Tuesday, September 23, 2014

देवता के विरुद्ध

मेरी आस्था ने गढ़ॆ देवता , 
विश्वासों ने उनको किया अलंकृत 
मेरी लाचारगी के ताप से 
पकती गई उनकी मिट्टी 
मेरे स्मरण से मिली ताकत से वे
जमते गए चौराहों पर
मैंने जब जब उनका किया आह्वान 
आहूत किया यज्ञ किये
रक्तबीज से उग आए वे यहां वहां 
काठ में ,पत्थर में , पहाड़ में , कंदराओं में
मेरे वहम ने उनकी लकीरों को
धिस धिस के किया गाढा
मेरे अह्म ने भर दिया
असीम बल उसकी बाहुओं में ,
मुझे दूसरे के देवता पर हंसी आती
मुझे हर तीसरे की किस्मत पे आता रोना
मुझे सुकून मिलता अपने देवता के
पैदा किए आतंक से

एक देवता क्या गढा मैंने
मैं इंसान से शैतान हो गया

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