Wednesday, November 12, 2008

काले हैवान और गोरे फरिश्ते

मेरी बेटी स्कूल जा रही थी और एक गाना गुनगुना रही थी - नानी तेरी मोरनी को मोर ले गए बाकी जो बचा था काले चोर ले गए ! बेटी ने अचानक गाना रोककर सवाल दागा - ये चोर काले क्यों , गोरे चोर क्यों नहीं ! सवाल औचक था , स्कूल की बस छूट जाने का भय था जवाब लंबे और मुश्किल थे सो मैंने बेटी से कह दिया की शाम को बात करॆंगे !

भाषा ,संस्कृति और राष्ट्रीय अस्मिता ( न्गुगी वा थ्योंगो ) पढते हुए नस्लभेद और रंगभेद की औपनिवेशिक विरासत पर तीखे सवाल मन में पैदा होते हैं  ! न्गुगी अपने लेखन में जातीय हीनता को पैदा करने वाली पोस्टकोलोनियल ताकतों  और प्रकियाओं पर बात करते हैं ! आज राजनितिक आजादी हासिल किए हुए हमें एक लंबा अरसा हो गया है पर आज भी हम मानसिक रूप से गुलाम हैं !  अंग्रेजियत और अंग्रेजी भाषा केछिपे हुए औजारों के ज़रिए हम गुलाम मानसिकता को  अपने बच्चों को सौंप रहे हैं !

हम एक काली भूरी नस्ल की जाति हैं पर हमारा आदर्श है - सफेदी ! वाइट हाउस ,वाइट स्किन  ! बाकी सब काला है ब्लैक डे , ब्लैकलिस्ट , ब्लैक मार्किट !  सब नकारात्मक भावों के लिए कालापन एक सार्थक प्रतीक बनाए बैठे हैं हम !

हमारी कहानियों में निन्म वर्ग ,गरीब ,अपराधी ,सर्वहारा काला ही होगा ! कालापन क्रूरता , असभ्यता , गरीबी , अज्ञानता और दुख का प्रतीक है ! हम हमेशा अपनी प्रार्थनाओं में अज्ञान की कालिमा से ज्ञान के उजालों की ओर जाने के गीत गाते आ रहे हैं ! मुंह पर कालिख पोतना - जैसी भाषिक अभिव्यक्तियों का इस्तेमाल करते रहे हैं ! किसी व्यक्ति खासकर किसी स्त्री का परिचय  बताते हुए हमारा पहला या दूसरा  परिचयात्मक जुमला रंग पर ही होता है -- "... आप लतिका को खोज रहे हैं अच्छा वही काली सी ठिगनी सी औरत ? " किसी आपराधिक दास्तान को हम  इतिहास के पन्नों पर काले अक्षरों में ही दर्ज करते हैंracism

काले राक्षसों और गोरी परियों की कहानी सुनाने वाले हम अपने बच्चों को भाषा के संस्कारों के साथ ही  रंगभेद की विरासत भी दे डालते हैं ! हम सिखाते हैं कि काला रंग विकलांगता और गैरकाबिलियत का प्रतीक है ! यह एक प्रकार की बीमारी है जिसकी वजह से हीनता का अहसास होना चाहिए !

सारे वैचारिक विमर्श एक तरफ .....! मैं खुश हूं कि मेरी 6 साल की बेटी अपने समाज परिवेश और सांस्कृतिक विरासत पर तीखे आलोचनात्मक सवाल उठा पा रही है ! आज शायद मैं उसे काली परियों की प्यारी सी कहानी भी सुनाउं !

चित्र के लिए आभार -

 

http://brotherpeacemaker.files.wordpress.com/2007/09/racism-on-cruise-control.jpg

Saturday, November 08, 2008

यार ! बेकार ही कार खरीदी

हाल ही में हमने एक लाल प्यारी सी कार खरीदी है ! हर मध्य वर्गीय का - एक घर एक कार वाला सपना होता है ! कार हमारे लिए एक बडा सपना थी ! सपना पूरा हुआ ! हम खुश थे ! इस कार से हम कई दुर्गम पर्वतीय स्थानों पर घूमघामकर आए! कार ने हर जगह हमारा साथ दिया !नई कार हमारी हाउसिंग सोसायटी की अनेकों कारों की लाइन में पार्क की गई !पर जैसे ससुराल में नई दुल्हन की और कॉलेज में फ्स्ट ईयर के छात्र की रैगिंग होती है वैसे ही इस कार की भी खूब रैगिंग हुई !नई चमकती हुई कार हर सुबह कहीं न कहीं से खरोंची हुई मिलती !

हमारा घर तीसरी मंज़िल पर है सो कार जब भी पार्क होती किसी ग्राउंफ्लोर वाले घर के आगे ही पार्क करनी होती !यूं तो सोसायटी की सडकों पर सबका बराबर हक है पर ग्राउंडप्लोरवासी अपने घर के बाहर की जमीन पर किसी भी पराई कार को देखकर वैसे ही बिदक जाते जैसे मध्यवर्गीय घरों के पिता अपनी बेटी के क्लास के लडके का फोन आने से असहज हो जाते हैं !चूंकि आजकल जमाना शरीफाई का है सो कोई भी जमीनी फ्लैटवाला मुंह से कुछ नहीं कहता है ! वह रात के अंधेरे में चुपचाप उठता है और कार पर चाभी ,चाकू या पत्थय के टुकडे से सौहार्द की डेढी मेढी लकीरें खींच देता है ! आप सुबह उठते हैं और अपनी नई किस्तों वाली कार पर ऎसी साइन लैंग्वेज देखकर चुपचाप अपनी कार वहां से हटा लेते हैं !

