कल से कठपिंगल नामक एक नव ब्लॉगर जो कि बडे मठाधीश भी होते हैं बहुत परेशान हैं ! उन्होंने एक साथी बलात्कारी ब्लॉगर की अपराध की दास्तान हम सब को सुनाई और फिर जी भर यहाँ जांचने में तुल गए कि कौन उसपर कितना रिऎक्ट कर रहा है ! यश्वंत के बलात्कारी व्यक्तित्व की निंदा में चोखेरबाली समाज चांय चांय नहीं कर रहा वे इस बात से भी आहत हैं ! अविनाश ने कल बलात्कार की कथा को बहुत दम से बयान किया ! उन्होंने हमेशा की तरह अपनी पत्नी को घर पर ही रखा और ब्लॉग जगत के सबसे सेंसेटिव और ज़िम्मेदार नागरिक होने के नाते सब ब्लॉगरों को उनके नैतिक ड्यूटी के लिए उकसाया ! पर जैसा कि प्रमोद ने कहा यश्वंत पकडा गया क्योंकि वह फिजिकल एब्यूज़ कर बैठा था ! पर यहां के कई थानेदार मठाधीश जो कि समाज के हर मुद्दे पर सबसे तेज और संवेदनशील राय रखते हैं आजाद हैं और तबतक रहेंगे जबतक कि कोई फिजिकल एब्यूज न कर बैंठें !
ब्लॉग जगत के मोहल्ला की चारपाई पर बैठा एक ब्वाय बलात्कार की खबर दे रहा है दूसरा ब्वाय जेल से छूटा ही है ! चारपाई वाले ब्वाय की पत्नी घर के अंदर और बलात्कारी की पत्नी गांव में है ! अब बचीं ब्लॉग जगत की औरतें जिनके लिए मोहल्लापति ने नए संबोधन बनाना ,उनको उनके कर्तव्य बताना , उनके सम्मान और हित में बोलने वाले पुरुषों को पुरुष समाज का विभीषण बताना जैसी कई बातें इस ब्वाय ने बताईं हैं ! इसमें से एक ब्वाय स्त्री विमर्श जैसे कई विमर्शों की रिले रेस चलवाता है और चाहता है कि उसे हिंदी ब्लॉग जगत का सबसे बौद्दिक और समझदार ब्वाय समझा जाए ( क्योंकि वह बलात्कारी भी नहीं है ) जबकि दूसरे ब्वाय के द्वारा बलात्कार की खबर देता हुआ यहाँ चारपाई ब्वाय अपनी एक परिचित ब्लॉगर को " सनसनी गर्ल " दूसरी को छुटे सांड की तरह सींग चलाने वाली माताजी कहकर ही अपनी बात आगे बढा पाता है ! हमारे पास यश्वंत के बलात्कारी रूप के कोई फोटो नहीं हैं ( हो सकता है कोई ब्वाय जारी कर दे आजकल में ..) पर हमारे पास चारपाई ब्वाय का लिखा है
आप कहें गे कहेंगे क्या अनूप तो कह ही रहे हैं कि नीलिमा ने ही उनको उकसाया है तो फिर यहाँ सब तो लाजमी है ! यश्वंत का भी क्या कसूर रहा होगा उस पीडिता ने भी उसको उकसाया होगा !अब चारपाई ब्वाय को उकसाया जाएगा तो वह किसी स्त्री को पहले तो भूखी सांड की तरह हर जगह दौडती ही कहेगा माताजी भी कह लेगा पर इससे ज्यादा मत उकसाओ ....! जाहिर है अपनी हदों को पार करने वाली औरत या आपकी गलती दिखाने वली औरत माताजी ही कलाऎगी क्योंकि वह सुकुमारी वाले काम कहां कर रही है ! विरोध के स्वर में बोलने वाली औरत को बूढी पके बाल वाली माताजी कहने से कितना चिढ सकती है वह ! वह जाकर शीशे में ध्यान से अपने को निहारने पहुंचेगी कि ऎसा मेरे चेहरे में क्या था कि मैं माताजी लगने लगी हूं , छुटी भूखी सांड की तरह लगती हूं .....बस वह उदास हो जाएगी चेहरे पर लेप मलेगी और अपने आप से वादा करेगी कि कल से किसी भी मर्द को ऎसे नहीं कहेगी और उनकी तारीफ के योग्य करम करेगी !
