Sunday, July 22, 2007

मोहल्ले का तो है अंदाजेबयां कुछ और

 सामूहिक चिट्ठाकारिता का अपना अलग व्याकरण है ! इस व्याकरणशास्त्र का परिवर्धन - परिमार्जन लगातार हो रहा है और हमने उस पर नजर भी रखी हुई है! हमने देखा कि किस तरह से उसका निजी चिट्ठाकारिता से अलग एक स्वरूप व उद्देश्य है -यह चिट्ठाकारिता का एक नया तेवर है जिसकी गंभीर पडताल बाद में लिंकित मन पर की जाएगी ! पर फिलहाल तो ऎसे ही एक "लोकप्रिय" चिट्ठे मोहल्ले के साथ कुछ-कुछ पंगा शैली में लिख बैठे हैं --पंगा यह जानते हुए लिया गया है कि पत्रकार बिरादरी को छेडना बहुत खतरनाक भी हो सकता है ! अब छपास पीडा का शमन न करना होता तो लिख भर देते ,पोस्ट न करते ;) पर फिलहाल तो निज पीडा ही बडी जान पड रही है !!!! 

 तो देखा जाएगा परिणाम आप तो मुलाहिजा फरमाऎं---

 

    चिट्ठा करि करि जग बौराना, अंधकूप गिरा तहहि समाना
    वादी विवादी अधिक उकसाना,चिंतनशील विकट हैराना !!

 

पत्रकार के चिट्ठे पे कबहु विवेकी न जाइ

उत्सुकतावश यदि जाइ तो कबहु न टिपियाइ !!

       चिट्ठों के चौबारे पर लगी रहा चिट्ठा मेला

      ढूंढे से भी न मिले तहां चिट्ठाकार अकेला !!

स्त्री दलित हिंदुमुस्लिम चालू आहे बाजार

धाट धाट से चुनि चुनि लगि रहा यह अंबार!!

      इक ही विषय पर आइ रहा मति -कुमति का रेला

      लेख-कुलेख धकियाइ के लाइम लाइट में ठेला !!

चिंतन करि करि ऊपजे ऎसा विमर्श -पहाड

छुटपुट लेखक चढि पडा सूझे न कोई उतार !!

 

       जहां तहां से उद्धृत करें सम- समभावी विचार

        बेनामी टिपियाय रहे पड्तु निरंतर मार !!

 कहें विमर्श करतु संघर्ष न निकले निष्कर्ष

ऋन धन,धन ऋण होई जात है कैसे हो उत्कर्ष !!

 

      वा गली वा कुंजनिन में लगी रही संतन भीड

     हल्का -फुल्का एकु न,एकौ ते एक गंभीर !!

      एकु ते एकु गंभीर, मिली-मिली ग्य़ान बधारें 

      बनी परकास-स्तंभ करत हैं जग उजियारे !! 

     जग महि करें प्रकास नहीं हैं इन्हें अवकास

     ग्यान  चक्षु हैं खुलि गए बाकी सब बकवास !!

 

क्षमा करें बंधु हमें हमरा है नहीं दोस

टिपियाकर परगट करें अपना सब आक्रोस !!

12 comments:

सुजाता said...

बहुत खूब !!वाह वाह!! क्य सही मारा ,पकडा ।सतसई बना डालिए ना!!

अभय तिवारी said...

सही है.. सँभल जाओ अविनाश..:)

Sanjeet Tripathi said...

हा हा, जबरजस्त!!

bhuvnesh sharma said...

क्या सफ़ेद धुलाई है :)

Tarun said...

हमारे ब्लोग में एक बार टिप्पणी थी - "इन विषयों के अलावा कोई और विषय है बहस के लिये" तो सुझायें। हमने तुरंत फुरंत सुझाये भी। लेकिन लगता है बात वो ही रही "ढाक के तीन पात", ऐसा ही कुछ मुहावरा है ना।

Divine India said...

सही है…!! :)

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

हे देवी नेता, अफसर, पुलिस अरु ब्लोगर सबका एक शिकार
दिन-रात टिपटिपाए की बोर्ड जो बेचारा पत्रकार.
अब पड़ गईं आप भी पीछे इनके धो कर हाथ
पहले से ही पडी हुई है दुनिया की हर सरकार.
सियावर रामचंद्र की जय.

ePandit said...

मजेदार! :)

Arun Arora said...

सही है जी ,

अनूप शुक्ल said...

सही है। सफ़ेद धुलाई की आड़ में दोहों को ऊंचा-नीचा पन(ऊबड़-खाबड़ पन कुछ् भदेस लगेगा न!) छिप गया :)

Anonymous said...

आपको हमारी जगह ने कवित्त की प्रेरणा दी, ये मेरे लिए प्रेरणास्‍पद है।

Anonymous said...

अरे वाह दोहे काफ़ी सही लगे !!!