Monday, March 12, 2007

चिट्ठोद्रेक से चिट्ठोन्‍माद......हमारा चिट्ठा वर्ल्‍ड, हमारे चिट्ठावर्ड

अफलातून जी,
आप चिट्ठाकारी में इस्‍तेमाल हो रहे नए शब्‍दों को लेकर असहज महसूस कर रहे हैं...शायद।
रवीश जी ने ब्लॉगपत्य शब्द का इस्तेमाल किया है। मैंने भी ब्लॉगसभा शब्द का प्रयोग किया है, और आपका कहना है इस पर एक गंभीर बहस होनी चाहिए। भाषा बहता नीर है, जब जब जरूरत होती है हम नए शब्द गढते ढूंढते हैं खास तौर पर व्यंग्य का तो प्राण तत्व ही नवीन भाषा प्रयुक्तियां हैं। भाषा का अब तक का विकास भी मानव की भाषिक सृजनशीलता की पगडंडियों पर चलकर हुआ है। भाषा कोई जड वस्तु नहीं है, उसका निरंतर विकास ,परिमार्जन उसके प्रयोक्ता द्वारा किया जाता है। वह हमारे जीवन के साथ चलती है, जीवन उसको अपने साथ लेकर चलता है। विशेषकर तकनीक के साथ भाषा में निहित लचीलेपन का प्रयोग कर यदि हम अपनी अभिव्यक्ति कर पाते हैं तो हम अपनी भाषा के साथ कोई अन्याय नहीं कर रहे होते हैं। हम अभिव्यक्ति के लिए दूसरी भाषा की शरण में जाने से पूर्व अपनी भाषा की संभावनाओं को तलाशते हैं। यह हमारी सृजनशीलता और अपनी भाषा के प्रति हमारा प्रेम है इससे भाषा अशुद्ध नहीं होती वरन समृद्ध होती है। हिंदी चिट्ठाकारिता में हम सब नई राहों के अन्‍वेषी हैं साथ मिलकर भाषा के कारखाने में हमें काम करना होगा इस संबंध में कुबेरनाथ राय का निबंध भाषा बहता नीर बहुत प्रासंगिक हो जाता है, वे जब कहते हैं कि नए शब्दों के प्रयोग की कसौटी यह हो कि प्रयुक्त शब्‍द वाक्य संरचना में ऐसा न प्रतीत हो जैसे पूजा की थाली में अंडा ..शब्द वाक्य में खप जाए तथा निहितार्थ को व्यक्त करते हों। आने वाले समय में तकनीक हमारे जीवन का अभिंन्न अंग होगी तब हम क्या भाषा के बिना काम चलाएगॆं या किसी अन्य भाषा की शरण में जाएगें। जिन दिनों मैंने अपना चिट्ठा बनाया था मैं इस प्रश्न से जूझी थी फिर हमने चिट्ठाकारिता से जुडे नए शब्‍द युग्मों पर भी विचार किया था जैसे -रसाभास की तरह चिट्ठाभास, सगुणोपासना की तर्ज पर चिट्ठोपासना, ऐसे ही चिट्ठोन्‍माद, चिट्ठाशाली, चिट्ठोद्रेक, चिट्ठारत, चिट्ठामयी, चिट्ठाजीवी, चिट्ठाखोर, आदि ब्‍लॉगित और लिंकित तो मेरे शोध विषय में ही हैं।(.... और चिट्ठाजगत के लिए लगातार यह कौतुहल का विषय है कि मेरा मन 'लिंकित' क्‍यों है...पर उसका जबाव फिर कभी) कुल मिलाकर हमें तो लगता है कि चिट्ठाकारी के इस नीर को बहने दो, यह कूल तोड़ेगा भी और नए द्वीप भी रचेगा ..... हमें तो यही काम्‍य है।

7 comments:

Anonymous said...

चिट्ठागिरी को छोड़ दिया आपने?


भाषा में नये शब्द जुड़ें तो कैसी आपत्ती? कुछ समॄद्ध ही हो रही है न भाषा ।

ePandit said...

