काली सुरंगों में भागती वह अकेली औरत
नहीं जानती कि किधर जाना है उसे
वह देखती है सर उठाकर ऊपर
तो आती है उसे आवाजें छैनी हथौडे की
जगह जगह गिरता है मलबा रोडी पत्थर
वह जानती है उसे सुरंग में धकेल डालने वाला वह
अपने पैरों तले की जमीन को छेद रहा है
बना रहा है कई मुहाने
सुरंग के रास्ते पर
और कह रहा है आस पास की भीड से-- देखो ये गटर हैं..
...वह दौडती है और तेज
...सुरंगों में धस गई कई मरी हुई औरतों की कहानी
उस सुरंग को याद है जबानी
सुनो ! अब उन्हें सुन सकती हो सिर्फ तुम ही...
...वह दौडती है और तेज
सुनती है गुत्थमगुत्था आवाजों में उलझी पडी सैकडों कहानियां
चीखें, आहें,आंसुओं,सिसकियों में तहायी पडी सैकडों कहानियां
............
वह फिर भी डरती नहीं ,और भागती है
कदमों की चाल से चेहरे पर छिटक आए
कीच को पोंछे बिना....
वह अकेली है
-यही सुरंग में घुस जाने की नियति है!
वह दौडती है
-यह उसका अपना फैसला है!
वह लथपथ है कीच गर्द गुब्बार से
--यह उसके दौडने की सजा है !
...............मुहानों से आती हर गूंज उसे कहती है
-अपना चेहरा तो देखो
इसे पोंछ क्यों नहीं लेती
और वह बुदबुदाती है
-अब यही मेरा चेहरा है ..यही मेरा चेहरा है .....
17 comments:
अच्छी कविता और अच्छी सीख्,कि महिलाओ को अकेले गुफा मे नही जाना चाहिये..:)
गंभीर कविता है बहुत पसंद आई :) को अन्यथा ना ले.
अच्छी कविता...अरुण जी बातों में ध्यान ना दें..पर वह बात अक्सर ठीक ही करते हैं.
-यही सुरंग में घुस जाने की नियति है!
वह दौडती है
-यह उसका अपना फैसला है!
खूबसूरत अभिव्यक्ति है
सुन्दर व विचारपूर्ण कविता!!!
एक गहराई है कविता में सार्थकता की…वक्त की सीमाओं को टटोलते!!!
बहुत गंभीर और गहरी कविता है. भाव पूरे उजागर हुए-रचना की यही सफलता है.
My Hindi editor is not cooperating so writing in English…Feel free to send me link to good hindi editor.
Neelima ji, this is beautiful poem and is applicable to anyone who dares to choose his/her own way….
--यह उसके दौडने की सजा है !
And last but not least…. -अब यही मेरा चेहरा है
तुम सब को धिक्कार है,
कोई काम है नहीं बस करो।
मैंने सुना है कि दिल्ली के देवी प्रसाद मिश्र इसी मुद्दे पर एक उपन्यास, लखनऊ के अखिलेश एक कहानी, इलाहाबाद के बोधिसत्व एक कविता, शिमलावासी दूधनाथ सिंह एक लंबी कहानी, पटना के अरुण कमल एक बरवै युक्त समीक्षा, दिल्ली के राम गोपाल बजाज एक नाटक, वहीं की अनामिका एक स्केच, लखनऊ की कात्यायनी एक रिपोर्ताज, और साहित्य अकादमी एक सेमिनार करवा रहा है। और सब कुछ देवी जी आप और श्रद्धेय नित्यानन्द तिवारी, पू.पा.(पूज्यपाद) अजय तिवारी और प.पू.(परम पूज्य)चंचल चौहान की देख-रेख में सम्पादित होगा।
उस पर फिर से आलोकधन्वा कुछ खास रचेंगे और आप एक ऐसी ही लीद युक्त कविता करेंगी ।
रचो अच्छा है कि तुम सब को कोई साहित्यिक मान्यता नहीं मिल रही है और लक्षण भी न मिलने वाले ही अधिक हैं।
अच्छी कविता, चाहे यह बिना नाम का सहित्य मर्मग्य कुछ भी बोले ! अब थोडी बहुत तो परख हमे भी है
तुम सब के लिए तो कहीं से भी रिसता हुआ चिपचिपा पदार्थ गंगाजल के तुल्य ही नहीं श्रेष्ठ है। तुम सब का कुछ नहीं होने वाला। हिंदी की सबसे खराब कविता भी इससे कहीं अच्छी होगी। घटिया विचार और घटिया अभिव्यक्ति को गले से लगा कर घूमो किसने रोका है। कविता कोई नित्य क्रिया नही है कि रात को खाया है तो सुबह करना ही होगा।
करो खूब करो और गंध फैलाओ, कहो कि सुवास है।
प्रिय गुमनाम भाई आपकी वाव्य समीक्षा के लिए धन्यवाद! पूरी चौकसी रखिए कि कहीं कोई साहित्य की पवित्र भूमि पर लीदमय वविता न रच जाए ! आखिर लीद की सूंघ रखना कोई आसान काम नहीं है-पूरा स्पेशेलाइज्ड काम है !
अगर कवि होना इतना ही आसान होता तो आज हर नागरिक कवि होता,
मध्यकालीन कवि ठाकुर की एक पंक्ति है-
ढेल सो बनाय आय मेलत सभा के बीच
लोगन कवित्त कीनो खेल करि जानो हैं।
आप सब खेलिए कविता-कविता का खेल, और एक दूसरे को वाह-वाह से आह्लादित करिए। आखिर समय बिताने के लिए कुछ तो करना ही होगा।
अनाम भाई,
बम्बई में बैठकर देखोगे तो सारा साहित्य ऎसा ही दिखेगा!
कुछ लोग दुर्घटनाओं पर ही लिखते हैं। जैसे दंगे, सुनामी, भूचाल, इत्यादि...इत्यादि। इसमें आप का क्या दोष आप लगी रहें। शुभकामनाएं।अगली दुर्घटना की प्रतीक्षा करें। वैसे आप के लेखन के लिए संदेह भी एक अच्छा मुद्दा हो सकता है। लिखें। और अपने ब्लॉग-विश्व को चमत्कृत कर दें। आह-वाह करने वाले व्लॉगिए इंतजार में बैठे हैं।
are benaam bhai/bahan,
Achche sahitya kaa udaaharaN de dijiye....hame.n bhi pata chale ki achcha sahitay kise kahate hai.n
भाई, अब हम ये सोच रहे हैं कि "समीक्षक" की समीक्षा करने का भी कोई विधान है क्या ?
देखने में तो ये आया है कि जितनी गंदगी समीक्षकों ने मचाई है, उसका भी कोई हिसाब नहीं। अब हमें कोई किसी नई क्षेणी में डाल दे तो हम भी दो फूल इनके नाम पर चढ़ा दें।
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