Tuesday, March 06, 2007

बंदीघर में विचार

कविता जिंदगी को बयान करने का सबसे खूबसूरत अंदाज है जब सपाटबयानी से काम नहीं चलता कविता करने बैठ जाती हूं सुकून मिलता है ....कभी कभी तलधर के सामान को धूप भी चाहिए...खैर एक कविता यूं ही बाहर आ गई और मैंने यहां पोस्टित कर दी..



विचार का आना यों हुआ
विचारधारकों के यहां
मानो बंद दरवाजे के नीचे से
खिसका दिया गया हो कोई अखबार....
कुंदधार हथियार-सा विचार
प्रतीक्षा में लीन
म्यान में पडा
दुनियावी दबावों के बहाने
तहखानों में बैठ
दशकों तक सडा ......
जिनकी मोहक म्यानों में
आज ये हथियार है वे
बिना लडे झुक चुके
विचार की पूजा में थाली सजाए
अनुभव को दुरदुराते झुठलाते
अब चुक चके वे......
....बंदीघरों में महफूज विचार
संग्रहालयों में ही सजा दो
तो शायद बेहतर हो...

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