tag:blogger.com,1999:blog-365237632024-02-19T11:29:18.381+05:30आँख की किरकिरीकहता है वो, बुरा हो इन आँधियों का कि पैर की धूल आँख की किरकिरी बन गयीNeelimahttp://www.blogger.com/profile/14606208778450390430noreply@blogger.comBlogger100125tag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-55761410949073161452015-11-30T10:11:00.002+05:302015-11-30T10:11:52.624+05:30<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">
<span style="font-size: 17.6px;">हैप्पी टु ब्लीड... क्योंकि दाग अच्छे हैं</span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">
हाल ही में में सबरीमाला मंदिर के धर्माधिकारियों द्वारा स्त्रियों के लिए मासिक धर्म फ्रिस्किंग़् मशीन लगाने की घोषणा से धर्म के जरिए <span style="font-size: 12.8px;">स्त्री की सत्ता को</span><span style="font-size: 12.8px;"> नियंत्रित करने की कुरुचिपूर्ण घटना सामने आई है | इस प्रकार की विषमतापूर्ण कार्यवाही से देवस्थलों की क्रूरता जगजाहिर तो हुई साथ ही दूसरी ओर सभ्य समाज द्वारा स्त्री को बराबरी व सम्मान की दृष्टि से देखने के दावे खारिज हुए हैं । स्त्री के रजस्वला होने की एक सहज और प्राकृतिक अवस्था को धर्म और प्रथा के जरिए नियंत्रित करने के पीछे सामंती व्यवस्था को कायम रखने का सुनियोजित षड्यंत्र है । इस प्रकार के आडंबरपूर्ण , विषमता की भावना से भरे , अमानवीय फतवे को जारी करने का विरोध करने के लिए एक ओर सोशल मीडिया पर एक बड़े आंदोलन को तैयार किया जा रहा है तो दूसरी ओर इस तरह के विरोध और उसके तरीकों पर सवाल उठाकर उन्हें अनावश्यक और धार्मिक व्यवस्था में हस्तक्षेप बताने वाला एक पूरा वर्ग भी सक्रिय है । </span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">
दरअसल धर्म के जरिए स्थापित मान्यताएं व प्रथाएं स्त्रियों के लिए सवार्धिक क्रूर रही हैं । धर्म ही सामंती व्यवस्था , गैरबराबरी और शोषण का दमदार व अचूक माध्यम है । पितृसत्ता को कायम रखने के लिए प्रथाओं और परंपराओं का मूल लक्ष्य् स्त्री की योनि व कोख को नियंत्रित करना है । कोई भी नियंत्रण बिना भय और बिना दमन और बिना दंड के संभव नहीं है । अत: धर्म और ईश्वर के नाम पर स्त्री के लिए व्यवहार और आचरण की लंबी फेहरिस्त लगभग हर समाज में पाई जाती है । स्त्री के लिए शुद्धता - अशुद्धता , पाप -पुण्य , करणीय - अकरणीय की विभिन्न कोटियां पितृसत्तात्मक समाज की नींव की भांति काम करती हैं । मासिक धर्म , यौनिकता , गर्भ और योनि से जुड़े सभी मिथ , प्रथाएं और प्रतिबंध स्त्री की अस्मिता को गौण बनाए रखकर व्यवस्था की सामंतीयता को बचाए रखने की क्रूर युक्तियां हैं । </div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">
हैरत की बात है कि विश्व के अधिकतर धर्मों और सामाजिक आचरण सरणियों में मासिक धर्म को एक टैबू बनाकर रखने का प्रपंच पाया जाता है । मासिक धर्म की अवस्था में स्त्री को अशुद्ध घोषित कर उसके लिए अमानवीय और अन्यायपूर्ण आचार संहिताएं बनाई गईं हैं । आज भी विश्व के प्रगतिशील व विकसित माने जाने वाले देशों में धर्म या सामाजिक - सांस्कृतिक प्रतिबंध के जरिए मासिक धर्म को लज्जा , अशुद्धता , असहजता , दुराव और घृणा से जोड़कर देखा जाता है । जिन देशों में काम की अभिव्यक्ति व उसके प्रदर्शन की सीमाएं अत्यधिक उदार हैं वहां भी मासिक धर्म किसी प्रकार के संवाद , कला माध्यमों में अभियव्क्ति या सामाजिक रूप से चर्चा के लिए निषिद्ध माना जाता है । दुनिया के सभी बड़े धर्म स्त्री की इस प्राकृतिक अवस्था में स्त्री को त्याज्य , अस्पृश्य और अशुद्ध मानकर उसकी अस्मिता का दमन करते रहे हैं । सबरीमाला मंदिर में लगाया जाने यंत्र मासिक धर्म की जांच कर न केवल यह बताएगा कि स्त्री रजस्वला है या नहीं बल्कि उसके जरिए यह भी अनावृत्त होगा कि अपने रजस्वला होने को छिपाकर कोई स्त्री ईश्वर के समीप जाने का दुस्साहस कर देवता और देवस्थल् को अशुद्ध कर धर्म के अहंकार और विकरालता को चुनौती न दे सके । यदि मानव शरीर की स्वाभाविक अवस्थाओं और प्रक्रियाओं से शुचिता भंग होती है तो यह मान्यता केवल स्त्री से संबद्ध क्यों हो । क्यों नहीं समाज में पुरुषों द्वारा बलात्कार या संभोग करके पवित्र स्थलों में प्रवेश करने को शुचिता भंग होने से जोड़ा जाता और इस अपराध को रोकने हेतु उपायों का आविषकार किया जाता ? </div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">
तेरह से पचास साल की उम्र तक लगभग 444 बार और अपनी प्रजनन उम्र के तकरीबन साढ़े आठ साल हर स्त्री रजस्वला रहती है । यह गौर करने योग्य तथ्य है कि आयु का यही दौर किसी भी व्यक्ति की कार्य -क्षमता का , उत्पादकता का, जीवन से तमाम अपेक्षाओं को तलाशने और उनके लिए समर्पित होकर श्रम करने के लिहाज से स्वर्णिम काल माना जा सकता है । किंतु पूरी दुनिया के विशॆषकर विकासशील् और अविकसित देशों में मासिक धर्म की शुरुआत से ही बालिकाओं को दुराव , दबाव , अवसाद , मिथों , भ्रांतियों के साथ जीना पड़ता है जिसके परिणाम स्वरूप बालिकाओं को अपने व्यक्तित्व के विकास के शैक्षिक और सामाजिक अवसरों से वंचित रह जाना पड़ता है । दुनिया के तमाम समाज खून के लाल धब्बों के कलंक से आतंकित समाज हैं । विकसित समाजों के विज्ञापन जगत में जहां उपभोक्ता कंडोम के कामुक से कामुक विज्ञापन की अपेक्षा रखते हैं और विज्ञापनदाताओं में इस विषय में प्रतिस्पर्धा का माहौल रहता है , वहीं मासिक धर्म से संबद्ध वस्तुओं जैसे सैनेटरी पैड के विज्ञापन में नीली स्याही को लाल रक्त का प्रतीक बनाकर पेश किया जाता है । कंडोम के विज्ञापनों और फिल्मों में काम क्रीड़ा पर उन्मत्त् होने वाला समाज सैनेटरी पैड पर रक्त देखकर या मासिक धर्म पर स्पष्ट चर्चा पर् जुगुप्सा से भर उठता है , ऎसा दोगलापन स्वस्थ समाज का संकेत नहीं हो सकता । </div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">
हमारी सामाजिक संरचना में स्त्रियों के पास अपने शरीरांगों , उसकी अवस्थाओं , उनसे जुड़ी पीड़ाओं और समस्याओं को अभिव्यक्त करने के लिए न तो भाषा है और न ही इस अभिव्यक्ति की कोई आवश्यकता और अभिप्राय ही समझा जाता है । घर से लेकर कामकाज के क्षेत्र भी वर्जनाओं से भरे हैं । पुरुषों का खुलेमान मूत्र विसर्जन करने , गालियों से भरी भाषिक अभिव्यक्तियां करने , स्त्री का उत्पीड़न करने और यहां तक कि बलात्कार करने तक को भी सामंती परिवेश का संरक्षण प्राप्त है लेकिन स्त्री को अपनी प्राकृतिक अवस्थाओं से होने वाली पीड़ा या असहजता को अभिव्यक्त् करने के लिए स्पेस उपलब्ध नहीं है । जिस समाज में लड़कियों के वस्त्रों पर एक लाल धब्बा उनके सम्मान और अस्तित्व को संकट में डाल सकता हो और सार्वजनिक स्थलों पर निवृत्त होने की कल्पना तक किसी भी स्त्री के लिए असंभव हो उस समाज में सबरीमाला मंदिर जैसी घटनाएं व घोषणाएं स्त्रियों के लिए परिवेश को और अधिक दमघोटू बना सकती हैं । परिवेश की असमानता वाले समाज में स्त्रियों को यदि अवसरों की समान उपलब्धता प्रदान कर भी दी जाए तो उसका क्या लाभ ? अपने शरीर की सहज नियमित अवस्था के प्रति अपराध बोध और दुराव से भरी बालिकाएं व स्त्रियां एक असंवेदनशील समाज में अपने लक्षयों के लिए अग्रसर हो पाएं इसको सुनिश्चित करना सबरीमाला जैसी घटनाओं के बाद और अधिक दुष्कर प्रतीत होने लगा है । </div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">
अभी हाल ही में लंदन मैराथन में किरण गांधी द्वारा सैनेटरी पैड का प्रयोग किये बिना भाग लेने की घटना एकबारगी चौंकाने वाली प्रतीत होती है परंतु साथ ही यह भी संकेतित करती हैं हमारे क्रूर व असंवेदनशील समाज की मनोवृत्ति को ऎसी शॉक ट्रीट्मेंट् की आज तीव्र आवश्यकता है । स्त्री पुरुष असमानता की गहरी खाई वाले सामाजिक परिवेश में दखल देने के लिए इस प्रकार के विरोध से ही परिवेश की चुप्पी को तोड़ा जा सकता है । शोषण के लंबे इतिहास को भोगने वाली स्त्री के पास परिवेश को झकझोर कर अपनी उपस्थिति और अस्मिता को दर्ज करवाने के सिवाय अन्य कोई उपाय शेष नहीं रह गया है । ब्लीड फ्रीली एंड हैप्पी टु ब्लीड जैसे सोशल मीडिया के आंदोलनों के जरिये एक जड़ समाज को शर्मिंदगी और चुनौती देने का साहस करना स्वागत योग्य कदम है । यह साफ देखा जा सकता है कि वर्जनाओं और वंचनाओं से भरे क्रूर सामंती परिवेश को चुनौती देकर ही स्त्री अपनी अस्मिता को स्थापित करने योग्य स्पेस बना पाएगी । </div>
</div>
Neelimahttp://www.blogger.com/profile/14606208778450390430noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-26767367947549742042015-11-05T14:40:00.001+05:302015-11-05T14:40:09.786+05:30<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="color: #545454; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif;"><span style="background-color: white; font-size: 14px; line-height: 21px; white-space: pre-wrap;">एक मुलाकात </span></span><br />
<br />
<span style="color: #545454; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif;"><span style="font-size: 14px; line-height: 21px; white-space: pre-wrap;">तख्ती डॉट कॉम पर प्रकाशित मेरा एक साक्षात्कार -</span></span><br />
<span style="color: #545454; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif;"><span style="font-size: 14px; line-height: 21px; white-space: pre-wrap;"><br /></span></span>
<span style="background-color: white; color: #545454; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21px; white-space: pre-wrap;">हिंदी साहित्य की गहन अध्येता एवं संवेदनशील कविमना व्यक्तित्व, नीलिमा चौहान "आँख की किरकिरी" एवं "लिंकित मन" और "चोखेरबाली" ब्लॉगों के माध्यम से हिंदी ब्लॉगोस्फियर में विशेष उपस्थिति रखती हैं। विभिन्न हिंदी पत्र-पत्रिकाओं में लेखों और कहानियों के जरिए रचनात्मक योगदान के साथ स्त्रीवादी तेवर के कविता लेखन के लिए चर्चित नीलिमा चौहान, दिल्ली विश्वविद्यालय के ज़ाकिर हुसैन सांध्य महाविद्यालय में ऎसोसिऎट प्रोफेसर के रूप पठन-पाठन से सम्बद्ध हैं।
उनसे हुई बातचीत के कुछ अंश:
# नीलिमा जी... आप शिक्षिका है, साहित्य में विशेष रूचि रखती हैं, बराबर लिखती-पढ़ती रहती हैं, आप दोनों ही भूमिकाओं में क्या कोई अंतर्विरोध महसूस करती हैं...?
- नहीं मुझे यह अंतर्विरोध की स्थिति नहीं लगती बल्कि मैं तो स्वयं की ऎसे शिक्षक के तौर पर कल्पना भी नहीं कर सकती जो लेखन रचनात्मक कार्यों में रुचि न रखता हो। अध्यापन कोई एकांगी कार्य नहीं है। अपने अध्यापकीय व्यक्तित्व को, अभिव्यक्ति को लगातार धार देने के लिए यह जरूरी है रचनात्मक या आलोचनात्मक लेखन किया जाए। एक सक्रिय शिक्षक ही जिंदा शिक्षक है। ऎसा महसूस करती हूँ। हाँ, समय को नियोजित करने की दिक्कतें जरूर आती हैं पर लेखन की जिद के कारण यह सामंजस्य भी बैठा लिया जाता है।
# निश्चित तौर पर एक रचनात्मक शिक्षक वर्तमान समय से जरूरी कन्टेन्ट उठाकर अपने छात्रों को सही दिशा दे सकता है। क्या आपको लगता है कि, जिस समय में हम जी रहे हैं वहाँ शिक्षक और छात्रों के बीच जरूरी संवाद कम हुआ है, इसी तरह वर्तमान छात्र, शिक्षक को किस भूमिका में देखता है?
- हाँ, कुल मिलाकर ही शिक्षा से संवाद गायब हो गया है। शैक्षिक मूल्यों में गिरावट आई है और पठन पाठन की प्रक्रियाओं में बहुत ही यांत्रिकता दिखाई देती है। शिक्षा का व्यावसायीकरण इतनी तेजी से हुआ है कि चाहकर भी अच्छे शिक्षक अच्छे तरीकों से नहीं पढ़ा पा रहे हैं। केवल परीक्षापयोगी तरीकों से पढ़ना-पढ़ाना कारगर समझा जा रहा है। बेहतर नागरिक, विवेकशील व्यक्ति और स्वस्थ मानसिकता का विकास करना अब शिक्षा का लक्ष्य नहीं रह गया है। ऎसे दौर में छात्र भी शिक्षक से यही उम्मीद करते हैं कि अधिक अंक लाने में शिक्षक उनकी सहायता करें। इस व्यावसायीकरण के चलते एक अच्छे शिक्षक की पहचान करने लायक समझ उनमें विकसित नहीं हो पाती है। उनके समक्ष एक दोस्त मार्गदर्शक प्रेरक के रूप में देखे जा सकने वाले शिक्षकों के उदाहरण कम ही होते हैं। इसलिए वे भी अपने शिक्षकों से बहुत अधिक की उम्मीद लेकर नहीं चलते। यह स्थिति निराशाजनक है, पर यही आज के शिक्षाजगत का यथार्थ बनता जा रहा है।
# आपने बताया कि आप साहित्य की गहन अध्येता हैं, जिस दौर में आप पढ़ रही थी (एक छात्र के रूप में) तब साहित्य की दिशा वर्तमान साहित्य निश्चित रूप से भिन्न रही होगी... साहित्य के बदलते कलेवर, बदलते कथ्य और शिल्प को आप कितना सकारात्मक मानती हैं? क्या वाकई साहित्य को यथार्थ और आदर्श के मानकों पर चलना चाहिए? वर्तमान युवा पाठकों के सन्दर्भ में आप इसे किस रूप में ग्रहण करती हैं?
- निश्चित तौर पर साहित्य के तेवर और कथ्य में बदलाव आया है। साहित्य के आदर्श और यथार्थ के मानकीकरण ध्वस्त हुए हैं। प्रयोगशीलता और परिवर्तन, साहित्य और भाषा दोनों की मूल चेतना में ही रहा है। 90 के बाद जिस गति से तकनीकी और सूचना क्रांति हुई उसका साहित्य पर असर डालना लाजमी था। संवेदना और उसकी अभिव्यक्ति को नए आयाम मिलना, जीवन की बढ़ती हुई जटिलताओं का साहित्य के साथ अंतर्क्रिया करना, भाषा व शैली का नयापन यह सब हम नए साहित्य में पाते हैं। मेरे विचार से साहित्य और समय की अंतर्क्रिया को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। भाषा के प्रवाह व शैलीगत संभावनाओं को तलाशना चाहिए। परम्परा के मोह में पड़कर साहित्य अपने समय के साथ न्याय नहीं कर सकता। विशुद्धतावाद का समर्थन मैं नहीं करती। यूँ भी नए व प्रयोगशील साहित्य का आस्वादन पूर्वधारणाओं से आजाद होने के बाद ही संभव है। युवा पाठक भी साहित्य में अपने समय को तलाशना चाहेगा। उसे क्यों निराश किया जाए। उसके जीवन का प्रतिबिंबन करने वाला साहित्य युगसापेक्ष साहित्य कहला सकता है। भाषा और स्तरीयता को इससे खतरा नहीं है बल्कि यह तो संभावनाओं की तलाश में बहुत दूर तक जाने के समान है और इस प्रक्रिया मॆं श्रेय और प्रेय (प्रिय) दोनों की रचना हो रही है।
# नीलिमा जी...
साहित्य का एक वृहद् दायरा है... वर्तमान साहित्य में विभिन्न सामाजिक परिस्थितियों से उत्पन्न खीझ और तनाव, पारम्परिक स्त्री-पुरुष सम्बन्धों का द्वन्द्व, हाशिए के लोग सब की भागेदारी बढ़ी है... जो जरूरी भी है, इन सबके बीच आप स्त्री मूल्य और स्त्री शक्ति की मनोदशा को कहाँ पाती हैं या इसे अभी भी एक संक्रमण काल ही माना जाय जो विस्तार की प्रक्रिया में है...?
