Wednesday, March 07, 2007
नारद मामा का करें कि भेजा शोर करता है?
भाई हम तो अब वो बोलते बोलते थकाए गए है'जो हमसे बुलवाया जाता रहा है अब तक ।अब वो बोलना है जो हम बोलना चाहते हैं और बाकसम वही बोलेंगें भी ।चुपाए चुपाए बडे दिन हो लिए बातें भी एसी कि किससे कहें कोई तो मिले दिलदार सुननेवाला ।ये क्या कि पहले तो मुहं खोलिबे की हिम्मत न हो ,जैसे तैसे जुटाए रहें तो सैन-बैन, तीर तरकस ,तलवारन से लैस जन आजू- बाजू आ खडे हों ।अरे कुछ हम कहें कुछ तुम कहो बातन-बातन में नेक तो काम का विचारो -करो ।ये क्या कि दिल की दिल में र्रखे बैठे रहें,ऊपर ऊपर से मुंडी हिलाए -हिलाए हामी भरे- से दीखते रहें तुम्हारी कही पे ।वैसे बडी गजब सोच दीखे कुछेअक की-आचारसंहिता उचारसंहिता को लेकर कसम से ।अब कौन बनाएगा ये कौन के पास इत्ती सोच -बुद्धि रखी धरी है जरा हमें भी तो कराओ ओके दरसन। का है कि हैं तो अदने अभी पर खरी खरी दो - चार कभी- कभार कह बोल ही लेते हैं हम ।अच्छी सच्ची बात कहीं तो कही जाएगी चाहे जमाना लाख रोके । मन पंछी पे कित्ती भी रोक लगाओ वह तो फडफडाएगा ही । ये क्या कि कोई बोले मेरी सोच से तेरी सोच मेल नहीं खाती और ये सुनी के सोच का पंछी चुपा जाए । तुम्हारे खंडन करने ,हामी न भरने से डरिके हम वो सोच बैठें जो तुम चाहो सो तो होगा नहीं अब। कान तुम्हारे हैं चाहो तो बंद करि ल्यो या फिर अपनी बात रखो । वैसे दिल की कह देने ही तो हम आए थे यहां वरना तो जीते थे जैसे सब जीते हैं । तुम भी जरा कह लो सुन लो दो चार बातें ,काट -कूट के अपनी मति बताए ..दो अब का कहें कि भेजा शोर करता ही है मेरा हो या कि तुम्हारा......
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
7 comments:
बहुत खूब! मन पंछी को फड़फड़ाते रहना चाहिये!
सिर्फ फड़फड़ाये ही काहे, खूब उड़े भी !! कोई पिंजरा थोड़ी लगा है कि फड़फड़ाये और रह गये. खुला आसमान है , खूब उड़ो!! बेहतरीन उड़ान के लिये शुभकामनायें !
-वैसे तरकश तीर वाले भी तो बस उड़े ही तो थे? उनका भी तो मन है, उहो फड़फड़ाता होगा उड़ने को. शायद नो फ्लाईंग जोन में चले गये होंगे, लगता है उड़ते उड़ते बिना परमिट के? :)
bahan ji,
jhoothe anu-bandhoN ko tod Daalne ke liye.
ho unmukt, jaal sang, ud jaane ke liye.
ek fasee gauraiyaa kaa fadfadaanaa vyarth hai
chalo! sabhi ko mill fadfadaanaa chaahiye :)
Surendra Sharma
बहुत खूब कहा आपने ! :)
भेजा शोर करता है तो लिखीये ना...कोई तीर-कमान लेकर खड़ा नहीं होगा.
आप पूरे प्रकरण से अनजान है, इसलिए इस प्रकार लिखा है. मैने माहौल खराब करने वालो के लिए लिखा था. क्या मेरे भेजे को शोर करने का अधिकार नहीं है? या फिर आज तक किसी चिट्ठे को नारद से बाहर नहीं किया गया होगा?
वो कुछ भी लिखे और हमे विरोध करने का अधिकार भी नहीं? :(
संजय जी आप सही कह रहे हैं दरअसल मैंने भी यही कहा है जो आप यहां कह रहे हैं । विरोध भी जरूरी है पर रचनात्मकता के साथ ही
अनूप जी,समीर जी,मनीष जी धन्यवाद
Post a Comment