Tuesday, January 30, 2007

चकराता का धूल भरा मैला-सा आँचल

साल मै जब कभी छुट्टियों का जोड़ा आता दिखाई देता है शहर की भागमभाग से भागने का मन होने लगता है । गणतंत्र दिवस की इस बार की छुटिट्यौ पाकर अति प्रफुल्लित होकर मनसूबे बनाने लगे जगह का चुनाव करने से लेकर रास्ते के चयन तक का सारी जिम्मेदारी इंटरनेट पर डाल दी गई ।हमारी यात्रा दिल्ली से उत्तरांचल मै स्थित चकराता तक की थी। ढेर सारी हरियाली आंखों मै भर लाने के मकसद से भरे चकराता पहुंचे किंतु निराशा हुइ वहां तो चारों ओर ढरकते अधनंगे पहाडों की धूल मात्र थी पहाड़ अपनी कहानी खुद कह रहे थे फिर कवि पंत की कविता याद आई _भारतमाता ग्रामवासिनी खेतों मै फैला है श्यामल धूल भरा मैला_सा आंचल लगा प्रकृति का यह रुप भी ग्राह्य है।