Sunday, November 01, 2015


करवा के व्रत की प्रचंडता पर कुछ उद्दंडता भरे  नोट्स 

करवाचौथ के व्रत की कथा की प्रचंडता हर सुहागन को डराती है ।
न रखने वाली पत्नी नौकरानी बन जाती है तो घर में काम करने वाली नौकरानी वेकेंसी पैदा होते ही मालिक की पत्नी बन जाती है । साथ ही पति भी अकाल मृत्यु के मुंह में जाने लगता है जिससे एक के स्थान पर दो सुहागिनों का सुहाग उजड़ने की नौबत आ जाती है । ऐसे में ओरीजनल पत्नी को अपना स्थान वापस पाने हेतु इस व्रत को पूरे विधि विधान व शर्तों से रखना होता है । पत्नी की पोस्ट पर बने रहने के लिए मालिक की सलामती जरूरी है । मालिक की सलामती के लिए दूसरी लालायित औरतों से कॉंपीटीशन जरूरी है । इस कॉंपीटीशन में जीतने के लिए ऐसा व्रत ज़रूरी है जिसकी महिमा ही पूरे साल की गारंटी का आत्मविश्वास देने से जुड़ी हो । 
... ईर्ष्या असुरक्षा और ऐसे हीनता बोध से भरी कथा सुनकर जिन सुहागिनों के मन में श्रद्धा और आस्था पैदा होती है उनके प्रति सहानुभूति होती है मुझे ।

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ब्रा खरीदवाने के लिए दूकान पर पत्नी से सटकर अपनी पसंद का डिजाइन चूज़ करवाते हुए दुकानदार का भेजा खा जाने वाले ,
टेलर की दुकान पर पत्नी के ब्लाउज़ के बैक में मोती की झालर न लगाने पर टेलर को झिड़कने वाले , 
अंगुलियों में मुंदरी और गले में दहेज में मिली सोने की चेन पहनने वाले , 
देर रात मस्ती बाहर मारकर लौटे और सीधे बिस्तर में टूट पड़्ने वाले , 
बात बात पर मेरी बीवी मेरी वाइफ कहकर पत्नी को नामहीन कर देने वाले , 
आए दिन पत्नी के हाथ नोट थमाने वाले
और पत्नी के जन्मदिन व त्यौहारों पर उसे नियम से तोहफा पेश करने वाले ,
यारों के बीच रिश्तेदारों में पत्नी के खाने की तारीफ की माला जपने वाले,.......
..ऎसे पति पूरी तरह डिज़र्व करते हैं पत्नियों द्वारा अपने लिए करवा चौथ रखा जाना । ऎसे ही पति सबसे ज्यादा कूद फांद मचाकर पत्नियों को ऎसा कठिन व्रत रखवाने में सपोर्ट करते हैं । इस दिन का इमोश्नल फिज़िकल सपोर्ट पूरे साल की हैपीनेस की गारंटी ।
ऎसे हैप्पी ,कॉंफिडेंट , सेटिस्फाइड ,मर्दाने पतियों को पतित्व को हाइलाइट और् ग्लोरिफाई करने वाले इस त्यौहार की जय हो !!


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तलाक के खूंखार कॉंन्ट्रास्ट के सामने के शादी के बंधन से पैदा हुए सारे दुख , तकलीफें , झगड़े , अनबन , खटपट् कितनी हसीन व मामूली लगने लगती है न । उतना ही टकराते हैं हम एकदूसरे से कि तलाक की नौबत आने से ठीक पहले अपनी हाई स्पीड में बहती हुई ईगो एक्स्प्रेस को ब्रेक लगा सकें । उतना ही ऎंठते हैं जितने उस ऎंठन की एवज में आने वाले संकट हम सह सकें । ज्यादातर तो वाक युद्ध से ही अंदर के सारे अरमान निकाल लेना व अकेले में बकबकाकर बाकी के एंगर - विस्फोट के मुंह पर सेफ्टी वॉल्व लगा लेने में ही भलाई दिखती है । मध्यम वर्गीय हया हमारी शादी को ठीक वहीं बचा लेती है जहां से तलाक या अलगोझे की रपटीली कांटेदार अपमान भरी पगडंडी शुरू होती है । घर का खुशनुमा सच तलाक की बदनुमा इमैजिनेशन के जरिए ही महसूस हो पाता । शादी कर तो बचकाने भी लेते हैं उस शादी को निभाना बचाना मंझे हुओं का खेल है जनाब ।

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