सब चुप ...कविजन -चिंतक -शिल्पकार क्या सब चुप हैं ! नहीं नहीं सब बोल रहे हैं ! जलती आग में जलते झोपडों को सब देख ही तो रहे हैं और बोल भी तो रहे हैं ! बुद्धदेव- युद्धदेव- क्रुद्धदेव हवन में समिधा डाल रहे हैं लधुकाय दीन खडा है भीमकाय के सामने ! शांति - क्रांति - भ्रांति का गायन हो रहा है ! स्वाहा - स्वाहा के दिशा भेदी मंत्रोच्चार में आर्तजन का हाहाकार मलिन पड रहा है ! लो किन्नरों के दल के दल मतवाला नाच कर रहे हैं ...!
वे करबद्ध खडे हैं.. अनेकों अनेकों जिह्वाहीन जन ! जीवन कितना और कितनी मृत्यु ...? अब जीवन की गुणवत्ता के प्रश्न उन्हें छोटे लग रहे हैं ! ग्राम खेत घर यहां तक कुंए तक में लग गाई आग ! आग सिर्फ उन्हें ही जलाएगी ! इस आग की लपटॆं नहीं जलाऎगी भीमकाय यज्ञ नियंता को नहीं जलाऎगी ये हमारी थुलथुली कविता को..... न हमारे लंपट विमर्श को !
उजडे बिखरे लोग ही लोग ! हमारे दरवाजे पर ऎन सुबह पडे अखबार पर क्रंदन करते चेहरे !हम गिन रहे हैं कितने हैं मौत की तालिका को मिले अंक ! एक घटा दो या एक बढा दो क्या अंतर पडता है ...? अखबार अखबार ही रहेगा और दरवाजे के बाद उसे मेज या पलंग पर आना है !
जी ठीक कहा.. मसला सुलझ रहा है! तब तक कविता रचो नेता के कंधे पर बिलखते लाचार चेहरे फिल्माओ ,मौत की गिनती दुरुस्त करो ! पिछ्ली बार उसका दोष था ..इस बार इसका दोष है.....
ओह उधर आग लग गई और वो .. उधर गोली चल गई ....लहू बह रहा है मिट्टी पर ! पता नहीं किसका पर उनके जूते खराब हो रहे हैं ! हां ये वही जूते हैं घोडे की नाल ठुके ,लोकराज की चमडी से बने ! पर कोई गम नहीं.. सत्ता के दरवाजे पर बिछे कालीन पोंछ देंगे न जूतों पर लगा लहू...!
पानी के कटोरों सरीखी कई जोडी आंखॆं देख रही हैं हमारी ओर ! देखो हम धिक्कार रहे हैं भीमकाय ,नाल ठुके जूतेधारी को...!..... वो साला बर्बर है...लोकतंत्र का हत्यारा है....महा अमानवीय है ....नरपशु है.......सत्ता का जोंक है......नाश हो सत्यानाशी का...
........बस बस बस ..अब हमारी गालियां चुक रही है.... ..हमारी जबान पथरा रही है...... जल रही है ..... कहीं जल नहीं है !... है तो बस सिकती- धधकती हुई रेत और उसमें धू धू कर जलता मानव......!
8 comments:
क्रातिकारी तेवर हैं जी.
यह तो गद्य गीत है जी.
तो आपने भी हवन में अपनी समिधा दे दी.
बचा है तो सिर्फ़ अश्रुजल. अद्भुत लिखा आपने.
क्या कहा जाय, न कहते बन पा रहा, और ना ही न कहते.....
यशवंत
धधकती शब्द रचना में धू धू कर जलते विचारों में मन सुलगने लगा और धुएँ से आँखें जल का कटोरा बन गईं..!
very interesting writings.....
काश की ये शब्द उन लोगों के कानों में भी पड़े जिनके हाथो मी वो ताकत है जिससे वो समाज की दिशा चुटकियों में बदलते हैं.
सशक्त मनन !!
bloog parivar ka naya member hoon aap anubhavijano se aashirvad chahunga.. apna pata hai.. www.shesh-fir.blogspot.com
dr.ajeet
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