करवा चौथ का दिन हमारे देश की पत्नियों के सौभाग्य को बढाने वाला दिन है ! चूडी ,बिंदी ,सिंदूर ,निर्जल निराहार व्रत - उपवास चांद की पूजा - माने हैप्पी करवा चौथ ! जो पत्नियां अपने पति की जान की कीमत समझती हैं उन्हें प्यार करती हैं ,उनके दिल की एकमात्र रानी बनकर रहना चाहती हैं , दूसरी औरत के साये से आपने पति को बचाकर रखना चाहती हैं वे निश्चय ही करवा चौथ के व्रत रखती हैं ! कम से कम इस व्रत की विविध वर्जनों वाली तमाम कथाऎ तो यही कहती हैं ! बाकी अगर आप किसी इस व्रत को रखने वाली पढी लिखी महिला से उसके व्रत का मकसद पूछेंगे तो हो सकता है कि वह इस व्रत के कोई सांस्कृतिक कारण गिनाए या भारतीय परंपरा की बात करे ! किसी आम औरत से पूछिए -उसका घर ,बच्चे ,मान सम्मान ,धन - वैभव ,सामाजिक रुतबा सब पति से है ,सो इतने कीमती पति की जान की सलामती के लिए करवा चौथ का व्रत रखकर एक दिन कष्ट सहना उनके पत्नी धर्म का सबसे बडा कर्तव्य है !
इस दिन मेरी मां और मेरी सास कॉलेज की हिंदू सहकर्मी सबके पास अपने व्रत की कठिन साधना को निभाने के साथ साथ एक और जरुरी काम होता है -मुझसे एक बार फिर इस व्रत को न रखने का कारन जानना और इस व्रत के सामाजिक ,नैतिक ,सांस्कृतिक औचित्य पर मुझसे बहस करना ! पूरी कालोनी की चमकीली साडियों ,मेहंदी सजे हाथों वाली औरतों के लिए सादे कपडों में बिना साज सज्जा वाली नीलिमा को वे - हंसी ,दया ,नसीहत देने की जरुरत वाले भावों से देखती हैं !
करवा चौथ की कथा मुझे हमेशा से बडी डरावनी लगती है ! जिसे सुनकर लगता है एकता कपूर के सारे सीरियलों में स्त्री पुरुष का आदिम संबंध बडी रिऎलिटी के साथ दिखाया गया है और एकता को गलियाने की बजाए उसके प्रति उदार भाव पैदा होने लगते हैं ! ये व्रत भारतीय बीवियों के मन में बैठे डरों का विरेचन करता है ! पति के मरने , पति के द्वारा प्यार न मिलने , उसे दूसरी औरत द्वारा रिझा लिए जाने ,गरीबी के हमले आदि आदि अनेक आपदाओं का ऑल इन वन इलाज !
ये आदिम औरत मर्द संबंध करवा चौथ के व्रत की हर कथा की केन्द्रीय संवेदना हैं ! ये हर औरत को डराकर उसे उसकी जगह पर रखने की साजिश है ! पति ही प्रभु है ! उसका जीवन और कृपा -दृष्टि न रहे तो जीवन क्या खत्म है ! रखो व्रत और बनी रहो सौभाग्यवती सदा सदा के लिए ! इट एज़ रियली अफोर्डेबल नो ? एक कहानी सुनिए न शार्ट में -
......एक रानी थी सात भाइयों की बहन और एक राजा था ! राजा जंगल में शिकार पर गया जहां उसके शरीर में कई सुइयां चुभ गईं और वह रास्ता भी भटक गया ! रानी की दासी " गोली" ने उसे करवा चौथ के व्रत की महिमा के बारे में बताया और यह भी बताया कि उसकी और उसके पति की दशा इस व्रत को न रखने के कारन ही हुई है ! रानी आने वाला करवा चौथ का व्रत रखती है पर व्रत के सारे नियमों का पालन नहीं करती है ! पति व्रत के दिन ही घर लौट आता है ! व्रती रानी राजा के शरीर से सुइयां निकालती जाती है किंतु आखिरी सुई के निकालने तक रानी की आंख लग जाती है ! उसकी दासी चीटिंग करती है और आखिरी सुई खुद निकाल देती है ! राजा की खोई चेतना लौट आती है और वह दासी को रानी समझ बैठते हैं ! रानी ने व्रत का सच्ची भावना से पालन न किया सो उसे दंड मिला !-.. जो राणी सी ओ गोली बण गई ...अगले साल रिपेंट करती रानी ने पूरी आस्था और नियमों का पालन करते हुए व्रत रखा ! राजा की भ्रष्ट हो गई बुद्धि ठीक ठाक हो गई ! और जो राणी बण गई सी ओ गोली बन गई ....गोली बण गई राणी ..!
