Tuesday, December 01, 2009

मेरी नाप की चप्पलें

मजबूत , आरामदेह और हल्की चप्पलें मैं हमेशा से खोजती रही हूं ! एक आध बार बाज़ार में ऎसी चप्पल मुझे मिली भी और उसे पाकर मुझे लगा कि मानो मैंने कोई मैदान मार लिया हो !

चप्पल और  कामकाजी औरत का नाता बहुत गहरा होता है ! यदि चप्पल साथ न दे तो बस के पीछे भागकर उसमें चढना , मेट्रो की बहती भीड को चीरकर आगे बढकर उसमें चढना , ऑफिस की सीढियां जब देर हो हो रही हो तो भागते फलांगते चढना ( वैसे देर तो अक्सर ही हो रही होती है ) बाजार से दूध ,सब्जी दवाई दालें और मेहमानों के लिए बिस्कुट नमकीन खरीदते हुए घर की ओर भागना ,.....अगर चप्पल  भी आजकल के प्रेमियों की तरह साथ देने से इंकार कर दे तो क्या हो ?

बाजार में कई तरह की अजीब - अजीब चप्पलें देखकर मुझे हमेशा से हैरानी होती रही है - रंग बिरंगी ,पतली-पतली ऊंची ऊंची एडी वाली , चिलकनी , लटकन, डोरी शीशा ,फर ,झूमर , कढाई जबतक न हो मानो औरतों के लिए चप्पल सैडिलें बन ही नहीं सकती ! जाहिर है कि कि इन चप्पलों की सूरत और सीरत में ओई तालमेल नहीं होगा ! इन्हें पहनकर कोई भी स्त्री दौड भाग तो दूर ठीक से खडी भी कैसे होती होगी मुझे ताज्जुब होता है ! फिर भी ये चप्पलें बन भी रही हैं और बिक भी रही हैं ! पतली कमर के साथ पतली लंबी हील के सैंडिल जबतक न हों - बलखाई  नजाकत भरी चाल और अदा कहां से आएगी ? शायद दुनिया की जूता कंपनियां फेमिनिटी के पोषक तत्वों पर काफी शोध कर चुकी हैं ! मजबूती टिकाऊपने और सहूलियत के तत्वों को गायब करके हमारे पांव के लिए सबसे दुर्गम डिजाइन वाली चप्पलें ही बनाई जाती हैं ! आपके लिए अच्छी चप्पल के मायने जूता कंपनियों की "अच्छी" की परिभाषा से उलट होंगें ! हमें घीमी , मदमाती गजगामिनी चाल इन्हीं चप्पलों की बदौलत ही तो मिल सकती है !image

हमारे सौंदर्य के मानदंडों में कद और सुंदरता का गहरा नाता है सो अच्छे लंबे कद के प्रदर्शन के फेर में स्त्री अपने लिए ऊंची से ऊंची हील की चप्पलों को पहनती हैं ! अक्सर इस तरह की चप्पलों से उनके पैरों के तकलीफ होती है , थकान बहुत होती है ,गिर पडने का खतरा बढ जाता है नोकदार ऎडी किसी गड्ढे, नाली के जालीदार ढक्कन या सीढी चढते हुए अटक जाती हैं - पर स्त्री को पीडा सहने की आदत होती है ! ब्यूटी और स्टाइल ही नहीं यहां अपने भीतर पनपी हीनता ग्रंथी को भी सवाल है ! कष्ट तो सहना ही होगा ! कष्ट तो शरीर पर वैक्सिंग करवाने , भौहें बनवाने और बच्चा जनने में भी होता है ! पीडा सहना तो हमारी आदत में शुमार है ! शायद पीडा सहने की प्रौक्टिस करते रहना हमारी विवशता है ... !

जब कभी स्पोर्ट्स जूतों में और आरामदेह चप्पलों में घूमती लडकियों को देखती हूं तो काफी राहत मिलती है ! स्त्री अपने शरीर को जब समाज और पुरुषों के नजरिये दसे न देखकर अपनी नज़रों से देखना शुरु करेगी तब उसे संज्ञान होगा कि उसने अपने और अपने शरीर के साथ कितना अन्याय किया है !

