे में जानना चाहा है ! इसका हिंदी अनुवाद अमृत मेहता ने किया है तथा इतिहास बोध प्रकाशन द्वारा यह प्रकाशित है !  एक अक्खड , मर्दवादी , बकवादी और  स्त्री और घर के चक्कर में खुद को लुटा पिटा  मानने वाले पुरुष के अंदरूनी गुबार को पेश करती है ! उसने पत्नी से मांगा प्यार , सेक्स खुशी , सुरक्षा  ! जिसके लिए उसने अपना सबकुछ कुर्बान किया - दिमाग , वक्त , आज़ादी ! किंतु उसने जितना इंवेस्ट किया इतना उसे मिला नहीं !  उसे मिली -एक ठंडी , घर और बच्चों के नैपी और रसोई की बास से भरी ,कामकाजों में उलझी धोखेबाज, बहानेबाज और पति की कमाई पर जीने वाली स्वार्थी औरत !

यह एक  " कुशल चातुर्यपूर्ण गद्य रचना है जिसमें पत्नी द्वारा त्याग दिए जाने के बाद कथक अपना मरदाना बकवादी चेहरा दिखाता है !"

इसकी रचना एक  स्त्री ने की है !  मारी थेरेज़े - सुपरमार्केट की खजांची ,अपनी बीवी को संबोधित करते इस उपन्यास के पीडित पुरुष का दर्द पेश है   ---

" ...तुम देख सकते हो ,लुगाइयां हमारा क्या हाल कर देती हैं ! बिना पलक झपकाए वो हमारी ज़िंदगी बर्बाद कर देती हैं !चट्टान की चटनी बना देती हैं !तुम लोग हो तो बुनियादी तौर पर निर्मम ! और कठोर ! जानती हो मेरा धीरे-धीरे मेरा क्या खयाल बनता जा रहा है ? मेरा यह खयाल बनता जा रहा है कि तुम्हारी यह तथाकथित रहस्यात्मकता एक धोखा है : नारी की रहस्यात्मकता, नारी , एक रहस्यमय जीव , नारी हिरणी , परी , जादूगरनी ! कई बार जब तुम स्वप्निल नेत्रों से खिडकी के बाहर देख रही होती हो और तुम्हारे नेत्र दमक रहे होते हैं तो मुझे लगता है कि तुम्हें महावारी हो रही है , और कुछ नहीं !यदि इसके पीछे कोई सिद्दांत जोडना है तो उसको यथार्थनिष्ठ सिद्ध करना होगा! मेरा मतलब कोई तो सबूत होना चाहिए , जो तुम्हारे बारे में जानकारी दे : कोई दूरदृष्टि हो , कोई दर्शन हो साहसकर्म का कोई सपना हो ! लेकिन है कहां महिला दार्शनिक , दूरदृष्टि रखने वालीयां , या दुस्साहसी स्त्रियां ? शोधकर्ता ? तुम लोगों ने अभी तक एक ही गहरा शोध किया है - बंदरों की कामक्रियाओं पर ! तुम लोग तो ठीक से कोई नारी आंदोलन भी नहीं चला सकीं !