वैसे जब चारपाई ब्वाय एक बलात्कार की खबर देते हुए स्त्री के बारे में इन संबोधनों को कह रहा है तो उसके मन में यही न चल रहा होगा कि छुटी सांड सी दौडती फिरोगी तो यही सुनोगी ! और फिर कुछ भी फिजिकल या लैंग्वेज एब्यूज़ हो सकता है ! माई डियर तैयार रहा करो तुम्हारे साथ आगे कुछ भी हो सकता है ! वह सोचता होगा हमारी वाली को देखो घर में बंधी रहती है मजाल है उसके साथ कोई कुछ कर जाए ...!
ऎसे चारपाई ब्वाय को मसिजीवी पत्नीवादी ,प्रमोद सिंह भी "बदचलन " लगेगा ! दोनों ही अपनी पत्नी को बांधकर नहीं रख सके ! एक की भूखे सांड सी दौडती रहती है दूसरे की भाग जाती है ! हे चारपाई ब्वाय तुम नीलिमा को कठघरे में खडा करने के लिए जितने उतावले हो अगर उतने ही उलावले अपनी काठ की संवेदना को गलाने के लिए होते तो बात थी !
तुम तो पहुंचे गाल बजाते देखो साला पकडा गया बलात्कार ऎसे नहीं किया जाता साले को कितनी बार समझाया था ! जो करो ऎसे करो कि पकडे न जाओ ! बोधि जी को देखो बोला भी बाद में पलट भी गए बच गए ! मुझे देखो सनसनी गर्ल कहा था तुरंत मिटा दिया साथ ही यह कहने के ऎतराज में आई टिप्पणी भी मिटा दी ! एकदम साफ कोई सबूत नहीं ! पर भूखी सांड सी पीछे पडेगी तो आगे का कुछ नहीं कह सकता ! मैं कहता था न मैं बडा बाप हूं मुझसे सीखो ! स्त्री विमर्श भी करो स्त्री का एब्यूज़ भी करो ! तरीका मुझसे सीखो -मैंने कई बार कहा था ! तुम ठहरे कच्चे खिलाडी और जल्दबाज ..खैर भुगतो !
तो हे चारपाई ब्वाय हिंदी व्लॉग जगत की मुझ सी भूखे सांड सी बेवजह जगह -जगह दौडती औरत जिसमें तुमने अपनी माताजी का रूप देखा , पत्रकार स्मृति दुबे जिनमें तुम्हें सनसनी गर्ल ( कॉल गर्ल ,बार गर्ल ,पिन अप गर्ल ,सिज़्लिंग गर्ल जैसी ही कोई चीज़ .....जो तुम औरतों में देखते होंगे ..) प्रत्यक्षा , सुजाता मनीषा पांडे जैसी तमाम औरतें बस अब तुम्हारी चारपाई की ओर देख रही हैं ! चारपाई पकडे रहना बलात्कारी ब्वाय को तो हम और कानून मिलकर देख ही लेंगे ,साथ की कामना करेंगे कि और कोई बलात्कारी ब्वाय उगने न पाए ! आमीन !
23 comments:
जवाब शानदार है। बिलकुल मुहँ तोड़। अभी घोषणा आने वाली है कि मुहँ सलामत है।
आमीन,
इससे ज्यादा और क्या कहें, सबको सनमत दे भगवान् ...
वैसे हमे भी पता चल चुका है की कठपिंगल कौन है :-)
अब बेचारे फ़ुरसतिया जी को मत घसीटिये उन्हे सही है कहने की इतनी आदत पड चुकी है कि वो तो कठपिंगल वाली पोस्ट पर "सही है लगे रहो "लिख कर निकल लिये थे :)
कठपिंगल उर्फ अविनाश के दिये निर्देशों का पालन करना क्या हमारा परम कर्तव्य है ? चोखेर बालियों ने पहले तो स्कारलेट कीलिंग की डायरी नही छापी और न ही अपने अंतरंग अनुभवों को शेयर किया ..इसलिए अविनाश को पहले तो जनसत्ता तक मे लिखना पड़ा कि सुघड़ औरतें बेकार मे लफ्फाज़ी कर रही हैं , उन्हें अपने नितांत निजी अनुभव कहने चाहिये ।
तब भी चोखेर बालियाँ आवारा थीं -
वे लिखते हैं - "बल्कि कहा जा सकता है कि कुछ सुघड़ किस्म की स्त्रियां विमर्श के उस मैदान में खड़ी हो गयी हैं - जहां आवारगी की दौड़ और कसरत होती रहती है"
http://mohalla.blogspot.com/2008/04/blog-post_13.html
फिर कल उन्हें अफसोस हो रहा था कि -
अफ़सोस तो इस बात का ज़्यादा था कि उस टिप्पणी पर सैंड ऑफ द आई के लेखक-पाठक पूरी तरह ख़ामोश थे, जबकि मसला स्त्री के सम्मान पर हमले से जुड़ा था। http://mohalla.blogspot.com/2008/05/blog-post_25.html
जिस पोस्ट का ज़िक्र अविनाश ने किया है उसके पाठक उस दिन अविनाश खुद भी थे । उनकी टिप्पणी वहाँ मौजूद है । जब वे सत्यता जानते थे तो क्यों नही अपनी टिप्पणी मे कहा कि कठपिंगल की बात सच है ? एक पोस्ट कैसे बनती ?