- वर्तमान साहित्य में स्त्री और हाशिए की सभी अस्मिताओं का स्वर मुखर हुआ है। इस सभी अस्मिताओं की आपसी टकराहट से पैदा हुई संवेदनाएँ भी नए साहित्य में दिखाई देती हैं। साहित्य में स्त्री पुरुष संबंधों की परम्परागत छवि धूमिल हुई है। स्त्री स्वातन्त्र्य और स्त्री अस्मिता पर केन्द्रित साहित्य प्रमुखता से रचा जा रहा है। स्त्री देह की स्वायत्तता, आर्थिक स्वतंत्रता उसकी बौद्धिक और रूहानी जरूरतों के प्रश्नों को संवेदना का आधार बनाने वाला साहित्य प्रकाशित हो रहा है। अभी स्त्री की यौनिकता जैसे प्रश्नों को उठाने का कम ही साहस दिखाई दे रहा है, शायद इसलिए कि भारतीय संदर्भों में अभी स्त्री के मौलिक अधिकारों की प्राप्ति भी एक दुर्गम लक्ष्य है तो दैहिकता और यौनिकता के सवाल गौण दिखाई देने लगते हैं। हाशिए पर केन्द्रित समस्त साहित्य स्त्री के जीवन संघर्ष और पीड़ा से रू-ब-रू करा रहा है। दलित साहित्य में भी दलित स्त्री अस्मिता का अतिदलित अस्मिताओं के संघर्ष को चित्रित किया जा रहा है। सामाजिक विषमताओं के सबसे निरीह शिकार के रूप में कई स्तरों पर संघर्ष करती स्त्री का बयान है यह साहित्य...
इस लिहाज से साहित्य अपनी संवेदना में और गहराई और विस्तार पाने का प्रयास करता नजर आ रहा है
# धीरे-धीरे ही सही, पर असहजता पूर्वक पुरुष भी यह स्वीकारते हैं कि पितृसत्तात्मक समाज ने महिलाओं को लगभग उन सभी जरुरी आवश्यकताओं या कहें कि जरूरी परिवेश से वंचित रखा था जो उन्हें बेहतरी, ज्ञान और समानता के अवसर दिला सकते थे... आज महिला सशक्त दिखती है, मेरा सवाल इसी "दिखने" से है... क्या वाकई आपको लगता है की उतने बड़े स्वरुप में स्त्री अधिकारों या उनके पैरोकार पुरुषों ने ज़रा भी लचीला रुख अख्तियार किया है... सारे विमर्शों, बहसों की बीच कहीं मात्र यह सिर्फ लगने या दिखने का मामला है या फिर व्यावहारिक जीवन में भी कुछ सहजता आई है?
- स्त्री के आजाद दिखने और आजाद होने में बहुत फर्क होता है। तमाम तरह की बंदिशों से, वर्जनाओं से, परम्पराओं की जकड़ से खुद को आजाद महसूस करना एक अलग ही अहसास है जिसे पाना बहुत मुश्किल है। इसलिए मुश्किल है क्योंकि हमारे समाज में स्त्री की जेंडर ट्रेनिंग इतनी मजबूत होती है कि एक स्तर से जयादा आजाद होने में स्त्री भी असहज महसूस करने लगती है। ज्यादातर तो यह आजादी दिखने मात्र की आजादी है। इस दिखने में बहुत सतहीपना है। खुलकर जीने के लिए सुरक्षित, सहज, मुक्त और बराबरी का माहौल पाने के लिए स्त्री को अपनी बहुत सी उर्जा लगानी होती है। पितृसत्तात्मक समाज इसका भरपूर प्रतिरोध करता है। वैसे भी हमारे समाज में स्त्री की गुलामी के जितने स्तर हैं उतनी ही तरह की आजादियाँ भी गढ़ ली गई हैं।
किसी स्त्री के लिए दो वक्त का भोजन जुटा पाना ही आजादी है तो दूसरी स्त्री के लिए यौनिकता के दैहिक स्वतंत्रता आजादी है। विकास के अलग-अलग सोपानों वाले समाजों में स्त्री के अधिकारों और आजादी की लड़ाई का मतलब अलग-अलग होने के कारण ही शायद आजादी का असली मायना अभी तक गढ़ा नहीं जा सका है। स्त्री की आजादी के सवालों पर होने वाली सारी बहसें आखिरकार या तो किताबी जंग बनकर रह जाती हैं या फिर कभी कभार किसी आंदोलन की शक्ल ले लेती हैं। लेकिन एक आम स्त्री न बहसों से फायदा पा सकती है न ही आंदोलनों से। उसके लिए व्यावहारिक जीवन में पुरुषों की मुट्ठी में बंद दुनिया में अपने लिए साँस लेने लायक जगह बनाने का मुद्दा ज्यादा जरूरी होता है।
मुझे लगता है हमारी शुरूआती शिक्षा में जेंडर ट्रेनिंग के कुछ सबक शामिल किए जाएँ। और पारिवारिक वातावरण बच्चों को आपसी उदारता और तालमेल तथा सम्मान से जीने की ट्रेनिंग लायक माहौल दे सकें तो स्त्री के लिए बेहतर समाज की कल्पना की जा सकती है। दिखने की आजादी तो एक भुलावा है, आजादी जब तक महसूस न की जा सके तब तक उसका होना एक वहम भर ही होता है। स्त्री की अजादी के पैरोकार पुरुषों को भी इस आजादी के लिए अपने भीतर के ट्रेण्ड मर्द से लगातार लड़ना होगा वरना स्त्री की आजादी का मतलब हमेशा से पुरुष का अपने अधिकारों का कुछ हिस्सा खो देना होता है। विमर्श के स्तर पर औरत की आजादी का पैरोकार आदमी निजी जीवन में भी स्वस्थ मन व मंशा से स्त्री की अस्मिता और आजादी का सम्मान करता हो यह कम ही पाया जाता है।
# अभी हाल ही में दख़ल प्रकाशन से आपके द्वारा संपादित किताब 'बेदाद ए इश्क रुदाद ए शादी' प्रकाशित हुई है, जिसमें कुछ बागी प्रेमियों की कहानियाँ हैं.. इस अलग कन्टेन्ट की किताब को आप बतौर महिला किस तरह देखती हैं? क्योंकि तमाम वैवाहिक विसंगतियों के बीच पारम्परिक स्त्री-पुरुष एक तरह सेक्रीफाईज कर रहे होते हैं... घिसी-पिटे जुमलों पर जीवन कितना मुश्किल हो जाता है, बावजूद आज भी यही परम्परा है... यह किताब समाज में कोई मानक तय करना चाहती है या परम्परा से टकराव इसका मूल स्वर है?
- स्त्री का प्रेम का अधिकार दरअसल स्त्री का स्वयं को पीड़ित करने वाली परम्पराओं से विद्रोह है। प्रेम में पगी स्त्री का विद्रोह अपने जड़ समाज को एक गति में लाने की अचेतन कोशिश होती है। यह किताब प्रेम के उस बागी स्वरूप से पुराने मूल्यों को विस्थापित करने की कोशिश है। समय के साथ समाज में जाति वर्ण और वर्ग के अंतरों के धूमिल पड़ जाने की जरूरत पर बात करती है यह किताब। विवाह के नए मानकों को तय करने की कोशिश में विवाह संस्था की विकृतियों पर सवालिया निशान लगाने का प्रयास है यह। यह अपनी तरह का पहला प्रयोग है जिसमें जिंदा कहानियों को शामिल किया गया है। इस किताब की कहानियाँ स्त्री पुरुष के संबंधों की परम्परागतता के अर्थहीन हो जाने की घोषणा करती हैं। इस तरह हमने प्रेम और बराबरी के मूल्य को स्त्री पुरुष संबंध के मूल आधार के रूप में पहचानने की कोशिश की है।</span></div>
Neelimahttp://www.blogger.com/profile/14606208778450390430noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-76342027665984410942015-11-01T11:40:00.001+05:302015-11-01T11:40:20.443+05:30<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 17.5636px;"><br /></span>
<span style="color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif;"><span style="background-color: white; font-size: 14px; line-height: 17.5636px;">करवा के व्रत की प्रचंडता पर कुछ उद्दंडता भरे नोट्स </span></span><br />
<span style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 17.5636px;"><br /></span>
<span style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 17.5636px;">करवाचौथ के व्रत की कथा की प्रचंडता हर सुहागन को डराती है ।</span><br style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 17.5636px;" /><span style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 17.5636px;">न रखने वाली पत्नी नौकरानी बन जाती है तो घर में काम करने वाली नौकरानी वेकेंसी पैदा होते ही मालिक की पत्नी बन जाती है । साथ ही पति भी अकाल मृत्यु के मुंह में जाने लगता है जिससे एक के स्थान पर दो सुहागिनों का सुहाग उजड़ने की नौबत आ जाती है । ऐसे में ओरीजनल पत्नी को अपना स्थान वापस पाने हेतु इस व्रत को पूरे विधि विधान व शर्तों से रखना होता है । पत्नी की पोस्ट पर बने रहने के लिए मालिक की सलामती जरूरी है । मालिक की सलामती के लिए दूसरी लालायित औरतों से कॉंपीटीशन जरूरी है । इस कॉंपीटीशन में जीतने के लिए ऐसा व्रत ज़रूरी है जिसकी महिमा ही पूरे साल की गारंटी का आत्मविश्वास देने से जुड़ी हो । </span><br style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 17.5636px;" /><span style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 17.5636px;">... ईर्ष्या असुरक्षा और ऐसे हीनता बोध से भरी कथा सुनकर जिन सुहागिनों के मन में श्रद्धा और आस्था पैदा होती है उनके प्रति सहानुभूति होती है मुझे ।</span><br />
<span style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 17.5636px;"><br /></span>
<span style="color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 17.5636px;">--------</span><br />
<span style="color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 17.5636px;"><br /></span>
<span style="color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 17.5636px;">ब्रा खरीदवाने के लिए दूकान पर पत्नी से सटकर अपनी पसंद का डिजाइन चूज़ करवाते हुए दुकानदार का भेजा खा जाने वाले ,</span><br style="color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 17.5636px;" /><span style="color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 17.5636px;">टेलर की दुकान पर पत्नी के ब्लाउज़ के बैक में मोती की झालर न लगाने पर टेलर को झिड़कने वाले , </span><br style="color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 17.5636px;" /><span style="color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 17.5636px;">अंगुलियों में मुंदरी और गले में दहेज में मिली सोने की चेन पहनने वाले , </span><br style="color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 17.5636px;" /><span style="color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 17.5636px;">देर रात मस्ती बाहर मारकर लौटे और सीधे बिस्तर में टूट पड़्ने वाले , </span><br style="color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 17.5636px;" /><span style="color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 17.5636px;">बात बात पर मेरी बीवी मेरी वाइफ कहकर पत्नी को नामहीन कर देने वाले , </span><span style="color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 17.5636px;"><br />आए दिन पत्नी के हाथ नोट थमाने वाले<br />और पत्नी के जन्मदिन व त्यौहारों पर उसे नियम से तोहफा पेश करने वाले ,<br />यारों के बीच रिश्तेदारों में पत्नी के खाने की तारीफ की माला जपने वाले,.......<br />..ऎसे पति पूरी तरह डिज़र्व करते हैं पत्नियों द्वारा अपने लिए करवा चौथ रखा जाना । ऎसे ही पति सबसे ज्यादा कूद फांद मचाकर पत्नियों को ऎसा कठिन व्रत रखवाने में सपोर्ट करते हैं । इस दिन का इमोश्नल फिज़िकल सपोर्ट पूरे साल की हैपीनेस की गारंटी ।<br />ऎसे हैप्पी ,कॉंफिडेंट , सेटिस्फाइड ,मर्दाने पतियों को पतित्व को हाइलाइट और् ग्लोरिफाई करने वाले इस त्यौहार की जय हो !!</span><br />
<span style="color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 17.5636px;"><br /></span>
<span style="color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 17.5636px;">-----------------</span><br />
<span style="color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 17.5636px;"><br /></span>
<span style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 17.5636px;">तलाक के खूंखार कॉंन्ट्रास्ट के सामने के शादी के बंधन से पैदा हुए सारे दुख , तकलीफें , झगड़े , अनबन , खटपट् कितनी हसीन व मामूली लगने लगती है न । उतना ही टकराते हैं हम एकदूसरे से कि तलाक की नौबत आने से ठीक पहले अपनी हाई स्पीड में बहती हुई ईगो एक्स्प्रेस को ब्रेक लगा सकें । उतना ही ऎंठते हैं जितने उस ऎंठन की एवज में आने वाले संकट हम सह सकें । ज्यादातर तो वाक युद्ध से ही अंदर के सारे अरमान निकाल लेना व अकेले में बकबकाकर बाकी के एंगर - विस्फोट के मुंह पर सेफ्टी वॉल्व लगा लेने में ही भलाई दिखती है । मध्यम वर्गीय हया हमारी शादी को ठीक वहीं बचा लेती है जहां से तलाक या अलगोझे की रपटीली कांटेदार अपमान भरी पगडंडी शुरू होती है । घर का खुशनुमा सच तलाक की बदनुमा इमैजिनेशन के जरिए ही महसूस हो पाता । शादी कर तो बचकाने भी लेते हैं उस शादी को निभाना बचाना मंझे हुओं का खेल है जनाब ।</span></div>
Neelimahttp://www.blogger.com/profile/14606208778450390430noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-1273503035047102892015-06-06T14:47:00.003+05:302015-06-06T14:47:59.652+05:30<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, 'lucida grande', sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px;">मातृदिवस के बहाने बेटियों को पतनशील सीख </span><br style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, 'lucida grande', sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px;" /><br />
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8000001907349px;">
<span style="color: #141823; font-family: helvetica, arial, 'lucida grande', sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px;"> मातृदिवस के अवसर पर स्त्री को मातृत्व की प्रतिमूर्ति के रूप में महिमामंडित किए जाने के उत्सवपूर्ण माहौल में एक मां होकर भी असहज महसूस कर रही हूं । जब भी स्त्री को अतिरिक्त सम्मान देने के पारम्परिक या इस प्रकार के नए उत्सव मनाए जाते हैं तो न चाहते हुए भी मेरा ध्यान उन उत्सवों, मान्यताओं ,आयोजनों की पृष्ठभूमि में सक्रिय निहितार्थों की ओर चला जाता है । आज मातृत्व के ऎसे प्रबल उत्सवीकरण पर स्त्री की स्वतंत्रता और अस्मिता से संबद्ध् यह सवाल मन में उठ रहा है कि </span><span style="color: #141823; font-family: helvetica, arial, 'lucida grande', sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px;"> क्यों धरती की हर स्त्री को मां बनने की बाध्यता का बोझ सहना चाहिए..क्यों हर स्त्री को संतानोत्पत्ति को एक पुनीत कर्तव्य मानना चाहिए. । </span><span style="color: #141823; font-family: helvetica, arial, 'lucida grande', sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px;"> मातृत्व जैसी प्राकृतिक स्थिति पर सामाजिक दबावों का सक्रिय होना एक स्त्री के लिए अस्वीकार्य बात होना चाहिए । स्त्री को इस परम्परागतता से मुक्त होने की शुरुआत करनी चाहिए कि मातृत्व और स्त्रीत्व परस्पर पूरक हैं । ...</span><div>
<span style="color: #141823; font-family: helvetica, arial, lucida grande, sans-serif;"><span style="font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px;"><br /></span></span><div>
<span style="color: #141823; font-family: helvetica, arial, 'lucida grande', sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px;"> संतानोत्पत्ति के यंत्र होने से से इतर भी स्त्री का अस्तित्व है इस बात की कल्पना को ही भयावह बना दिया गया है | हर स्त्री अपने लिए सबसे पहले संतानवती होने की कामना करती है । घर परिवार और समाज में बच्चों की उपस्थिति के बावजूद प्रत्येक स्त्री को अपनी कोख को उर्वर सिद्ध करने के लिए ओढ़ी हुई मातृत्व की इच्छा के वशीभूत हो जाना बहुत सहज व स्वाभाविक बात लगती है । कोई स्त्री स्वयं भी यह मानने के लिए तैयार नहीं होती कि संतानोत्तपत्ति के विचार को लेकर वह दुविधा में है ! प्राय: स्त्री यह जान ही नहीं पाती कि संतानोत्पत्ति और उत्तराधिकार के लिए , प्रकृति की अपने प्रति अनुकूलता को सिद्ध करने के लिए , समाज में सम्मान पाने के लिए , व विवाह संस्था में स्वयं को बनाए रखने के लिए वह अक्सर यह निर्णय स्वेच्छा से नहीं ले रही होती । और सच तो यह है कि मातृत्व के निर्णय को वह अपना अधिकार मानती भी नहीं है । विवाह , ससुराल की मांग , सामाजिक दबाव उसे मातृत्व की ओर धकेलते हैं । मां बनने की शारीरिक योग्यता भर से मां बन जाने की विवशता स्त्री को अपने अस्तित्व के विरुद्ध ही नहीं मानवाधिकार के विरुद्ध बात भी लगनी चाहिए । </span><br style="color: #141823; font-family: helvetica, arial, 'lucida grande', sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px;" /><span style="color: #141823; font-family: helvetica, arial, 'lucida grande', sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px;">गुड़िया से घर घर् खेलती बच्चियों को हम बचपन से ही मां होने की ट्रेनिंग देते हैं दरअसल हम अपने सामाजिक संस्कारों को बच्चियों पर सगर्व लादते हैं , मेरी पड़ोसन कहती थी कि आस पास जब भी कोई गाय बछड़ा देती है मैं बेटियों को जरूर दिखाती हूं ताकि वह बचपन से ही मां बनने के लिए मानसिक रूप से तैयार हो जाए.. । मुझे याद है कि सोलह सत्रह साल की उम्र में ही मैं डरने लगी थी कि अब बस कुछेक सालों में मुझे इस अनचाही यातना से दिखावटी खुशी के साथ गुज़रना पड़ेगा ...मुझे मां बनने व बच्चा पालने की प्रक्रिया बहुत बड़ा दबाव लगती थी । उस उम्र में मुझे यह लगा करता था कि पढ़ाई और जीवन में कुछ नया करने की कामना के आड़े यही दबाव सबसे बड़ी अड़चन है । इसी दबाव के चलते मुझे विवाह भी एक बहुत भयावह विचार लगता था । उन दिनों मैंने अपनी एक अध्यापिका को यह कहते सुना कि उसके फौजी पति ने पहली रात उनके तत्काल मां नहीं बनने की इच्छा के बारे में सुनकर यह उत्त दिया कि तब तो तुमको अपने मातापिता के घर से खुद ही परिवार नियोजन के लिए सामान लाना चाहिए था ऎसे कैसे आ गईं । </span></div>
<div>
<span style="color: #141823; font-family: helvetica, arial, 'lucida grande', sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px;">कॉलेज में प्रथम वर्ष की पतली दुबली गर्भवती बच्चियों को देखकर मैं गहरी पीड़ा व आवेश से भर जाती हूं और बाकी बच्चियों को यह सीख देने का मन करता है कि मातृत्व ही एकमात्र तुम्हारी पहचान नहीं है । मां बनने से पहले इंसान होने का दर्जा तो हासिल जरूर कर लेना मेरी बच्चियों । यह जो शरीर तुम्हें मिला है तुम्हारा ही है । इसे और अपनी कोख को कभी गुलाम मत बने देना । अपने स्त्रीत्व को , अपने मां बनने की काबिलियत सुहागन होने या बहू होने की काबिलियत से कभी मत आंकना । तुम अपने पैरों पर खड़ी होना ताकि तुम अपने गर्भ और उससे पैदा बच्चे को अपनी पूंजी मानकर गुलाम की जिंदगी ,आश्रित की ज़िंदगी जीने के परम्परागत खयाल से नफरत कर सको । तुम इस्मत चुगताई की कहानी पढती हो न ? बस उस कहानी की छुईमुई मत बनना । और हां बांझ या निपूती होने की धमकियों में कभी मत आना । तुम बस कोख नहीं हो मेरी प्यारी बच्चियों बहुत कुछ हो । अपने होने की संभावनाओं को खोजो । अपनी आजादी को महसूस करो । मातृत्व तो स्त्रीत्व का एक पक्ष भर ही है और उसे बस उतना ही मह्त्त्व देना। </span></div>
<div>