.......एक बार औरत बच्चा पैदा कर दे तो सेक्स तो उसके बाद ज़्यादातर खत्म हो जाता है ! उसे बच्चा मिल गया, अर्थात सुरक्षा मिल गई , प्यार की अमानत , गारंटी और फिर उसे सेक्स में दिलचस्पी नहीं रहती ! हम मर्द वैसे नहीं हैं, इसलिए तुम लोग चाहती हो कि हमारी दिलचस्पी न सिर्फ अपनी बीवियों में न रहे बल्कि दूसरी औरतों में भी न रहे ! खैर यह बात तो सब अच्छी तरह से जानते हैं: पहले तो तुम हमेशा बच्चे के साथ व्यस्त होती हो, फिर तुम थकी होती हो तुम्हॆं आधासीसी का दर्द होता है आदि ! हमेशा जब हम तुम्हारे नजदीक आने की कोशिश करते हैं तो कोई न कोई गडबड तुम्हारे साथ रहती है ! या तुम्हें महावारी होती है , या बच्चे अभी नहीं सोए या तुम्हें इच्छा नहीं है , क्योंकि हम तुमसे कभी बात नहीं करते या क्योंकि हम बहुत उंचा बोले हैं और या क्योंकि हमने कुछ पी रखी है , और तुम शराबी के साथ नहीं करना चाहती और या क्यॉंकि हमने कुछ नहीं पिया और इस कारण चिडचिडे हैं और क्योंकि तुम ऎसे आदमी के साथ नहीं करना चाहती जो हमेशा चिडचिडा रहता है और चूमाचाटी नहीं करता इत्यादि ! यह सब कुछ स्वभावत: लुके छिपे अपरोक्ष ढंग से ! ऎसा कभी नहीं होगा कि कोई बीवी अपने मियां से सीधे -सीधे कहाँ देकि वह उसके साथ नहीं लेटेगी! सवाल ही पैदा नहीं होता ! तुम लोग ऎसे दिखावा करती हो कि तुम तो चाहती हो ! सिर्फ हालात ही इसके खिलाफ हैं !................समस्या सिर्फ बंदे की नहीं है ! समस्या सिर्फ प्रेम की नहीं है ! समस्या औरतों की है ! वे वास्तव में होती ही प्रेमहीन हैं ! ऊपर ऊपर से ! सतही ! बस दिखना चाहिए , असली चीज़ वही है ! बस असुरक्षा नहीं चाहिए , जोखिम नहीं चाहिए , स्वयं को सुरक्षित रखना है बस , और फिर वे सद्वभावपूर्ण दांपत्य जीवन भी चाहती हैं ! लेकिन सेक्सहीन ! क्योंकि इससे तो अशांति उत्पन्न होती है न ! और पुरुष बरसों इस स्थिति के साथ निभाता रहता है ! परिवार की खातिर , ज़िम्मेदारी की खातिर , फर्ज की खातिर ! और औरतों को देखना बंद कर देता है सेक्सहीन प्राणी बन जाता है  जो सिर्फ पैसा कमाता है और अपने हॉबी कक्ष में बैठकर बढईगिरी करता है................. "

Tuesday, August 25, 2009

घर , घरवालियां और सेक्स

पिछले दिनों अफगानिस्तान में घोषित नए कानून के द्वारा मानवीयता की सारी हदें पार कर दी गईं ! इसके मुताबिक अपनी पत्नी द्वारा सेक्स से वंचित पति उसे खाना देने से इंकार कर सकता है !  इसके अनुसार पत्नी को चार दिन में कमसे कम एक बार अपने पति की शारीरिक इच्छा की पूर्ति करनी होगी ! इससे विवाह की परिधि में पत्नी से बलात्कार को कानूनी मान्यता दी गई ! इसे घोषित करने वाले  अफगान के राष्ट्रपति हामिद करज़ई का समर्थन अफगान के रुढिवादी संगठनों ने किया जिनके बल पर चुनावी राजनीति का निकृष्टतम दांव खेला गया ! इस कानून का पश्चिमी नेताओं और अफगानी स्त्री संगठनों ने विरोध और निंदा की !

नो वर्क नो सैलरी -  नो सेक्स नो फूड ! अफगानी समाज में स्त्री की पारिवार में स्थिति कामगार की तरह है ! जिसका काम पति की शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना और उसके बच्चों को पालना मात्र है ! उसके एवज में पति उसे खाना और रहने की जगह देकर इस घरेलू कामगार के प्रति अपने कर्तव्य की इतिश्री करता है !

अफगान समाज तो बहुत सभ्य निकला ! उसने विवाह ,परिवार, स्त्री की बराबरी से जुडी कई वैश्विक समस्याओं को इतने सहज तरीके से सुलटा दिया ! इसने विश्व को समझा दिया कि कि सभ्य समाज में स्त्री और पुरुष के संबंध तो कबीलाई ही रहेंगे ! कितनी भी कवायदें आप कर लें कितना भी आप विमर्श कर लें ! स्त्री का जन्म एक घरेलू मजदूर के रूप में हुआ है इस सच से मुंह नहीं मोड सकते !

दिहाडी मजदूरी को हम आज तक नहीं खत्म कर सके ! मजदूर संगठन बनते टूटते रहते हैं पर मजदूरों की बेबसी बनी रहती है ! स्त्री के साथ भी यही स्थिति है ! अफगान हमसे ज़्यादा दो टूक है ! उसने बराबरी , हकों और सम्मान के सारे भ्रमों को तोडते हुए जो बात साफ साफ कही विश्व के बडे - बडे स्ट्रेट फार्वर्ड समाज नहीं कह पाए !