जब से बेकार से हम कार वाले हुए हमें गरीबी ,आतंकवाद,असमानता जैसी राष्ट्रीय समस्याओं में एक समस्या और जोडने का मन कर रहा है - शहर में घरों के बाहर खडी असुरक्षित कारों की बढती समस्या !आप हंसेंगे अगर आपने आपके पैरों में यह बिवाई नहीं फटी होगी ! पर समस्या वाजिब है !अब अगर नैनों आ गई और एक लाख रुपल्ली की कारों की बाढ से सडकों पार्किंग स्थलों की कमी पडेगी तो कारों पर निशानदेही छोडने वाले लोगों को खुल्लमखुल्ला बदमाशी करनी पड जाएगी !ठीक वैसे ही जैसे हमारी सोसायटी के एक भद्र आदमी को करनी पडी !उन्होंने अपने घर के आगे वाली जमीन खुद ही अपनी कार के नाम की हुई थी और वे चाह रहे थे कि यह संदेश आसपास के कार वालों के पास सहजबुद्धि से पहुंच जाना चाहिए ! पर कई कार मालिक इस सहज संदेश को पाने की योग्यता नहीं रखते थे सो उन्होंने अपनी कार वहां पार्क कर दी थी !जब वह भद्र आदमी घर लौटा तो उसे अपने घर के आगे पराई कार पार्क देखकर एक गमला उठाकर उस कार का शीशा तोडना पडा ! चूंकि वे भद्र आदमी थे इसलिए उन्होंने टूटे शीशे के पैसे कार मालिक को चुकाए ! अगली सुबह सब पडोसियों को अपनी कार वहां न खडी करने संबंधी संदेश मिल चुका था !

चूंकि भारत में मुफ्त सलाह दिए जाने की पुरानी संस्कृति रही है सो हमें भी सलाह मांगने न कहीं जाना पडा न कोई खर्चा हुआ ! हमें कार कवर खरीद लेने , सोसायटी के नो मेंस ज़ोनों  की तलाश कर वहीं कार पार्क करने , बच्चों की छोटी बडी कबाडा साइकिलों को इकट्ठाकर उनपर एक गीला तौलिया सुखाकर छोड देने के जरिए पार्किंग की जमीन पर कब्जा घोषित करने ,सोसायटी के गेट के बाहर कार लगाने जैसे कई ऎडवाइज़ मिले ! और तो और स्क्रेच लगी पुरानी गाडियों के मालिकों ने इस सत्य को निगल लेने की सलाह भी दी कि दिल्ली में तो गाडियां स्क्रेचलेस हो ही नहीं सकती !हमारी ही सोसायटी क्यों हर जगह का यही हाल है ! नए पे कमिशन में पी बी -4 की तंखवाह की खबर पाकर हमारे कई साथियों ने कार खरीदी थी ! आज हमारे दुख में वे ही हमारे सच्चे साथी साबित हो रहे हैं ! किसकी कार को कहां से खरोंचा गया औरै उसके प्रतिरोध ने किसने कितनी बार चुप्पी लगाई और कितनी बार सडक पर खडे होकर अनाम स्क्रेचकारी को जी भर कोसा हमारी बातचीत में अक्सर ये चर्चाए भी उठ जाती हैं !


हमारी भी आंखें खुलीं हमने देखा कि वाकई कार लेने से हमें कितने बडे सामाजिक सत्य के बारे में पता चला है ! कार न ली होती तो हमें कैसे पता चलता कि समाज में आज भी कितनी असहनशीलता है ,कितनी प्रतिद्वंद्विता है ,कितनी असमानता है और कितना उत्पीडन है ! घर की दहलीज के बाहर जब कार का ये हाल है तो हमारी अकेली बेटियां कितनी असुरक्षित होंगी ! हम आसानी से समझ पाते हैं कि क्यों एक कवि कह गए थे

सांप तुम सभ्य तो हुए नहीं / शहर में रहना भी तुम्हें नहीं आया /फिर कहां से सीखा डसना /विष कहां पाया ?

आज एक और कवि पंक्तियां भी याद आ रही हैं -

कितने रिक्शे,कितनी गाडियां ,कितनी सडकें कितने लोग / हे राम ! / हे रावण !

आज किस्तों वाली गाडी पर पडते स्क्रेचों से हम उतने उदास नहीं होते जितने पहले होते थे ! वो क्या है न हर मध्यम वर्गीय बुद्धिजीवी के पास दुखों के उदात्तीकरण वाली एक तरकीब होती है ! बस ठीक वही हमने भी अपना ली है ! साथ ही हम कार के जिस्म पर खरोंचों को समाज रूपी बुढऊ के शरीर की खरोंचों के रूप में देख रहे हैं !