***
अविनाश , विजतशंकर चतुर्वेदी , शेष -
यश्वंत को तो पहले ही ब्लॉग जगत खारिज कर चुका है ।चोखेर बालियाँ पुर्ज़ोर विरोध कर चुकी हैं । लेकिन जो उसके दोस्त आज भी हैं वे कल भी रहेंगे । उन्हें यशवंत को खारिज करने के लिए तैयार कीजिये न !
और सही कहा नीलिमा - यश्वंत को तो अब कानून देख ही लेगा ।और यह बात कि यश्वंत एक प्रवृत्ति है तो उसका विरोध तो चोखेर बालियाँ शुरुआत से ही कर रही हैं । आप बस अपने भीतर के यश्वंत को काबू मे रखने मे वक़्त लगाएँ तो चोखेर बालियों की कुछ मदद हो जाए ।
हाँ, रचना जी की अलग-अलग परिधानों में मुझे उनकी तस्वीरें पसंद आयीं. उन्होंने किन्हीं शास्त्री जी का ज़िक्र किया था कि वह उनके समर्थन से ऐसा कह रही हैं*************
यह आज की पोस्ट का हिस्सा है जो मोहल्ला पर छपी है ।हद है !
आपकी बात और इस करारे जवाब दोनों से मैं सहमत हूँ.
आपने अभी जो भी लिखा है सही लिखा हैं.
यशवंतजी और अविनाशजी जैसे लोगों को मैंने कभी पसंद भी नही किया.
आपको बता दूँ की सागर नाहर जी वाले मामले के बाद मैंने कभी अविनाशजी को पढ़ा भी नही. और यशवंत जी के तों क्या कहने वे तों अवतारी पुरूष हैं.
लेकिन आपसे सिर्फ़ ये कहना चाहूँगा की " काजल की कोठरी में कैसा भी सयाना जाय कालिख लगेगी ही."
फुरसतिया जी के कहने का सिर्फ़ यही मतलब था. उसे आपने दिल पर ले लिया. मैं ये कोई उनकी वकालत नही कर रहा हूँ. जो सच लगा वो कह रहा हूँ.
और फ़िर कल मसिजीवी जी की पोस्ट पर अजदक जी की जो पहली टिपण्णी थी वो भी तों उचित नही थी. मुझे उसपर भी आपति है.
ग़लत तों हर हाल मे ग़लत है. हम ऐसा नज़रिया क्यों रखते है की मेरा ग़लत सही है और तुम्हारा ग़लत ग़लत है.
और अंत मे सिर्फ़ एक बात कहना चाहूँगा की ग़लत को ग़लत नहीं काट सकता.
"यही बात अगर दूसरी जबान मे कोई कहता तों वो कह सकता था की आदमी को अपने गिरेबान मे भी झांकना चहिये."
मेरी इस कथन का आपसे कोई सरोकार नहीं हैं मेने सिर्फ़ एक बात कहने की कोशिस की है जो शायद सब तक पंहुच सके.
मैं आपकी इस पोस्ट से पुरी तरह सहमत हूँ.