<span style="color: #141823; font-family: helvetica, arial, 'lucida grande', sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px;">..</span><br style="color: #141823; font-family: helvetica, arial, 'lucida grande', sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px;" /><span style="color: #141823; font-family: helvetica, arial, 'lucida grande', sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px;">आज मातृ दिवस पर हर स्त्री को मां बनने के अपने फैसले को अपनी इच्छा ,आवश्यकता , क्षमता ,ऊर्जा व हर्ष के साथ स्वाधिकार की तरह समझना शुरू करना चाहिए! भूमि और सम्पत्ति के वारिस पैदा कर सामंती व्यवस्था को बनाए रखने के लिए यह समाज उतावला है । स्त्री के गर्भ को साधन के रूप में देखने वाले भाव की निर्लज्जता को छिपाकर उसे महिमापूर्ण्और दैवीय सिद्ध करने के पीछे तमाम सामंती ताकतें काम करती हैं और मां बनकर स्त्री समझती हैं कि उसने स्त्रीत्व की पूर्णता का निहायत ही अनिवार्य मेडल समाज से जीत लिया ! स्त्री को इस प्रपंचपूर्ण परम्परा की गुलामी से मुक्त महसूस करना शुरू करना चाहिए । </span></div>
</div>
<div>
<br /></div>
</div>
</div>
Neelimahttp://www.blogger.com/profile/14606208778450390430noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-64590524320491993822015-05-12T12:04:00.001+05:302015-05-12T12:04:44.245+05:30<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, 'lucida grande', sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px; margin-bottom: 6px;">
क्या बताउं एक अधखिंची हैंडब्रेक ने क्या क्या गुल खिला दिए.... <i class="_4-k1 img sp_pOLfGO3jfnZ sx_dcd1a7" style="background-image: url(https://fbstatic-a.akamaihd.net/rsrc.php/v2/yP/r/udGFHoXFdsP.png); background-position: -126px -465px; background-repeat: no-repeat; background-size: auto; display: inline-block; height: 16px; vertical-align: -3px; width: 16px;"><u style="left: -999999px; position: absolute;">smile emoticon</u></i></div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, 'lucida grande', sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
मेरे हाथ से लगी गाड़ी की हैंडब्रेक लगी न लगी बराबर ही होती है । अक्सर यह बात इसलिए छिपी रह जाती है कि गाड़ी जहां पार्क की वहां की ज़मीन समतल निकली वरना एक दो बार गाड़ी धीमे धीमे बहते हुए ' जीले अपनी ज़िंदगी सिमरन ' वाली अंतर्चेतना से काम लेती पाए गई है और अक्सर किसी भलेमानस के द्वारा पहिए के नीचे लगाए गए पत्थर की बदौलत गाड़ी की और न जाने किस किस की जान बची है ।</div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, 'lucida grande', sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
कल गाड़ी जहां पार्क की पता नहीं था कि वहां की जमीन ऎसी ढलुवां निकलेगी । और हुआ वही जो हो सकता था । मेरे गाड़ी से उतरते ही अधलगी हैंडब्रेक से तुरंत रिवोल्ट करते हुए गाड़ी आगे को बहते हुए एक स्टॆशनरी दुपहिया को गिराकर शांत हुई । जूस की दूकान की भीड़ के कानों और आंखों को भिडंत के नाद् से उम्मीद जगी कि अब कहासुनी होगी और हमें काटो तो खून नहीं पर । मुझे लगा गाड़ी का मालिक इनमें से न हो बाकी तो संभाल लेंग़े पर उसी पल जूस पीते हुए गाड़ीवाला युवक अवतरित हो ही गया और मुझे लाड भरे शब्द सुनाई दिए " ओहोहोहो मैम कोई बात नहीं " और दिखाई दिया मेरे घबरा गए चेहरे को तसल्ली देता निहारता और गाडियों की गुत्थमगुत्थी को भी छुड़ाता एक शांत और प्यार भारा चेहरा । लगा यकीनन इन जनाब की कल्पना में दोनों गाड़ियां नहीं भिड़ीं बल्कि गाड़ियों के मालिक लतावेष्टित आलिंगन में बंधे हैं । उसकी कल्पना की कल्पना करते हुए मेरे मन ने शायद कहा कि अब जाने भी दीजिए "इतनी भी खूबसूरत नहीं हूं मैं " और उनका धराशायी हो गया बैग उनको थमाते हुए न अपना लजाना छिपा सकी न अपनी घबराहट । नज़रें मिलाई थीं ' आए एम वेरी वेरी सॉरी ' कहने के लिए पर जनाब की आंखों में बिल्कुल अनेक्स्पेक्टिड सा जवाब तैर रहा था " इट्स माय प्लैज़र ' । मैंने पूछा कहीं लगी तो नहीं तो जवाब में बस चमकती हुई आंखें देखीं और धड़कता हुआ दिल ही सुनाई दिया कि 'लगी तो ज़रूर है ' । दिल तो मेरा भी धड़क रहा था कि जाने आज क्या क्या होता होता रह गया पर छिपाने का हुनर मेरे पास उसके मुकाबले ज़्यादा था ।</div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, 'lucida grande', sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
घर जाकर बढ़ी हुई धड़कनों की कहानी कहते ही यही सुनने को मिलेगा कि' तुम भी न कितनी केयरलेस हो यार चलो अब एक सिपलार टेन ले लो वरना हांफती फिरोगी ' । पर मैं कहूंगी कि ' दिल का तेजी से धड़कना हर बार किसी बीमारी का ही नतीजा हो ज़रूरी नहीं जानू ' । और ज़रूर कहूंगी कि ' आप जो इतनी बेरहमी से कसी हुई हेंडब्रेक लगा देते हो कि मुझे अक्सर बहुत जद्दोजहद करनी पड़ती है और आखिरकार बगल से गुजरते किसी भलेमानस को बुलवाकर नीचे करवानी पड़ती है ' वगैरह वगैरह ... । ...खैर घर जाकर क्या बताना है क्या नहीं बताना है कैसे बताना है यह तो घर पहुंचने पर ही डिसाइड होगा रास्ते भर् तो दिल की चहक को सुन लूं ।</div>
</div>
Neelimahttp://www.blogger.com/profile/14606208778450390430noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-34263159583442491282015-04-08T13:24:00.001+05:302015-04-08T13:24:33.166+05:30<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, 'lucida grande', sans-serif; font-size: 14px; line-height: 17.5636348724365px; margin-bottom: 6px;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, 'lucida grande', sans-serif; font-size: 14px; line-height: 17.5636348724365px; margin-bottom: 6px;">
लाखों प्रकाशवर्ष दूर टिमटिमाते तारे </div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, 'lucida grande', sans-serif; font-size: 14px; line-height: 17.5636348724365px; margin-bottom: 6px;">
इन काले चमकदार कैमरों में<br />दर्ज हो रहा है परत दर परत<br />हमारी बेशर्म नस्लों की कारगुजारियों का गंदला इतिहास</div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, 'lucida grande', sans-serif; font-size: 14px; line-height: 17.5636348724365px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhVhd-CcUKykdMxJw0rLJ5Rr4zHMQkJsLePOHnVAx4b4_bs_GyqtokEZhROY4UrMgvsDmaRkRSkWUOcMvQGu2zZq721aT1z_8-eJckc0NbDiO-61jOdzNEuzCE1uejwLWjM2VTjPQ/s1600/cpage.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhVhd-CcUKykdMxJw0rLJ5Rr4zHMQkJsLePOHnVAx4b4_bs_GyqtokEZhROY4UrMgvsDmaRkRSkWUOcMvQGu2zZq721aT1z_8-eJckc0NbDiO-61jOdzNEuzCE1uejwLWjM2VTjPQ/s1600/cpage.jpg" height="320" width="180" /></a>ये सफेद काली आंखें <span class="text_exposed_show" style="display: inline;"><br />कोई सवाल नहीं पूछ्ती<br />कोई शिकायत भी नहीं करती<br />किसी को तलाश भी नहीं करतीं<br />ये सिर्फ देखती हैं चुपचाप<br />और फिर भेदती हैं अंदर तक हमारी जमी जमाई जिंदगियों के सुकून को<br />ये आंखें तमाम अनाथ सीरियाई बच्चों की आंखों से मेल खाती हैं<br />पेशावरी बच्चों की भून दी गई आंखें भी तो ऎसी ही रही होंगी<br />क्या कालाहांडी के अकाल से मरते बच्चों की आंखों से कोई अलग हैं ये आंखें<br />इन आंखों से असर से कैसे बचूंगी मैं<br />इनकी धार के चिर गए अपने कलेजे को कैसे सियूंगी मैं</span></div>
<div class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #141823; display: inline; font-family: helvetica, arial, 'lucida grande', sans-serif; font-size: 14px; line-height: 17.5636348724365px;">
<div style="margin-bottom: 6px;">
बचपन को निगल जाने को बेताब जमाने के आगे<br />सरेंडर से पहले की फड़फड़ाहट से भरे गोल गोल चक्कर काटते पंछी जैसी<br />या फिर<br />अंधेरों में यात्रा करते करते अंगिनत शापित आकाशीय पिंडों की तरह<br />किसी बिग बैंग के इंतजार में किस पृथ्वी की परिक्रमा करती हैं ये आंखें</div>
<div style="margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
मुझे इन आंखों से डर लगता है<br />मुझे उस विस्फोट की कल्पित आवाजों से डर लगता है<br />मुझे आकाश में टूट्कर बेआवाज़ बिखर रहे तारों की आखिरी चमक से डर लगता है<br />मुझे कई सौ प्रकाश वर्ष पहले मर चुके तारों के हाहाकार से डर लगता है<br />देखो हमारे सिर पर मर चुके अनंत अनंत तारे कैसे टिमटिमा रहे हैं<br />मुझे इस भ्रम भरी दिपदिपाहट से डर लगता है<br />मुझे नींद में भी इन आंखों से डर लगता है</div>
</div>
</div>
Neelimahttp://www.blogger.com/profile/14606208778450390430noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-67537497865058515042015-03-12T12:47:00.000+05:302015-03-12T12:53:52.342+05:30<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<br />
<br />
<br />
<span style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: x-small;"><span style="background-color: white;">एक जननेता के मंचीय स्त्री विमर्श की दिक्कतें </span></span><br />
<span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: x-small;"><br /></span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: x-small;">अरविंद केजरीवाल का महिला दिवस वाला संदेश असावधानीपूर्ण शब्द चयन के कारण स्त्री विमर्श करने वालों के हत्थे चढ़ गया । स्त्री की सहनशीलता के लिए चट्टानी ताकत और उफ्फ तक न करने की बात से और अपने परिवार की दो स्त्रियों को अपने होने का क्रैडिट देकर वे दरअसल अपनी स्त्री के प्रति अपनी संवेदनशीलता का परिचय देना चाहते थे । अपने संदेश के उत्तरार्ध में उन्होंने अपनी बात को संभालने की कोशिश भी की । </span><br />
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
यदि मुझे भी उनके इस वक्तव्य की बखिया उधेड़नी हो तो उनके इन्हीं शब्दों का आसरा लेकर मैं भी उन्हें स्त्री विरोधी सिद्ध कर सकती हूं । लेकिन भाषा के अध्येता के नाते , मंशा और शब्दों के बीच की फांक को आसानी से पकड़ सकती हूं । इसी वजह से मैं उनपर यह आरोप नहीं लगा सकती । अरविंद पर्याप्त विद्वत्तापूर्ण भाषा बोल सकते होंगे । पर लोक सम्मत भाषा बोलने की उनकी जिद के पीछे उनकी शायद कई पूर्वधारणाएं काम करती हैं । अबतक भी उन्होंने इसी अतिसाधारण भाषा के बल पर अपने लिए बहुत बड़ा जन समर्थन जुटाया ही है । पर कभी कभी बेहद संवेदनशील मसलो और विमर्शों पर बोलते हुए हमें भाषा को कुछ हद तक विद्वत्तापूर्ण भी बना लेना होता है । स्त्री विमर्श जैसे मसले पर किसी बोलना वह भी एक पुरुष जननेता के लिए चुनौतीपूर्ण काम है । वैसे ही जैसे दलित मुद्दों पर किसी सवर्ण को संवेदनशीलता से बात करनी हो तो भी वह किसी न किसी शब्द या वाक्यव्यंजना के आधार पर बहुत आसानी से असंवेदनशील घोषित किया जा सकता है । </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
अरविंद ने जिस प्राकृतिक सहनशीलता की बात की वह दरअसल समाजीकरण के जरिए जेंडर ट्रेनिंग के जरिए स्त्री में जबरन आरोपित गुणावली का हिस्सा मात्र है । स्त्री को अपने हिस्से आई शोहरत और कामयाबी का क्रेडिट देकर वे मोदी के स्थापित मूल्यों का विस्थापित करना चाह रहे होंगे । आज के समय में स्त्री और पुरुष की बराबर भागीदारी से समाज आगे बढ़ रहा है पर परिवार को दोनों में से किसी एक व्यक्ति की उर्जा चाहिए होती है । यही सवाल बस स्थापित स्त्रियों से भी पूछा जाना बनता है कि क्योंकि उनकी कामयाबी और शोहरत के पीछे भी पति या कामवाली बाई या अन्य किसी सहायक का हाथ जरूर होता है । स्त्री जब अपने पति या परिवार के पुरुष को क्रेडिट दे तो वह हमें पितृसत्ता से प्रभावित परतंत्र स्त्री लगती है । पुरुष जब अपनी पत्नी या परिवार की स्त्री को क्रेडिट दे तो हम उसे उत्पीडक और अति महत्वाकांशी मान लेते हैं । इसलिए विमर्शों को भी अपनी प्रकृति में उदार होना होता है । आलोचनाओं की मंशा से भी मिनिमम सदाशयता की उम्मीद तो की ही जानी चाहिए । बेरहम कुतर्कों , भाषिक समझ की उदारता और सदाशयता के अभाव में किया गया स्त्री विमर्श हमारे लिए किसी काम का नहीं हो सकता । एक आम स्त्री के लिए उनका यह वक्तव्य सम्मान और बराबरी के अर्थ देने वाला रहा होगा पर किसी स्त्री विमर्शकार के लिए इसका सकारात्मक अर्थ होना विमर्शकार की उदार समझ के स्तर पर ही निर्भर होकर रह जाएगा । वैसे भी जननेता मंच से या तो जनसमर्थन जुटा सकता है या फिर बेहतर विमर्शों को अंजाम दे सकता है । दोनों को एक साथ साध्य बनाने लायक भाषिक और वैचारिक योग्यता फिलवक्त किसी राजनेता में नहीं दिखती ।<br />
<div>
<br /></div>
-</div>
</div>
Neelimahttp://www.blogger.com/profile/14606208778450390430noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-28264769033984905402015-02-12T22:44:00.001+05:302015-02-12T22:44:50.920+05:30<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 17.5636348724365px;"><br /></span>
<span style="color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, lucida grande, tahoma, verdana, arial, sans-serif;"><span style="font-size: 14px; line-height: 17.5636348724365px;"> दिल्ली विधानसभा चुनाव 2015 ; डायरी से </span></span><br />
<span style="color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 17.5636348724365px;"><br /></span>
<span style="color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 17.5636348724365px;"><br /></span>
<span style="color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 17.5636348724365px;">आइ एडमिट कि मुझमें बदलाव और विरोध की तड़प है पर हिम्मत नहीं । आई एप्रिशिऎट कि उसमें बदलाव और विरोध की तड़प के साथ हिम्मत भी है । इसलिए अपनी ताकत मैं उसमें देखती हूं । बस चेक रखती हूं खुद पर कि जिंदगी में कभी बौद्धिकता के बोझ से झुका नौटंकीबाज बर्जुआ न बन जाउं । </span><br style="color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 17.5636348724365px;" /><span style="color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 17.5636348724365px;">ज्ञान के लोड से टूटी कमर वाले बौद्धिक बुर्जुआ की दिक्कत है कि बहुत अल्ट्रा च्यूज़ी , ओवर सोफेस्टिकेटिड , एक्स्ट्रा क्रिटिकल , एनालिटिकल होकर क्रांति के वक्त खुद को सेव कर जाता है । उसके लिए क्रांति करने आसमान से देवता आएगा न जब वो हरकत में आएंग़ें । भाई लोगों आजकल भगवान ने अवतार लेना बंद कर दिया है इसलिए आप चादर तानकर सोवो या फिर सिगरेट के छ्ल्ले उड़ाते हुए अपनी आने वाली किताब पर और क्रांति के लूपहोल्स पर गप्प चेपो । वी लेट यू रेस्ट इन पीस ।</span><br />
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, lucida grande, tahoma, verdana, arial, sans-serif;"><span style="font-size: 14px; line-height: 17.5636348724365px;">---------------</span></span></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, lucida grande, tahoma, verdana, arial, sans-serif;"><span style="font-size: 14px; line-height: 17.5636348724365px;"><br clear="all" /></span></span><div>
<div style="color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 17.5636348724365px; margin-bottom: 6px;">
वुडलैंड का सेल में खरीदा हुआ मेरा नया सैंडिल पच्च से ढेर सारे पाखाने में सन गया । जिस दरवाजे को हमने खटखटाया था उसमें से निकली महिला ने सहानूभूति जताते हुए कहा कि "यहां तो जी जानवर वगैरह का मल मूत्र और सीवरों से निकली हुई गंदगी ऎसे ही बिखरी रहती हैं , हम तो इसमें जीना जानते हैं ,आप जरा देखदाख के चलो बिटिया "। पता नहीं वह कौन सी चेतना थी भीतर कि न हीं कैसे मुंह से न छी निकला न ही आउच्छ ।<br />चुनाव प्रचार के लिए निकली हुए हमारी टोली जिसमें विश्व<span class="" style="display: inline;">विद्यालय के कई शिक्षक , वकील , डॉक्टर वक रोजाना शहर से इसी तरह रूबरू हो रहे हैं । ऎसे कई नए लोगों से रोज परिचित होने का मौका मिलता है जो बस अपनी अंदर की आवाज़ के पीछे खिंचे चले आए हैं । हम घूमते हैं एक एक खुले दरवाजे को खटखटाते हुए । ....तंग बस्तियां बेहद तंग गलियां , तमाम तरह की गंदगी , ढेर सारी मुसीबतों के पहाड । किसी बुजुर्ग महिला या पुरुष से बात करने लगो तो गले लगाने से लेकर सरकारों को कोसने और अपनी किस्मत पर रोने तक सब कुछ गवाह बनना ; और अगर युवा वोटर है तो उसकी सलाहें और जोश और गुस्से को उम्मीद में बदलते देखना । आप तो जी बेफिक्र रहो . और किसे वोट देंगे , सब चोरों ने मिलकर देश को लूटा है अबतक , हां बेटा जी आप कह रहे हो तो जरूर वोट करेंगे ।<br />गलियों में घूमती एक टीम रोजाना हमसे टकरा जाती है रेवाड़ी से आई इस टीम में योगेन्द्र यादव जी की बहन अपने कई डॉक्टर्स , पेशेवर वकील और मीडिया व इकोनोमिक्स के विद्वान के साथ दिखती हैं । शक्ल मिलती लगी तो पूछ्ने पर पता चला कि वे तो यादव जी की बहन हैं ...।</span></div>
<div class="" style="color: #141823; display: inline; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 17.5636348724365px;">
<div style="margin-bottom: 6px;">
सुविधा सम्पन्न , विकसित और जागरूक वर्ग का बदहाल और समाज के सताए हुए लोगों के साथ संवाद होता देखने भर से रोज रोज मुझमें नई उम्मीद जागती है । कई दिनों से मुझपर जम रही काई जैसे साफ हो रही हो । जंग खाए दिमाग की रिपेयरिंग हो रही हो मानो । फ्लसफों और निचुड़ी हुई संवेदनाओं से थका हारा क्रिऎटिव पीस उपजाने की शर्मिंदगी जरा जरा कम सी होती जाती है । आवाज बुलंद कर नारे लगाते हुए सीवर की बगल में पड़े शहर के मवाद से नफरत कम होती है क्योंकि मैं यह महसूस कर पा रही होती हूं कि ये वही मवाद और मल ही तो है जिसे हम सुविधाभोगियों ने इधर ट्रांस्फर कर दिया है ।<br />मुझ सफाई पसंद , नाजुक मिज़ाज को जमीन पर चलने के लिए मजबूर कर देने वाली इस उम्मीद को सलाम ।</div>
<div style="margin-bottom: 6px;">
-------------
</div>
<div style="margin-bottom: 6px;">
<span style="background-color: #f6f7f8; font-size: 12px; line-height: 13.9636354446411px;">इस ऐतिहासिक जीत का अर्थ यही है कि लोकतंत्र में बडे से बडे तानाशाह को परास्त करने की ताकत होती है । लोक की शक्ति को किसी भी धन बल या विज्ञापन से जीतने की कोशिश करने का इतना तीखा प्रतिरोध कर जनता ने लोकतत्र की शक्ति प्रदर्शन का नमूना भर पेश किया है अभी तो ।</span></div>
<div style="margin-bottom: 6px;">
<span style="background-color: #f6f7f8; font-size: 12px; line-height: 13.9636354446411px;">------------------</span></div>
<div style="margin-bottom: 6px;">
<span style="line-height: 17.5636348724365px;">अपने पैंरों में पड़े एक एक छाले पर प्यार आ रहा है उन सारी आंखों पर प्यार आ रहा है जो पांच साल कहने पर जवाब में केजरीवाल कहकर लाड बरसाती मिलीं . लपककर टोपी मांग लेने वाले मेहनतकश हाथों पर प्यार आ रहा है . मतलब आप सबके प्यार पर प्यार आ रहा है .</span></div>
<div style="margin-bottom: 6px;">
<span style="line-height: 17.5636348724365px;">----------------</span></div>
