पिछले दिनों अफगानिस्तान में घोषित नए कानून के द्वारा मानवीयता की सारी हदें पार कर दी गईं ! इसके मुताबिक अपनी पत्नी द्वारा सेक्स से वंचित पति उसे खाना देने से इंकार कर सकता है ! इसके अनुसार पत्नी को चार दिन में कमसे कम एक बार अपने पति की शारीरिक इच्छा की पूर्ति करनी होगी ! इससे विवाह की परिधि में पत्नी से बलात्कार को कानूनी मान्यता दी गई ! इसे घोषित करने वाले अफगान के राष्ट्रपति हामिद करज़ई का समर्थन अफगान के रुढिवादी संगठनों ने किया जिनके बल पर चुनावी राजनीति का निकृष्टतम दांव खेला गया ! इस कानून का पश्चिमी नेताओं और अफगानी स्त्री संगठनों ने विरोध और निंदा की !
नो वर्क नो सैलरी - नो सेक्स नो फूड ! अफगानी समाज में स्त्री की पारिवार में स्थिति कामगार की तरह है ! जिसका काम पति की शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना और उसके बच्चों को पालना मात्र है ! उसके एवज में पति उसे खाना और रहने की जगह देकर इस घरेलू कामगार के प्रति अपने कर्तव्य की इतिश्री करता है !
अफगान समाज तो बहुत सभ्य निकला ! उसने विवाह ,परिवार, स्त्री की बराबरी से जुडी कई वैश्विक समस्याओं को इतने सहज तरीके से सुलटा दिया ! इसने विश्व को समझा दिया कि कि सभ्य समाज में स्त्री और पुरुष के संबंध तो कबीलाई ही रहेंगे ! कितनी भी कवायदें आप कर लें कितना भी आप विमर्श कर लें ! स्त्री का जन्म एक घरेलू मजदूर के रूप में हुआ है इस सच से मुंह नहीं मोड सकते !
दिहाडी मजदूरी को हम आज तक नहीं खत्म कर सके ! मजदूर संगठन बनते टूटते रहते हैं पर मजदूरों की बेबसी बनी रहती है ! स्त्री के साथ भी यही स्थिति है ! अफगान हमसे ज़्यादा दो टूक है ! उसने बराबरी , हकों और सम्मान के सारे भ्रमों को तोडते हुए जो बात साफ साफ कही विश्व के बडे - बडे स्ट्रेट फार्वर्ड समाज नहीं कह पाए !
दरअसल स्त्री की देह तो एक कॉलोनी मात्र है ! जिसका इसपर कब्ज़ा है वही उसका मालिक है ! अपने श्रम से औपनिवेशिक ताकतों की इच्छाओं की पूर्ति करते जाना और बदले में भोजन ताकि जीवित रहा जा सके और अगले दिन की बेगारी के लिए तैयार रहा जा सके !
अगर ज़्यादा कडवा सच पचा पाएं तो - स्त्री की योनि एक कॉलोनी मात्र है ! जिसके शोषण की एवज में स्त्री जीवित रहने की हकदार होती है ! प्रतिबंधित समाज इस सच को कहने में नहीं झिझकते ! खुले समाजों में शब्दों की चाशनी , विचारों और विमर्शों की तहों में यह धारणा लिपटी रह जाती है !
स्त्री का अस्तित्व राजनीति के लिए बहुत बढिया पैंतरा है ! सभ्य कहे जाने वाले समाजों में स्त्री की मुक्ति और बंद समाजों में उसकी दासता के एलान के बल पर राजनीतिक ताकतें सत्ता का खेल खेलतीं हैं ! स्त्री की गुलामी और आज़ादी दोनों का राजनीतिक इस्तेमाल सबसे भारी दांव होता है ! स्त्री विमर्श की बडी लेखिका मृणाल पांडे मानतीं हैं कि स्त्री- आंदोलनों को राजनीतिक पार्टियां अपने फायदें में ऎप्रोप्रिएट कर लेतीं हैं ! ऎसे में स्त्री के पारिवारिक - सामाजिक अधिकार और बराबरी एक ऎसा समीकरण होता है जिसका जितना उलझाव होगा उतना ही फायदा पुरुष समाज का होगा !
घर की चौखट में सुरक्षित दिखने वाली स्त्री उसके भीतर कितने शोषण और समझौतों के बावजूद ही रह पा रही है इसका अंदाज़ा शायद उन विवाहिताओं बनाम पीडिताओं को भी नहीं होता ! स्नेह , कर्तव्य ,आदर्श ,नैतिकता, प्रेम ..जैसे कई छलावों में लिपटा सच यही है कि विवाह स्त्री के लिए एक समझौता और करार है ! क्या विवाह एक यौन पशु के लिए चारे और सुविधा का इंतज़ाम है जिसके जरिए वह सत्ताधीश कहलाता है और उसका वंश भी आगे बढता रहता है ?
