दुनिया आधी है अधूरी है ! पूरी क्यों नहीं है का सवाल भी मेरा है और पूरी कैसे हो की सारी छटपटाहट भी मेरी है ! क्या आधी दुनिया में सिर्फ पानी है और बाकी की आधी दुनिया बनी है चट्टानों की बेलौस ताकत से, कैक्टसों शानदार अनगढता से ! बाकी की आधी दुनिया क्या पाने को छटपटा रही है ?
वो हाट लगा के बैठे हैं मेरी छटपटाहट का ! यहां मेरा दर्द भी बिकेगा और मेरे दर्द की कहानी भी ! क्या करुं ?
मुझे नहीं होना चट्टान नही होना है कैक्टस ! तो क्या होना है मुझे ? मुझे सोच लेना होगा वरना वह सोच लेगा कि मैं क्या होना चाहती हूं ! देखो न वह मेरे दर्द से मतवाला हुआ जा रहा है ! वो कहता है कि वो जानता है मेरे मन को ...उसकी एक एक परत को उघाड लेना चाहता है वह ताकि वह रच सके कोई गीत !
मैं उसकी कहानी की नायिका हूं ! वही नायिका जिसे वह दर्द भी देता है और दवा भी देता है खुद ही ! वह मदमाता है कि वह कंटीला कैक्टस है और वह कहता है कि हे प्रिय तुम फूल हो फूल ही रहो ! वह मेरे पुष्पत्व का अकेला माली और रखवाला ! उसकी चट्टानता और उसकी महानता से दुनिया के सहमे हुए जलस्रोत खुद को अंजुली का पानी समझ रहे हैं ! वह मेरा दर्द मेरे अनगढ शब्दों में मुझसे नहीं सुन पाता पर मेरे दर्द पर लिखे गीतों किस्सों में खूब मन रमा पाता है !
मैं सिलसिलेवार नहीं , मैं कथाकार नहीं ! कैद है मेरी हंसी , मेरा दर्द , मेरा सपना तुम्हारी तिजोरी में ! तुम रचते हो ,पिरोते हो करीने से मेरे इस कैदी स्व को और सुनाते हो मुझी को ! कहते हो हे प्रिये ! पीडा का सृजन, सृजन की पीडा सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे लिए ..
..मैं खामोश हूं अभी ....वहां ठीक उस चट्टान की तली से बह रहा है पानी.....