गलत बात का प्रतिकार किया ... सही किया । चुपचाप सह लेना संयम नहीं कमजोरी की निशानी जब समझी जाय तब बोलना ही उचित है ।
ये लिंक देखें, आपलोगों को और मज़ा आएगा : http://kathpingal.blogspot.com/2008/05/blog-post_26.html
पिछली बार सुजाता, इस बार मसिजीवी-नीलिमा... अरे हो क्या गया है आप फैमिली को। यशवंत ने कोई घूस दिया है क्या - या बलात्कार जैसी चीज़ें आपके लिए एनजॉयमेंट का साधन है। गुस्से को संगठित करने और मवाद की तरह इधर उधर न बहने देने के लिए इंतज़ार कीजिए अपनी बेटियों के बलात्कार होने तक।
गलत ,गलत है ,बोधि ही क्यों न हो ,बोधि की खबर मैं पिछले तीन दिनों से ले रही हूँ ,ये कठपिंगल उर्फ अविनाश को दिमाग के डाँ. के पास ले जाना चाहिए वही पागल खाने मे बाँध कर छोड़ देना चाहिए ......
जो सच है कभी छुप नही सकता...बेकार का आपस में झगड़ा छोड़ दें...
इस कठपिंगल को इतना समझ नही आता कि सुजाता नीलिमा मसिजीवि प्रत्यक्षा आभा सभी यशवंत का विरोध कर रहे हैं पर साथ ही अविनाश और इसके अन्दर छुपे बैठे यश्वंत का भी विरोध कर रहे हैं ।
यशवंत के विरोध के चक्कर में अविनाश , विजयशंकर चतुर्वेदी और कठपिंगल तीनों ने अपने मन के बलात्कारी को उजागर कर दिया है ।कठपिंगल ने जो टिप्पणी आभा के लिए दी है उससे भद्दा और कुत्सित कुछ् नही हो सकता ।नीलिमा को उसे हटाना नही चाहिये था , पता तो लगता बाकी ब्लॉगरों को कि यशवंत की भर्तसना करने वाला खुद कितना घिनौना है ।
ब्लॉग जगत का यह माहौल जो औरतों के लिए यशवंत,अविनाश , कठपिंगल ने मिलकर बनाया है उसके चलते भड़ास से भी ज़्यादा गनदगी यहाँ फैल गयी है । किस किस को ब्लॉगवाणी से हाटाओगे ?और अभी तो कठपिंगल ने धमकी भी दी है कि अभी बहुत से राज़ खुलने बाकी हैं ।ऐसा लगता है कि ब्लॉग न हो कोई लड़ाई का मैदान हो ।
Yashwant ne Rajput Jati ke kuchh dabang logo se ladki ko phone karaya hai. Wo garib Dalit ladki sahami hai, Pls uski madad ke liye samane aaye. Jyada jankari ke liye 011-22521067 par phone kare.
हद है भाई! ब्लॉगर समाज इतना खुलकर गाली-गलौज करता है, एक-दूसरे की धोती खोलने पर इतना उतारू है, और अपना बुद्धि कौशल नंगई की भाषा गढ़ने में खर्च कर रहा है; यह सब देखकर तो घबराहट हो रही है। उफ्फ्…
नीलिमाजी,
मैंने सबेरे मसिजीवी के ब्लाग पर यह कमेंट किया था-
मसिजीवी,
१.अविनाश की टिप्पणी अशोभनीय है।
२.नीलिमा ने उनके ब्लाग पर उनको आदरणीय सनसनी ब्वाय अविनाश जी लिखकर उनको ऐसा करने के लिये उकसाया। 'सनसनी व्बाय' ने अपने प्रति व्यक्त विश्वास की रक्षा की।
३. प्रमोदजी की आपत्ति जायज है। आपको अपने ब्लाग पर कमेंट माडरेटर लगाने के बारे में सोचना चाहिये।
१. पहली बात पर तो आपको कोई एतराज नहीं होना चाहिये। अविनाश की टिप्पणी अशोभनीय है।
२. दूसरी बात के बारे में कहने के पहले मैं बताना चाहूंगा कि यह टिप्पणी मैंने आपके अविनाश की इस पोस्ट पर किये कमेंट के लिये किया था। आपने अपने कमेंट में लिखा था -
आदरणीय सनसनी ब्वाय अविनाश जी ,
जिस स्त्री ब्लॉगर को आपने सनसनी गर्ल कहा( बार गर्ल ,कॉल गर्ल आदि की तर्ज पर ..)उनका नाम स्मृति दुबे है !
