सुनिए आप सब अनाम सनाम महाशयों ! अब तो आप सब की ही तरह इस नारीवादी औरतवादी नारेबाजी - बहसबाजी से मैं भी तंग आ चुकी हूं ! आप सब सही कह रहे हैं ये इंकलाबी ज़ज़्बा हम सब औरतों के खाली दिमागों और नाकाबिलिय़त का धमाका भर है बस ! हम बेकार में दुखियारी बनी फिर रही हैं ! सब कुछ कितना अच्छा ,और मिला मिलाया है ! पति घर बच्चे ! हां थोडी दिक्कत हो तो पति की कमाई से मेड भर रख लें तो सारी कमियां दूर हो जांगी ! फिर हम सब सुखी सुहागिनें अपने अपने सुखों पर नाज़ अकर सकेगीं ! सब रगडे झगडे हमारी गलतफहमियों या ऎडजस्टमेंट की आदत न होने से होते हैं ! पर एक बात बताओ -हम कितने सुखी हैं ये फहमी तभी तक क्यों बनी रहती है जब तक हम सारी घरेलू जिम्मेदारियां हंसते संसते उठाती रहतीं हैं ! काश जब हम पति की कमीज बटन न टांकें और फिर भी घर की खुशहाली बनी रहे और हमारे बारे में नाकाबिल औरत औरत का फतवा न जारी किया जाए !
बकवास है सब साली ! फेमेनिज़्म सब धरा रह जाएगा जब बटन न टांकने , समय पर रोटी न देने पर पति घूर कर देखेगा चांटा मारने को उसका हाथ उठेगा ! कमीना फेमेनिज़्म आपके रिश्ते की पैरवी में नहीं आएगा तब और आप सोचेगी हाय एक बटन टांक ही देती तो क्या हर्ज हो जाता ??
अब एक पति महाशय दलील दे रहे थे कि मैं अगर कमाकर लाने से इंकार कर दूं तो ? सारा दिन बाहर खटता हूं मैं भी तो खुद को मजदूर मान सकता हूं ? मुझे घर मॆं चैन की दो वक्त की रोटी भी न मिले तो क्यों मैं घर लौट के आना चाहूं ?बडा गंदा ज़माना आ गया है घरों की शांति खत्म हुए चली जा रही है ! हर बात में दमन ,शोषण देखने की आदत पद चुकी है इन औरतों को !
सही बात कहूं तो मैं अब सुधरने की सोच रही हूं - एक खुशहाल, पति सेविका परिवार की धुरी बन सब कुछ संभालने वाली औरत ! पर क्या करूं ये सब सोच ही रही कि मृणाल पांडॆ का लिखा पाठ " मित्र से संलाप " पर स्लेबस के लिए लिखने का ज़िम्मा ले डाला ! अब उन्होंने आप सब के द्वारा नारीवाद पर लगाए आरोपों की लिस्ट बताई है ! आप भी गौर करें और हो सके तो अपनी अपनी दलीलें -आरोप आदि को लिस्ट करें ! वाकई अब निर्णायक दौर आ गया है इस फेमेनिज़्म पर कुछ फैसला लेने का --
औरत ही औरत की दुश्मन होती है !
सारी फेमेनिस्ट औरतें तर्क विमुख होती हैं !
फेमेनिज़्म एक पश्चिमी दर्शन है ! कोकाकोला की तरह झागदार और लुभावना आयात भर है!
नारी संगठन बस नारेबाज़ी और गोष्ठियों का आयोजन भर करते हैं !गावों में इनकी कोई रुचि नहीं !
मध्यवर्गीय कामकाजी औरतें घर से बाहर कामकाज के लिए नहीं मटरगश्ती के लिए निकलती हैं !
पारिवारिक शोषण की शिकायत करने वाली स्त्रियां ऎडजस्ट करना नहीं जानती !
{ प्लीज़ अपनी राय या आरोप लिस्ट में जोडना न भूलें }
19 comments:
link sahii karey plz
nahin khul rahen
rachna
रचना जी ,
लिंक ठीक कर दिए हैं !
neelima jee,
khushi hue apke aurato ke prati vichar jankar. achraj is baat ka jaror hai, ki mahila, dusri mahila ke liye likh sakti hai. apka vichar sarahniye hai.
avinash
'औरत ही औरत की दुश्मन होती है' इसकी जगह 'औरत भी औरत की दुश्मन होती है' ये ज्यादा सटीक रहेगा.
कुछ भी बंद मत कराओ. पलटकर चप्पल चलाओ! हमारे यहां की पुरानी संस्कृति है. पलटकर चप्पल न चलानेवालों को अपने में अप्रोप्रियेट कर लिये जाने का पुराना चलन है. चप्पल चलाना हरियर-फरियर होने का स्वस्थ्य लक्षण है. हमारी शुभकामनाएं.
ताजुब है, ख़ुद पढी लिखी हो कर और एक शिक्षक हो कर आप ऐसी बात करती है... ह्म्म्म जब आप ऐसा सोचती है तो आप से कुछ भी कहना बेकार है ... सोते को जगाया जाता है आप जैसे हो नही ... शुभकामनाएं.