दरअसल स्त्री की देह तो एक कॉलोनी मात्र है ! जिसका इसपर कब्ज़ा है वही उसका मालिक है ! अपने श्रम से औपनिवेशिक ताकतों की इच्छाओं की पूर्ति करते जाना और बदले में भोजन ताकि जीवित रहा जा सके और अगले दिन की बेगारी के लिए तैयार रहा जा सके !

अगर ज़्यादा कडवा सच पचा पाएं तो - स्त्री की योनि एक कॉलोनी मात्र है ! जिसके शोषण की एवज में स्त्री जीवित रहने की हकदार होती है ! प्रतिबंधित समाज इस सच को कहने में नहीं झिझकते ! खुले समाजों में शब्दों की चाशनी , विचारों और विमर्शों की तहों में यह धारणा लिपटी रह जाती है !

स्त्री का अस्तित्व राजनीति के लिए बहुत बढिया पैंतरा  है ! सभ्य कहे जाने वाले समाजों में स्त्री की मुक्ति और बंद  समाजों में उसकी दासता के एलान के बल पर राजनीतिक ताकतें सत्ता का खेल खेलतीं हैं ! स्त्री की गुलामी और आज़ादी दोनों  का राजनीतिक इस्तेमाल सबसे भारी दांव होता है ! स्त्री विमर्श की बडी लेखिका मृणाल पांडे मानतीं हैं कि स्त्री- आंदोलनों को राजनीतिक पार्टियां अपने फायदें में ऎप्रोप्रिएट कर लेतीं हैं ! ऎसे में स्त्री के पारिवारिक - सामाजिक अधिकार और बराबरी एक ऎसा समीकरण होता है जिसका जितना उलझाव होगा उतना ही फायदा पुरुष समाज का होगा !

घर की चौखट में सुरक्षित दिखने वाली स्त्री उसके भीतर कितने शोषण और समझौतों के बावजूद ही रह पा रही है इसका अंदाज़ा शायद उन विवाहिताओं बनाम पीडिताओं को भी नहीं होता ! स्नेह , कर्तव्य ,आदर्श ,नैतिकता, प्रेम ..जैसे कई छलावों में लिपटा सच यही है कि विवाह स्त्री के लिए एक समझौता और करार है ! क्या विवाह एक यौन पशु के लिए चारे और सुविधा का इंतज़ाम है जिसके जरिए वह सत्ताधीश कहलाता है और उसका वंश भी आगे बढता रहता है ?

मार्ग्रेट श्राइनर का उपन्यास - घर , घरवालियां और सेक्स पढकर समाज की मुख्य बुनियाद विवाह और परिवार पर ही अनेक शक पैदा होते है ! स्त्री और पुरुष के संबध विवाह के बाहर और भीतर दोनों ही जगह  शोषक - शोषित   और मालिक - मजदूर के हैं !  सामाजिक विकास के चरणों में कबीलाई समाज की मूल प्रवृत्तियां बदल नहीं पाईं !

Monday, June 15, 2009

शास्त्री फिलिप जी से मुलाकात : सारथी ही तो हैं वे

बीते महीने की पंद्रह तारीख को सपरिवार मैं केरल और लक्ष्यद्वीप की यात्रा पर थी ! दिल्ली से हवाई जहाज की मात्र चार घंटे की यात्रा के बाद जिस ज़मीन पर हम थे उसका रंग हरा था और नाम था देवभूमि केरल - गॉड्स ओन कंट्री ! कोचीन हवाई अड्डा ! बस कंवेयर बेल्ट से आता हुआ अपना सामान उठाना था और बाहर स्वागत में खडे ट्रेवल एजेंट के साथ गाडी तक जाना था ! बाकी सब इंतज़ाम पहले से ही तय थे !

