Wednesday, September 02, 2009

हाउस , फ्राउऎन , सेक्स - मार्गिट श्राइनर

अपनी पिछली पोस्ट में मैंने एक अनोखे तेवर वाले उपन्यास "  घर ,घरवालियां ,सेक्स "का नामोल्लेख  किया था !  कई मित्रों ने इस उपन्यास के बारे में जानना चाहा है ! इसका हिंदी अनुवाद अमृत मेहता ने किया है तथा इतिहास बोध प्रकाशन द्वारा यह प्रकाशित है !  एक अक्खड , मर्दवादी , बकवादी और  स्त्री और घर के चक्कर में खुद को लुटा पिटा  मानने वाले पुरुष के अंदरूनी गुबार को पेश करती है ! उसने पत्नी से मांगा प्यार , सेक्स खुशी , सुरक्षा  ! जिसके लिए उसने अपना सबकुछ कुर्बान किया - दिमाग , वक्त , आज़ादी ! किंतु उसने जितना इंवेस्ट किया इतना उसे मिला नहीं !  उसे मिली -एक ठंडी , घर और बच्चों के नैपी और रसोई की बास से भरी ,कामकाजों में उलझी धोखेबाज, बहानेबाज और पति की कमाई पर जीने वाली स्वार्थी औरत !

यह एक  " कुशल चातुर्यपूर्ण गद्य रचना है जिसमें पत्नी द्वारा त्याग दिए जाने के बाद कथक अपना मरदाना बकवादी चेहरा दिखाता है !"

इसकी रचना एक  स्त्री ने की है !  मारी थेरेज़े - सुपरमार्केट की खजांची ,अपनी बीवी को संबोधित करते इस उपन्यास के पीडित पुरुष का दर्द पेश है   ---

" ...तुम देख सकते हो ,लुगाइयां हमारा क्या हाल कर देती हैं ! बिना पलक झपकाए वो हमारी ज़िंदगी बर्बाद कर देती हैं !चट्टान की चटनी बना देती हैं !तुम लोग हो तो बुनियादी तौर पर निर्मम ! और कठोर ! जानती हो मेरा धीरे-धीरे मेरा क्या खयाल बनता जा रहा है ? मेरा यह खयाल बनता जा रहा है कि तुम्हारी यह तथाकथित रहस्यात्मकता एक धोखा है : नारी की रहस्यात्मकता, नारी , एक रहस्यमय जीव , नारी हिरणी , परी , जादूगरनी ! कई बार जब तुम स्वप्निल नेत्रों से खिडकी के बाहर देख रही होती हो और तुम्हारे नेत्र दमक रहे होते हैं तो मुझे लगता है कि तुम्हें महावारी हो रही है , और कुछ नहीं !यदि इसके पीछे कोई सिद्दांत जोडना है तो उसको यथार्थनिष्ठ सिद्ध करना होगा! मेरा मतलब कोई तो सबूत होना चाहिए , जो तुम्हारे बारे में जानकारी दे : कोई दूरदृष्टि हो , कोई दर्शन हो साहसकर्म का कोई सपना हो ! लेकिन है कहां महिला दार्शनिक , दूरदृष्टि रखने वालीयां , या दुस्साहसी स्त्रियां ? शोधकर्ता ? तुम लोगों ने अभी तक एक ही गहरा शोध किया है - बंदरों की कामक्रियाओं पर ! तुम लोग तो ठीक से कोई नारी आंदोलन भी नहीं चला सकीं !

.......एक बार औरत बच्चा पैदा कर दे तो सेक्स तो उसके बाद ज़्यादातर खत्म हो जाता है ! उसे बच्चा मिल गया, अर्थात सुरक्षा मिल गई , प्यार की अमानत , गारंटी और फिर उसे सेक्स में दिलचस्पी नहीं रहती ! हम मर्द वैसे नहीं हैं, इसलिए तुम लोग चाहती हो कि हमारी दिलचस्पी न सिर्फ अपनी बीवियों में न रहे बल्कि दूसरी औरतों में भी न रहे ! खैर यह बात तो सब अच्छी तरह से जानते हैं: पहले तो तुम हमेशा बच्चे के साथ व्यस्त होती हो, फिर तुम थकी होती हो तुम्हॆं आधासीसी का दर्द होता है आदि ! हमेशा जब हम तुम्हारे नजदीक आने की कोशिश करते हैं तो कोई न कोई गडबड तुम्हारे साथ रहती है ! या तुम्हें महावारी होती है , या बच्चे अभी नहीं सोए या तुम्हें इच्छा नहीं है , क्योंकि हम तुमसे कभी बात नहीं करते या क्योंकि हम बहुत उंचा बोले हैं और या क्योंकि हमने कुछ पी रखी है , और तुम शराबी के साथ नहीं करना चाहती और या क्यॉंकि हमने कुछ नहीं पिया और इस कारण चिडचिडे हैं और क्योंकि तुम ऎसे आदमी के साथ नहीं करना चाहती जो हमेशा चिडचिडा रहता है और चूमाचाटी नहीं करता इत्यादि ! यह सब कुछ स्वभावत: लुके छिपे अपरोक्ष ढंग से ! ऎसा कभी नहीं होगा कि कोई बीवी अपने मियां से सीधे -सीधे कहाँ देकि वह उसके साथ नहीं लेटेगी! सवाल ही पैदा नहीं होता ! तुम लोग ऎसे दिखावा करती हो कि तुम तो चाहती हो ! सिर्फ हालात ही इसके खिलाफ हैं !................समस्या सिर्फ बंदे की नहीं है ! समस्या सिर्फ प्रेम की नहीं है ! समस्या औरतों की है ! वे वास्तव में होती ही प्रेमहीन हैं ! ऊपर ऊपर से ! सतही ! बस दिखना चाहिए , असली चीज़ वही है ! बस असुरक्षा नहीं चाहिए , जोखिम नहीं चाहिए , स्वयं को सुरक्षित रखना है बस , और फिर वे सद्वभावपूर्ण दांपत्य जीवन भी चाहती हैं ! लेकिन सेक्सहीन ! क्योंकि इससे तो अशांति उत्पन्न होती है न ! और पुरुष बरसों इस स्थिति के साथ निभाता रहता है ! परिवार की खातिर , ज़िम्मेदारी की खातिर , फर्ज की खातिर ! और औरतों को देखना बंद कर देता है सेक्सहीन प्राणी बन जाता है  जो सिर्फ पैसा कमाता है और अपने हॉबी कक्ष में बैठकर बढईगिरी करता है................. "

