नाम : अनुज चौधरी ! उम्र : 20 साल ! पेशा : दिल्ली में एक मंत्री के यहां अटेंडेंट ! जी मैं बात कर रही हूं अपने कॉलेज के प्रथम वर्ष के एक छात्र की ! दुबले पतले चमकती आंखों वाले इस छात्र को पढाते हुए उसे हमेशा हंसते- मुस्कुराते और पढाई में मन लगाते देखा है ! अक्सर हम प्राध्यापक लोग अपने छात्रों की निजी जिंदगी की तकलीफों से अनजान रहते हैं !सो मैं भी उसे बाकी सभी छात्रों में से एक समझती रही ! पर कल उससे हुई बातचीत में मुझे उसकी जिंदगी की कडवी सच्चाइयों का पता चला ! मैं हतप्रभ हूं , गौरवांवित हूं कि मुझे एक बेहद जुझारू बहादुर बच्चे को पढाने का अवसर मिला है ! अनुज के माता पिता जब गुजरे तब वह मात्र 8 साल का था ! चाचा -चाची के अत्याचार से तंग आकर वह घर से भाग निकला और एक ट्रक ड्राइवर के हाथ लग गया ! ड्राइवर ने उसे बम्बई पहुंचा दिया जहां एक होटल में बर्तन मांजने का काम उसने किया ! महज 8 साल का बच्चा वहां सॆ भी भाग निकला और दिल्ली पहुंचा दिया गया ! दिल्ली के एक मंदिर के बाहर रहते हुए अनुज को एक एन जी ओ बटरफ्लाईज़ ने गोद लिया .पाला और पढाया !
अनुज अपनी जिंदगी की कहानी ऎसे सुनाता है मानो किसी और की कहानी हो ! वह अपना वृत्तांत सुनाते हुए ज़रा भी जज़्बाती नहीं हुआ पर उसकी कहानी सुनते हुए मैं जज़्बाती हो गई ! बटरफ्लाईज़ में रहते हुए उसकी जिंदगी कैसी रही वह मुझे फिर कभी सुनाएगा ! पर उसने समाज सेवा के नाम पर भारी सरकारी अनुदान लेने वाली इन संस्थाओं की राजनीति और भ्रष्टाचार को नजदीक से न केवल देखा है बल्कि विरोध भी किया है ! इसी विरोध की वजह से उसे इस एन. जी. ओ. से निकाल बाहर किया गया था और उसे यह नौकरी करनी पडी !
आज अनुज खुश है कि वह बी.ए. कर रहा है ! आज वह सडक पर नहीं है !पर वह सडक पर रहने वाले बच्चों की जिंदगियों से बहुत गहरे जुडा हुआ है ! सडक पर रहकर मजदूरी कर जीने वाले तमाम बच्चों की दुर्दशा की कहानियां वह आपको सुना सकता है, उनकी जिंदगी को संवारने के लिए क्या हो यह बता सकता है ! आज वह इतना परिपक्व हो गया है कि एक बाल मजदूरों की दमित आवाज को आप तक पहुंचाना चाहता है ! इसके लिए उसने एक पेपर मैगज़ीन निकाली है -"बाल मजदूर की आवाज़ " ! अपनी इस मासिक पत्रिका के संपादकीय में उसने बटर्फ्लाईज़ की संस्थापक के प्रति नाराज़गी ज़ाहिर की है और सडक पर सोने वाले बाल मजदूरों के शारीरिक शोषण और उनके अनुभवों को भी दर्ज किया है !
कल से अनुज का हंसता - चमकता चेहरा मेरी आंखों के सामने घूम रहा है ! न जाने इन 3 सालों में उसे पढाते हुए मुझे उससे क्या-क्या सीखने को मिल जाए ! प्रिय अनुज ! तुम्हारी जिजीविषा को तुम्हारी इस टीचर का शत शत नमन !!
11 comments:
नया नाम मुबारक ! बहुत सटीक है । आँख की किर्किरी ... मैने ही सुझाया था न !
:)
भई अनुज को सलाम तो मैं भी करना चाहूंगा।
उपरवाला उसकी इस जिजीविषा को बनाए रखे और वह ऐसे ही जूझता रहे और हासिल करे वह जो चाहत है उसकी।
शुभकामनाएं अनुज के लिए!!
अरे हां, नाम पर तो मैने ध्यान ही नई दिया!!
क्या बात है किनके आंख की किरकिरी बन गई हैं भई आप
आभार अनुज से परिचय कराने के लिये.
अनुज जी से परिचय कराने के लिये आभार.
पत्रिका कैसे प्राप्त की जा सकती है यह भी बताएं तो आभार होगा.
अगर अनुज जी को उचित लगे तो क्या वे अपने विचार इंटरनेट पर रखना चाहेंगे? आप शायद इसमें काफ़ी मदद कर पाएं या इस विषेय में हम लोग किसी तरीके से मदद कर सकते हों, तो अवश्य बतायें, क्योंकि शायद अनुज जी के experiences और विचार, बदलाव लाने में काफ़ी सहायक हो सकते हैं.
इस लेख के लिए बहुत बहुत शुक्रिया.
बहुत धन्यवाद दुर्गा जी ! अनुज के अनुभवों को कोई भी जिम्मेदार और संवेदनशील नागरिक पढना चाहेगा !मैंने उसे अपना ब्लॉग बनाने की भी राय दी है ! वह भी उत्सुक है अपनी बात आप सब तक पहुंचाने के लिए ! इसमें अनुज की सहायता करने के लिए हम सब मौजूद हैं ही !
वैसे जिम्मेदार, संवेदनशील और नागरिक शब्दों का तो नहीं पता, पर अनुज जी के विचार तो मैं जरूर जानना चाहता हूँ. आशा करता हूँ की आने वाले समय में आपके ब्लॉग पर ही, अनुज जी के ब्लॉग का लिंक मिल जायेगा. यदि ब्लॉग का प्लान ड्राप हो, तो पत्रिका कैसे मिलेगी यह अवश्य बता दीजियेगा. इतनी फूर्ति से जवाब देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया और आभार.
और अभी समझ में आया की जिजीविषा का क्या मतलब होता है. (कठिन शब्द है! - Desire of Living, right?)
मैं भी अनुज जी की जिजीविषा को सलाम करता हूँ - वे शायद सभी के लिए एक lesson है.
लेख के लिए पुनः आभार.
बहुत ही शानदार; उस बच्चे की अदम्य इच्छाशक्ति को सलाम. उसका ब्लॉग जरूर बनवा दीजिए ताकि अंतरजाल पर हम जैसे लोगों को भी पढ़ने का मौका मिले. इस टीचर की संवेदनशीलता को भी सलाम. खुशी यह देखकर भी हुई कि आपने उसके स्वाभिमान को बरकरार रखते हुए बड़े परिष्कृत अंदाज में अपनी बात कही.
शत शत प्रणाम करने में जल्दी मत करो। कुछ साल और रुको।
क्यों, समझ आ जाएगा...
शुभाकांक्षी
संजय गुलाटी मुसाफिर
नया नाम...नए तेवर... पुराना गुस्सा....
वक्त के थपेडों ने बहुत कुछ सिखा दिया अनुज को...लेकिन अभी बहुत कुछ सीखना बाकी है।
देखना होगा कि वो इन कडे इम्तिहानों से और मज़बूत होकर निकलता है या फिर हार कर भेडचाल मे बाकि सभी भेडों की तरह आम बन कर रह जाएगा
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