गाडी में बैठते ही हमने शास्त्री जी को फोन किया और अपने पहुंच जाने की इत्तला दी ! मिलने की जगह तय हुई हमारे ठहरने की जगह होटल सी लॉर्ड ! रात आठ बजे का समय तय हुआ था - ठीक दो घंटे बाद का ! दिल्ली से हजारों किलोमीटर दूर उस जगह पर हमारे कोई परिचित रहते हैं और उनसे पहली बार वर्चुअल स्पेस से बाहर मुलाकात होगी - हम रोमांचित थे ! ठीक आठ बजे होटल की लॉबी में दरवाज़ा खोल कर प्रवेश करते हुए शास्त्री जी ने हमें और हमने शास्त्री जी को पहली ही नज़र में पहचान लिया ! मसिजीवी से जीभर गले मिलते हुए और मुझसे आत्मीय अभिवादन का आदान -प्रदान करते हुए शास्त्री जी बेहद चिर -परिचित लगे ! अचंभित और रोमांचित होते हुए उन्होंने दो तीन बार इस बात को अलग अलग अंदाज़ में दोहराया " तुम लोग तो बहुत छोटे हो , बिल्कुल बच्चे हो , जैसे फोटो में दिखते हो उससे दस साल छोटे लगते हो ... " ! मैंने कहा कि लेकिन आप जैसे फोटो में दिखते हैं वैसे ही दिखते हैं - उत्साह , जीवंतता, तेज और फुर्ती से भरे हुए !

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शीशे की तरह आर-पार देखे जा सकने वाला उनका दिल और चेहरा ! ज़िदगी को लेकर सकारात्मक नज़रिया , विवादित मुद्दों और अपनी बेहद मौलिक मान्यताओं पर उठाए गए मसिजीवी के सवालों का बेहद ईमानदार ,साफ और सहज उत्तर ! न थकने वाले , और सक्रियता में जीवन का सार ढूंढने वाले शक्स हैं शास्त्री जी !

लॉबी  के चिकने फर्श पर तेज़ी से भाग भागकर फिसलने और शोर मचाने वाले हमारे दोनों बच्चों से शास्त्री जी की बातचीत में उनका बालसुलभ हृदय झलक रहा था ! ज़िदगी की व्यर्थ राजनीति , संसाधनों को जुटाने की मारामारी और खोखली चमक से दूर सादगी और निष्टा का जीवन जीने वाला व्यक्ति ही पहली मुलाकात में छोटे बच्चों के इतने नज़दीक पहुंच सकता है !  उनके भेंट किए ऎतिहासिक महत्व के चांदी सिक्के मेरे बच्चों की अब तक की सबसे अमूल्य निधि हैं जिन्हें वे दिन में कई बार देखते और सहेजते हैं  ! बारह दिन के घूमने जाने की भागदौड में हम शास्त्री जी के लिए कोई भेंट नहीं ले जा सके ! शास्त्री जी को पुराने ऎतिहासिक सिक्कों के संग्रह का शौक है !  पुरातत्वीय महत्व के पांच सिक्के शास्त्री जी ने बहुत श्रम से जुटाए थे ! इनमें से एक उन्होंने अपने पास रखा तथा एक-एक सिक्का अपने बेटे आनंद तथा आशा को और हमारे बच्चों प्रभव तथा मिष्टी को दिया है !

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जिस अपनत्व को शास्त्री जी में पाया वह इतना सहज और गहरा था कि मैं मुग्ध थी ! उनकी पत्नी शांता जी से मुलाकात नहीं हो सकी पर लगा उनसे भी हम मिल लिए हों !  शास्त्री जी ने कहा कि शांता जी जी कि इच्छा थी कि हम उनके घर पर ही जाते पर उन्होंने हमारे कार्यक्रम में समय, दूरी और घंटों का हिसाब लगाकर देखा पर मुलाकात उनके यहां संभव नहीं हो पा रही थी ! हम कोचीन शाम पांच पहुंचे थे अगली सुबह हमें अगाती ( लक्षयद्वीप) के लिए हवाई जहाज़ में सवार होना था ! हमें काफी खेद हुआ क्योंकि इस मुलाकात और कोचीन को देखने के लिए हमारे पास बहुत कम समय था !

शास्त्री जी ने बताया कि उनके बेटे आनंद को बहुत दुख हुआ जब उन्हें पता चला कि हम होटल सी लॉर्ड में ठहर रहे हैं ! किसी समय कोचीन का सबसे शानदार होटल अब व्यसन करने वाले ग्राहकों की वजह से अपनी गरिमा में गंवा चुका है ! यदि उन्हें पहले पता होता कि हम वहां ठहर रहे हैं तो वे हमें कोई अन्य सुझाव दे पाते !

