"क्या तुम एक ही दिन में तीन लडकियों से कर सकते हो "--
-प्रकाश झा की फिल्म दिल दोस्ती ऎटसेक्ट्रा के पात्र संजय मिश्रा के द्वारा अपने मूल्य विभ्रमित जूनियर अपूर्व से पूछे गए इस सवाल से फिल्म शुरू होती है!
यह फिल्म दिल्ली युनिवर्सिटी की पृष्टभूमि में आज के नवयुवा की जिंदगी के पहलुओं को दिखाने का प्रयास है ! फिल्म में होस्टल लाइफ की उन्मुक्तता , भारतीय युवा की नव -अर्जित सेक्स फ्रीडम ,विश्वविद्यालयी राजनीति ,दोस्ती कुंठा सब कुछ है ! ये वह माहौल है जहां भारतीय युवा अपने क्लास कांसेप्ट से जूझने के दौरान अपने लिए किसी रास्ते की तलाश में जुटे हैं ! फिल्मकार ने दिल्ली के नवधनाढय और धनाढय तथा बिहार से आए छात्रों के बहाने आधुनिक भारतीय समाज की वर्ग संरचना और मूल्य संघर्ष को दिखाया है !
यह फिल्म अपनी बनावट में बहुत बडें लक्ष्य को लेकर नहीं चली है ! किसी भी पात्र से बहुत आदर्शात्मकता की उम्मीद नहीं की गई है ! फिल्म की संवेदना को उभारने के लिए कोई बडा प्रतीक नहीं उठाया गया है ! अपूर्व और संजय मिश्रा इन दो चरित्रों के विपरीत जीवन दृष्टिकोणों के फिल्माकंन के बहुत सामान्य पर बहुत सटीक तरीके अपनाए हैं फिल्मकार ने !
अपूर्व अपने हाइक्लास पिता से पैसा लेकर कोठे पर जाता है ! वह कहता है कि - "मेरे लिए कॉलेज और कोठे में फर्क करना मुश्किल हो गया है " ! वह वैशाली नाम की वेश्या से जिस संबंध में स्वयं को पाता है उसकी व्याख्या वह नहीं कर पाता है ! न ही स्कूली छात्रा किंतु से सेक्स संबंध स्थापित करने में वह प्यार जैसे किसी मूल्य की जरूरत को मानता है ! वेश्यालय में टंगी भगवान की मूर्ति को मोड कर सेक्स क्रिया में रत होता है जिसपर वेश्या वैशाली को बहुत ताज्जुब होता है !
संजय मिश्रा अपनी जातीय अस्मिता और अपनी मध्यवर्गीय मूल्य संरचना को संभाले रहने वाला पात्र है ! वह स्वंय को एक अति संपन्न सहपाठिनी प्रियंका से प्रेम और समर्पण की स्थिति में पाता है और अपने इस संबंध अपने भविष्य और लक्ष्य को लेकर एकाग्र है ! जबकि प्रियंका अपने पिता के संपर्कों के सहारे मॉडल बनना चाहती है !उसके लिए सेक्स शरीर की जरूरत है न कि कोई प्रेम का प्रतीक या मूल्य ! वह संजय से अपने प्रेम को लेकर श्योर है न ही वह अपने दोस्त अपूर्व से काम संबंध बना लेने को किसी भावना से जोडकर देखती है!
फिल्म अपने ट्रेजिक ऎंड में अपनी इस उत्तरआधुनिक स्थिति को दिखाती भर है - कोई मूल्य निर्णय नहीं थोपती ! संजय मिश्रा के लिए कॉलेज एलेक्शन जीतना प्रेम को समर्पण भाव से करना और कैरियर बनाना है जबकि अपूर्व को संजय के चुनाव के दिन तक तीन लडकियों से संभोग कर लेना है जिसकी शर्त वह अपने दोस्तों से पहले ही लगा चुका है !अपूर्व संभोग करता है संजय की प्रेमिका प्रियंका से ! संजय चुनाव जीतता है- दोस्ती और प्रेम के इस रूप को स्वीकार नहीं कर पाता और मृत्यु को प्राप्त होता है ! ....
यह फिल्म दो परिस्थितियों की टकराहट है दो वर्गों और उनकी मूल्य दृष्टि की टकराहट है ! यहां दिल प्रेम की वस्तु नहीं दोस्ती निभाने की वस्तु नहीं ! यहां अवसर , शरीर की जरूरत, सेक्स में भोग और दुश्मनी है !
अंतत: संजय नहीं रहता और कोठे पर जाने वाला और एक ही दिन कमें तीन लडकियों से सेक्स करने वाला अपूर्व जीता है और सेक्स और सेक्स मॆं नएपन की तलाश में डांसबारों और पार्टियों में भटकता है !.....
8 comments:
दिलचस्प फिल्म लगती है। क्या हम भी देख डालें इसे?
"मेरे लिए कॉलेज और कोठे में फर्क करना मुश्किल हो गया है " !
कहीं यह कमेन्ट आज की शिक्षा व्यवस्था पर तो नहीं है?
अजब सी फिल्म लगती है. समीक्षा तो अच्छी की है.
आजकल सेक्स बिकता है। कालेज की कुछ लड़कियॉ भी अपना स्टेट्स मेंन्टेन करने के लिये कालगर्ल का पेशा कर रही हैं। फिल्म और समीक्षा हकीकत बयां कर रही है।
समीक्षा तो बहुत बढ़िया लगी, फ़िलम देखनी ही पड़ेगी लगता है , फ़िलम कम ही देखने की आदत के बाद भी!!
लगता है अच्छी फिल्म बनाई है। संवेदनाओं की बिकऱी के बाजार में यह नई रेसेपी लगती है।
आप की समीक्षा अच्छी है पर मेरे लिए इस फ़िल्म को पचा पाना जरा मुश्किल होगा। शायद कुछ हद तक यथार्थ को दर्शाती है पर क्या ये पूरा यथार्थ है।
kya sach me esa b hota he....
feelings ki koi jagah hi nahi reh gayi he....
No relation, no trust nothing just sex sex n sex????
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