मार्ग्रेट श्राइनर का उपन्यास - घर , घरवालियां और सेक्स पढकर समाज की मुख्य बुनियाद विवाह और परिवार पर ही अनेक शक पैदा होते है ! स्त्री और पुरुष के संबध विवाह के बाहर और भीतर दोनों ही जगह शोषक - शोषित और मालिक - मजदूर के हैं ! सामाजिक विकास के चरणों में कबीलाई समाज की मूल प्रवृत्तियां बदल नहीं पाईं !
22 comments:
अफगानिस्तान में महिलाओं के लिए बनाया गया कानून अमानवीय है |ये लोग गिरते ही जा रहे हैं और इनका सारा कहर महिलाओं पर ही टूटता है |
जहाँ तक मैंने अनुभव किया है तो मुझे लगता है की महिलाओं की गुलामी दो तरफा है |
एक तो समाज द्वारा पैदा की गयी गुलामी | पुरुष प्रधान समाज और धर्म द्वारा स्त्री को घेरने के लिए बनाये गए शास्त्र | यह बाहरी चौकीदारी है |
और दूसरी इन अनुशासनों का सदियों से पालन करते रहने के कारण पैदा हुई मानसिक गुलामी |
स्त्री मुक्ति आन्दोलन राजनीति और शोषण का शिकार हो रहा है |
इसकी एक वजह यह है कि बहुसंख्यक स्त्री समाज, आज भी मानसिक गुलामी का शिकार है | आपने जो बातें लिखी हैं, वह तर्कसंगत हैं | लेकिन कितनी स्त्रियाँ आपकी बात से सहमत होंगी | आप चाहे टीवी धारावाहिक देख लीजिये या फिल्में, सब में वही राग अलापा जाता है, जहाँ से स्त्री पराधीनता की मानसिकता बनती है |
स्त्री मुक्ति के रस्ते हैं - आर्थिक स्वावलंबन , शादी के लचीले कानून अर्थात तलाक को सरलतम बना देना, बगैर शादी पैदा हुए बच्चों को कानूनी मान्यता देना |
पुरुष प्रधान समाज जनता है कि स्त्री मुक्ति की उसे बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी |
शायद तब स्त्री के सबसे बड़े कारागार परिवार को विदा लेनी होगी |
इससे कम में स्त्री मुक्ति संभव ही नहीं है |
Manushya waastav men pashu hai, jo apni pashuta kabhi nahee chhod sakta?
वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को उन्नति पथ पर ले जाएं।
यह कानून अमानविय है. आपकी भावनाओं से भी सहमत.
एक अलग विचार....पुरूष क्या करे? उसकी इच्छाओं का सम्मान कौन करेगा? क्या वह इंसान नहीं है? दुसरी महिला के पास जाए...बलात्कार करे...दीवार से सर फोड़े.... किसी भी घटना को स्त्री-पुरूष में बाँट कर क्यों देखते है? क्या कहीं संतुलन नहीं बन सकता. दोनो की इच्छा और सम्मान बना रहे वैसा.... (इस बात को पोस्ट की घटना से न जोडें)
तालीबान का शासन तो खत्म हो गया किन्तु छाप नही गई। सच में मुस्लिम महिलाओं की दशा किसी भी अन्य से बहुत ज्यादा दर्दनाक है।
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नो वर्क नो सैलरी-नो सेक्स नो फूड!
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निलिमाजी,
सजयजी बैगानी की बात पर सहमत हू। गलतकार्यो विधिविधानो का कही कोई समर्थन नही किन्तु उसमे कही भी किसी वर्ग को जिम्मेदार मानना उचीत नही।
आभार
हे! प्रभु यह तेरापन्थ
मुम्बई-टाईगर
घर की चौखट में सुरक्षित दिखने वाली स्त्री उसके भीतर कितने शोषण और समझौतों के बावजूद ही रह पा रही है इसका अंदाज़ा शायद उन विवाहिताओं बनाम पीडिताओं को भी नहीं होता...
और घर के बाहर ??
नीलिमा, मैंने भी रविवार को अपने ब्लाग पर इस टापिक पर लिखा था..मेरे लेख में जो कमी रह गई थी, उसे आपने पूरा कर दिया। अफगानिस्तन में बने कानून से मेरे खून में जो उबाल आया था, उसकी तल्खी आपके लेख में दिखाई दे रही है। ये आवाजो की कड़ी है...जितनी लंबी होती जाएगी, उतनी दूर तक पहुंचेगी..आवाज उठाते रहिए साथी.
is tarah ka koi qanoon islam ke dayre men anhin aataa hai... media in sab baton ko tod-marod kar pesh karti hai.... nilima jee agar aap wastav men jananaa chahti hain ki islam kya kahta hai aur pati-patni ke huqooq kya hain to iske liye aapko qur'aan padhna hoga... warna kewal media kii khabaron ke aadhar par hi yun hi apni zehniyat bana lena... sikke ke ek pahloo ko dekhna hoga.... is sambandh men mera lekh padhen "aadhunik vaishwik sabhyta aur nari ki garima"
नीलिमा जी...
