Saturday, October 27, 2007

अगर मुन्नी न हो तो?

मुन्नी मेरी बेटी या पास पडोस की किसी साफ सुथरी सी राज दुलारी का नाम नहीं है यह नाम है मेरे घर में काम करने वाली पन्द्रह सोलह साल की लडकी का ! मुन्नी अपने बहुत  काले रंग की आलोचना बहुत बेरहमी से करती है ! अपने खुरदरे हाथों बिवाइयों से भरे पैरों की ओर देखकर अक्सर हंसती हुई कहती है "वाह क्या किस्मत देकर भेजा है भगवान ने हमें " पर अगले ही पल कहने लगती है "पर भाभी दुनिया में सभी तो परेशान हैं ! पैसे वाले तो और भी ज्यादा हर समय डरते हैं मोटापे से ,गंदगी से कामवाली के छुट्टी कर लेने से -अजीब अजीब चीजों से परेशान रहते हैं "!  मुन्नी के जीवन दर्शन के आगे मैं अपनी थकावट और वक्त की कमी से हुई झंझलाहट को बहुत थुलथुली महसूस करने लगती हूं !मुन्नी महीने में सिर्फ चार दिन नहीं आती है! छुट्टी करने से पहले ही वह हर घर में बता देती है ! पर एक दो घरों में वह छुट्टी के दिन भी आकर कामकर जाती है! जब मैंने पूछा कि वह ऎसा क्यों करती है तो उसने बताया कि इससे उसे महीने के चार सौ रुपये और मिल जाते हैं ये उसके अपने होते हैं इसे मां को नहीं देना होता ..!  

मुन्नी हर सुबह अपनी मां के साथ ठीक 6 बजे आ जाती है !मां बेटी मिलकर कई घर निपटाते हैं _सफाई ,बरतन और कपडों की धुलाई ,गमलों को पानी देने ,फ्रिज साफ करने जैसे कई काम निपटाती हुई शाम को 7 बजे तक घर जाती है !मुन्नी के पिता दिनभर सोसाइटी के बाहर रिक्शा लेकर खडे रहते हैं और सोसाइटी की महिलाओं को आसपास के बाजारों तक पहुंचाने का काम करते हैं ! मुन्नी कई घरेलू महिलाओं के घरों का काम करती है !  मुन्नी अक्सर बुडबुडाती हुई काम करती है "फलां नंबर वाली आंटी मुझे नाश्ता क्या करा देती हैं अपमना गुलाम ही समझने लगती हैं ,जब चाहे बुला लेती हैं फालतू काम कराती हैं ! पर भाभी मैं मना नहीं कर पाती क्योंकि एक बार मेरे पेट में दर्द हुआ था तो उन्होंने अपने पैसो से इलाज कराया था अल्ट्रासाउंद के पैसे भी लगाए मुझपर.." !

मुन्नी अक्सर हंसती रहती है ! वह अखबार की सनसनीखेज खबरों पर बातें करते हुए झटपट काम निपटाती चलती है ! फिल्मों पर खासकर हाल ही में देखी फिल्म के सामाजिक संदेश पर अपनी राय देती बरतनों की जूठन हटाती चलती है ! वह अक्सर थकी होती है पर जब मेरी हडबडी और व्यस्तता और थकावट देखती है तो फौरन  आराम करने या दवा ले लेने की सलाह दे डालती है !मुझे पता है ,उसे भी पता है कि उसके एक दिन न आने पर मेरी दिनचर्या बुरी तरह प्रभावित हो जाती है -अखबार अधपढी रह जाती है या फिर कॉलेज के लिए क्लास की तैयारी पूरी नहीं हो पाती है या नेट देवता और ब्लॉग देवता के दर्शन तक नहीं हो पाते हैं या किसी एक वक्त का खाना खाने के लिए आसपास के भोजनालयों का मैन्यू टटोलना पडता है !   

कभी कभी मैं सोचती हूं कि अगर वह और अधिक समझदार हो गई तो धीरे धीरे वह समझने लगेगी कि बौद्दिक ,रचनाशील ,क्रंतिकारी और संधर्षशील स्त्रियों के इस समस्त कुनबे के बने रहने में उसका कितना हाथ है !