<div style="margin-bottom: 6px;">
<span style="background-color: #f6f7f8; font-size: 12px; line-height: 13.9636354446411px;"><br /></span></div>
<div style="margin-bottom: 6px;">
<span style="background-color: #f6f7f8; font-size: 12px; line-height: 13.9636354446411px;">अरविंद तो केवल एक प्रतीक भर हैं । आज वह हैं कल कोई और होगा । परिवर्तनविरोधी ताकतों का विरोध होते रहना चाहिए बस । इसका अगुवा संयोग से अरविंद हैं या हम उनमे यह क्षमता देख लेते हैं । निर्भय के कमेंट का केवल यही मतलब है शायद । या होना चाहिए । बाकी हम सब मित्र हैं और दिल से अच्छे हैं</span><span style="background-color: #f6f7f8; font-size: 12px; line-height: 13.9636354446411px;"> </span></div>
<div style="margin-bottom: 6px;">
<span style="line-height: 17.5636348724365px;">------------</span></div>
<div style="margin-bottom: 6px;">
<span style="line-height: 17.5636348724365px;">यानि यह कि साहित्य की ही तरह राजनीति की भी साधनावस्था ही उद्वेलित करती है मुझे..राजनीति की सिद्दवस्था नहीं । ..</span></div>
</div>
</div>
-- </div>
</div>
Neelimahttp://www.blogger.com/profile/14606208778450390430noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-29144827371363416262015-01-09T14:52:00.003+05:302015-01-09T14:52:49.420+05:30<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13.63636302948px; line-height: 17.5636348724365px; margin-bottom: 6px;">
अर्चना तुम तो अपराजिता थीं ..</div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13.63636302948px; line-height: 17.5636348724365px; margin-bottom: 6px;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13.63636302948px; line-height: 17.5636348724365px; margin-bottom: 6px;">
पिछले बारह सालों से 31 दिसम्बर की रात और 1 जनवरी की सुबह मेरे भीतर गहरे अवसाद को पैदा करती आ रही हैं । वह 1 जनवरी 2002 की वह स्याह सुबह । दिल्ली यूनिवर्सिटी की रीडस लाइन के सरकारी मकान के पंखे से झूलती तुम्हारी देह । जब गई रात पूरा शहर और तुम्हारा सूरज अपने दोस्तों के साथ जश्न में डूबा था तुम अपने दर्द की गहरी नदी में डूब रही थीं । एकदम अकेली ।</div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13.63636302948px; line-height: 17.5636348724365px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
और बार बार यह सब एक बदशकुन सपना लग रहा था । पर ये सच था कि सपनीली आंखों वा<span class="text_exposed_show" style="display: inline;">ली ,मंद मंद मुस्काने वाली खामोश सी लड़की अर्चना अब अपने परास्त मन की कहानी कहने से बेहतर आइ क्विट की शैली में हमें छोड़कर जा चुकी थी । दुनिया को नहीं पता था कि युनिवर्सिटी की आर्ट्स लाइब्रेरी के आहातों में एक दलित लड़के सूरज् से एक ब्राहमण लड़की का प्रेम गुपचुप पनप रहा था । पर तुम्हारे जानने वाले जानते थे कि यह चुपचाप सी दिखने वाली लड़की कितना बड़ा कदम उठाने जा रही है । परम्परा से , जाति से , परिवार से , तुम्हारे शांत विद्रोह के हम चंद गवाह आज तुम्हारे बहुत बड़े गुनहगार हैं ।<br />जो तुम्हारे लिए प्रेम था वह उस लड़के के लिए उपलब्धि थी । जिसे तुम भावना समझती रही वह उस लड़के के लिए गणित था । जिसे तुम विद्रोह और क्रांति समझ रही थी वह उस लड़के के लिए सदियों पुरानी कुंठा की जीत से ज्यादा कुछ नहीं था ।</span></div>
<div class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #141823; display: inline; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13.63636302948px; line-height: 17.5636348724365px;">
<div style="margin-bottom: 6px;">
ओह ! तुमने कभी भी तो नहीं बताया ।</div>
<div style="margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
तुम तो हर बार मिलती और बस धीमे से मुस्कुरा जाती थीं बस ।<br />हम दोस्त तुम्हें डोली में बैठाकर लौट गए थे कि चलो आज समाज की दूरियों को कुछ तो कम कर पाए हम । हम जिस सपनों भरी दुनिया में जी रहे थे वहां बस प्यार जायज था बाकी के सब बंधन नाजायज , बेमानी और फालतू थे ।<br />काश तुम परम्परा और सामती दीवारों में घुटते प्रेम के बारे में कुछ तो बताती हमें । शायद तुम्हें अंत तक कोई उम्मीद रही होगी । शायद तुम्हें अंत तक बंजर में ओई कोंपल फूटने की आस बंधी होगी । शायद तुम हर दिन मौत को कायरता और हार मानकर दुरदुराती रही होंगी ।</div>
<div style="margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
जिस जमाने से तुम नहीं डरी थीं वह जमाना तुम्हारा उपहास बनाने के लिए तैयार बैठा था कहीं तुम्हें यह तो नहीं लगा अर्चना ? ........काश कि तुम कभी तो कुछ कहतीं ।</div>
<div style="margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
अब बस घिसटते हुए कोर्ट केस की फाइलों में दफ्न कुछ पन्ने बचे हैं पास हमारे ।<br />फोटोस्टेट पन्ने ।<br />तुम्हारी किताबों और एम .ए के नोट्स के हाशिए पर तुम्हारे लिखे वाक्य ।<br />इन शब्दों में कैद तुम्हारी तकलीफ ,तुम्हारी अंत तक जूझने की कहानी ।<br />हमारे लिए ये सब कथाएं बोतल में बंद जिन्न की तरह हैं । इनके कैद से छूटते ही न मालूम कितने भयावह सवाल आसपास् बिखर जाएंगे ।<br />............. नए साल की जो सुबह दुनिया के लिए नई उम्मीदें और सपने लाने वाली होती है वह तुम्हारे लिए अंधियारी ,डारावनी और आखिरी -अकेली रात बनकर क्यों रह गई।<br />एक अंतहीन रात ।<br />12 साल से किसी नए साल की नई सुबह ने यह जवाब नहीं दिया ! मैं शर्मिंदा हूं अर्चना ।</div>
<div style="margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
किसी नई सुबह की किसी पहली किरण के मिल जाने के इंतजार में.................. ।</div>
</div>
</div>
Neelimahttp://www.blogger.com/profile/14606208778450390430noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-72244975010633365252014-12-30T12:29:00.002+05:302014-12-30T12:29:27.015+05:30<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px; margin-bottom: 6px;">
एक बुझे हुए वक्त में कविता </div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px; margin-bottom: 6px;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px; margin-bottom: 6px;">
जैसे किसी माटी सने बच्चे को छूकर<br />दरवाजे से आ लगी हो हवा<br />जैसे देता हो दस्तक कोई लगातार<br />खुले दरवाज़े की चौखट पर<br />जैसे आंगन में मुरझाए पौधों को <span class="text_exposed_show" style="display: inline;"><br />सींचती मां का उड़ता हो आंचल<br />जैसे कारा की मोरी से झांकता<br />नीला टुकड़ा देता हो दिलासे<br />जैसे अंधेरे की उदासी को चीरता<br />गुनगुनाता हो कोई आदिम राग<br />ऎसे ही बुझे हुए वक्त में<br />कौंध जाती है कविता कोई</span></div>
<div class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #141823; display: inline; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px;">
<div style="margin-bottom: 6px;">
जब - जब जिंदगी की बेकाबू चाल<br />देती है पटखनी और जब कभी<br />हारती सी लगने लगती हैं सांसे<br />मेरी घबराई सी चेतना<br />तलाशती है कविता को<br />और कविता में तुमको</div>
</div>
</div>
Neelimahttp://www.blogger.com/profile/14606208778450390430noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-50513609643610107472014-12-29T19:35:00.002+05:302014-12-29T19:35:34.299+05:30<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px; margin-bottom: 6px;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px; margin-bottom: 6px;">
कोहरे के कफन में लिपटी लाशें </div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px; margin-bottom: 6px;">
ये लाशें किनकी हैं<br />कोहरे की सुफेद चादर में<br />लिपटे हुए इन शवों का<br />कौन है मालिक कहां है दावेदार<br />भूख जिनसे हो गई पराजित<br />ठंड जीत गई उनसे</div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
पास में जलाकर लकडियां चार<br />चिथड़े कपड़े में लिपटे वे शरीर<br />हर रात एक जंग झेल जाते जो<br />गरीबी और सर्द रात के बीच<br />गरीबी और किस्मत बीच<br />भूख और ठिठुरन में से<br />कौन ज्यादा निर्मम है ?<br />हर सुबह ज़िंदा पाकर खुद को<br />यही सोचते होंगे कि<br />जिंदगी कितनी बेशरम है</div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
ताउम्र ज़माने की मार<br />मौसम के बदमिजाज नखरे<br />खुदगर्ज शहर के लफड़े<br />झेल गया ये शरीर आज जो<br />अकड़ी हुई लावारिस लाश है</div>
<div style="background-color: white; color: #141823; display: inline; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px; margin-top: 6px;">
अपने गर्म लहू के ताप से<br />उम्र दर उम्र शहर को सेंकने वाले<br />ये नहीं तो कोई और सही<br />बहुतेरे मिलेंगे हाड- मांस के पुतले<br />चमचमाते शहर को तो बस चाहिए गर्मी<br />ठठरियों से सोखी हुई गर्मी<br />लाशें किसकी हैं क्या अंतर पड़्ता है<br />शहर का तो दावा है गर्मी पर</div>
</div>
Neelimahttp://www.blogger.com/profile/14606208778450390430noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-54909765211092122682014-12-14T13:06:00.001+05:302014-12-14T13:06:29.635+05:30<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px; margin-bottom: 6px;">
शब्दों के यायावर हम</div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px; margin-bottom: 6px;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px; margin-bottom: 6px;">
कभी लगता है कि<br />शब्द सोहबत हैं<br />कभी महसूस होती है<br />इनके व्यामोह की तंग गिरफ्त<br />कभी दिखाई देता है <span class="text_exposed_show" style="display: inline;"><br />इनसे रचा जाता व्यूह</span></div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px; margin-bottom: 6px;">
<span class="text_exposed_show" style="display: inline;"><br />कभी ये लगते हैं वहम जैसे<br />कभी इनके आदर्शों के<br />ताने बाने में जितने उलझती हूं<br />उतनी ही तीखी वंचना<br />छल जाती है<br />भर जाती है विषाद </span></div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px; margin-bottom: 6px;">
<span class="text_exposed_show" style="display: inline;"><br />शापित अर्थों के साये<br />रात दिन पीछा करते हैं<br />पुरानी ऊन की उधेड़ बुन से<br />अंगुलियों की सिकाई करते शब्द<br />इनकी ढाल में छिपकर हारी हुई<br />हर लड़ाई खोलती है तिलिस्म<br />और हर शब्द बन जाता है<br />विस्मृत इतिहास की पीड़ा सा</span></div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px; margin-bottom: 6px;">
<span class="text_exposed_show" style="display: inline;"><br />शब्द की खोह में<br />एक अनवरत अंतर्यात्रा<br />और इन सूनी यात्राओं में<br />नहीं मिलता साथी कोई<br />इन अंध यात्राओं के<br />अकेले यायावर हम .........</span></div>
<div class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #141823; display: inline; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px;">
<div style="margin-bottom: 6px;">
<a class="_58cn" data-ft="{"tn":"*N","type":104}" href="https://www.facebook.com/hashtag/%E0%A4%96%E0%A5%81%E0%A4%A6%E0%A4%95%E0%A5%80%E0%A4%95%E0%A4%B2%E0%A4%AE%E0%A4%B8%E0%A5%87?source=feed_text&story_id=853496524673737" style="color: #3b5998; cursor: pointer; text-decoration: none;"><span aria-label="hashtag" class="_58cl" style="color: #6d84b4;">#</span><span class="_58cm">खुदकीकलमसे</span></a>#</div>
</div>
</div>
Neelimahttp://www.blogger.com/profile/14606208778450390430noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-64281217786358343392014-12-07T13:47:00.001+05:302014-12-07T13:47:22.411+05:30<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px; margin-bottom: 6px;">
<span style="line-height: 19.3199996948242px;">आपकी पैट्रीआर्की को खतरा बढ़ रहा है भाई जी</span></div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px; margin-bottom: 6px;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px; margin-bottom: 6px;">
मैडम अपने पति और ससुराल से परेशान रहती हैं ।<br />अरे फ्रस्टेटिड लेडी है।<br />झगड़ालू नेचर है शुरू से इसका तो हम तो कबसे जानते हैं ।<br />ब्यूटी का घमंड है इसको ।<br />किसी के भड़काने पर चल रही है वरना इसका न इतना दिमाग है न इतनी हिम्मत ।<span class="text_exposed_show" style="display: inline;"><br />शक्की और डिप्रेस्ड है पर्सनल लाइफ में ।<br />खुद कइयों पे लाइन मारती है ! तब कुछ नहीं होता ।<br />औरत को जी औरत की तरह ही रहना चाहिए सोफेस्टिकेटिड बनके । चालू औरतें हमें नहीं पसंद आतीं ।<br />अजी ज़रा कुछ कह क्या दिया इसने तो बवाल ही मचा दिया कौन सा इसके ब्लाउज़ में हाथ धुसेड़ा था ।<br />अजी वैसे तो बड़ा रस लेती है पर इस बार ऊपर चढ़्ने के लिए बेचारे को फंसा रही है<br />अजी हमें पता है कैसे इसकी नौकरी लगी कॉम्प्रोमाइज़ कर कर के आज सती सावित्री बन रही है ।<br />यार इससे बचके रहना किसी पर भी केस बा सकती है ये तो \<br />सीधे सीधे नौकरी करे सबको खुश रखे अपना घर जाए पर इसे तो अड़ंगेबाजी करनी है न ।<br />यार मैं बताउं सब सेक्सुअली डिप्राइव्ड औरतें ऎसी ही होती हैं । ज्यादा प्राब्लम है तो घर क्यों नहीं बैठती भई ?</span></div>
<div class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #141823; display: inline; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px;">
<div style="margin-bottom: 6px;">
अपने कामकाजी जीवन में एक बार कोई स्त्री अपने खिलाफ किए गए हैरास्मेंट पर आवाज़ उठा भर दे । मैं अपने अनुभव से कह रही हूं उस स्त्री को यही और ऎसा ही बहुत कुछ सुनने को मिलेगा । वर्क प्लेस पर स्त्री - उत्पीड़न का भी अपना एक समाजशास्त्र है । मर्यादामर्दोत्तम सब जगह समान रूप से पाए जाते हैं और सब जगह समान रूप से ही विरोध के स्वरों को दबाने के लिए तत्पर रहते हैं ।</div>
<div style="margin-bottom: 6px;">
<span style="line-height: 1.38;">लड़के रेप जैसा जधन्य अपराध कर दें तब भी आप कहते हैं कि लड़के हैं गलती हो ही जाती है और लड़कियां अपने बचाव में मारपीट भी करें तो आप उनकी संघर्ष के पीछे महान कारण की खोज करते हैं और कारण आपको कनविंस होने लायक न लगे तो आप अपनी अपनी अदालतों में लड़कियों के खिलाफ फतवे जारी करने बैठ जाते हैं । दोगले हैं आप । डरपोक हैं आप । लड़कों के लक्षण अख्तियार करती लड़कियों से आपको अपने सपनों तक मॆं डर लगता है । आपको तो लड़की के बलात्कार के कारण भी लड़की के शरीर में ही खोजने की आदत हो गई है । और अगर लड़कियां हिंसा कर दें लड़कों के साथ तो भी कारण उन लड़्कियों के भीतर ही दिखाते हैं आप । यारों पिट लेने दो छोकरों को भी थोड़ा बहुत । सारा सोशल जस्टिस इसी हाथापाई पर एप्लाई मत कर डालो । आवाज उठाती लड़कियां आपको क्यों भाएंगी । ये उनके बढ़ते हौसलों का सबूत है जिससे आपके समाज की बुनियादी सेटिंग को भरपूर खतरा है ।</span><span style="line-height: 1.38;"> </span><span style="line-height: 19.3199996948242px;">सारा समाज जब एक तरफ हो जाता है असल लड़ाई तो तब शुरु होती है । चुप चाप प्रताड़ित होती रहतीं वे तो सहानुभूति पातीं बलात्कृत हो जातीं तो टुच्चा सा केस बनता और लड़के ऎड़ी चोटी का जोर लगाके , सोशल प्रेशर एप्लाई करके बरी हो लेते , मारी जातीं तो आप इंडिया गेट पर दिये लगाते , खबर बनाते , कैंदिल मार्च करते । आपकी जरा दिनों की हाय हाय से मृतक लड़कियों की आत्मा को शांति मिल जाती । और बाकी की लड़कियां कोई न कोई सबक पातीं और अपने लिए इसी सड़ी गली सोसाएटी में कोई कोना तलाश कर चुप हो लेतीं ।</span><span style="line-height: 19.3199996948242px;"> </span></div>
</div>
<br /><div class="_5pbx userContent" data-ft="{"tn":"K"}" style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 1.38; overflow: hidden;">
<div style="display: inline;">
संभाल लीजिए ! आपकी पैट्रीआर्की को खतरा बढ़ रहा है भाई जी !!</div>
</div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 12px; line-height: 15.3599996566772px;">
</div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 12px; line-height: 15.3599996566772px;">
<form action="https://www.facebook.com/ajax/ufi/modify.php" class="live_848848508471872_316526391751760 commentable_item autoexpand_mode" data-ft="{"tn":"]"}" data-live="{"seq":"848848508471872_849301645093225"}" id="u_jsonp_4_e" method="post" rel="async" style="margin: 0px; padding: 0px;">
<div class="_5pcp _5vsi" style="color: #9197a3; margin-top: 10px;">
<br /></div>
</form>
</div>
</div>
Neelimahttp://www.blogger.com/profile/14606208778450390430noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-52068448904029671522014-10-01T12:36:00.001+05:302014-10-01T12:36:55.695+05:30<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div align="center" class="MsoNormal" style="background-color: white; background-image: initial; background-repeat: initial; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 16.75pt; text-align: center;">
<b><span lang="HI" style="color: #37404e; font-family: Mangal, serif; font-size: 16pt;">पतनशील पत्नियों के नोट्स</span></b><b><span style="color: #37404e; font-family: Helvetica, sans-serif; font-size: 16pt;"></span></b></div>
<div align="right" class="MsoNormal" style="background-color: white; background-image: initial; background-repeat: initial; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 16.75pt; text-align: right;">
<b><span lang="HI" style="color: #37404e; font-family: Mangal, serif; font-size: 16pt;">नीलिमा चौहान</span></b><span style="color: #37404e; font-family: Helvetica, sans-serif; font-size: 16pt;"></span></div>
<div class="MsoNormal" style="background-color: white; background-image: initial; background-repeat: initial; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 16.75pt;">
