Wednesday, August 15, 2007

ठीक नहीं आपका इतना मुस्कुराना

मुकुराना हमारे लिए कितना घातक हो सकता है यह बात कई बार हमें बहुत देर से पता चलती है और तब तक हम बहुत मुस्कुरा चुके होते हैं ! खास तौर पर स्त्री के लिए उसकी मुस्कुराहट के नतीजे अक्सर उसके खुद के लिए बहुत कडु़वे होते है ! कल अविनाश ने हंसी पर बात की थी ,पर हम तो अभी तक मुस्कुराहट पर ही अटके हैं और जान रहे हैं कि कहां मुस्कुराऎं ,कहां नहीं मुस्‍कुराऎं ,कितना मुस्कुराऎं  ...? अक्सर बस या रेल में यात्रा करते हुए किसी अनजान से नजर मिले और वह मुस्कुरा दे तो हमारी व्यावहारिक बुद्धि बहुत देर में जवाब देती है कि हमें क्या करना है दिमाग में सवालों की लहरें दौड जाती हैं कि कहीं पहले मिले तो नहीं ?कहीं यह पड़ोस का व्यक्ति ही तो नहीं? कहीं लंपट या सिरफिरा तो नहीं ?

 एक हमारी बडी उम्र की  जानकार हैं ,वे कहती हैं स्त्री को बेमतलब पुरुषों के सामने हंसना मुस्कुराना नहीं चाहिए  क्योंकि मर्द मानते हैं "लडकी हंसी तो फंसी" !पर  हमारी समझ में नहीं आता कि हंसी या मुस्कुराहट पर पुरुषों का पेटेंट  खुद स्त्री ही क्यों करती है ! पर वे मानती हैं कि स्त्री की हंसी या मुस्कुराहट पुरुष को एक खुला निमंत्रण होती है जिसके बाद वह आपके बारे में कुछेक धारणाऎं बनाने के लिए स्वतंत्र होता है जैसे कि-- आप बहुत भोली हैं ,आप कमसमझ हैं ,आपके अनुभव कम हैं, आपको बरगलाया जा सकता है, आप मुस्कुराहट के पात्र के सामने आत्मसमर्पणात्मक भंगिमा के साथ है !वैसे अक्सर हमने अपने मुस्कुराने के अतीत में झांककर देखा है तो पाया है कि बहुत मंहगा पडा हमें हमारा अंदाज ! जिस स्पेस में हम खुद को सबके बराबर मानकर मुस्कुरा रहे हैं वहां हमारी मुस्कुराहट को हमारी विनम्रता, और कमजोरी समझा गया  !  हमारा मुस्कुराना सहज मानवीय भंगिमा होता है यह वह भाव है जो मुलाकात या बातचीत में मन की निष्कपटता को बयान करता है !यह सामने वाले व्यक्ति के वजूद की स्वीकारोक्ति है! बेमतलब के संजीदापन की चादर गलत मौके पर भी ओढे रहना तो जरूरी नहीं ! अपने कार्यस्थल पर पुरुषों के साथ काम करती स्त्री का यह मानवीय हक है कि वह अपने मनोभावों को पुरुषों की ही तरह जाहिर होने दे ! अभी हाल ही में अखबार में एक शोध के नतीज़ों का सार यह था कि स्त्री यदि अपने वर्कप्लेस पर अपनी नाराजगी या गुस्सा जाहिर करती है तो वह चिडचिडी, असंतुलित और घरेलू दिक्कतों से परेशान मानी जाती है ! हमारे तो अनुभव कहते हैं कि इन "मानने वालों" में खुद महिलाऎं भी शामिल होती हैं वे महिलाऎं जो मर्दों की सत्ता को अंतिम सत्य मानकर खुद भी उनकी सत्ता बनने में थोडी सी सत्ता का सुख पा लेना चाहती हैं !

एक बार आप क्या मुस्कुराईं आपकी कोमल छवि की स्थायी इमेज ग्रहण कर ली गईं और लीजिए आप हो गईं उसमें ट्रैप !~आप अब सहिए जुमलेबाजी ,छींटाकशी , बिनमांगी सरपरस्ती , जबरिया रहनुमायी और " बेचारी स्त्री"  के भावों की बौछार! और जब आप इस छवि को तोडता- सा कोई प्रतिरोध भरा  कदम उठाएगीं तो कहलाऎंगी सिरफिरी ,किसी मर्द के द्वारा भडकायी गई या पति के द्वारा सताई गई या सास से परेशान या कि कुंठिता... उफ ....!