सो जैसे उस असली रानी के दिन फिरे वैसे ही इस व्रत की सभी धारिकाओं के भी फिरें !
19 comments:
आपकी तरह मैं भी इस तरह के पर्व को उसके वैचारिक/पौराणिक आधार के कारण पसंद नहीं करता, लेकिन आपकी तरह विरोध जताने का हौसला भी नहीं है। मैं इस पक्ष में हूँ कि इसे बराबरी के स्तर पर जीया जाए, मनाया जाए, यह पति-पत्नी के बीच प्यार दर्शाने का एक अवसर बन कर आए। जैसे कुछ दिवस किसी बात की महत्ता दिखाने के लिए मनाया जाता है, उसी तरह ये पर्व भी प्यार निभाने के रूप में देखा जाना चाहिए। यह वैलेंटाइन डे का ठेठ भारतीय संस्करण बन जाए तो बेहतर।
कोई दिमाग नहीं लगाता.. सब करते है.. हम करते है.. क्यो कैसे पता नहीं..
और केवल पत्नी ही क्यों?
अच्छा है अब प्रश्न उठने लगे है..
कारण कुछ भी है... प्यार तो छिपा ही है...
भौतिकता ईश्वर को नहीं देख पाती.. न ही तर्क से ईश्वर प्राप्त किया जा सकता है...सिर्फ़ प्रेम ही ऐसा मार्ग है जो सब को वश में कर सकता है. शायद यही कारण काफ़ी है..
वैसे पुरुष (पति) तो नारी (पत्नी) के वश में ही होता है और गाहे वगाहे उसे फ़ोर्स्ड वर्त करना पड ही जाता है :)... फ़िर उसके लिये अलग से वर्त का प्रोविजन न ही हो तो अच्छा है
हमारे यहाँ (शायद जैन होने की वजह से) कोई ऐसे व्रत नहीं करता, शायद उनकी नजर में हमारी जान की कोई कीमत नहीं :( :)
कथाएं बहुत विचित्र होती है, कई बार पढ़ कर सर पिटने को जी चाहता है. कोई इन पर विश्वास कैसे कर सकता है!!?
neelima ji, aapko achcha nahi lagta, n rakhen, aapke khilaf koi fatwa jaari nahin hone jaa raha, pahle jo bhi katha-kahaniya thi we samaj ko regulate karne ke liye thi, dharmik manytaon ko manna-n manna aapke oopar hai, tamaam khamiya hote hue bhi mujhe yahi achchai lagti hai ki maano tab theek n mano tab theek
मैं यह व्रत नहीं रखती । कारण सीधा है, मेरी माँ के समाज में यह व्रत नहीं रखा जाता । जब पहली बार मुझे हरियाणा में इस व्रत के अवसर पर कथा सुनने को बुलाया गया तो मुझे खुशी हुई कि मैं यह व्रत नहीं रखती । यदि रख भी रही होती तो बंद कर देती ।
सभी त्यौहारों के साथ कई कथाएँ जुड़ी होती हैं, परन्तु यह कहानी तो takes the cake, along with the bakery.
वैसे जो मानती हैं व व्रत रखती हैं,उन्हें शुभकामनाएँ ।
घुघूती बासूती
neelima jee,
sadar abhivadan. bahut achha likha aapne hamesha ki tarah.
neelema ji
shradha ka addha he
khub chalta he apne yahan
bahut acchi rachana
regards
क्रान्तिदेवीजी आप से किसी का सुख देखा नहीं जाता सो हमेंशा पुरुषों की ही दवा करने में लगी रहती हैं.
वैसे हमारे तो नसीब ही फूटे हैं हमारे घर में तो महादेवीजी विराजमान हैं.सो उन्होंने आज तक कोई व्रत नहीं रक्खा.
मधुररजनी के दिन हमने सोचा था कि वे हमारी चरण रज लेने झुकेंगी और हम कहेंगे प्राणप्रिये तुम्हारी जगह हमारे चरणों में नहीं हमारे ह्रदय में है पर ऐसा नहीं हुआ.फिल्मों में देखा सुना डायलोग खूब याद कर रक्खा था.काम नहीं आया.हाये री किस्मत.
पर आप सीधी साधी पति भक्तिनों को उकसाकर पतिदेवों का कारोबार बंद कराना चाहती हैं. वैसे अब शुरुआत हो चुकी है.आप अपने काम में लगी रहें.
जय हो क्रांतिदेवी की.