गीताश्री को भी इसी विषय पर पढा था..आपको भी...मेरे ख्याल से ये आज के युग पर इन कटटरपंथियों की जिद का एक उदाहरण है...स्वछ्छ सन्देश जी...आप क्यों सबको यही कहते हैं कि कुरान पढिये..अरे तो आप क्या कर रहे हैं...मान लिया कि सारा मीडिया गलत कह रहा है...तो आप ही बताइये न ..सच क्या है..ब्लोग्गिंग से बढिया माध्यम और क्या होगा ये कहने के लिये...
एक झकझोर देने वाला नग्न सत्य. आहत करने वाली वीभत्सता. मुस्लिम देशों में स्त्री की स्थिति सर्वाधिक शोचनीय है. कुरआन और हदीस पढ़ लें तो कारण भी स्पष्ट हो जाएगा.
अर्कजेश ने सही बात कही। अर्कजेश, टी वी सीरियलस् को तो छोड़िए, सामूहिक ंिहदी नारी ब्लागस् तक की हालत यही है। रुढ़िवादी और वर्णवादी स्त्रियां भरी पड़ी हैं। जो दो चार अपनी सोच-समझ रखने वाली होती हैं, वे भी मजबूर हो जाती होंगीं। इन सच्चाईओं को माने बिना काम नहीं चलने वाला।
इत्तिफकान हिंदी तहलका में एक लेख पढ़ रहा था जिसमे खुमैनी ने एक ज़माने में आदेश दिया था हर लड़की को पढाओ..इरान में औरतो में उसके बाद अस्सी प्रतिशत शिक्षा दर बढ़ गयी थी ...आज भी वहां कही ज्यादा आज़ादी है ...मजहब का इस्तेमाल कैसे करते है .वो महत्वपूर्ण है .....
हाँ एक शानदार खुले दिमाग ओर खुले दिल से लिखे लेख पर एक बधाई .हिंदी ब्लोगों में ऐसे लेख कम ही मिलते है
अफगानियों ने कानून बना दिया ये गलत है,बाकि नारी पर तो ये जुल्म हर जगह होता है!बस वो सामने नहीं आ पता!पुरुष अभी भी उसे बराबर मानने जितना परिपक्व नहीं हुआ है!
शायद तब स्त्री के सबसे बड़े कारागार परिवार को विदा लेनी होगी |
well said and the whole post is well written
Rachna
@नीलिमा जी आपकी साफगोई के कायल हैं ..सुन्दर लेख.
@अरविन्द जी आपकी टिप्पणी, टिप्पणी कम धमकी ज्यादा लग रही है :-)
मित्र, क्या महिलाएं इसलिए बंदिनी की तरह जीवन व्यतीत करें की, घर से बाहर भी यही होने वाला है ..हम-आप परिस्थितियों से समझौता कर लेंगे तो इसे बदलेगा कौन ?
कम कम पढ़े -लिखों से आशा तो की जा सकती है ..अन्याय करने वाला पापी होता है सहने वाला उससे भी बड़ा पापी.
कम कम =कम से कम
@मेरा आशय लेखन की असावधान भूल की इन्गिति भर थी -नारी चौखट के भीतर असुरक्षित है तो बाहर भी है !
यह केवल अफगानिस्तान में ही नहीं हो रहा है. हिन्दुस्तान में ऐसे हजारों सफेदपोश अफगानिस्तान हैं, जो उजागर नहीं हुए हैं.
बड़ा ताज्जुब और अफ़सोस की बात है कि कैसे इस तरह के बर्बर और अहमक कानून बना देते हैं लोग! शर्मनाक! मिसिरजी को बार-बार मतलब समझाना काहे के लिये पड़ता है!
मिसिरजी को बार-बार मतलब समझाना काहे के लिये पड़ता है!
http://indianscifiarvind.blogspot.com/2009/06/blog-post_25.html
bat kante ki uthai hai .aisa nahi hona chhiye .urush ko dosi nahi thahrana chahiye .yaha bat purush pardan ki nahi hai .vastav me jab tak dharm rhega .tab tak bhut si burai u hi chalti rahegi .agar dharm na hota to kya yh kanun banta .dushri bat se sara muslim samaj u uske guru sahmat hai akele taliban ka koi dos nahi hai .bas unho ne to phle ki hai .nilima ji aap purush ko dosi na man kar dharm ko dosi kahiye .ase dhrm vinas ko or le jate hai.
dhanyvad.
बेहद अफ़सोस जनक ..अजीब सा कड़वा सच है..
ऐसे भावनात्मक , विचारात्मक लेख के लिए आपकी सराहना..
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