हमारा मुस्कुराने का अनुभव ज्यादातर तो बुरा ही रहा है पर हमने अभी हार नहीं मानी है ! हम तो यह मानकर अब तक मुस्कुराते आए हैं कि हम खुद को ऎसे ही मुस्कुराते देखना चाहते हैं और यह कि यह किसी भी इंसान की सहज वृत्ति है, और यह कि किसी और की वजह से हम क्यों छोडें मुस्कुराना !

अब आप ही बताइए कि हम क्यों न मुस्कुराएं ?

10 comments:

RC Mishra said...

मुस्कुराइये तब, जब कि आप लखनऊ में हों, क्योंकि मैंने वहाँ बहुत जगहों पर लिखा देखा है: मुस्कुराइये कि आप लखनऊ में हैं
वहाँ आपकी मुस्कुराहट का कोई गलत(?) अर्थ नही लगायेगा :)।

Yunus Khan said...

क्‍या करें ये सब पढ़कर हम मुस्‍कारा ही सकते हैं और क्‍या । शायद ये सब लिखकर आप भी मुस्‍कुरा ही रही होंगी

Sagar Chand Nahar said...

हमारा मुस्कुराने का अनुभव ज्यादातर तो बुरा ही रहा है
यह बात कुछ जमी नहीं, जब आपने मसीजीवीजी को पहली बार देखा था तब नहीं मुस्कुराई थी? फिर आपका अनुभव बुरा कैसे रहा?
पढ़ते और यह टिप्प्णी लिकते समय मैं भी मुस्कुरा रहा हूँ।

sudo.inttelecual said...

like ur writing but this is not tru lots of ga ls always giggle only i dont think woman and girl dont laugh at workplace they laugh a lot

Divine India said...

आज के बदलते परिवेश में आम रुप से कही पर मुस्कराना कोई निमंत्रण नहीं भेजता हाँ अगर कोई बिना कुछ कहे नजरे नीची कर ओठों को भींचकर मुस्कराये तो यह जरुर कुछ संकेत देता है…
मगर आज तो स्त्रियाँ इतनी बोल्ड हो चुंकि हैं कि उनका इस रुप में भी मुस्कराना कुछ अगल भ्रम पैदा करता है जिससे पुरुष समाज सहम ही जाता है…खासकर मेट्रो में तो पुरुष डरा हुआ ही है स्त्री से…
लिखती तो आप अच्छा है ही… और क्या कहा जाए

Udan Tashtari said...

अजी, खूब मुस्कराइये और जी भर के इस संक्रमण को फैलाईये. कहते हैं मुस्कराना संक्रामक है. आप मुस्कुरायेंगी तो सामने वाला मुस्करायेगा और माहौल खुशनुमा होगा.

मुस्कराते रहने के लिये शुभकामनायें.

Anonymous said...

तो मुस्कुराईये ना! कौन रोक रहा है, कम से कम मुझे तो आपकी मुस्कुराहट पसंद ही है।

पर मुस्कुराहट का एक नुक्सान भी है, जो मैं भोग रहा हूँ। वह यह है कि मेरी मुस्कुराने की ’बिमारी’(अपने लिये इसे बिमारी ही कहूँगा) के कारण लोग मुझे सीरियसली नहीं लेते। पर आपको तो पता ही है ना कि मैं कितना संजीदा हूँ।

हाय! अल्ला कित जाऊँ

Anonymous said...

आपका लिखा पढ़ा, अच्छा लगा, आपके वाद-संवाद का लिंक दे रहे हैं plz see www.pnnhindi.com

ePandit said...

मुस्कुराओ जी तसल्ली से मुस्कुराओ। इस पर किसी का कॉपीराइट थोड़े ही है। :)

मीनाक्षी said...

मुस्कान पर सुन्दर लेख लिखने पर बधाई। मुस्कान आपको खूबसूरती तो देती है, दूसरों को भी बहुत कुछ दे जाती है।