<span lang="HI" style="color: #37404e; font-family: Mangal, serif;"><br /></span><span lang="HI" style="color: #37404e; font-family: Mangal, serif; font-size: 14pt;">अब मैं सुधरने की सोच रही हूं ! घर </span><span style="color: #37404e; font-family: Helvetica, sans-serif; font-size: 14pt;">,</span><span lang="HI" style="color: #37404e; font-family: Mangal, serif; font-size: 14pt;">परिवार </span><span style="color: #37404e; font-family: Helvetica, sans-serif; font-size: 14pt;">,</span><span lang="HI" style="color: #37404e; font-family: Mangal, serif; font-size: 14pt;">पति </span><span style="color: #37404e; font-family: Helvetica, sans-serif; font-size: 14pt;">,</span><span lang="HI" style="color: #37404e; font-family: Mangal, serif; font-size: 14pt;">बच्चे बस इन्हीं के लिए जीना ! अचार मुरब्बे डालने और रायते के लिए बूंदी तक खुद घर में तलने वाली </span><span style="color: #37404e; font-family: Helvetica, sans-serif; font-size: 14pt;">,</span><span lang="HI" style="color: #37404e; font-family: Mangal, serif; font-size: 14pt;">पति के आगे जवाबतलब न करने वाली </span><span style="color: #37404e; font-family: Helvetica, sans-serif; font-size: 14pt;">, </span><span lang="HI" style="color: #37404e; font-family: Mangal, serif; font-size: 14pt;">ममतामयी मां और आज्ञाकारी सेविका बनकर सबका दिल जीत लेने वाली औरत बनूंगी ! ईश्वर ने साफ - साफ तौर पर अलग -अलग भूमिकाएं देकर हमें धरती पर भेजा है हम नाहक ही एक दूसरे की फील्ड में टांग अडाते रहते हैं ! अपनी बाउंडरी डिफाइन जितनी महीनता से करूंगी उतना ही पति को अपने कर्तव्यों व जिम्मेदारियों को निभाने के लिए मजबूर कर पाउंगी ! मुझे तरस आता है उन औरतों पर जो बेफिजू़ल एक बटन पति की कमीज़ पर न टांकने या थाली देर से परोसने पर पति से लताड़ी जाती हैं ! उनपर भी रहम खाने का मन करता है जो औरतें आदमियों की फील्ड में पैर जमाने की जद्दोजहद में न घर की रहती हैं न घाट की ! जितना पति पर निर्भर रहोगी व पति को खुद पर निर्भर रखोगी उतना ही तुम्हारी शादी व प्यार प्रगाढ होगा ! हम सुधर जाएं बस पति तो खुद ब खुद सुधर जाएगा !</span><span style="color: #37404e; font-family: Helvetica, sans-serif; font-size: 14pt;"><br /></span><span lang="HI" style="color: #37404e; font-family: Mangal, serif; font-size: 14pt;">अब तो आप सब की ही तरह इस नारीवादी औरतवादी नारेबाजी - बहसबाजी से मैं भी तंग आ चुकी हूं ! सब सही कह रहे हैं ये इंकलाबी ज़ज़्बा हम सब औरतों के खाली दिमागों और नाकाबिलिय़त का धमाका भर है बस ! हम बेकार में दुखियारी बनी फिर रही हैं ! सब कुछ कितना अच्छा</span><span style="color: #37404e; font-family: Helvetica, sans-serif; font-size: 14pt;">,</span><span lang="HI" style="color: #37404e; font-family: Mangal, serif; font-size: 14pt;"> </span><span lang="HI" style="color: #37404e; font-family: Mangal, serif; font-size: 14pt;">और मिला मिलाया है ! पति घर बच्चे ! हां थोडी दिक्कत हो तो पति की कमाई से मेड भर रख लें तो सारी कमियां दूर हो जाएंगी ! फिर हम सब सुखी सुहागिनें अपने अपने सुखों पर नाज़ कर सकेगीं ! सब रगडे झगडे हमारी गलतफहमियों या ऎडजस्टमेंट की आदत न होने से होते हैं ! बस कभी - कभी एक सवाल मन में उठता है वो यह कि - हम कितने सुखी हैं ये खुशफहमी तभी तक क्यों बनी रहती है जब तक हम सारी घरेलू जिम्मेदारियां हंसते हंसते उठाती रहतीं हैं ! काश जब हम पति के मोजे </span><span style="color: #37404e; font-family: Helvetica, sans-serif; font-size: 14pt;">,</span><span lang="HI" style="color: #37404e; font-family: Mangal, serif; font-size: 14pt;">बनियान जगह पर टाइम पर न रखें और सुबह की चाय देरी से दें और फिर भी घर की खुशहाली बनी रहे साथ ही हमारे बारे में नाकाबिल औरत का फतवा न जारी किया जाए ! आस -पास की बराबरी -बराबरी चिल्लाने वाली औरतों का उलझाउ -पकाउ फेमिनिज़्म आपके दाम्पत्य जीवन के रिश्ते की पैरवी में नहीं आएगा तब और आप सोचेगी हाय एक बटन टांक ही देती तो क्या हर्ज हो जाता </span><span style="color: #37404e; font-family: Helvetica, sans-serif; font-size: 14pt;">??</span><span lang="HI" style="color: #37404e; font-family: Mangal, serif; font-size: 14pt;">हम पत्नियों को अपना ध्यान गोल रोटियां बनाने </span><span style="color: #37404e; font-family: Helvetica, sans-serif; font-size: 14pt;">,</span><span lang="HI" style="color: #37404e; font-family: Mangal, serif; font-size: 14pt;">रसोई के रास्ते पति का दिल जीतने और घर की स्वामिनी कहलाने के योग्य बनने में लगाना चाहिए ताकि हम पति को यह अहसास दिला सकें कि उनका कर्म है ज्यादा कमाना तथा पत्नी को घर व समाज में एक दर्जा दिलाना ! सोचिए अगर पति कमाकर लाने से इंकार कर दे तो </span><span style="color: #37404e; font-family: Helvetica, sans-serif; font-size: 14pt;">? </span><span lang="HI" style="color: #37404e; font-family: Mangal, serif; font-size: 14pt;">सारा दिन बाहर खटता है वह भी तो खुद को मजदूर मान सकता है </span><span style="color: #37404e; font-family: Helvetica, sans-serif; font-size: 14pt;">? </span><span lang="HI" style="color: #37404e; font-family: Mangal, serif; font-size: 14pt;">उसे घर मॆं चैन की दो वक्त की रोटी भी न मिले तो क्यों वह घर लौट के आना चाहे</span><span style="color: #37404e; font-family: Helvetica, sans-serif; font-size: 14pt;">?</span><span lang="HI" style="color: #37404e; font-family: Mangal, serif; font-size: 14pt;"> </span><span lang="HI" style="color: #37404e; font-family: Mangal, serif; font-size: 14pt;">निहायत ही बुरा ज़माना आ गया है घरों की शांति खत्म हुए चली जा रही है ! हर बात में दमन </span><span style="color: #37404e; font-family: Helvetica, sans-serif; font-size: 14pt;">,</span><span lang="HI" style="color: #37404e; font-family: Mangal, serif; font-size: 14pt;">शोषण देखने की आदत पड़ चुकी है कुछ औरतों को ! ये विवाह नाम का रिश्ता बहुत समझदार समझौतों से चलता है जो हम पत्नियों को ही करने आने चाहिए ताकि अपने द्वारा बनाए गए सलीकेदार घर में सुव्यवस्था से रहने वाले पति को इस सुख की लत डाल सकें ! ये लत ही उसकी मजबूरी बन जाए यह हमारी स्त्री सुलभ सदिच्छा होनी चाहिए ! बाकी पुरुष की सत्ता को चुनौती की जरूरत ही नहीं पडेगी जब हम विरोध का मौका ही नहीं आने देंगी ! यूं भी पति पत्नी के संबध सब जन्नत में पहले से तय होते हैं उनको निभाने की जिद होनी चाहिए बस !</span><span style="color: #37404e; font-family: Helvetica, sans-serif; font-size: 14pt;"></span></div>
<div class="MsoNormal" style="background-color: white; background-image: initial; background-repeat: initial; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 16.75pt;">
<span lang="HI" style="color: #37404e; font-family: Mangal, serif; font-size: 14pt;">इसलिए मेरा तो मानना है कि ये बस बददिमागी फितूर है, बदजमानाई हवा है और निखालिस बदजुबानी है कि औरतों की जिंदगी में कोई जुल्म पेशतर है। सच बस इतना है कि गोल रोटियॉं, मुरब्बे पापड. तक बनाने में नाकाबिल औरतों की काहिली के चलते शादी के इस खूबसूरत रिश्ते पर संकट आन पड़ा है जिसे थोड़ी सी तैयारी और मजबूत इरादे से निपटा जा सकता है। अब मैंने बस इसी इरादे को पूरा करने का हलफ उठाया है। ऊपरवाला मुझे मेरे इरादे में सफल करे । आमीन । </span></div>
</div>
Neelimahttp://www.blogger.com/profile/14606208778450390430noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-10162357625236065562014-09-30T00:34:00.000+05:302014-09-30T00:34:03.585+05:30<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px;">अभी साथ था अब खिलाफ है </span><br style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px;" /><span style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px;">वक्त का भी आदमी सा हाल है</span><br />
<br style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px;" /><span style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px;">आईना घर में रहा बरसों मगर</span><br style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px;" /><span style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px;">आज उसकी आंख में क्यू्ं सवाल है</span><br />
<span style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px;"><br /></span>
<span style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px;">खत में लिखा आएंगे अबके बरस</span><br />
<span style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px;">धीमी कर दी वक्त ने क्यूं चाल है</span><div>
<span style="color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, lucida grande, tahoma, verdana, arial, sans-serif;"><span style="font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px;"><br /></span></span><div>
<span style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px;">मुद्ओं की भीड़ में क्यों खो गया</span><br style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px;" /><span style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px;">मुददई को बस रह गया मलाल है</span></div>
<div>
<span style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px;"><br /></span></div>
<div>
<span style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px;">आदमी को आदमी का वास्ता</span></div>
<span style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px;">आदमी ही आदमी की ढाल है</span><div>
<span style="color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, lucida grande, tahoma, verdana, arial, sans-serif;"><span style="font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px;"><br /></span></span><div>
<span style="color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, lucida grande, tahoma, verdana, arial, sans-serif;"><span style="font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px;"><br /></span></span><span style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px;"><br /></span></div>
</div>
</div>
</div>
Neelimahttp://www.blogger.com/profile/14606208778450390430noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-50182467726213684032014-09-26T09:52:00.000+05:302014-09-26T09:52:04.865+05:30<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
स्त्री यौनिकता के आईने में<br />
<span style="background-color: #dbedfe; color: #3e454c; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 12px; line-height: 15.3599996566772px; white-space: pre-wrap;"><br /></span>
<span style="background-color: #dbedfe; color: #3e454c; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 12px; line-height: 15.3599996566772px; white-space: pre-wrap;"><br /></span>
<span style="background-color: #dbedfe; color: #3e454c; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 12px; line-height: 15.3599996566772px; white-space: pre-wrap;"><br /></span>
<span style="background-color: #dbedfe; color: #3e454c; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 12px; line-height: 15.3599996566772px; white-space: pre-wrap;">कौन जानता था कि शेफाली जरीवाला के 'कांटा लगा' वाले गाने से जिस स्त्री सेक्सुएलिटी का आगाज हुआ वह अंतत: पोर्न अभिनेत्री सनी लियोन के स्टारत्व के खुले उत्सवीकरण तक जा पहुंचेगी और इतनी खुली यौनिक अभिव्यक्ति को सहर्ष स्वीकारने वाले हमारे समाज में स्त्री की सेक्सुएलिटी एक हश हश टॉपिक ही रहेगी !दरअसल हमारे समाज में स्त्री स्वातंत्रय और स्त्री की सेक्सुएलिटी को एकदम दो अलग बातें मान लिया गया है ! पुरुष की सेक्सुएलिटी हमारे यहां हमेशा से मान्य अवधारणा रही है ! चूंकि पुरुष सत्तात्मक समाज है इसलिए स्त्री की सेक्सुएलिटी को सिरे से खारिज करने का भी अधिकार पुरुषों पास है और और अगर उसे पुरुष शासित समाज मान्यता देता भी है तो उसको अपने तरीके से अपने ही लिए एप्रोप्रिएट कर लेता है ! </span><br />
<span style="background-color: #dbedfe; color: #3e454c; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 12px; line-height: 15.3599996566772px; white-space: pre-wrap;"><br /></span>
<span style="background-color: #dbedfe; color: #3e454c; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 12px; line-height: 15.3599996566772px; white-space: pre-wrap;">जिस दैहिक पवित्रता के कोकून में स्त्री को बांधा गया है वह पुरुष शासित समाज की ही तो साजिशा है ! यह पूरी साजिश एक ओर पुरुष को खुली यौनिक आजादी देती है तो दूसरी ओर स्त्री को मर्यादा और नैतिकता के बंधनों में बांधकर हमारे समाज के ढांचे का संतुलन कायम रखती है ! स्त्री दुहरे अन्याय का शिकार है- पहला अन्याय प्राकृतिक है तो दूसरा मानव निर्मित ! गर्भ और योनि की ढोने वाली स्त्री पुरुष पर निर्भर स्त्री कैसे कैसे और किन किन तरीकों से और किस किस से हक के लिए लड़े ! कोई भी सामाजिक संरचना उसके फेवर में नहीं है क्योंकि सभी संरचनाओं पर पुरुष काबिज है ! उसके अस्तित्व की लड़ाई तो अभी बहुत बेसिक और मानवीय हकों के लिए है सेक्सुअल आइसेंटिटी और उसको एक्स्प्रेस करने की लड़ाई तो उसकी कल्पना तक में भी नहीं आई है ! अपनी देह और उसकी आजादी की लड़ाई के जोखिम उठाने के लिए पहले इसकी जरूरत और इसकी रियलाइजेशन तो आए ! हमारा स्त्री-समाज तो इस नजर् से अभी बहुत पुरातन है ! स्त्री के सेक्सुअल सेल्फ की पाश्चात्य अवधारणा अभी तो आंदोलनों के जरिए वहां भी निर्मिति के दौर में ही है हमारा देश तो अभी अक्षत योनि को कुंवारी देवी बनाकर पूजने में लगा है ! एसे में शेफाली जरीवाला अपनी कमर में पोर्न पत्रिका खोंसे ब्वाय प्रेंड के साथ डेटिंग करती दिखती है तो इससे हमारे पुरुष समाज का आनंद दुगना होता है उसे स्त्री की यौन अधिकारों और यौन अस्मिता की मांग के रूप में थोड़े ही देखा जाता है ! सनी लियोन को अभिनय करते देख भी हमारा लिंग पूजक समाज अपनी ग्रंथि को ही सहलाता पाया जाता है और सुनहले पर्दे की ऐसी बड़ी परिघटनाएं स्त्री समाज को आजादी और अस्मिता की पहली सीढी भी फ्रर्लांघने लायक संदेश नहीं दे पातीं !</span></div>
Neelimahttp://www.blogger.com/profile/14606208778450390430noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-82584977547989984252014-09-23T20:26:00.002+05:302014-09-23T20:26:28.108+05:30<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
देवता के विरुद्ध<br />
<br />
<span style="background-color: white; color: #37404e; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 20px;">मेरी आस्था ने गढ़ॆ देवता , </span><br style="background-color: white; color: #37404e; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 20px;" /><span style="background-color: white; color: #37404e; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 20px;">विश्वासों ने उनको किया अलंकृत </span><br style="background-color: white; color: #37404e; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 20px;" /><span style="background-color: white; color: #37404e; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 20px;">मेरी लाचारगी के ताप से </span><br style="background-color: white; color: #37404e; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 20px;" /><span style="background-color: white; color: #37404e; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 20px;">पकती गई उनकी मिट्टी </span><br style="background-color: white; color: #37404e; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 20px;" /><span style="background-color: white; color: #37404e; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 20px;">मेरे स्मरण से मिली ताकत से वे</span><br style="background-color: white; color: #37404e; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 20px;" /><span style="background-color: white; color: #37404e; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 20px;">जमते गए चौराहों पर</span><br style="background-color: white; color: #37404e; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 20px;" /><span style="background-color: white; color: #37404e; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 20px;">मैंने जब जब उनका किया आह्वान </span><br style="background-color: white; color: #37404e; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 20px;" /><span style="background-color: white; color: #37404e; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 20px;">आहूत किया यज्ञ किये</span><br style="background-color: white; color: #37404e; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 20px;" /><span style="background-color: white; color: #37404e; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 20px;">रक्तबीज से उग आए वे यहां वहां </span><br style="background-color: white; color: #37404e; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 20px;" /><span style="background-color: white; color: #37404e; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 20px;">काठ में ,पत्थर में , पहाड़ में , कंदराओं में</span><span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #37404e; display: inline; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 20px;"><br />मेरे वहम ने उनकी लकीरों को<br />धिस धिस के किया गाढा<br />मेरे अह्म ने भर दिया<br />असीम बल उसकी बाहुओं में ,<br />मुझे दूसरे के देवता पर हंसी आती<br />मुझे हर तीसरे की किस्मत पे आता रोना<br />मुझे सुकून मिलता अपने देवता के<br />पैदा किए आतंक से<br /><br />एक देवता क्या गढा मैंने<br />मैं इंसान से शैतान हो गया</span></div>