शास्त्री जी से देर रात ग्यारह बजे तक बातें होती रहीं ! मैंने हिन्दी, हिन्दुस्तान एवं ईसा के चरणसेवक शास्त्री फिलिप का बौद्धिक शास्त्रार्थ चिट्ठा ही पढा था ! आज उनसे मिलने का गौरव प्राप्त हो रहा था ! मैं ज़्यादा मुखर नहीं थी ! मसिजीवी और शास्त्री जी की गर्मजोशी ,आत्मीयता से चल रहे संवादों को एक मुग्ध श्रोता की तरह सुन रही थी ! मानो एक दिव्य अनुभव से गुज़र रही हूं ! मैं एक कैमरा हो गई थी !  उस अविस्मरणीय बातचीत के तालमेल ,लय और उत्साह में एक चमक थी ! जब मैंने कहा कि " आसपास जब टुच्चेपन की बहार हो ऎसे में आप जैसे व्यक्तित्व से मिलना बहुत सुखकारी है ' तो शास्त्री जी उन्मुक्त हंसी हंसे ! IMG_2134

ईसाईत्व , धर्म ,मनुष्यत्व ,  हिंदी भाषा के प्रति प्रेम , उनकी गहरी देश -निष्ठा , राष्ट्रीय संस्कृति के लिए प्रतिबद्धता ,ब्लॉगरी में आस्था ,उनका अध्यवसाय , केरल की जलवायु , आगे का कार्यक्रम ..अनेक बातें हुईं ! सबका पता दे पाना यहां एक पोस्ट में कठिन है ! प्राणपण से इन उद्देश्यों के लिए लगे हुए इस कर्मठ योद्धा से मिलकर लगा कि नौकरी और निजता के उद्देश्यों से ऊपर उठकर किसी महत सामाजिक उद्देश्य के लिए जीना ही असली जीना है ! उनके सिद्धांत और जीवन में जैसी गहरी एकता दिखी वैसी एकता आज के ज़माने में मिलना बहुत कठिन है ! उनसे बातचीत दिल से दिल की बातचीत थी ! पुराने सगे मित्रों सी ! खोट , दुराव ,      छिपाव , दुराग्रह राजनीति   नहीं केवल निश्चल आत्मीय संवाद ! IMG_2136IMG_2137

शास्त्री जी ने दो अच्छी सूचनाएं दीं ! पहली यहाँ कि उनका चिट्ठा आज से सारथी.इंफो पर चला गया है और दूसरा यह कि जल्द ही उनकी बिटिया का ब्याह होने वाला है ! वे कहने लगे कि ' अब तो जल्द ही उनका घोंसला सूना हो जाएगा ..किंतु तुरंत ही प्रभव और मिष्टी की ओर देखकर बोले कि कोई बात नहीं इन बच्चों की उमर अभी बहुत छोटी है ये और ज़रा से बडे हो जाएं तो अकेले ही यहां हमारे घोंसले में आ जाया करेंगे .मैं हवाई अड्डे से इन्हें ले लिया लूंगा..! वे कह रहे थे कि आगे जब कभी हमें केरल आना हो तो उनके घोंसले में ही रुकें ,होटल में नहीं !'

पिछ्ले दो तीन महीने से ब्लॉगिंग से मन उठा सा गया था लग रहा था कि क्या पाते हैं हम यहां अपने को नष्ट करके  ....केवल व्यक्तिगत जीवन पर प्रहार ..और कटुता और राजनीति के गर्द में सनना ही होता है क्या ! पर शास्त्री जी जैसे व्यक्तित्व से मिलकर लगा कि यहां रहना व्यर्थ कहां रहा बहुत कुछ तो मिल रहा है जो अन्यथा कैसे मिलता.... ?

 

Thursday, March 26, 2009

आपके शहर के सुनसान और खतरनाक रास्ते कौन से हैं ?

अगर आप स्त्री हैं तो अंधेरे ,सुनसान रास्तों पर अकेले न जाएं ! आप बलात्कार , हत्या , लूटपाट का शिकार हो सकतीं हैं ! ............आप रोज़ वहां से गुजरतीं हैं ? हो सकता है किसी रोज़ आपकी सडी गली लाश ही मिले....

