Tuesday, December 30, 2014

एक बुझे  हुए  वक्त  में  कविता 

जैसे किसी माटी सने बच्चे को छूकर
दरवाजे से आ लगी हो हवा
जैसे देता हो दस्तक कोई लगातार
खुले दरवाज़े की चौखट पर
जैसे आंगन में मुरझाए पौधों को 
सींचती मां का उड़ता हो आंचल
जैसे कारा की मोरी से झांकता
नीला टुकड़ा देता हो दिलासे
जैसे अंधेरे की उदासी को चीरता
गुनगुनाता हो कोई आदिम राग
ऎसे ही बुझे हुए वक्त में
कौंध जाती है कविता कोई
जब - जब जिंदगी की बेकाबू चाल
देती है पटखनी और जब कभी
हारती सी लगने लगती हैं सांसे
मेरी घबराई सी चेतना
तलाशती है कविता को
और कविता में तुमको

Monday, December 29, 2014


कोहरे के कफन में लिपटी  लाशें 
ये लाशें किनकी हैं
कोहरे की सुफेद चादर में
लिपटे हुए इन शवों का
कौन है मालिक कहां है दावेदार
भूख जिनसे हो गई पराजित
ठंड जीत गई उनसे
पास में जलाकर लकडियां चार
चिथड़े कपड़े में लिपटे वे शरीर
हर रात एक जंग झेल जाते जो
गरीबी और सर्द रात के बीच
गरीबी और किस्मत बीच
भूख और ठिठुरन में से
कौन ज्यादा निर्मम है ?
हर सुबह ज़िंदा पाकर खुद को
यही सोचते होंगे कि
जिंदगी कितनी बेशरम है
ताउम्र ज़माने की मार
मौसम के बदमिजाज नखरे
खुदगर्ज शहर के लफड़े
झेल गया ये शरीर आज जो
अकड़ी हुई लावारिस लाश है
अपने गर्म लहू के ताप से
उम्र दर उम्र शहर को सेंकने वाले
ये नहीं तो कोई और सही
बहुतेरे मिलेंगे हाड- मांस के पुतले
चमचमाते शहर को तो बस चाहिए गर्मी
ठठरियों से सोखी हुई गर्मी
लाशें किसकी हैं क्या अंतर पड़्ता है
शहर का तो दावा है गर्मी पर

Sunday, December 14, 2014

शब्दों के  यायावर हम

कभी लगता है कि
शब्द सोहबत हैं
कभी महसूस होती है
इनके व्यामोह की तंग गिरफ्त
कभी दिखाई देता है 
इनसे रचा जाता व्यूह

कभी ये लगते हैं वहम जैसे
कभी इनके आदर्शों के
ताने बाने में जितने उलझती हूं
उतनी ही तीखी वंचना
छल जाती है
भर जाती है विषाद 

शापित अर्थों के साये
रात दिन पीछा करते हैं
पुरानी ऊन की उधेड़ बुन से
अंगुलियों की सिकाई करते शब्द
इनकी ढाल में छिपकर हारी हुई
हर लड़ाई खोलती है तिलिस्म
और हर शब्द बन जाता है
विस्मृत इतिहास की पीड़ा सा

शब्द की खोह में
एक अनवरत अंतर्यात्रा
और इन सूनी यात्राओं में
नहीं मिलता साथी कोई
इन अंध यात्राओं के
अकेले यायावर हम .........