यह क्या निलीमा ,आज चार दिनों बाद फुर्सत मिली ,पर इस पोस्ट ने दुखी कर दिया , बहुत कुछ कहना चाह रही हूँ . पर कुछ न कह पाने की तकलीफ झेलना चाह रही हूँ ।यह संसार जब तक है तब तक ये बातें खत्म होगी क्या ....मन के हारे हार है मन के जीते जीत , जानती हो न मैडम जी ,फिर .....
अमित शर्मा जी आभा जी ,
आपने पोस्ट को पढे बिना ही फतवा दे दिया है ! यदि आप भाषा का अभिधार्थ मात्र ही ग्रहण करेंगे तो बहुत गफलत हो जाएगी ! ज़रा पोस्ट फिर से पढ लें [यदि समय हो ते )और उस्के व्यंजनार्थ को देखें बात साफ हो जाएगी 1 बाकी अपने लिखे की चीर फाड कर मैं आपको क्या दिखा पाउंगी ...!!
एक स्त्री को मै भी जानता हुँ,
सब सहती करती है,
पति घूरता भी है,
किंतु वह मुस्कुरा देती है,
जब जब उसे....
बच्चे सा सोता देखती है।
"एक विचार सभी रिश्तो के लिए?
कुछ खूबसूरत भी होते है।
मध्यवर्गीय कामकाजी औरतें घर से बाहर कामकाज के लिए नहीं मटरगश्ती के लिए निकलती हैं !
इस आरोप से मैं सहमत नही हू.. आपका कहना ठीक भी है और कबिले तारीफ भी.. परंतु बात वही आकर अटक जाती है की.. इस लेख से होगा क्या.. बदलेगा तो कुछ भी नही.. मेरे आस पास और मेरी कई महिला मित्र पूर्ण रूप से परिपक्व आत्म निर्भर और खुशहाल वैवाहिक जीवन व्यतीत कर रही है.. पुरुष भी अपने आपको हीन समझ सकते है.. बात सिर्फ़ नज़रिए की है..
kuch hadd tak sehmat bhi hun,aapse...shayad chitra badal hi na,kya jarurat hai nare baazi ki,magar kehenge hi nahi nare lagakar to unlogon ko pata kaise chale....
ऐसा लगता है की ऐसे पतियों से पाला नही पड़ा जो अपने बच्चो को नहलाते ,खाना खिलाते ,काम बांटते ,यहाँ तक की सेमी ऑटो मेटिक वाशिंग मशीन मे कपड़े भी धो डालते है ,बाहर का काम भी करते है ,गाड़ी मे जगजीत सिंह सुनते हुए कभी कभार अपनी कामकाजी बीवी के लिए गुलाब का फूल भी ले जाते है........ रिश्तो मे गणित नही देखि जाती .....किसने कितना किया ?कब किया ? क्यों किया ? मैं क्यों? आजकल के कामकाजी दंपत्ति समझदार हो गए है .......
लेख पढा लेकिन मैं ठीक तरह से समझ नहीं सकी कि आप जो लिख रही हैं वह व्यंग कर रही हैं या सचमुच अपने विचार प्रस्तुत कर रही हैं. और समझे बिना टिप्पणी करना ठीक नहीं होगा....शुभकामनाएं.
क्या समझा जाए आपके इस लेख को, व्यंग या बाकई में आप सुधर रही हैं? अगर यह व्यंग है तब तो बहुत अच्छा है. अगर आप सुधर रही हैं तो शायद आप गलती कर रही हैं. आरोप करना मेरी आदत नहीं है. राय में तब देता हूँ जब कोई मांगे. अपने विचार जरूर आपके सामने रखूंगा. नारी किस से संघर्ष कर रही है, पुरूष से या स्वयं से? स्वयं से संघर्ष करना अच्छी आदत है. पुरूष से संघर्ष करना समय की बर्बादी है. पुरूष को इतना महत्त्व देना ठीक नहीं है. पुरूष एक बेहद कमजोर प्राणी है, जो नारी की कमजोरी का फायदा उठाकर वीर बनता है. अगर प्यार है तब कमीज में बटन जरूर टांकिये. अगर पति स्वयं को ऊंचा साबित करने की बात करता है तब कमीज को फाड़ देना भी ग़लत नहीं होगा.
बहुत सशक्त लेख
bahut achha
कितने पुरुषों को क्या-क्या समझाएंगी नीलिमाजी, पर यही कहूंगी कि कहती रही और जब तक हम उल्टा चप्पल फेंक कर नहीं मारेंगे तब तक ये नहीं समझेंगे।
कितने पुरुषों को क्या-क्या समझाएंगी नीलिमाजी, पर यही कहूंगी कि कहती रही और जब तक हम उल्टा चप्पल फेंक कर नहीं मारेंगे तब तक ये नहीं समझेंगे।
feminism utn hii jatil hai jitnii ki shareer rachnaa. yahan hamen apne baare men kuchh bhii bataa paane kaa sahoor nahin aur dol peetta hain doosron ke baare men batane ka. pataa nahin kahan le jayega ye feminism kaa shabd.
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