जाहिर है हममें से कोई भी कामकाजी या घरेलू स्त्री अपनी किसी छोटी -सी ज़िद ,ज़रूरी काम या आपात से आपात स्थिति में भी रात में घर से बाहर अकेले नहीं निकलना चाहेगी ! न ही दिन के उजाले में सुनसान सड्कों से गुज़रना चाहेंगी ! स्त्री के लिए बदलता समाज और बदलते समाज में सशक्त होती स्त्री, पुरुष से बराबरी पर दिखाई देती है ! पर वास्तव में यह ऎसा सामाजिक मिथक हैं जिसका चेहरा यथार्थ से काफी मिलता जुलता है !

यदि आज कोई स्त्री या लडकी इस सबसे बड़ी सामाजिक मिथकीय संरचना को जानना चाहे तब भी वह क्या रात के बारह -एक बजे अपने घर की चाहरदीवारी को लांघकर सडक पर निकल सकती है !  समाज में अपनी बराबरी को जानने के लिए कोई भी स्त्री सौम्या या जिगीशा का सा हश्र नहीं चाहेगी ! दिल्ली की सडकों पर रात में इंडिया गेट के आगे से अगुवा कर बलात्कार का शिकार बनाई गई  लडकी , दिल्ली के साउथ कैंपस में रात में भरी रिंग रोड पर चाय की दुकान के आगे से अगुवा कर सामूहिक बलात्कार का शिकार हुई छात्रा  - जैसी अनेक घटनाएं हैं जिनसे बार बार असुरक्षित स्त्री समाज की विडंबना उभर कर आती है !

एक बडे अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया के मुख्य पन्ने पर स्त्रियों के लिए खतरनाक दिल्ली के दस  स्ट्रेचिज़ की पहचान की गई है ! आप अगर स्त्री हैं तो आप इनमें और भी कई एसे रास्ते जोड सकती हैं जहां आपने खुद को असुरक्षित महसूस किया हो ! आप वहां से न गुज़रें ! क्योंकि इन रास्तों से गुजरती स्त्री एक आसान शिकार हो सकती है यह सब अपराधियों को पता है ! वे यह भी जानते हैं कि वहां आपको बचाने वाला कोई मर्द भी नहीं होगा न ही आपकी चीखों पुकार किसी के कानों तक पहुंच पाएगी !  यूं तो कई बार अपने घर के आगे टहलती लडकियों को अगुवा कर बलात्कार की घटनाए भी होती रहतीं हैं और अपने घर में भी वे अपराध का शिकार बनाई जा सकती हैं परंतु घर के बाहर कामकाज के लिए रोजाना निकलने वाली स्त्री जिस असुरक्षा और रिस्क के साए तहत काम करती है वह मेरी दृष्टि में स्त्री का प्रतिक्षण का मानसिक शोषण है ! कामकाज के लिए बराबरी की स्पर्धा सहती स्त्री के मन में प्रतिक्षण  बसा यह डर कि उसे कहां कहां से कब कब नहीं गुज़रना उसकी कार्य - क्षमता को बाधित करता है !

किसी सभ्य समाज में पुलिस द्वारा कामकाजी स्त्रियों की अपने ऑफिस तक की यात्रा के संबंध में निकाले गए हिदायत वाले विज्ञापन हों या अखबारों में असुरक्षित जगहों की पहचान की कवायद हो - सबसे यही सिद्ध होता है कि और कुछ तो बदल नहीं सकता इसलिए आप यदि अपराधों का शिकार होने से बचना चाहती हैं तो कई सारी सावधानियों से काम लें - शायद आप बच जाएं !  समाज वही रहेगा सडकें वही रहेंगी,  अपराधी बलात्कारी रहेंगे , अकेलापन अंधेरा सब होगा - आपको बचने के तरीके आने चाहिए ! न आते हों सीख लें जिससे आज आप बचकर यह सोच लें कि आज आप बचीं हैं तो आपकी जगह ज़रूर कोई और हुई होगी शिकार !

मेरी बडी तमन्ना रही है बचपन से कि किसी सडक किनारे की चाय वाली गुमटी के बाहर पटरी पर अकेले ही ढली शाम तक बैठकर चाय पी जाए पर एक चाय और उस सुकून का रिस्क मैं कभी ले नहीं पाई ! और अब तो यही शुक्र मनाती हूं कि मैं किसी कॉल सेंटर , मीडिया कपंनी या ऎसे मल्टी नेश्नल में नहीं काम करती जहां से आधी रात को काम से लौटना होता !