वैसे आप लोगों के ब्लाग पर टिप्पणी करने में हमेंशा
ये शेर याद आता है -
मौसम ने परिन्दों को ये बात बतादी है,
उस झील पे खतरा है उस झील पे मत जाना.
आप सभी को निरंतर पढ़ता हूँ आइना पसंद हूँ.
एब हम में हैं लाखों क़ुबूल,
ये न भूलो कि कुछ खूबियां हैं.
आप नुक्ताचीं नज़र हैं सो उनको ही देखा करती है.
बशीर बद्र का शेर समझ में आजाये तो-लड़ना बंद करें.
दुश्मनी का सफ़र एक कदम दो कदम,
तुम भी थक जाओगे हम भी थक जायेंगे.
और जो राणी बण गई सी ओ गोली बन गई ....गोली बण गई राणी ..!
सो जैसे उस असली रानी के दिन फिरे वैसे ही इस व्रत की सभी धारिकाओं के भी फिरें !
फिर उस "गोली" का क्या हुआ ?
ये एकता कपूर की नवीनतम सीरीयल मेँ देखिये ...
करवा व्रत की महिमा न्यारी मेँ :-)..
नीलिमा जी, आप हमेशा बौध्धिक सँवाद की पहल करतीँ हैँ
जो अन्ध्श्रध्धा से परे है -
- लावण्या
अच्छी चर्चा...।
आस्था को तर्क की कसौटी पर कसने से कुछ ऐसा ही दिशाहीन इफेक्ट आयेगा। :(
दिशाहीन इफेक्ट ?
किस इफेक्ट की बात करते हैं आप ?
किसने तय की है यह दिशा ?
इसे अपने खिलाफ लड़ा ईमान लेना आप की नासमझी ही होगी ,इसे स्त्री का सचेत होना माने तो बेहतर है।
करवा चौथ पर यह सत्य घटना सुनाए बिना नहीं रहा जाता.
रेखा (मेरी बीवी) से उसकी एक सहकर्मी ने पूछा - तुम करवा चौथ का व्रत नहीं रखतीं?
रेखा ने प्रत्युत्तर दिया - तुम लोग तो एक ही दिन व्रत रखती हो, मैं तो रोज करवा चौथ रखती हूं. रोज. बारों मास, तीसों दिन.
क्या मतलब? सामने वाले ने आश्चर्य से पूछा.
अरे, तुम लोग सिर्फ साल में एक दिन चांद देख कर व्रत तोड़ते और खाना खाते हो. मैं तो रोज, उठते बैठते, सुबह शाम चांद देखकर ही खाना पीना समेत तमाम काम करती हूं. रेखा ने बताया
ऐसा कैसे बोल रही हो तुम? ऐसा हो ही नहीं सकता. सामने से प्रतिरोध हुआ.
रेखा ने स्पष्ट किया : अरे, ऐसा कैसे नहीं हो सकता. मैं अपने पति के सिर के चांद की बात कर रही हूं. मेरे लिए वही असली चांद है. :)
नीिलमा जी
करवाचौथ को लेकर आपने अच्छा वैचािरक मंथन िकया है । मैने अपने ब्लाग पर एक लेख- सुरक्षा ही नहीं होगी तो कैसे नौकरी करेंगी मिहलाएं-लेख िलखा है । इस पर अपने िवचार व्यक्त कर आप बहस को आगे बढा सकती हैं ।
http://www.ashokvichar.blogspot.comं
Ab kuware admi ko pata nahi is par tippani karne ka haq (ya samajh) hai ya nahi, magar mujhe lagta hai ki kisi se ye sab jabariya nahi karwana chahiye. Ha agar jise chahte hain uske kiye kuch special karne ka thrill mahsoos karna hai, to ye badi majedar cheez hai.
yahi dua karungi ki iske virodh me aapki tarah anya striya bhi jaldi aawaz uthaye .....yahan samay ki nahi himaat ki avashyakta hai.....aapke hausle ki daad deti hu.....
मुझे नहीं लगता करवा चौथ की कोई बहुत पुरानी परंपरा होगी, न ही यह लगता है कि यह आधुनिक युग में बहुत ज्यादा आगे जा पाएगी।
मुझे नहीं लगता कि करवा चौथ की कोई बहुत पुरानी परंपरा है, न ही यह लगता है कि यह आधुनिक युग में कोई बहुत आगे जा पाएगी। यह समय के साथ खत्म हो जाएगी, जल्दी है ऐसा लगता है.
अब ये सारे त्योहार बाज़ार की गिरफ्त में आ गये हैं इसलिये बाज़ार अपने हित में इन्हें खत्म नहीं होने देगा
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