मुझे अपने लिए जैसे तैसे अपनी नाप की आरामदेह चप्पलें बहुत ढूंढ के बाद मिल ही जाती हैं ! उन्हें पहनकर आत्मविश्वास, तेज़ी  निर्भीकता से चलती हूं ! पर मेरी साथी औरतों को कैसे कहूं कि बस स्वयं को और कष्ट देना अब वे बंद करें ! साथिनों की क्या कहूं मैं तो अपनी छात्राओं तक को नहीं कह पाई !

एक बार अपने कॉलेज में परीक्षा कक्ष में मैंने बहुत मोटे और लंबे प्लेटफार्म वाली चप्पलों को पहने एक लडकी को देखा ! अति साधारण घर की लडकी ने जैसे तैसे समय और फैशन के साथ कदमताल मिलाए हुई थी ! फिल्मी तारिकाएं मानो उसका आदर्श थीं जिनकी नकल के बेहद सस्ते कपडे पहने हुए थी वह लडकी ! उसकी चप्पलें मानो मेरे पैरों में घाव किए दे रही थीं ! मुझसे रहा नहीं गया तो मैंने उससे कहा कि उसे ऎसी चप्पलें नहीं पहननी चाहिए इससे तबीयत खराब हो जाएगी ! उस लडकी ने बडे सपाट और ठंडे तरीके से  जवाब दिया - " मैडम अगर ऎसी चप्पलें नहीं पहनूंगी तो तबीयत खराब हो जाएगी " !

19 comments:

सागर said...
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सागर said...

सुन्दर... मनोविज्ञान विश्लेषण

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

सच बहुत अच्छा psychological analysis किया आपने......

" मैडम अगर ऎसी चप्पलें नहीं पहनूंगी तो तबीयत खराब हो जाएगी " !

अब चप्पल का तबियत से क्या लेना -देना..... हा हा हा हा हा .....

वैसे woodland कि चप्पलें बहुत अच्छी होती हैं.....

संजय बेंगाणी said...

स्त्री हो या पुरूष अलग अलग मौकों के लिए अलग अलग तरह के कपड़े और चप्प्ल या जूते पहनते है. अच्छा हो अगर वे आराम दायक हो.

हर बात के लिए समाज और पुरूषों को कोसना समझ से बाहर है. महिलाओं को कौन बाध्य करता है की ऊँची एड़ी की सेंडिल पहने? जिन्हें पसन्द है वे पहनती है. स्वास्थ्य से खिलवाड़ तो लिप्स्टिक पोतना भी है.

रवि रतलामी said...

रेखा (श्रीमती जी) भी एक्जाम ड्यूटी के नाम पर बेहद आरामदायक जूते चप्पलों की तलाश में हर साल निकलती है, मगर अंतत: फैशन और डिजाइन का मुकाबिला आरामदायक चप्पलों के साथ आमतौर पर नहीं हो पाता तो बात वही होती है - ढाक के तीन पात! :)

वैसे, उस चप्पल के मेक और मॉडल नंबर बता देतीं तो हमारे जैसों के लिए एक बढ़िया गिफ़्ट आइडिया होता. सार्वजनिक न करना चाहें तो मेरे ईमेल पर ही यह अत्यंत महत्वपूर्ण, जरूरी जानकारी भेज दें.

M VERMA said...

चप्पल पैरो को आराम देने के लिये होती है. फैशन ने इसको बदल दिया है. अब आराम से अधिक सुन्दरता (तथाकथित) के लिये पहना जाता है.
सुन्दर आलेख

L.Goswami said...

रवि जी के साथ कृपया मुझे भी जानकारी(मेक और मॉडल नंबर) दे कर कृतार्थ करें

Udan Tashtari said...

हर समय काम....थकान...तकलीफ...तो फैशन परस्ति कब होगी?
//
पत्नी एकबार ऐसी ही काँच जड़ित चप्पल खरीद रही थी. मैने टोका..इसे पहन कर कैसे चल पाओगी..दूसरी ले लो.

तुरंत डांट खानी पड़ी कि ये चप्पल चलने के लिए पार्टी में पहनने के लिए है. आप को तो कुछ मालूम ही नहीं..

यही हाल पर्स का है कि यह पर्स सामान रखने के लिए --सिर्फ मैचिंग का पार्टी में हाथ में रखने के लिए है.///

बताओ??

-वैसे विश्लेषण अच्छा है.