Neelimahttp://www.blogger.com/profile/14606208778450390430noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-5076866323780661072014-09-22T09:15:00.003+05:302014-09-22T09:15:52.357+05:30<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, lucida grande, tahoma, verdana, arial, sans-serif;"><span style="background-color: white; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px;">उसे हम अपराजिता नहीं बना पाए ...</span></span><br />
<span style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px;"><br /></span>
<span style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px;"><br /></span>
<span style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px;">उसकी कथा सुनकर और उसकी दशा देखकर अपने संतुलन को बनाए रखना एक चुनौती हो गया मेरे लिए .... वह 17 - 18 साल की लड़की एनीमिया ,गरीबी ,लाचारगी का जीवंत उदाहरण लग रही थी । वजन उसका इतना कि जिससे ज्यादा अब घट नहीं सकता था और विषाद इतना कि जीने की उसकी ललक उसे हरा ही नहीं पा रही थी । मैं अब अपनी जिंदगी बनाना चाहती हूं मैं अब कुछ करके दिखाना चाहती हूँ जैसे वाक्य वह खुद को दिलासा देते हुए बार - बार दोहराती, मानो वह चाहती हो कि उसके इन वाक्यों को हर वह व्यक्ति सुन ले जो उसकी वजह से शर्मिंदा हुए हैं । उसकी मां और नानी खास तौर पर जिन्होंने अपनी बेटी को क़ॉलेज पढने भेजा, और उसके जीवन को बनाने के लिए अपनी खाली जेबों और आशीषों भरे दिल को उड़ेल दिया। मां उंचे घरों में खाना बनाती , पिता ऑटो चलाते ,नानी सरकारी अस्पताल में सफाई का काम करती ,और रात भर घर के बच्चे उँचे ब्रांडों की जींस के मोटे कपडे को खाकों पर रखकर कैंची से कटाई करते ताकि सुबह कैंची के जोर से सूज गई हथेलियां खाली न हों उनपर चँद रुपये हों ,परिवार के खस्ता हाल महौल को उनका योगदान ..! </span><br style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px;" /><span style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px;">गरीब परिवार की पुनर्वास कालोनी के तंग गरीब घर की बेहद काली बेटी से कौन शादी करेगा ये दुख मां व नानी के अपराधबोध में बदल रहा था। अपने कालेपन और बदसूरती के अहसास की पीडा और उसपर गरीबी के अंधकार से भरा भविष्य । समाज के आवारा शिकारियों के लिए ऐसे घरों की बेटियां सबसे आसान शिकार होती हैं ! पडोस के घर में रहने वाले एक लड्के ने प्रेम और शादी का यकीन दिलाकर उस लड्की का शारीरिक शोषण किया। मां व नानी ने इस पर यह सोच कर कोई ऐतराज नहीं किया कि वह लडका अपना वादा निभाएगा ,उनकी बेटी की जिंदगी बन जाएगी ! घर के अन्य लोगों से छिपकर यह विडम्बनापूर्ण व्यापार कुछ दिन चला और बाद में लड्के दृश्य से गायब हो गया। लड्की को एक ऎसा शारीरिक रोग संक्रमित कर गया कि कई महीनों नानी के अस्पताल में इलाज चला , सेहत और गिरी , मन की बची खुची ताकत जाती रही। पर तीनों औरतों ने हार नहीं मानी। वे फिर से अपनी ताकत जुटाने लगीं ! बच्ची ने छूटी हुई पढाई को फिर से शुरू किया । जीवन को एक लास्ट चांस देने के लिए , मांओं के सीनों को ठंडक देने के लिए। पर उसकी दोबारा उठने की उसकी उतावली , उसके पीछा न छोडने वाले दुर्भाग्य ,और उसके दुर्जेय हालातों ने मिलकर फिर से एक खेल खेल डाला ! उसने परीक्षा में नकल की और यूनिवर्सिटी की टीम के हाथों पकडी गई । अपने भयों ,दबावों ,और असुरक्षा के प्रभाव में उसने जो गलती की उसके कारण यूनिवर्सिटी से निकाल दी गई। </span><br style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px;" /><span style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px;">उसका गरीब अभागिन और बदसूरत बेटी होने का अपराध बोध अब और अधिक बढ गया था ! अपनी जुझारू मां व नानी को निराश करने पर अब वह पूरी तरह से इस धरती पर खुद को बोझ मान रही थी। इतनी सी उम्र में उसने जीवन के साथ कई समझौते कई वादे कई प्रयोग कर डाले। उसे नहीं पता था कि वह क्या बनना चाहती थी या क्या करना चाहती थी। पर उसे लगता था कि जब मां व नानी का इतना विश्वास है तो वह जरूर कुछ न कुछ कर सकेगी। कुछ ऎसा कि उसके कालेपन पर उसे चिढाने वाला समाज उसको कम नफरत से देखेगा। उस दलदल में जिसे सब समाज कहते हैं किसी ठूंठ को पकडकर वह भी पैर जमाकर डटे रहना चाहती थी। उदासीन पिता और सुन्दर छोटी बहनों की नजर में एक जगह की दरकार उसके मन में टीस की तरह पनप रही थी। और वो लडका जिसने उसकी सेहत ,दिल और शरीर के साथ खिलवाड किया उसको चाहे वह जहां कहीं भी हो उसकी औकात बताना चाहती थी। पर अब कुछ नहीं हो सकता था अब वह टूट रही थी , पांव कांप रहे थे मन दुनिया से उठ चुका था , मां व नानी की हिम्मत का तिनके बराबर सहारा इतना मजबूत नहीं था कि तेज थपेडों में उसे बचा ले जाए ! निराशा की उस सीमा पर वह थी कि अब मुत्यु ही उसे वह होना लग रही थी। क्योंकि उसके हिसाब से अब यही सबसे सरल रास्ता था ।</span><br style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px;" /><span style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px;">मैं उसकी बीते साल की एक लाचार अध्यापिका अपने सारे फलसफों, सारे दिलासों सारे स्नेह के बावजूद समाज व हालात की शिकार उस निरीह् को उसकी पीडा से नहीं उभार पा रही थी। क्योंकि दरअसल मैं खुद कटघरे में खडा अपराधी थी ।</span></div>
Neelimahttp://www.blogger.com/profile/14606208778450390430noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-72742499555627239352014-08-26T11:48:00.003+05:302014-08-26T11:48:39.691+05:30<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="MsoNormal" style="background: white; line-height: 15.0pt;">
<span style="color: #37404e; font-family: "Helvetica","sans-serif"; font-size: 10.5pt; mso-bidi-language: HI; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN;"><br />उन उंचाइयों की गिरावट </span></div>
<div class="MsoNormal" style="background: white; line-height: 15.0pt;">
<span style="color: #37404e; font-family: "Helvetica","sans-serif"; font-size: 10.5pt; mso-bidi-language: HI; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN;"><br />
</span><span lang="HI" style="color: #37404e; font-family: "Mangal","serif"; mso-ansi-font-size: 10.5pt; mso-ascii-font-family: Helvetica; mso-bidi-language: HI; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN; mso-hansi-font-family: Helvetica;">पांच - छह साल की थी तो अक्सर ऊंची मंजिल से जमीन पर आकर
धड़ाम गिरती थी सपने में और जब झटके से आंख खुलती तो खुद को जिंदा पाकर हैरानी व
खुशी होती ! तब खत्म हो जाना या नहीं रहना क्या है शायद ही पता था पर जिंदा होना
क्या है यह अवश्य अच्छे से पता चल चुका होगा ! स्कूली जीवन में गणित में फेल हो
जाने का सपना अक्सर आ जाता था और उस दिन सुबह आंख खोलकर उठते हुए जिल्लत का काहिली
का तीखा अहसास होता ! लगता जिसे हिसाब नहीं आता उसके लिए दुनिया का कौन सा दरवाजा
खुल पाएगा </span><span style="color: #37404e; font-family: "Helvetica","sans-serif"; font-size: 10.5pt; mso-bidi-font-size: 11.0pt; mso-bidi-language: HI; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN;">? </span><span lang="HI" style="color: #37404e; font-family: "Mangal","serif"; mso-ansi-font-size: 10.5pt; mso-ascii-font-family: Helvetica; mso-bidi-language: HI; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN; mso-hansi-font-family: Helvetica;">बाद में समझ आने लगा कि ये दोनों ही तो सपने एक ही सा डर
बयान करते हैं ! कैल्कुयुलेश्न और जीवन का
गहरा नाता अगर आप नहीं समझना चाहते तो जमाने की ठोकरे आपको मजबूर कर देती हैं कि
आप भी इस गहरे नाते के नाते के महत्त्व को मानें वरना जीवन भर ऊंचाई से गिरने और
गणित में फेल हो जाने के सपने देखते रहें !</span><span style="color: #37404e; font-family: "Helvetica","sans-serif"; font-size: 10.5pt; mso-bidi-font-size: 11.0pt; mso-bidi-language: HI; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN;"> </span><span style="color: #37404e; font-family: "Helvetica","sans-serif"; font-size: 10.5pt; mso-bidi-language: HI; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN;"><br />
</span><span lang="HI" style="color: #37404e; font-family: "Mangal","serif"; mso-ansi-font-size: 10.5pt; mso-ascii-font-family: Helvetica; mso-bidi-language: HI; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN; mso-hansi-font-family: Helvetica;">कभी कभी जीवन के अनुभव यह अहसास कराने के कोशिश करते हैं कि
व्यक्ति के कर्म व पुरुषार्थ जीवन के उधर्वमुखी
विकास के नियामक तत्त्व नहीं हैं वरन
वास्तविक नियंत्रण तो उस प्रयोजनवादी और उपयोगितावादी प्रवृत्ति का है जिसको अर्जित
करने की प्रेरणा के उदाहरण चारों ओर बिखरे हुए हैं ! इस अवसरवादी समीकरणजीवी युग में लाभ-हानि</span><span style="color: #37404e; font-family: "Helvetica","sans-serif"; font-size: 10.5pt; mso-bidi-font-size: 11.0pt; mso-bidi-language: HI; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN;">, </span><span lang="HI" style="color: #37404e; font-family: "Mangal","serif"; mso-ansi-font-size: 10.5pt; mso-ascii-font-family: Helvetica; mso-bidi-language: HI; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN; mso-hansi-font-family: Helvetica;">कर्म-अकर्म </span><span style="color: #37404e; font-family: "Helvetica","sans-serif"; font-size: 10.5pt; mso-bidi-font-size: 11.0pt; mso-bidi-language: HI; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN;">, </span><span lang="HI" style="color: #37404e; font-family: "Mangal","serif"; mso-ansi-font-size: 10.5pt; mso-ascii-font-family: Helvetica; mso-bidi-language: HI; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN; mso-hansi-font-family: Helvetica;">व्यष्टि -समिष्टि का व्याकरण मानो हमारे समाजीकरण के हर अनुभव से मिल रहा है !</span><span style="color: #37404e; font-family: "Helvetica","sans-serif"; font-size: 10.5pt; mso-bidi-font-size: 11.0pt; mso-bidi-language: HI; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN;"> </span><span lang="HI" style="color: #37404e; font-family: "Mangal","serif"; mso-ansi-font-size: 10.5pt; mso-ascii-font-family: Helvetica; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN; mso-hansi-font-family: Helvetica;"> मनुष्य के भीतर के संघर्ष को जयशंकर प्रसाद ने इड़ा व श्रद्धा के बीच का आदिम
संघर्ष कहा है ! बुद्धि और भावना के इस आदिम विरोध को साधने की पीड़ा न
उठाकर मनुष्य बुद्धि के माहात्म्य के आगे एकनिष्ठ समर्पण करने को तत्पर है ! बिना भावना के निरंकुश बुद्धि प्रतियोगिता व प्रतिस्पर्धा
के लिए उकसाती है ! इस दौड़ में आगे निकलने
के लिए खड़ी भीड में भी केवल वही
सफलता की तथाकथित उंचाइयां पाएगा जो सबसे
अधिक निर्मम ,प्रयोजनवादी ,
लक्ष्यकेन्द्रियत यानि कुल मिलाकर सभी
समीकरणों का सबसे सटीक हिसाब लगाने
योग्य होगा ! दरअसल व्यक्ति की यह
विडम्बनापूर्ण स्थिति सफलता व प्रगति
की फर्जी व लकीरबद्ध परिभाषाएं अपनाने के कारण उत्पन्न हुई है ! इस प्रगति
व उंचाई के लिए व्यक्ति इसी उपरोक्त दृष्टिकोण के कारण नीच
साधनों और शैलियों को अपनाने से भी
कोई गुरेज नहीं करता ! साधन व साध्य की उत्कृष्टता व पवित्रता
का कोई परस्पर सहसंबंध आज
हम स्वीकार नहीं करना चाहते क्योंकि हमारे लिए मात्र परिणाम ही मायने
रखता है ! उस परिणाम तक पहुंचने
के लिए कितनी निकृष्टता , कितने समझौते या कैसे भी
समीकरणों को अपनाने पड़ॆं - जीवन की जंग
में विजयश्री का महत्त्व है ! इस प्रतिस्पर्धात्मक
परिवेश में जीवन केवल गणित बन जाता है
आस्थाविहीन और श्रद्धाविहीन ! गणित के सूत्र रटना और अमल में लाना ! जीवन
के गणित में इतनी महारत हासिल
हो जाना कि कोई संवेदना या
मूल्य उस कैल्क्युलेश्न के मार्ग
को बाधित न
कर पाए ! मस्तिष्क , बुद्धि और इड़ा
मिलकर मानवता के विकास के पैमाने भी
तय करें व मार्ग
भी ! भावना , संवेदना मनुष्य की समस्त
कोमल वृत्तियां भीतर के अज्ञातवास में ही रहें ! </span><span style="color: #37404e; font-family: "Helvetica","sans-serif"; font-size: 10.5pt; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-font-size: 11.0pt; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN;"><o:p></o:p></span></div>
<span lang="HI" style="color: #37404e; font-family: "Mangal","serif"; font-size: 11.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 10.5pt; mso-ansi-language: EN-IN; mso-ascii-font-family: Helvetica; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN; mso-hansi-font-family: Helvetica;">किंतु इस जीवन दृष्टि से , इस गणित से और प्रयोजनवाद से हासिल उंचाइयां खोखली
व एकांगी होती हैं ! इन उंचाइयों पर चढ़ते
हुए व्यक्ति अपना समस्त</span><span lang="HI" style="color: #37404e; font-family: "Mangal","serif"; font-size: 11.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 10.5pt; mso-ansi-language: EN-IN; mso-ascii-font-family: Helvetica; mso-bidi-language: HI; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN; mso-hansi-font-family: Helvetica;"> सफलता , योग्यता और श्रेष्ठता के बने
- बनाए खांचों में अपने मौलिक व्यक्तित्व को ढालने की चुनौती में
उलझा रह जाता है जो अक्सर एक डर का
रूप ले लेती है ! ये डर जीवन को लगातार नियंत्रित करने का
प्रयास करता है </span><span lang="HI" style="color: #37404e; font-family: "Mangal","serif"; font-size: 11.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 10.5pt; mso-ansi-language: EN-IN; mso-ascii-font-family: Helvetica; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN; mso-hansi-font-family: Helvetica;">! परंतु जिस क्षण हम
इस भेड़्चाल की संस्कृति
के पाश से
खुद को मुक्त
करने का साहस
करते हैं हम
पर रखा समस्त
बोझ तत्क्षण उतर जाता
है ! हम स्प्ष्ट देख
पाते हैं अपना मार्ग
और अपना लक्ष्य ! बिना
गणितीय जटिलताओं वाला सहज संगीतमय आस्थामय जीवन जिसमें अपराधबोध ,आत्मा
का दमन या नैतिक दुविधा नहीं ! उंचाइयों
का कोई व्यामोह या तथाकथित विकास की कोई
मृगमारीचिका नहीं , कोई विकृति भी
नहीं ! </span><span lang="HI" style="color: #37404e; font-family: "Mangal","serif"; font-size: 11.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 10.5pt; mso-ansi-language: EN-IN; mso-ascii-font-family: Helvetica; mso-bidi-language: HI; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN; mso-hansi-font-family: Helvetica;">आज मुझे वे बचपन के भयावह सपने नहीं आते तो इसलिए नहीं कि मैंने हिसाब- किताब सीख लिया है बल्कि इसलिए नहीं आते कि
मैंने ऎसी केल्क्युलेशंस से हासिल होने वाली ऊंचाइयों और उनसे पैदा होने वाली
गिरावट को समझ लिया - </span><span style="color: #37404e; font-family: "Helvetica","sans-serif"; font-size: 10.5pt; line-height: 115%; mso-ansi-language: EN-IN; mso-bidi-font-size: 11.0pt; mso-bidi-language: HI; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN;">' </span><span lang="HI" style="color: #37404e; font-family: "Mangal","serif"; font-size: 11.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 10.5pt; mso-ansi-language: EN-IN; mso-ascii-font-family: Helvetica; mso-bidi-language: HI; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN; mso-hansi-font-family: Helvetica;">मुझे नहीं चाहिए उन शिखरों की
ऊंचाई </span><span style="color: #37404e; font-family: "Helvetica","sans-serif"; font-size: 10.5pt; line-height: 115%; mso-ansi-language: EN-IN; mso-bidi-font-size: 11.0pt; mso-bidi-language: HI; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN;">, </span><span lang="HI" style="color: #37404e; font-family: "Mangal","serif"; font-size: 11.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 10.5pt; mso-ansi-language: EN-IN; mso-ascii-font-family: Helvetica; mso-bidi-language: HI; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-IN; mso-hansi-font-family: Helvetica;">मुझे उन ऊंचाइयों से डर लगता है,.... </span></div>
Neelimahttp://www.blogger.com/profile/14606208778450390430noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-5327129839472050942014-08-02T07:39:00.000+05:302014-08-02T07:39:03.714+05:30<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13.63636302947998px; line-height: 17.563634872436523px; margin-bottom: 6px;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13.63636302947998px; line-height: 17.563634872436523px; margin-bottom: 6px;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13.63636302947998px; line-height: 17.563634872436523px; margin-bottom: 6px;">
<span style="color: #37404e; font-size: 13.63636302947998px; line-height: 20px;">खुद की परछाइयों के हवाले क्यूं मैं खुद को करूं</span><br style="color: #37404e; font-size: 13.63636302947998px; line-height: 20px;" /><span style="color: #37404e; font-size: 13.63636302947998px; line-height: 20px;">खुद की खुद से खुदाई से मुलाकात अभी बाकी है </span></div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13.63636302947998px; line-height: 17.563634872436523px; margin-bottom: 6px;">
<span style="color: #37404e; font-size: 13.63636302947998px; line-height: 20px;"><br /></span></div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13.63636302947998px; line-height: 17.563634872436523px; margin-bottom: 6px;">
उन्हें क्या मिल गया ये रंजो रश्क क्यों हो मुझे<br />रुह के अमन चैन के सवालात अभी बाकी हैं</div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13.63636302947998px; line-height: 17.563634872436523px; margin-bottom: 6px;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13.63636302947998px; line-height: 17.563634872436523px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
उन इमारतों में इन इबारतों में बहुत खोजा तुझको<br />ढल गया दिन यूं ही पर वस्ल की रात बाकी है</div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13.63636302947998px; line-height: 17.563634872436523px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<br /></div>
