मैं चट्टान ही रहना चाहता हूं
दुनिया के सबसे मीठे दरिया के किनारे की
आधी डूबी आधी सूखी ....
मैं डरता हूं पानी के मखमली थपेडों से
धीमे धीमे झडते देख खुद को..
मुझे अच्छा लगता है यह दरिया
और उसका मीठा पानी
पर मैं यह नहीं चाहता कि यहां उठे
कोई भी लहर ऊंची
मैं झिझकता हूं पूरा भीगने से....
मैं नहीं चाहता कि कोई भी मल्लाह
उतारे इस जल में अपनी डोंगी
या कि किनारे पर बैठा कोई
तैराए इसमें अपनी कागजी किशती....
मैं चाहता हूं कि किनारे की सारी वनस्पतियां
गवाह हों दुनिया के सबसे गहरे पानी के
ऎन किनारे टिकी इस शिला के शैलपन की ....
मुझे तनिक नहीं भाती ये मछ्लियां
दरिया की चिर सखियां
जो पानी के बहाव में उछ्लती हैं
तैर लेती हैं बहाव के साथ भी
बहाव के खिलाफ भी ...
मैं चाहता हूं इस मीठे पानी के दरिया में
मुझ से झरे कण ठहर जाएं
छोटी छोटी शिलाएं बन
मैं दरिया में उग जाना चाहता हूं
ताकि इस रेतीले किनारे पर टिके-टिके ही
देख आउं मैं दूसरे किनारे को
ओ दुनिया के सबसे नीले झिलनमिलाते दरिया !
मैं तुमसे करता हूं प्रेम !!
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