आप सब भी सुकून मनाइए कि आपकी पत्नियां बेटियां और बहनें दिन दिन में ही अपने काम काज से  घर लौट आती हैं और आपके शहर के उन सुनसान रास्तों से उनको कभी गुजरना नहीं होता !

चित्र के लिए आभार

Saturday, February 21, 2009

दिल्ली विश्वविद्यालय ; एक नज़र यह भी

दिल्ली विश्वद्यालय के हाईटेक संस्थान - "इंस्टीट्यूट ऑफ लाइफ लॉंग लर्निंग" के आधुनिकतम भवन के दरवाजे के बाहर देश और उसका भविष्य


दिल्ली विश्वविद्यालय का मुख्य दरवाजा और विवेकानंद प्रतिमा के पास सपने बुनता बच्चा



Tuesday, February 17, 2009

सही काम का सही नतीजा उर्फ मारे गए गुलफाम

कल अपने बेटे की वैल्यू ऎजुकेशन की नोटबुक से उसे परीक्षा की तैयारी कराते हुए मुझे पहली बार पता चला कि गांधी जी ,इंदिरा गांधी और अब्राहिम लिंकन के मारे जाने के क्या कारण थे ! इस जानकारी का उत्स बच्चे को नैतिक ज्ञान का एक पाठ- राइट एंड रांग पढाते हुए हुआ ! इस पाठ में बताया गया था कि

  • जो बच्चा सही काम करता है गॉड उसे बहुत पसंद करते हैं !
  • सही काम करने के लिए करेज चाहिए !
  • गलत काम करने वाले से समाज और गॉड नाराज हो जाते हैं !
  • कोई भी कभी भी सही काम कर सकता है !
  • सही काम का सही अंजाम होता है !
  • सही काम करने के लिए करेज चाहिए इसके कुछ उदाहरण दीजिए -

गांधी जी वॉज़ शॉटडेड

इंदिरा गांधी वॉज़ ऑल्सो शॉट डेड

अब्राहिम लिंकन वॉज़ मर्डरड

वैल्यू या मॉरल ऎज्यूकेशन के नाम पर आठ नौ साल के बच्चे को परोसा गया यह माल भाषिक नैतिक शैक्षिक किस उद्देश्य की पूर्ति करता है ? एक बच्चे के लिए अच्छाई और बुराई की समाज निर्धारित परिभाषाओं को इस कुरूप और भयावह तरीके से पेश करना बच्चे की मानसिकता संरचना के साथ की गई आपराधिक कोटि की छेडछाड नहीं तो और क्या है ?

ईश्वर , धर्म ,सही -गलत , विनम्रता ,सहिष्णुता के सबकों को पढाने के लिए स्कूलों के पास तो समय है न ही सामर्थ्य ! पढाई के घंटों अलग -अलग विषयों में बंटा टुकडा -टुकडा सा समय , एक ही कमरे में पैंतालीस -पचास बच्चे , बच्चों की भीड झेलते शिक्षक ...! सिस्टम ही ऎसा है किसको दोष दें ! ले दे के सारा दोष हम अपने ऊपर ही ले लेते हैं ! चूंकि हम एक असमर्थ ,मध्यवर्गीय अभिभावक हैं जो सिस्टम की आलोचना तो कर सकते हैं पर उसको बदल डालने की हिम्मत और हिमाकत नहीं कर सकते !

एक हमारे सपूत हैं ! पक्के नास्तिक और शंकालु ! बेटे को भगवान और ड्रामाई बातों पर यकीन भी नहीं ,नंबर भी चाहिए ! नैतिक ज्ञान के अनूठे सवालों के हमारे द्वारा सुझाए जवाब भी नहीं वे लिख सकते क्योंकि मैडम की झाड पड सकती है ! नैतिकता की अवधारणाओं की रटंत से उकताया बच्चा सचमुच बडा निरीह जान पडता है !