इस पोस्ट से मेरा यह कमेंट आपने मिटा दिया !अच्छा है ! बहुत जल्द आपने अपनी "भूल" सुधार ली ! मेरी टिप्पणी के साथ साथ आपने "सनसनी गर्ल " का जो फतवा जारी किया था स्मृति दुबे के लिए उसे भी वापस ले लिया!
आप अविनाश की प्रवृत्ति से अच्छी तरह वाकिफ़ होने की बावजूद यदि अपने कमेंट में उसे सनसनी व्बाय की उपाधि से नवाजती हैं तो आप उसे उसका मनचाहा मौका मुहैया कराती हैं।
इसे आप चाहे जो समझें लेकिन मेरा यह पक्का मानना है कि आपने अविनाश की इस पोस्ट यह टिप्पणी करके उसे वह लिखने के लिये मौका सुलभ कराया , उसे बहाना दिया ताकि आपको वह इस अशोभन तरीके से संबोधित करने का बहाना तलाश सके। कोई नयी ब्लागर होतीं तो बात समझी जा सकती थी लेकिन आप अच्छी तरह उसकी हरकतों से परिचित हैं इसके बावजूद अविनाश से यह आशा करना कि आपके इस सनसनी व्बाय वाले कमेंट पर कोई आदर सूचक संबोधन से मन को खुश कर देने वाली बात करेगा खाम ख्याली है।
इस सीधी बात को आप अपनी मर्जी के अनुसार समझ कर मुझे सामंतवादी, पुरुषवादी और जो समझ हो आपकी उस उपमा से नवाजें तो यह आपकी अपनी समझ है।
अपनी समझ के अनुसार अपने मनचाहे तर्क को पुरुषवादी/सामंतवादी बताकर सही साबित कर देना कौन सा वाद है ! इस पर भी कभी आपके मुंहतोड़ जबाब पर शाबासी देने वाली सहेलियां कभी विचार करें।
एक बात और , मैं अविनाश की पोस्ट और आपकी
सनसनी व्बाय टिप्पणी पर मसिजीवी की ही पोस्ट से पहुंचा। सबेरे वहां जो लिंक लगा था उससे सीधे उस पोस्ट पर पहुंचे थे। अभी उसकी जगह मोहल्ला का लिंक लगा है। संबंधित पोस्ट देखने के लिये मोहल्ले की भूलभुलैया में भटकना पड़ता है। मसिजीवी शायद कहें कि लिंक मैंने नहीं बदला तो यह अनुरोध है कि कृपया सही लिंक तो लगा दें।
३. तीसरी बात मैंने मसिजीवी को लिखी थी।प्रमोदजी की आपत्ति जायज है। आपको अपने ब्लाग पर कमेंट माडरेटर लगाने के बारे में सोचना चाहिये। मसिजीवी ने प्रमोदजी के बारें में की गयी बेहूदी टिप्पणी हटा दी।लेकिन तब तक न जाने कितने लोग उसे देख चुके थे। वही बात आपके ब्लाग के लिये कहता हूं। आपने अपने ब्लाग पर कोई माडरेटर नहीं लगाया है। अभी तक आभा जी के बारे में की गयी निहायत घटिया टिप्पणी यहां मौजूद है। जब कभी आप इसे हटाने की सोचेंगी तब तक इसे न जाने कितने लोग पढ़ चुके होंगे। आप बतायें यह कौन सी मानसिकता है? क्या चीजें तभी बुरी लगती हैं आपको जब वे खास कर आपके और आपके परिवार के बारें कहीं जायें।
टिप्पणी लम्बी हो गयी। मैं सिर्फ़ यही कहना चाह्ता हूं कि चीजों में फ़र्क करना सीखिये। अपने पूर्वाग्रह के चश्में से इतर चीजें भी देखने का प्रयास कीजिये। ब्लाग जगत में लोग एक दूसरे से मिले-जुले नहीं हैं लेकिन यह फ़र्क करना बहुत मुश्किल नहीं होता कि किसकी सोच-समझ कैसी है।
मुझे यह भी पता है कि आप शायद तिलमिलाकर कहें कि यह महिलाऒं को 'कमअक्ल' समझकर अकल देने की पुरुषवादी सोच है। तो ऐसा कुछ नहीं है। यह सलाह है, आप इसे माने तो सही न माने तो बहुत सही। इसके जवाब में एक और मुंहतोड़ पोस्ट लिख दें तो सबसे सही।