बिल्कुल सहमत हूँ आपसे। आखिर एक दिन आलोक जी ने भी तो पहली बार चिट्ठा शब्द का प्रयोग किया था, आज ये एक मानक शब्द बन चुका है।

कई शब्द हैं जो ऐसे ही चल पड़े और अब आम हो चले हैं जैसे ब्लॉगियाना, टिपियाना आदि।

काफी समय पहले मैंने ऐसे शब्दों के संग्रह का काम शुरु किया था लेकिन फिर ढीला पढ़ गया। खैर अब काफी नए शबद हैं, जल्द ही अपडेट करुंगा।

मिर्ची सेठ said...

नीलिमा जी,

बढ़िया लगा आपकी प्रविष्टि पढ़ कर। हिन्दी ब्लॉगजगत / अंतरजाल तकनीकी जगत में नए शब्द गढ़ने वालों की बहुत जरुरत है। जब चिट्ठालिखना शुरु किया था तो उन दिनों में बहुत नए नए शब्द आए थे। एक था विपरीत पथ

http://ms.pnarula.com/200411/%e0%a4%ae%e0%a5%87%e0%a4%b0%e0%a5%87-%e0%a4%98%e0%a4%b0-%e0%a4%86%e0%a4%88-%e0%a4%87%e0%a4%95-%e0%a4%a8%e0%a4%a8%e0%a5%8d%e0%a4%b9%e0%a5%80%e0%a4%82-%e0%a4%95%e0%a4%b2%e0%a5%80/

पूजा की थाली में अंडा पहली बार सुना, मजा आया पढ़ कर।

पंकज

मिर्ची सेठ said...

ऊपर की कड़ी के लिए यहाँ क्लिक करें

http://ms.pnarula.com/200411/

व मेरे घर आई एक नन्हीं कली प्रविष्टि में विपरीत पथ का प्रयोग हुआ है।

Anonymous said...

नीलिमाजी,
शब्दों के बारे में कुछ कहना चाहता हूँ। जिस वस्तु को हम नष्ट करना चाहते हैं उससे जुड़े शब्द को नष्ट करने से शुरु करते है। शंकराचार्य के जमाने में बुद्ध से बुद्धू,लुंच मुनि से लुच्चा आदि किया गया। होली की गालियों के साथ कबीरा सरारर जोड़ा गया और सबसे आखीर में बाबरी मस्जिद को विवादित ढ़ाँचा कह -कह कर अन्त में तोड़ दिया गया।
ब्लॉगपत्य जैसे शब्द न सिर्फ़ ब्लॉगिंग के प्रति ड्रुष्टिकोण को दर्साते हैं अपितु दाम्पत्य के बारे में एक विशेष सोच को प्रकट करते हैं।मैंने सोचा था गैर-पुरुष नजरिए से सार्थक चर्चा शुरु हो सकती है। अपने परिवार में प्रयुक्त कम्प्यूटर विडोज़ का हवाला इसीलिए दिया था ।

debashish said...

ब्लॉगिंग की शुरुवात से ही इससे जुड़े कई शब्द बनते बिगड़ते रहे हैं, यहाँ देखें http://en.wikipedia.org/wiki/List_of_blogging_terms. ट्रैकबैक के लिये विपरीत पथ का पहली बार इस्तेमाल संजय व्यास ने किया था पर मुझे शब्द जमा नहीं था क्योंकि ये केवल पंजाबी इश्टाइल शब्दानुवाद था, मर्म का अतापता नहीं। पर इस यात्रा में देसी भावों से जुड़े नये शब्दों का जुड़ना लाज़मी है।

श्रीशः आप जो काम कर रहे हैं उसे सर्वज्ञ में भी जोड़ें तो और लोगों तक पहुंचेगा।

Neelima said...

धन्यवाद देवाशीष जी जानकारी बढाने के लिए आशाहै आगे भी इस पर काम होता रहेगा