Udan Tashtari said...

अच्छा है कि पार्टी के लिए अभी तक पार्टी वाले हसबैण्ड का फैशन नहीं आया है वर्ना तो घर में बर्तन साफ करते नजर आते.. :)

Dr. Ashok Kumar Mishra said...

सार्थक और सारगर्भित प्रस्तुति ।

मैने अपने ब्लग पर एक कविता लिखी है-रूप जगाए इच्छाएं-समय हो पढ़ें और कमेंट भी दें ।- http://drashokpriyaranjan.blogspot.com

गद्य रचनाओं के लिए भी मेरा ब्लाग है। इस पर एक लेख-घरेलू हिंसा से लहूलुहान महिलाओं को तन और मन लिखा है-समय हो तो पढ़ें और अपनी राय भी दें ।-
http://www.ashokvichar.blogspot.com

अनूप शुक्ल said...

चलो एक पोस्ट आयी,चप्पल के बहाने ही सही।

Dipti said...

एकदम सटीक मुद्दा। डिज़ाइनर चप्पलों का शौक़ मुझे भी रह-रहकर होता है। खरीद लाती हूँ और फिर वो शो केस का हिस्सा बन जाती हैं। पहनती मैं वही श्रीलेदर की आरामदायक चप्पल हूँ।

ghughutibasuti said...

बहुत बढ़िया चप्पल चर्चा की है। वैसे बहुत सी युवतियाँ अधिकतर आरामदेह जूते या सैन्डिल ही पहनती हैं। ऊँचे हील की केवल तभी पहनती हैं जब चलना न पड़े।
मुझे पुणे में एक दुकान मिली थी जहाँ हल्की सुन्दर व आरामदेह चप्पलें, सैन्डल मिलती थीं। दुकान का नाम ध्यान होता तो यहाँ भी बता देती। पुणे में सस्ती व आरामदेह ओशो चप्पलें भी मिलती हैं।
घुघूती बासूती

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

चप्पलों को आराम कुर्सी पर बैठना कभी पसंद नहीं होता.
ज्यादा आराम होगा तो एक दुसरे से जुदा हो जायेंगी न.

अर्कजेश said...

ये जो चित्र में दिख रहा है चप्‍पल ये तो आपके वर्णित पसंद के मुताबिक नहीं है । किसी और ने पसंद किया होगा ।

भगीरथ said...

स्त्री अपने शरीर को जब समाज और पुरुषों के नजरिये से न देखकर अपनी नज़रों से देखना शुरु करेगी तब उसे संज्ञान होगा कि उसने अपने और अपने शरीर के साथ कितना अन्याय किया है !!
्विचारणीय है

रामकृष्ण गौतम said...

शुकरान अल्लाह!...

Dr.Ajit said...

आदरणीय नीलिमा जी,
आप मेरी ब्लाग यात्रा के पहले साक्षी रहे है आज से लगभग जब दो साल पहले मैने ब्लाग लिखना शुरु किया था तब आप ही जिन्होने मुझे तहेदिल से पढा और न केवल पढा बल्कि मुझे प्रोत्साहित भी किया कुछ लिखने के लिए। इधर कुछ दिन से दुनियादारी मे उलझा रहा सो नियमित ब्लाग लेखन छुट गया लेकिन लगभग दो साल के निर्वासन के बाद मै फिर आपकी बज्म मे आ ही गया हू अपने दिल के जज्बात लेकर सो एक अधिकार के साथ आग्रह कर रहा हू कि पूर्व की भांति ही आपके स्नेह की प्रत्याशा मे हू...आपकी अभिव्यक्ति मुझे उर्जा देगी ऐसा मेरा विश्वास है।
डा.अजीत
www.shesh-fir.blogspot.com

सागर said...

" मैडम अगर ऎसी चप्पलें नहीं पहनूंगी तो तबीयत खराब हो जाएगी " !

बात सुनकर भले ही कुछ अटपटा सा लगे या हंसी भी आये...लेकिन ऐसा होता है ...हो सकता है यानी ऐन मुमकिन है ! वस्तुत: इसमें सवाल चप्पल का नहीं बल्कि अपने ही बनाये मापदंडो की मानसिक दासता का है ....

जो भी है मुद्दा दिलचस्प है ....लेख भी रोचक लगा !