सही क्या है ये तो आजतक बडों की दुनिया तक में भी अनिर्णीत , परिस्थिति सापेक्ष और गडमगड है ! बच्चा ऎसे सही -गलत के निर्णय की दुविधा को कैसे पार कर पाऎगा ! वे "सही " काम एक बच्चा कैसे कर पाएगा जिनका अंजाम मौत होती हो ! घर देश समाज की नज़रों में उठने के लिए और भगवान को प्यारे लगने के लिए नन्हे बच्चे को दिया गया यह करेज घुले सदाचार का पाठ तो बडे बडों को भी सदाचार से डराने वाला है ! बच्चे की रंगीन कल्पनाओं भरी दुनिया के ठीक कॉंट्रास्ट में हम ये क्या दुनिया पैदा कर रहे है ?

मृत्यु और नैतिकता से इतनी सहजता और क्रूरता से साक्षात्कार करवाने स्कूलों को हमारा शत-शत नमन !

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Friday, February 13, 2009

गुलाबी अंतर्वस्त्र आखिर किसको लजाएगा

आज सुजाता ने अपनी पोस्ट में मोस्ट चर्चित पिंक चड्डी अभियान के बारे में बात करते हुए बहस का फोकस तय करने की बात की है ! कुछ समय पहले अंतर्वस्त्रों में सडक पर मार्च पास्ट करती पूजा का विद्रोह एक उद्धत बहस का कारण बन गया था !  देखकर लगा कि जब स्त्री विमर्श किताबों और बहसों की दुनिया से बाहर पैर फैलाता है तो वह डराता है !

विद्वत समाजों में स्त्री की अस्मिता से जुडे सवालों पर सैद्धांतिक नजरिये से खूब बातें होती हैं ! स्त्री शोषित है यह भी मान लिया जाता है और उसके विक्टिमाइजेशन को रचनात्मकता के फोकस से देखकर उसे अलग अलग कला रूपों में भी ढाल लिया जाता है ! लेकिन स्त्री के पास अपने साथ हो रहे अन्याय के विरोध का क्या तरीका है इसपर  गोष्ठियां खुद को मूक पाती हैं !

मैं पेशे से प्राध्यापक हूं ! वक्तव्य सुनना सुनाना इस पेशे का ही एक हिस्सा है ! कई बार तीन या चार हफ्तों वाले रिफ्रेशर कोर्स किए हैं ! साहित्य,भाषा ,समाज संस्कृति, स्त्री और दलित विमर्श पर बहसों में शिरकत की है !  ऎसी गोष्ठियों में स्त्री विमर्श पर  बहस सुनी हैं ! यहां तक कि पिछ्ले साल विमेन स्टडीज पर हुए तीन हफ्ते के सम्मेलन में देश के विख्यात विद्वानों को सुना ! लेकिन उन स्त्री द्वारा विरोध के औजारों की पडताल और खोज पर चुप्पी दिखाई दी !

मर्दवादी देश में स्त्री की आत्मकथाएं उसकी सेक्सुअलिटी के उद्घाटन की पाठकीय समीक्षा में डूबती उतराती रह जाती हैं ! पूजा का विरोध सिनिकल या स्वयंसेवी संगठनों के द्वारा प्रायोजित लगता है ! मंग्लूर में पीटी गई लडकियों के हक में गुलाबी चड्डी अभियान में विरोध के कारण जायज और तरीके नाजायज लगने लगते हैं !

मुझे लगता है जिस समाज में पुरुषत्व बहुत् गहराई तक रचा बसा हुआ हो उस समाज को झंकझोरने के लिए अपनाए जाने तरीके सतही हों तो काम नहीं चलेगा ! जिस समाज में स्त्री -पुरुष की अवस्थिति बाइनरी ऑपोज़िट्स की तरह हो उस समाज में स्त्री और पुरुष द्वारा अपनाए गए विरोध के तरीके समान हों यह कैसे हो सकता है ! हाशिए पर खडी स्त्री विरोध के जमे जमाए औजारों को अपनाकर जड समाज में संवेदना पैदा नहीं कर पाएगी !

हम साफ देख सकते हैं कि हमारे समाज में पुरुष बेहतर स्थिति में है और उसके पास स्त्री समाज की संवेदना को उदबोधित करने के लिए न तो कोई कारण हैं और न ही चड्डी पहनकर और मशाल लेकर सडक पर निकल पडने की ज़रूरत ही है !

ब्रा बर्निंग आंदोलन की प्रतीकात्मकता के बरक्स गुलाबी चड्डी आंदोलन को देखें ! दोनों ही गैरबराबरी वाले समाज के अवचेतन को चोट पहुंचाने का काम करते हैं !