<div class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #141823; display: inline; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13.63636302947998px; line-height: 17.563634872436523px;">
<div style="margin-bottom: 6px;">
ठहर गए पानियों में ये जो अक्स दिखता है<br />ग़ुज़री होंगी किश्तियां जज़्बात अभी बाकी हैं</div>
<div style="margin-bottom: 6px;">
<br /></div>
<div style="margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
आ गले मिल कि ये मौसम न बदल जाए कहीं<br />आ लगा लौ कि ये कायनात अभी बाकी है</div>
</div>
</div>
Neelimahttp://www.blogger.com/profile/14606208778450390430noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-53111852491045614342014-07-25T11:17:00.001+05:302014-07-25T11:17:37.168+05:30<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div role="article" style="background-color: white; color: #37404e; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 11.818181991577148px; line-height: 13.963635444641113px;">
<div class="_1x1" style="margin: 15px 0px; padding: 0px;">
<div class="userContentWrapper">
<div class="_wk" style="font-size: 14px; line-height: 20px;">
<div class="text_exposed_root text_exposed" style="display: inline;">
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए</div>
</div>
<div class="_wk" style="font-size: 14px; line-height: 20px;">
<div class="text_exposed_root text_exposed" style="display: inline;">
<br /></div>
</div>
<div class="_wk" style="font-size: 14px; line-height: 20px;">
<div class="text_exposed_root text_exposed" id="id_53d1ee378baea9606972146" style="display: inline;">
मैंने देखा कि उनकी आंखें विस्मय और कौतुहल से चमक रही हैं ....!!... कॉलेज में अपने पहले दिन अपनी अध्यापिका से उन्हें यह उम्मीद नहीं थी कि वह उनसे कहे कि आप परीक्षा में अंक लाने के लिए ना पढें... और न मैं उस पद्धति से आपको पढाउंगी जिससे विद्यार्थी परीक्षा में अंक तो ले आते हैं लेकिन अपने और अपने समाज के खिलाफ हो रही साजिशों को समझने और उनका विरोध करने की कुव्वत पैदा नहीं कर पाते !<br />हर नए साल कॉ<span class="text_exposed_show" style="display: inline;">लेज में पप्पू पाठाशालाओं से पास होकर आने वाले विद्यार्थियों की इस जमात के दिमाग की खिड़कियों को अब नहीं तो कब खोलेंगे ? बेहतर है कि ये बच्चे जान लें कि व्यवस्थाएं सदैव व्यक्ति विरोधी होती हैं वहां केवल चूहेमारी चलती है ! कोई भी व्यवस्था, विरोध को नहीं उगने देना चाहती इसलिए ये सुनिश्चित किया जाता है कि शिक्षा के दुश्चक्र से एक भी क्रांतिकारी ना पैदा होने पाए ! व्यवस्थाएं कोई प्रश्न या असुविधाजनक स्थिति नहीं चाहतीं वे केवल भक्त चाहती हैं ...अंधभक्त ...जी हुजूर ..लिजलिजे गिलगिले चूहेमार.....! व्यवस्थाएं सारे कायदे -कानून और फैसले ताकतवर पूंजीपतियों के हक में बनातीं हैं ! ....व्यवस्थाएं सीसैट और फोर यीयर सिस्ट्म जैसे हथियार अपनाकर हमें ज्ञान और विकास के पहले पायदान पर भी पहुंचने देना नहीं चाहतीं ! वे हमारे बौद्धिक संसाधनों का विदेशी औपनिवेशिक ताकतों के हित में इस्तेमाल करती हैं....<br /><br />.....मैंने उन्हें बताया कि एक '"कोड ऑफ प्रोफेश्नल एथिक्स "नाम की चीज विश्वविद्यालय में लागू की गई थी ताकि कोई भी टीचर विद्यार्थियों को सिर्फ सतही और सूचनात्मक ज्ञान ही दे सके, उन्हें चिंतनशील प्राणी ना बना सके.... उन्हें आलोचनात्मक ज्ञान और विवेक ना दे सके !मैं इस आचरण संहिता का तहेदिल से विरोध करती हूं जो मेरे व मेरे विद्यार्थियों के शिक्षण - अधिगम के रास्ते में आए ! शिक्षक व्यवस्था का गुलाम ना होता है ना बनाया जा सकता है ! वह चाण्क्य हो सकता है वह गांधी हो सकता है ताकि कोई हिट्लर ना पैदा हो सके !.....<br />मैं साहित्य पढ़ाती हूं और साहित्य का काम ही है आइना दिखाना अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाना ! अन्याय और कुव्यवस्था के प्रति विरोध करने की प्रेरणा देना ..जब व्यवस्थाएं मनमानी करें तो उन्हें पलट देना ..क्रांति के जरिए एक समतामूलक समाज की स्थापना करने की पहल करना ..मानवीय मूल्यों को सर्वोपरि रखने का धैर्य उत्पन्न करने की शक्ति का आह्वान करना ..अपनी सम्प्रभुता को हर कीमत पर बचाए रखने का हौसला देना ...!! मैंने अपने प्रिय नए विद्यार्थियों से हूबहू यही संवाद करते हुए उनमें यह विश्वास जगाया कि भले ही वे अति साधारण वर्ग के बच्चे हैं लेकिन वे इस देश का उज्जवल भविष्य हैं नए समाज की आधारशिला हैं नई क्रांति के अग्रदूत हैं और उनसे ही अब कोई उम्म्मीद बची है ..!!... इस व्यवस्था की सभी वंचनाओं , षड्यंत्रों ,अन्याय की परम्परा के लिए हम बड़ी पीढ़ी उत्तरदायी है जिसके लिए हो सके तो हमें क्षमा कर देना ! पता नहीं अपने इस संवाद में मैं कितनी सफल हुई होंगी पर अगर इनमें से एक भी विद्यार्थी जग गया तो विरोध और क्रांति की आग जलती रह सकेगी -<br /><br />मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,<br />हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।</span></div>
</div>
</div>
</div>
</div>
<div class="fbTimelineUFI uiCommentContainer" style="background: rgb(255, 255, 255); color: #4e5665; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 11.818181991577148px; line-height: 13.963635444641113px; margin-bottom: -12px; margin-left: -12px; padding-top: 3px; position: relative; width: 510px;">
<form action="https://www.facebook.com/ajax/ufi/modify.php" class="live_783656464991077_316526391751760 commentable_item autoexpand_mode" data-ft="{"tn":"]"}" data-live="{"seq":"783656464991077_783676098322447"}" id="u_jsonp_32_1p" method="post" rel="async" style="margin: 0px; padding: 0px;">
<div class="fbTimelineFeedbackHeader">
<div class="clearfix fbTimelineFeedbackActions" style="background: rgb(250, 251, 251); border-top-color: rgb(233, 234, 237); border-top-style: solid; border-top-width: 1px; padding: 8px 12px 9px; zoom: 1;">
<div class="clearfix" style="zoom: 1;">
<div class="_4bl7 _4bl8" style="float: right; min-height: 1px; word-wrap: break-word;">
</div>
<div class="_4bl9" style="overflow: hidden; word-wrap: break-word;">
<span class="UIActionLinks UIActionLinks_bottom" data-ft="{"tn":"=","type":20}" style="color: #999999;"><span data-reactid=".xw"><br /><a aria-live="polite" class="UFILikeLink accessible_elem" data-reactid=".xw.0" href="https://www.facebook.com/neelima.chauhan.334#" role="button" style="clip: rect(1px 1px 1px 1px); color: #3b5998; cursor: pointer; height: 1px; overflow: hidden; position: absolute; text-decoration: none; width: 1px;" title="Like this">Like</a></span></span></div>
</div>
</div>
</div>
</form>
</div>
</div>
Neelimahttp://www.blogger.com/profile/14606208778450390430noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-71229301843327086442014-07-07T17:29:00.000+05:302014-07-07T19:02:29.106+05:30गुलामी का ग्रेंड-डिज़ाइन<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div role="article" style="background-color: white; color: #37404e; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 11.818181991577148px; line-height: 13.963635444641113px;">
<div class="_1x1" style="margin: 15px 0px; padding: 0px;">
<div class="userContentWrapper">
<div class="_wk" style="font-size: 14px; line-height: 20px;">
<div class="text_exposed_root text_exposed" id="id_53ba861205bbe9858434080" style="display: inline;">
<span class="userContent" data-ft="{"tn":"K"}">सारा मामला ग्रेंडडिजाइन का है जनाब ! चाहे हमारे विश्वविद्यालयों पर चार साला शिक्षा नीति को थोपने की साजिश हो या उच्च - शिक्षा में सतही ज्ञान परोसेने वाले पाठ्यक्रमों के निर्माण की घटना हो या सिविल सर्विसिज में भारतीय भाषाओं को अंग्रेजी के आगे हीन बना देने का दुष्चक्र हो ...सब एक ही मास्टर प्लैनिंग का हिस्सा हैं ! ये उत्तर औपनिवेशिक इरा के अपने चरम रूप की झांकियां ही तो हैं जब हमारी भाषा , सं<span class="text_exposed_show" style="display: inline;">स्कृति और ज्ञान पर "उनका ' नियंत्रण बनता जा रहा है ! ह्मारी भाषाओं को सरलीकृत करके उनको दीन- हीन और अनुपयोगी घोषित कर किया जा रहा है ! धीरे- धीरे हमें भाषिक पंगुता की ओर लेजाकर "वे" हमें अपनी भाषा की बैसाखियां पकडाना चाहते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि यदि मन को गुलाम बनाना है , सोच को अगुवा करना है तो पहले अभिव्यक्ति के तरीकों को और आवाज को छीनना होगा ! दासता के महान डिजाइन की संकल्पना करने वाले जानते हैं कि तोपों से और बाहरी बल से गुलाम बनाने की बजाय टार्गेट को मन से सोच से गुलाम बनने के लिए प्रेरित करना कारगर और चिरस्थायी तरीका होता है !<br />हमारे विश्वविद्यालयों में भी ज्ञान को अपग्रेडिड और आधुनिक रूप में पेश करने के नाम पर जो पाठ्यक्रम और उसके प्रारूप लागू किए गए वे इसी साजिश का नतीजा थे ! ज्ञान का सतही और स्तरहीन , ढांचाविहीन ,परिकल्पना विहीन डिजाइन !</span></span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<span class="userContent" data-ft="{"tn":"K"}"><span class="text_exposed_show" style="display: inline;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiVNVz_C5a4qRPWQNQK8UDmfBi_XpzawKi4YahxZx4kSnosIoz8FctavnrDhU2v47mgcOahh8GNxqPFw02DQZdjX0KqC-j_pTaZhtRLEYR7URKGiM_ObzgqpWOSVg6LVjMkJsUfog/s1600/shackles.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiVNVz_C5a4qRPWQNQK8UDmfBi_XpzawKi4YahxZx4kSnosIoz8FctavnrDhU2v47mgcOahh8GNxqPFw02DQZdjX0KqC-j_pTaZhtRLEYR7URKGiM_ObzgqpWOSVg6LVjMkJsUfog/s1600/shackles.jpg" height="181" width="320" /></a></span></span></div>
<span class="userContent" data-ft="{"tn":"K"}"><span class="text_exposed_show" style="display: inline;">
<span class="userContent" data-ft="{"tn":"K"}"><span class="text_exposed_show" style="display: inline;"><br /></span></span></span></span></div>
इस डिजाइन को मिलिट्री रूल के रूप में लागू किया गया, असंसदीय तरीके थोपा गया और उसके लिए सभी लोकतांत्रिक मर्यादाओं का उल्लंघन किया गया ! साफ था यह पाठ्यक्रम इस बात को सुनिश्चित करता था कि छात्र सतही ज्ञान ही हासिल कर पाए और वह इस सिस्ट्म में केवल कल्रपुर्जा बनकर रहे !वह सोचने- समझने और सवाल करने के काबिल न बचे और अंतत: परफेक्ट गुलाम पैदा किये जा सकें !<br />
आज हमें देश में अलग अलग रूपों में जो लड़ाईयां लडनी पड रही हैं वो सब आखिरकार एक ही हैं ! अपनी भाषा और ज्ञान की सम्प्रभुता की ये लड़ाईयां हमारे अस्तित्व के लिए किया जाने वाला हमारा संघर्ष हैं ! पर इनको एक करके देखने और मिलकर जूझने की कुव्वत अभी हम पैदा नहीं कर पाए हैं ! सिविल सर्विसिज के अभ्यर्थियों द्वारा किया जाने वाला आंदोलन बहुत छोटे तबके का ही ध्यान खींच पा रहा है ! हमारे यहां दूसरे की लड़ाई में अपनी टांग न फंसाने की जो नीति है उसका खामियाजा हर आंदोलन को उठाना पड़्ता है जबकि इसका पूरा फायदा सत्ताधारियों को मिल जाता है ! वरना क्या वजह थी कि एक स्तरहीन पाठ्यक्रम: इतने तानाशाह तरीके से देश की सबसे बड़े विश्वविद्यालय पर रातोंरात थोप दिया जाए और देश को उसकी सूंघ तक ना लगने पाए ! उत्तर औपनिवेशिकता की जटिल अवधारणा आसानी से समझ में आ जाती है जब हम बड़े चिंतकों और विचारकों और साहित्यकारों को पढ़ते हैं ! प्रसिद्ध अफ्रीकी साहित्यकार चेख हामिदू अपने उपन्यास "एम्बिगुअस एड्वेंचर" में लिखते हैं - " काले उपमहाद्वीप को देखें तो यह बात समझ में आने लगती है कि ' उनकी' तोपों की असली ताकत उस दिन महसूस नहीं होती जिस दिन वे पहली बार गोले उगलती हैं ...इन तोपों के पीछे नए स्कूलों की नींव होती है ! नए स्कूलों की प्रकृति में दो चीजें हैं - तोपों के गुण भी हैं और चुंबक के भी ! तोपों के जोर से इसने फतह हासिल की लेकिन अपनी इस फतह को टिकाऊ रूप देने के लिए इसने शिक्षा का सहारा लिया ! तोपों से शरीर पर अधिकार किया और स्कूलों से आत्मा पर ! "<br />
जब देश की शिक्षा नीति बाहरी ताकतों के अनुसार बनाई जा रही हो और मातृभाषाओं की हत्या की योजनाएं बनाई जा रही हों : ऐसे में बुद्धिजीवी तबके का दायित्व और बढ जाता है क्योंकि देश का एक बड़ा तबका इतनी दूरअंदेशी से देखने योग्य नहीं बनने दिया गया होता और दूसरा छोटा पर शक्तिशाली तबका "उनके" साथ मिली भगत में है ! आश्चर्य कि भाषाओं के दमन की नीति और अंग्रेजी के प्रभुत्व को आरोपित करने के खिलाफ चल रही लड़ाई अपने ही घर में अपने ही लोगों से है !अंग्रेजी की अनिवार्यता का फर्जी नियम लागू करके , देश की सर्वोच्च सेवा करने वाले तंत्र में अंग्रेजी भाषा और उसी के हितों की पूर्ति करने वाले तबके को काबिज करके -- हम दासता के परम शिकंजों में फंसने जा रहे हैं ! जाहिर है जिसकी भाषा होगी उसी के हित और अधिकार होंगे ! बेजुबान और शब्दहीन की क्या बिसात होगी ! इसी प्रक्रिया में भारतीयता, राष्ट्रीयता, संस्कृति , अस्मिता और विकास जैसे शब्द हाशिए पर पहुंचकर अपना अर्थ खो देंगे और केवल शब्दकोश में सुप्त पड़े पाए जाएंगे !</div>
</div>
</div>
</div>
<div class="_wk" style="font-size: 14px; line-height: 20px;">
<div class="text_exposed_root text_exposed" style="display: inline;">
</div>
</div>
<div class="fbTimelineUFI uiCommentContainer" style="background: rgb(255, 255, 255); color: #4e5665; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 11.818181991577148px; line-height: 13.963635444641113px; margin-bottom: -12px; margin-left: -12px; padding-top: 3px; position: relative; width: 510px;">
<form action="https://www.facebook.com/ajax/ufi/modify.php" class="live_775606862462704_316526391751760 commentable_item autoexpand_mode" data-ft="{"tn":"]"}" data-live="{"seq":0}" id="u_jsonp_28_1y" method="post" rel="async" style="margin: 0px; padding: 0px;">
<div class="fbTimelineFeedbackHeader">
<div class="clearfix fbTimelineFeedbackActions" style="background: rgb(250, 251, 251); border-top-color: rgb(233, 234, 237); border-top-style: solid; border-top-width: 1px; padding: 8px 12px 9px; zoom: 1;">
<div class="clearfix" style="zoom: 1;">
<div class="_4bl7 _4bl8" style="float: right; min-height: 1px; word-wrap: break-word;">
</div>
<br /></div>
</div>
</div>
</form>
</div>
</div>
Neelimahttp://www.blogger.com/profile/14606208778450390430noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-13548018415904295462014-05-07T13:54:00.000+05:302014-05-07T13:54:07.005+05:30कोई लौटा दे मुझे मेरी नासमझी और बेफिक्री के दिन<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span class="userContent" data-ft="{"tn":"K"}">समझदारी
आने पर यौवन सचमुच चला जाता है और पैसा और स्थायित्व आ जाने पर साहस -
हिम्मत रूपी टायर की हवा निकल जाती है ! जैसे मायके से बुलावा आने पर तंग
करने वाले ससुरालियों को छोडकर नवेली बहू भागती है वैसे ही दो दिन की भी
छुट्टियां आ जाने पर ह्म दिल्ली छोड पहाडों की ओर भाग खडे होते थे ! ना
कोई डर ना कोई आशंका ना कोई योजना ...सिर्फ स्पिरिट के बल पर..<br /> .....रात के ग्यारह बारह बजे हमारी और नोट्प<span class="text_exposed_show">ैड
वाली सुजाता जी की अल्लसुबह में 4 बजे ही गली मुहल्ले को टाटा बाय बाय
बाय कर देने की योजना बनती ...नक्शे पर सबसे दूर के निर्जन पहाडी इलाके का
लक्ष्य बनाया जाता ......जल्दबाजी में घर में ही एकआध बैग छूट जाता तो दिल
को ये भरोसा देकर चुप कराते चलो बच्चे तो गिनके चारों गाडी में हैं ना वो
नहीं छूट्ने चाहिए थे ! रास्ते में वहम होता भाई रसोई में गैस तो शायद
जलती रह गई है ...सौ किलोमीटर दूर आके ऐसा वह्म ..उधर हमें वादियां और
पहाड बुला रहे होते ...तब सोचते परिसर के प्लंबर को फोन करते हैं वह लकडी
की सीढियों को छ्ज्जों पर टिकाकर ऊपर चढ लेगा और रसोई की खिडकी में से
झांककर सही हालात का पता दे देगा अगर जल रही होगी तो खिड्की से लंबा डंडा
डालकर गैस बुझा देगा ..तीसरे ही माले का तो घर है उन्हें तो कई कई मालों
पर चढ्ने का काम होता है ! <br /> एक बार तो निकलते हुए जल्दबाजी में
हमारी हथेली कट गई थी खून काफी बह रहा था उधर सुजाता जी के पेट में तेज
दर्द रात से ही उठ रहा था .....पर क्या करते पहाडों की हसीन वादियों की
याद चुंबक बनी हमें खींच रही थी और दिल्ली से दो दिन की कुट्टा कर ही चुके
थे ! सो मैं आधा लीटर खून लुटाकर और सुजाता जी कराह रूपी ट्रॉल को इगनोर
करते मंजिल पर पहुंच ही गए !<br /> <br /> ......दस साल पुरानी सेकेंड हैंड
मारूति ऐट हंड्रड , चिलचिलाती धूप के थपेडे, कम बजट ,दो दो चार चार
साल के बच्चॉं की तंग गाडी में होती आपसी लडाइयां जिनकी गंभीरता भारत पाक
सीमा विवाद से कतई कम लैवल की ना होती............एक बार हम चौपटा
-तुंगनाथ की चोटी पर बैठे थे और घर में पानी की लाइन फट्ने से घर के
दरवाजे की गौमुखी से गंगा और जमुना की तेज धारा बह रही थी फोन का संपर्क
पहाडों पर कम ही हो पाता है सो दो दिन बाद पता चला अब क्या करें ...हम
तो 6 दिन की यात्रा पर आए थे दो दिन में कैसे लौट जाते ...सो दिमाग के
धोडे गधे सब दौडा डाले ..हल निकला कि मित्र जाकर घर का ताला तोडें, प्लंबर
से लाइन जुड़वाकर नया ताला लगवा दें और दोस्ती का फर्ज निभाएं ........<br /> <br />
..हाय क्यों और कहां चली गई वो अल्हडता और बेफिक्री ..वो तंगहाली...वो
नासमझी ....! आज अपनी ही उस कैफियत की खुद ही मुरीद हूं ! पर कुछ भी कर
लूं नहीं लौटते वे दिन ! जैसे नर्सरी एड्मीशन से पहले मां बाप बच्चे को
केजी तक का स्लेबस रटा के ही दम लेते हैं कहीं कोई अच्छा स्कूल ना हाथ से
निकल जाए .. वैसे ही महीने दो महीने पहले सफर की योजनाएं बनने लगती
हैं...साफ सुथरा चकाचक होटल सर्च करके ऑनलाइन बुक कराकर, पावती हाथ में
लेकर, हेल्थ कार्ड लेकर ,इलाके की पूरी जानकारी पहले ही हासिल करके कहीं
निकलते हैं कि कहीं कोई अच्छा टूरिस्ट प्वाइंट ना छूट जाए रास्ते में कोई
संकट ना पड जाए पूरी तैयारी होनी चाहिए....!! क्या करें दिमाग दिल से
ज्यादा चालू हो गया है क्लास के सबसे मेधावी व हाजिर जवाब बच्चे की तरह !