19 comments:

विवेक सिंह said...

सूचना: मैं इस ब्लॉग पर आया, और यह पोस्ट पढ़ी.

अर्कजेश said...

ऐसी रचनाएँ अतियों पर ही चलती हैं !
अपने पल्ले बात कुछ पडी नहीं |

डॉ .अनुराग said...

कभी कभी ब्यौरे विस्तृत हो जाते है ...अनावश्यक भी ...कही विम्ब भी काम कर जाते है ...

कुश said...

सब अपने हिस्से का एक सच लिए घूम रहे है..

Sushma Sharma said...

क्या कहूँ, समझ नहीं पा रही हूँ. पढ़ते हुए बहुत कुछ ठीक और ढेर सारा समझ से परे लगा. पूरा उपन्यास पढ़ना पढ़ेगा. प्रकाशक का पता अधूरा है. कृपया यदि सम्भव हो तो पूरा पता दें. क्या उपन्यास वीपीपी से प्राप्त किया जा सकता है. क्योंकि हमारा शहर (आम हिंदुस्तानी शहरों की ही तरह) नाम का बड़ा है. हिंदी किताबों को हासिल करने के ठीये यहाँ न के बराबर है.

राजकुमार ग्वालानी said...
This comment has been removed by the author.
राजकुमार ग्वालानी said...

पति-पत्नी के बीच की कड़वी सच्चाई है लगता इस उपन्यास में वास्तव में उपन्यास के पीडि़त पुरुष का जो दर्द है वैसा ही दर्द आज के जमाने में ज्यादातर पुरुषों का है। अब इसे समझने की ही जरूरत है। वैसे औरतों के दर्द को भी समझने की जरूरत है। संभवत: उपन्यास में यह भी होगा।

Atmaram Sharma said...

समस्या तो गहरी है. चाहे फिर स्त्री की हो या पुरुष की. स्त्रियों का पलड़ा भारी पड़ेगा जुल्म सहने के संदर्भ में.

Arvind Mishra said...

रेडिकल रचना ! .लीक से हट कर ! मैं जरूर खोजता हूँ ! आभार !

Kulwant Happy said...

हटकर भी और जानकारी भरपूर है आपकी पोस्ट

Neelima said...

सुषमा जी ,यह उपन्यास इतिहासबोध प्रकाशन , बी -239 , चन्द्रशेखर आजाद नगर , इलाहाबाद - 211004 द्वारा प्रकाशित है
दूरभाष - 0532/2546769

467, सेक्टर 9 , फरीदाबाद , हरियाणा , दूरभाष-
0129 -5007467

मूल्य -45 रुपये

स्वप्नदर्शी said...

Badhiyaa hai!!!

अनूप शुक्ल said...

हमको एक कविता याद आती है कानपुर के श्रीवास्तवजी की:
इस खिड़की से जितना दिखता है
बस उतना सावन मेरा है।
हैं जहां नहीं नीले निशान
बस उतना ही तन मेरा है।

समय said...

काफ़ी कुछ है इस उपन्यास में।
पुरूष मानसिकता को नंगा करता नज़रिया।
महिला मानसिकता को भी आईना दिखाती जुंबिश।

कुलमिला कर विवाह संस्था की गहरी पड़ताल। सवाल।

यहां आना अच्छा लगा।

के सी said...

फिक्शन में भी इस तरह का अवतरण हो चुका है, अजूबे पात्रों के स्थान पर अब पाश्चात्य जगत भी अपने से जुड़ते हुए किसी विषय पर गल्प को पढ़ना चाहने लगा है, वैसे ये इसके सिवा कुछ नहीं है कि वर्तुल में हम जहाँ से चले थे वहीं पहुँच गए हैं. भारतीय वैदिक परम्परा ने स्त्री-पुरुष की संयुक्त इकाई का आदर्श स्वरूप जो बताया है मुझे वही सच लगता है चाहे अंतिम सच ना हो. हमारी जितनी बड़ी पीडाएं नहीं है उतनी बड़ी कुंठाएं हैं.

shabdarnav said...

neelima ji
nayee kitabon aur naye bhavbodha ko samane lane ke liye dhanyavad. kitaab allahabad vaale dak se nahin bhejte. kahte hain karnal pash pustakalaya sampark karo. mere blog par tika tippanion sahit aapka swagat hai.
rakesh narayan dwivedi

shabdarnav said...

neelimaji
naye bhavbodh aur samajik udvelanon ko samane laane ke liye aapka dhanyavad. mere blog par tika tippanion sahit apka swagat hai.
rakesh narayan dwivedi

neelima garg said...

u have created a curiosity about this novel......good glimpse...

हरकीरत ' हीर' said...

जन्मदिन की ढेरों शुभकामनाएं ......!!