अनूपजी,
जब आपने कमेंट टाईप करना शुरू किया था तब तक आभाजी को लेकर बदमजा टिप्पणी यहॉं रही होगी...खेद है...आपका कमेंट आने से पहले हटाकर और कमेंट माडरेशन शुरू करने के बाद नीलिमा सोने चली गई हैं (आपका कमेंट मैंने अप किया है) इसलिए टिप्पणी के उन हिस्सों का उत्तर तो अभी नहीं मिल पाएगा जो उनके दृष्टिकोण से जुडा़ है किंतु जिस वजह से आपको यह उकसाने वाला भ्रम हो रहा वह यह है कि आपके पहली बार पढ़ने से पहले ही अविनाश ने अपनी पोस्ट संशोधित कर दी, नीलिमा की मूल टिप्पणी मिटा दी। अपनी मूल पोस्ट में उन्होंने नई ब्लॉगर समृति दुबे को इसलिए बदतमीजी से सनसनी गर्ल कहा था क्योंकि वह चोखेरबाली पर लिख रही थी तथा उसके लेखन अविनाश के मित्र रवीश असहज महसूस कर रहे थे।
'सनसनी ब्वाय' उस सनसनी गर्ल के अनुप्रास में ही पढ़ा जाना था पर अविनाश के शौर्य से यह बिना संदर्भ के ही दिख रहा है। आपकी तरह मैं भी मानता हूँ कि अविनाश द्वारा अकारण टिप्पणी मिटाने और आनन फानन में अपनी करतूत को पूरी तरह डिस्ओन करने से ही उसकी मंशा साफ हो रही थी...इसलिए बेहतर होता कि नीलिमा आगे की बात अपने मंचों से कह सकती थीं पर खैर अविनाश अविनाश ही है।
अविनाश से असहमति स्वाभाविक रूप से ढेर सारे अनाम दिए गए आशीर्वचनों को आमंत्रण देता रहा है...इस बार तो अविनाश ने सनाम भी दिए।
मुझे गर्व है कि नीलिमा बलात्कार की इन प्रवृत्तियों की ओर संकेत करने का जोखिम उठा रही हैं जो इन दुकानदारों में साफ पैठी हैं...वे देखने के लिए तैयार नहीं...वे जानें।
लिंक मैंने दोबारा जॉंचे ठीक हैं..ऊपर मोहल्ला का लिंक क्योंकि नीलिमा की टिप्पणी वहीं है..नीलिमा की ये पोस्ट तो आज आई है इसलिए इसका लिंक मेरी कल की पोस्ट पर कैसे हों...नीचे के लिंकबैक में रहा होगा...आज वहॉं मोहल्ला का लिंक है क्योंकि अविनाश ने इपनी पोस्ट में खीज के साथ जोडा़ है।
लिंक कोई हटायें हों मैंने सारी बातें यहां लिख दी हैं। अब यह आप लोगों पर है कि क्या ऒन करते हैं क्या डिसओन!
सही है। ये कठपिंगल कौन है ? हमने सबसे पहले अपने ब्लाग से इनकी टिप्पणी हटा दी थी। तब तक हमें कुछ नहीं पता था इस कहानी के बारे में।
ब्लाग जगत की ये बातें तो भइया समझ से परे हैं।
@आभा, पहली बात के लिए धन्यवाद कहने आया हूं. दूसरी के कहे के लिए कहूंगा- हमें अपना धीरज नहीं गंवाना चाहिए.
मै सुनीताजी व सिद्धार्थ जी से सहमत हू. बुद्धिजीवी व मसिजीवी कहे जाने वाले लोग भी इस तरह से व्यर्थ के वाद-विवाद करेगे तो रचनात्मकता कहा मिलेगी स्रिजन कौन करेगा?
नीलिमाजी अन्यथा मत लेना मै सीख देने वाला कौन होता हू किन्तु मेरा निवेदनपूर्ण आग्रह है, इस वाद-विवाद को छोड्कर कुछ अच्छा किया जाय.
बलात्कार शब्द इतना अच्छा व आनन्द्पूर्ण व सामाजिक नही हो सकता कि इसको इतना प्रचारित किया जाय.
गाँधी जी के देश में ये किस तरह की भाषा का प्रयोग किया जा रहा है , हमे उन भाषाओँ का उपयोग नहीं करना चाहिए जिन्हें हम अपने माता पिता के सामने न कह सके !!!
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