क्लास पर उसी का कंट्रोल है ...बाकी सब भावनाएं घर से पढकर ना आने वाले
बच्चों जैसी बैक बेंचर बनीं रह जाती हैं ......<br /> <br /> आह नहीं चाहिए ऐसी समझदारी और पैसा ! कोई लौटा दे मुझे मेरी नासमझी और बेफिक्री के दिन !! </span></span></div>
Neelimahttp://www.blogger.com/profile/14606208778450390430noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-22086813069190138692010-03-09T14:28:00.008+05:302010-03-09T16:09:34.291+05:30हे भगवान ! हमें मोटी होने का हक दो !प्रार्थना - हे भगवान हमें मोटी होने का हक दो ! हमें अपनी छाती और बाहों पर बाल उगाने का हक और हिम्मत दो ! हमें देह को सजाने और न भी सजाने का फैसला लेने की बुद्धि दो ! हमें हिम्मत दो कि हमसे आइना जब सवाल करे हम उसे उलट दें ! हमें हिम्मत दो कि हम छाती को छिपाती न फिरें ! हे भगवान हमें हमारी देह ऊपर उठा दो ! <div><br /></div><div>पिछले साल जिम जाकर हुलिया और सेहत सुधारने का भूत सर पर सवार हुआ ! वजन में दो चार किलो का इजाफा मुझे नाकाबिले बर्दाश्त था ! मैं सोचती उम्र बढ रही है शरीर ढल रहा है स्टेमिना कम हो रहा है ! शायद जिम का व्यायाम मुझे कोई लाभ पहुंचाए ! मुझे लगता था एक लंबी उम्र परिवार के लिए दौड दौडकर बिता दी , खुद को खपा दिया ! सीढियां चढने में हांफना , वर्क लोड से सांसों का तेज हो जाना , शरीर में भारीपन महसूस होना.....अब कुछ समय खुद को और अपने स्वास्थ को भी दूं ! जिम में जाकर पता चला मैं बहुत पतली और स्वस्थ थी ! वहां पतली होने आई कई महिलाएं अपने 80 , 100 और 120 किलो के शरीर से युद्ध कर रही थीं ! सोनिया ,मोना , अनीता ..कोई विवाहित तो कोई अविवाहित ! ट्रेडमिल पर ,साइकिल पर, ऎलिप्टेकल पर पसीने से लथपथ ,बिना नाश्ता किए घर का बहुत सा काम निपटाकर , पति और बच्चों को भेज कर 2 से ढाई घंटे शरीर से कडी मेहनत करवाने वाली उन स्त्रियां से जब बातचीत होती स्त्री समाज की नियति पर क्रोध आता ! </div><div><br /></div><div>अनीता की उम्र अभी 22 साल है और वजन 80 किलो ! ऊपर से गालों पर फुंसिया और वह कमाती तक नहीं ! उसके पापा अपनी बेटी की बदसूरती और नाकाबिलितय से परेशान होकर रातों को सोते तक नहीं ! एक दिन वह बोली कि ' मैंने नर्सरी टीचर का एग्ज़ाम दिया हुआ है अगर उसमें मेरा नाम नहीं आया तो मैं सुसाइड कर लूंगी ! वह बोली पापा कहते रहते हैं कि तू पतली तो हो ही सकती है कि नहीं ! इतना तो मेरे पर उपकार कर ही सकती होगी ! मैं कहां से हो जाऊं पतली सब कुछ करके देख लिया ! "- जब वह मुझे अपनी बिखरी कहानियां सुन रही होती मैं सोच रही होती ये कोई उपन्यास या कहानी में से उडकर आई हुई घटनाएं हैं ! इनकी जिंदगियों में कोई रोशनी कोई चमक नहीं ,कोई लडाई का भाव भी नहीं ! काश ये सोती न होती जाग जातीं !</div><div><br /></div><div>सोनिया से साइकिल चलाते हुए अक्सर बात होती ! वह बेहद पढी लिखी पिता की लाडली बेटी है ! उसके पिता और उसने 34 लडके रिजेक्ट किए ! उसके पिता को अपनी बेटी के मेंटल प्रोफाइल से मैच करता लडका नहीं मिला !आखिर में पडोस के बचपन के साथी से शादी की ! हाईली क्वालिफाइड ,बारीक समझ वाली सोनिया अपनी आधी अधूरी आपबीती सुनाते हुए कभी रो पडती तो कभी गुस्से से आंख लाल करके फदकते होंठों से कहती कि आज तो मन किया कि अपने हस्बेंड के पेट में चक्कू मार दूं ! कॉर्पोरेट जगत के उस पति को बच्चे की पैदाइश के बाद मोटी हो गई पत्नी नहीं चाहिए ! दोनों के बीच लडाई के ढेर सारे मुद्दे हैं नौबत तलाक तक आई हुई है पर असल बात आकर मोटापे तक पहुंच जाती है ! पति पर्फेक्शनिस्ट है इगोइस्टिक ,मैनेजमेंट गुरू - जिसे अपनी पत्नी बच्चा जनते ही मोटी ,भद्दी ,गंवार और जंगली लगने लगी है ! साल छ महीने में आने वाली सास और कुंवारी ननद के साथ मिलकर पति उसके गंवारपन का मातम मनाते हैं ! उसने अपनी पत्नी को हर साल तोहफों में पतले होने की मशीनें लाकर दी हैं !45000 वाला ट्रेडमिल , स्टेशनरी साइकिल , टमी ट्रेनर , तरह तरह के वेट्स ..... ! वह कहता है " ..बाकी सब तो तू छोड 5 साल से तू पतली तक तो हो नहीं सकी ! " </div><div>सोनिया रोज बिना खाए 3 घंटे की कडी एक्सरसाइज करती है उसने 3 महीने की पेमेंट जिम में की है उतना समय खुद को पतला होने के लिए रखा है और साथ साथ स्कूलों में नौकरी के लिए इंटरव्यू भी दे रही है ! शायद उसके बाद वह पति को छोडने या न छोडने के बारे में कोई फैसला ले पाएगी ! ( सोनिया से माफी पिछ्ले सितम्बर में उसने मुझसे मेरे ब्लॉग में अपनी आपबीती लिखने के लिए कहा था पर मैं आज जाकर लिख रही हूं ! ) </div><div><br /></div><div><br /></div><div>ऎसी ही और भी कहानियां हैं जो दुख देती हैं ! सोनिया की तरह " चक्कू मार देने जितना गुस्सा पैदा करती हैं ! पर कहीं कुछ नहीं बदलता ! न प्यार से न ही क्रोध से ! और अंत में मेरे हाथ प्रार्थना में खुद -ब खुद उठ जाते हैं - हे भगवान ! हमें खुद को समझने और खुद के लिए जीने का मौका दो ! हमें हमारे हिस्से की खाद दो , हवा दो , पानी दो ! हमें भी इंसानों की पंक्ति में जगह दो ! </div><div><br /></div><div>आमीन !</div><div><br /></div><div><br /></div><div> </div><div><br /></div>Neelimahttp://www.blogger.com/profile/14606208778450390430noreply@blogger.com29tag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-59905308457544109902009-12-01T13:24:00.001+05:302009-12-01T13:36:22.112+05:30मेरी नाप की चप्पलें<p>मजबूत , आरामदेह और हल्की चप्पलें मैं हमेशा से खोजती रही हूं ! एक आध बार बाज़ार में ऎसी चप्पल मुझे मिली भी और उसे पाकर मुझे लगा कि मानो मैंने कोई मैदान मार लिया हो ! </p> <p>चप्पल और  कामकाजी औरत का नाता बहुत गहरा होता है ! यदि चप्पल साथ न दे तो बस के पीछे भागकर उसमें चढना , मेट्रो की बहती भीड को चीरकर आगे बढकर उसमें चढना , ऑफिस की सीढियां जब देर हो हो रही हो तो भागते फलांगते चढना ( वैसे देर तो अक्सर ही हो रही होती है ) बाजार से दूध ,सब्जी दवाई दालें और मेहमानों के लिए बिस्कुट नमकीन खरीदते हुए घर की ओर भागना ,.....अगर चप्पल  भी आजकल के प्रेमियों की तरह साथ देने से इंकार कर दे तो क्या हो ? </p> <p>बाजार में कई तरह की अजीब - अजीब चप्पलें देखकर मुझे हमेशा से हैरानी होती रही है - रंग बिरंगी ,पतली-पतली ऊंची ऊंची एडी वाली , चिलकनी , लटकन, डोरी शीशा ,फर ,झूमर , कढाई जबतक न हो मानो औरतों के लिए चप्पल सैडिलें बन ही नहीं सकती ! जाहिर है कि कि इन चप्पलों की सूरत और सीरत में ओई तालमेल नहीं होगा ! इन्हें पहनकर कोई भी स्त्री दौड भाग तो दूर ठीक से खडी भी कैसे होती होगी मुझे ताज्जुब होता है ! फिर भी ये चप्पलें बन भी रही हैं और बिक भी रही हैं ! पतली कमर के साथ पतली लंबी हील के सैंडिल जबतक न हों - बलखाई  नजाकत भरी चाल और अदा कहां से आएगी ? शायद दुनिया की जूता कंपनियां फेमिनिटी के पोषक तत्वों पर काफी शोध कर चुकी हैं ! मजबूती टिकाऊपने और सहूलियत के तत्वों को गायब करके हमारे पांव के लिए सबसे दुर्गम डिजाइन वाली चप्पलें ही बनाई जाती हैं ! आपके लिए अच्छी चप्पल के मायने जूता कंपनियों की "अच्छी" की परिभाषा से उलट होंगें ! हमें घीमी , मदमाती गजगामिनी चाल इन्हीं चप्पलों की बदौलत ही तो मिल सकती है !<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiCNKcKB754hZaiWiEtV0KvIhnSMi1qS6wx7CtZBGb39lMFsY9AKe3fQ9BSP7zn7KWcpXK9zRFal2gY0_5rvd2K3LlhuSTk-LWvHxzkS78MM0sP9zjdNQkMiEGvtZ3PDAbz6qr3Vw/s1600-h/image%5B2%5D.png"><img title="image" style="border-right: 0px; border-top: 0px; display: inline; border-left: 0px; border-bottom: 0px" height="244" alt="image" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhF3aejUOewa9iEuxnV35VCNxC4ey77Y2Ml2CRqZ01rSxhCu33LI0hGZ4F8QUMQxW2xglhfnzArgej3kgWTqNg1wSwTu41BeCH3YnXcHataF1bV2kRxdrWrvDPeGGDg_S3ExkhfGw/?imgmax=800" width="244" border="0" /></a> </p> <p>हमारे सौंदर्य के मानदंडों में कद और सुंदरता का गहरा नाता है सो अच्छे लंबे कद के प्रदर्शन के फेर में स्त्री अपने लिए ऊंची से ऊंची हील की चप्पलों को पहनती हैं ! अक्सर इस तरह की चप्पलों से उनके पैरों के तकलीफ होती है , थकान बहुत होती है ,गिर पडने का खतरा बढ जाता है नोकदार ऎडी किसी गड्ढे, नाली के जालीदार ढक्कन या सीढी चढते हुए अटक जाती हैं - पर स्त्री को पीडा सहने की आदत होती है ! ब्यूटी और स्टाइल ही नहीं यहां अपने भीतर पनपी हीनता ग्रंथी को भी सवाल है ! कष्ट तो सहना ही होगा ! कष्ट तो शरीर पर वैक्सिंग करवाने , भौहें बनवाने और बच्चा जनने में भी होता है ! पीडा सहना तो हमारी आदत में शुमार है ! शायद पीडा सहने की प्रौक्टिस करते रहना हमारी विवशता है ... ! </p> <p>जब कभी स्पोर्ट्स जूतों में और आरामदेह चप्पलों में घूमती लडकियों को देखती हूं तो काफी राहत मिलती है ! स्त्री अपने शरीर को जब समाज और पुरुषों के नजरिये दसे न देखकर अपनी नज़रों से देखना शुरु करेगी तब उसे संज्ञान होगा कि उसने अपने और अपने शरीर के साथ कितना अन्याय किया है ! </p> <p>मुझे अपने लिए जैसे तैसे अपनी नाप की आरामदेह चप्पलें बहुत ढूंढ के बाद मिल ही जाती हैं ! उन्हें पहनकर आत्मविश्वास, तेज़ी  निर्भीकता से चलती हूं ! पर मेरी साथी औरतों को कैसे कहूं कि बस स्वयं को और कष्ट देना अब वे बंद करें ! साथिनों की क्या कहूं मैं तो अपनी छात्राओं तक को नहीं कह पाई ! </p> <p>एक बार अपने कॉलेज में परीक्षा कक्ष में मैंने बहुत मोटे और लंबे प्लेटफार्म वाली चप्पलों को पहने एक लडकी को देखा ! अति साधारण घर की लडकी ने जैसे तैसे समय और फैशन के साथ कदमताल मिलाए हुई थी ! फिल्मी तारिकाएं मानो उसका आदर्श थीं जिनकी नकल के बेहद सस्ते कपडे पहने हुए थी वह लडकी ! उसकी चप्पलें मानो मेरे पैरों में घाव किए दे रही थीं ! मुझसे रहा नहीं गया तो मैंने उससे कहा कि उसे ऎसी चप्पलें नहीं पहननी चाहिए इससे तबीयत खराब हो जाएगी ! उस लडकी ने बडे सपाट और ठंडे तरीके से  जवाब दिया - " मैडम अगर ऎसी चप्पलें नहीं पहनूंगी तो तबीयत खराब हो जाएगी " !</p> Neelimahttp://www.blogger.com/profile/14606208778450390430noreply@blogger.com19