Sunday, December 07, 2014

आपकी पैट्रीआर्की को खतरा बढ़ रहा है भाई जी

मैडम अपने पति और ससुराल से परेशान रहती हैं ।
अरे फ्रस्टेटिड लेडी है।
झगड़ालू नेचर है शुरू से इसका तो हम तो कबसे जानते हैं ।
ब्यूटी का घमंड है इसको ।
किसी के भड़काने पर चल रही है वरना इसका न इतना दिमाग है न इतनी हिम्मत ।
शक्की और डिप्रेस्ड है पर्सनल लाइफ में ।
खुद कइयों पे लाइन मारती है ! तब कुछ नहीं होता ।
औरत को जी औरत की तरह ही रहना चाहिए सोफेस्टिकेटिड बनके । चालू औरतें हमें नहीं पसंद आतीं ।
अजी ज़रा कुछ कह क्या दिया इसने तो बवाल ही मचा दिया कौन सा इसके ब्लाउज़ में हाथ धुसेड़ा था ।
अजी वैसे तो बड़ा रस लेती है पर इस बार ऊपर चढ़्ने के लिए बेचारे को फंसा रही है
अजी हमें पता है कैसे इसकी नौकरी लगी कॉम्प्रोमाइज़ कर कर के आज सती सावित्री बन रही है ।
यार इससे बचके रहना किसी पर भी केस बा सकती है ये तो \
सीधे सीधे नौकरी करे सबको खुश रखे अपना घर जाए पर इसे तो अड़ंगेबाजी करनी है न ।
यार मैं बताउं सब सेक्सुअली डिप्राइव्ड औरतें ऎसी ही होती हैं । ज्यादा प्राब्लम है तो घर क्यों नहीं बैठती भई ?
अपने कामकाजी जीवन में एक बार कोई स्त्री अपने खिलाफ किए गए हैरास्मेंट पर आवाज़ उठा भर दे । मैं अपने अनुभव से कह रही हूं उस स्त्री को यही और ऎसा ही बहुत कुछ सुनने को मिलेगा । वर्क प्लेस पर स्त्री - उत्पीड़न का भी अपना एक समाजशास्त्र है । मर्यादामर्दोत्तम सब जगह समान रूप से पाए जाते हैं और सब जगह समान रूप से ही विरोध के स्वरों को दबाने के लिए तत्पर रहते हैं ।
लड़के रेप जैसा जधन्य अपराध कर दें तब भी आप कहते हैं कि लड़के हैं गलती हो ही जाती है और लड़कियां अपने बचाव में मारपीट भी करें तो आप उनकी संघर्ष के पीछे महान कारण की खोज करते हैं और कारण आपको कनविंस होने लायक न लगे तो आप अपनी अपनी अदालतों में लड़कियों के खिलाफ फतवे जारी करने बैठ जाते हैं । दोगले हैं आप । डरपोक हैं आप । लड़कों के लक्षण अख्तियार करती लड़कियों से आपको अपने सपनों तक मॆं डर लगता है । आपको तो लड़की के बलात्कार के कारण भी लड़की के शरीर में ही खोजने की आदत हो गई है । और अगर लड़कियां हिंसा कर दें लड़कों के साथ तो भी कारण उन लड़्कियों के भीतर ही दिखाते हैं आप । यारों पिट लेने दो छोकरों को भी थोड़ा बहुत । सारा सोशल जस्टिस इसी हाथापाई पर एप्लाई मत कर डालो । आवाज उठाती लड़कियां आपको क्यों भाएंगी । ये उनके बढ़ते हौसलों का सबूत है जिससे आपके समाज की बुनियादी सेटिंग को भरपूर खतरा है । सारा समाज जब एक तरफ हो जाता है असल लड़ाई तो तब शुरु होती है । चुप चाप प्रताड़ित होती रहतीं वे तो सहानुभूति पातीं बलात्कृत हो जातीं तो टुच्चा सा केस बनता और लड़के ऎड़ी चोटी का जोर लगाके , सोशल प्रेशर एप्लाई करके बरी हो लेते , मारी जातीं तो आप इंडिया गेट पर दिये लगाते , खबर बनाते , कैंदिल मार्च करते । आपकी जरा दिनों की हाय हाय से मृतक लड़कियों की आत्मा को शांति मिल जाती । और बाकी की लड़कियां कोई न कोई सबक पातीं और अपने लिए इसी सड़ी गली सोसाएटी में कोई कोना तलाश कर चुप हो लेतीं । 

संभाल लीजिए ! आपकी पैट्रीआर्की को खतरा बढ़ रहा है भाई जी !!