अक्सर वह मुझे कंप्यूटर पर काम करते देखती है और अक्सर जानना चाहती है कि मैं कंप्यूटर पर क्या करती रहती हूं !  सो पिछ्ले दिनों  मैंने उसे अपना ब्लॉग दिखाया और अपने काम के बारे में बताया ! उसने तारीफ के भाव से ब्लॉग को देखा , ब्लॉग पर लगी मेरी फोटो को सराहा ! फिर उसने बहुत रहस्य भरे लहजे में बताया कि उसका बडा भाई भी काफी समय से कंप्यूटर की एक दुकान पर काम कर रहा है और कंप्यूटर  काफी कुछ सीख चुका है ! उसकी आंखों में चमक और आवाज में उमंग थी वह बोली -"  भाभी मैं भी अपने भाई से कहकर अपनी फोटो कंप्यूटर पर लगवाउंगी ताकि मुझे भी दुनिया देख सके जैसे आपको देखती है पर क्या लिखूंगी कैसे लिखूंगी  ये नहीं पता ........."! मुन्नी काफी देर गहरी सोच में डूबी रही ......मेरे मन ने कहा कि मुन्नी जो तुम कह सकती हो वह मैं नहीं इसलिए तुम लिखो... .....मुन्नी ने अभी तक नहीं लिखा है पर मैंने लिख दिया है ...उसके बारे में !मैं अक्सर सोचती हूं कि अगर मुन्नी न हो तो.....?

11 comments:

Satyendra PS said...

वाह-वाह, बहुत संवेदना है आपकी कलम में।

Ashish Maharishi said...

मुन्नी की कहानी अपनी जुबानी पहुचाने के लिए शुक्रिया..देश में ना जाने कितनी मुन्निया अपने अपने भविष्य के लिए लड़ रही है.

अनामदास said...

अच्छा है, मुन्नी को बताइएगा कि उसे बहुत सारे लोगों ने पसंद किया और कहा है कि वह ऐसे ही खुश रहा करे. हां, उसका एक फोटू लगा देतीं तो वह और खुश हो जाती...

Anonymous said...

मुन्नी को पढ़ा एँ और उसे प्रायवेट दसवीं की परीक्षा दिलवाएँ।

बोधिसत्व said...

आप मुन्नी का खयाल रखें....
आप से शिकायत है कि महीनों ब्लॉग से गायब न रहें नहीं तो दंड लगाया जाएगा....हमें आपके लिखे का इंतजार रहता है.....और हम आपसे अनुशासित होते हैं......यानी ।

कामोद Kaamod said...

ऐसी कई मुन्नीयां हैं जो समाज को मजबूत सम्बल प्रदान करती हैं . एक बड़िया प्रस्तुति.

Rajesh Roshan said...

नीलिमा जी आप से गुजारिश है की इस पोस्ट के साथ उसका फोटो लगा दीजिये. थोडी परेशानी जरुर होगी लेकिन यह सम्भव है. उसे बड़ा अच्छा लगेगा.

काकेश said...

अच्छी लगी आपकी मुन्नी.

ravish kumar said...

मुझे मुन्नी के लिखने का इंतज़ार रहेगा। तब तक आप उसका एक लंबा इंटरव्यू कीजिए।

ghughutibasuti said...

बहुत बढ़िया लिखा है । मेरी महरी लाडोबेन की भी दो मुन्नियाँ हैं जिनकी अब शादी हो गई । परन्तु मुझे अपनी लाडोबेन पर गर्व व लाड आता है । कुछ भी हो जाए, वह बीमार पड़े, थके , उसे देर हो जाए , स्त्रियों से देर दे आने , नागा करने के लिये सुनना पड़े वह अपनी मुन्नियों को कभी भी काम के लिए साथ नहीं लाई ।
घुघूती बासूती

Udan Tashtari said...

मुन्नी बिटिया तो बहुत प्यारी लगी.

आपने भी क्या गहरी बात कह डाली:
अगर वह और अधिक समझदार हो गई तो धीरे धीरे वह समझने लगेगी कि बौद्दिक ,रचनाशील , क्रंतिकारी और संधर्षशील स्त्रियों के इस समस्त कुनबे के बने रहने में उसका कितना हाथ है !


--सच!!!

---अच्छा, अपना ब्लॉग तो आपने उसे दिखा दिया-अब हमारा और मसिजिवी का भी दिखा दें उसे...

मुन्नी अपने बहुत काले रंग की आलोचना बहुत बेरहमी से करती है

-यहीं जानिये, छोड़ देगी. बच्ची को संबल मिलेगा. बताईये न उसे!!!

--बधाई इस संवेदनशील पोस्ट के लिये.