Tuesday, September 04, 2007

मैं यार बनाणा नी चाहे लोग बोलियां बोलें ...


आजकल अपना ईमेल बाक्स खोलते ही एक दो ऎसे मेल जरूर दिख जाते हैं जिनमें पूछा गया होता है-- "इज फलां युअर यार ..." और आगे एक्सेप्ट या रिजेक्ट करने के उदार ऑप्शंस भी दिए गए होते हैं ! ऎसे रार- वादी युग में यार बनाने के इतने मौके हम सब को मिल रहे हैं और हम राग अलापते हैं कि समय बडा खराब आ गया है.... दोस्तों की कमी हो गई है ...भाईचारा खत्म हो रहा है ! भई हम तो अब ऎसे यारी के ऑफर पाकर इन दकियानूसी प्रलापी खयालों को तज चुके हैं ! दोस्ती के नए वर्चुअल कांटेक्स्ट में जीने का समय आ गया है और हम सब हैं कि अपने आस पास ओल्ड फैशंड मित्रता टाइप बातों की उम्मीद कर रहे हैं ! यार ये ग्लोबल युग है ! यहां बहुत दिल मिला कर पते के मित्र बनाने में लगे रहोगे , दोस्ती निभाने ..दोस्त के सुख दुख के साथी बनने या मित्र धर्म के पैमाने पर अपने और अपने मित्र को कसने के फेर में पडोगे तो बच्चू मारे जाओगे ! देखते नहीं टाइम कहां भाग रहा है ! अब दो चार दोस्तों से काम नहीं चल सकता दोस्त हों तो इतने कि सबों के नाम याद रखने मुश्किल हों जाऎं ....बनो तो इतनों के दोस्त बनो कि आपके नेट नाम के साथ लिखा दिखाई दे -'' फलां (220) या " ढिमकां (305) !ऎसे धांसू च फांसू (आलोक जी चोरी का इल्जाम न लगाऎ और कोई फेंकू च कैचू मुहावरा नहीं न मिला ) नाम - नंबर वाले, हममें हीन भावना की उत्पत्ति कर देने में सक्षम यार की दोस्ती ऎक्सेप्ट न करें तो और क्या करें.....बस आप फंस ही जाते हैं आकाश दिशा की ओर उठे हुए अंगूठे को क्लिक कर अपनी यारी लिस्ट भी बढा डालते हैं ! वैसे इस प्रेशर में ना भी आऎ तो आपकी नैतिकता आपकी इंसानियत (जिसका आप दम भरते रहे हैं ) आपको परेशान करेगी क्योंकि यारी के ऑफर को ठुकरा देने पर ऑफरकर्ता के लटके मुंह की कल्पना भी आप :( के माध्यम से कर पा रहे होंगे !


अब दिल की बात कहें--- ये दोस्ती, मित्रता सब बेकार के हिप्पोक्रेटिक लफ्ज हैं असल मजा तो "यारी" में है ! यारी के नए ग्लोबल मायनों में यह लफ्ज --मजे , टाइम पास और ,टेंशनलेस, फर्जलेस फर्जी दोस्ती के भाव से चिरकाल के लिए नत्थी हो चुका है !ये फर्जी नाम के साथ मर्जी की दोस्ती का अनंत विस्तार है ! यहां टाइम एंड स्पेस मोल्डेबल और रिवर्सऎबल हैं ! मिनी -माइक्रो--स्लिम के जमाने में दोस्ती का मोटा लबादा ओढे कौन घूमे ? वैसे भी टाइम क्राइसिस की टॆंशन में नेट की यारी फायदे का सौदा है !करना ही क्या है कोई भी यार सिलेक्ट करके दोस्ती का ऑफर ही तो भेजना है या आए हुओं को उनकी फ्रोफाइल और थोबडा देखकर हां या ना करना है !


हमारे घर के सामने वाले मंदिर में बहु बेटों पोतों की ठुकराई हुई बुजुर्गवार औरतें हर दोपहर बाद फिल्मी गानों पर बने भजन माइक पर गाती हैं ! कल उन्होंने कृष्णजन्माष्टमी के आने की खुशी में जो भजन गाए उनमें एक था _नी मैं यार बनाणा नी चाहे लोग बोलियां बोलें ...नी मैं बाज न आना नी.....! उनकी कृष्णोपासना में भी गोपियों की ही तरह लोक- कुल की निंदा- आलोचना का डर नदारद था , अंदाज नया था ! वे भी निर्गुण निराकार की यारी में डूबी थीं ( वैसे हम कृष्ण को सगुण साकार के रूप में ही पढाते हैं ) और अपने जीवन के सूनेपन को कृष्ण की यारी से आबाद कर रही थीं ...सो हमारा यह फायदा हुआ कि अपने लिखे हुए इस खामखाह के विलापी लेख के लिए बहुत कैची सा टाइटल मिल गया !खैर वैसे अब आप फंस ही गए हैं तो बताते भी जाऎ -


"इज नीलिमा युअर यार "!

13 comments:

अभिनव said...

यस यू आर

Arun Arora said...

हा जी आप बिलकुल है हम यही स्वीकार करते है ..? आप चाहे तो लिख कर भी भेज सकते है..पर यही गुजारिश रहेगी कि आप मेल भेजकर हमसे ना पूछे..काहे की हम आगे अपने कुछ जानकारो को इस यारी की श्रखंला मे शामिल नही करना चाहते..?
अब सारे यार हो जायेगे तो जीवन कैसे चलेगा,कुछ तो लोग चाहिये ही जो यार ना हो...:)

Divine India said...

कितनी सस्ती है न दोस्ती…।

PD said...

अजी बात तो बहुत पते की कही है आपने. और मुझे लेकर तो बिल्कुल सत्य है. सच तो ये है की बस मेरे औरकुट में ही जितने मित्र हैं उन सबका नाम याद रखना बहुत कठिन हो जाता है.. कई बार तो ऐसा भी हुआ है की एक नाम के 2-3 लोग हैं और मैं किसी और का प्रसंग किसी और से छेड़ देता हूं और सामने वाला भौचक्का होकर सोचता रहता है की मैं क्या बोल रह हूं.. :)
वे सोचते होंगे की शायद इसका दिमाग फ़िर गया है...

ALOK PURANIK said...

नीलिमाजी
वो वक्त और था, ये वक्त और है
तब दोस्त थे, अब कांटेक्ट्स का दौर है
शेर घटिया है, पर बात तो एकैदम खल्लास टाइप है ना।

Udan Tashtari said...

यारी भी यह वाली बड़ी अजीब है..आयें दायें बायें सायें सबको भेज देता है एड्रेस बुक से-किस किस को यार बना डाला, हम खुद ही नहीं जान पाये.

आपका वाला इनवाईट ठीक है. :) एक्सेप्ट ही माना जाये.

Anonymous said...

हल्की-फुल्की शैली में लिखी यह पोस्ट बेहद ज़रूरी मुद्दों की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करती है और हमारे मन को छूती है .

ALOK PURANIK said...

नीलिमाजी
एक बात को कहना ही भूल गया
यार बनाने की बात आप कह रही हैं, पर फोटू में चप्पलें टांग रखी हैं, स्वागत के लिए।
ये कौन से इश्टाइल की यारबाजी है जी

Neelima said...

सभी यार दोस्‍तों का शुक्रिया

आलोकजी आप तो पता नहीं क्‍या मतलब ले रहे हैं हम तो फोटु से बस इतना इशारा कर रहे हैं कि बाईं चप्‍पल की दाईं चप्‍पल से गहरी यारी है..है कि नहीं :)

Anonymous said...

http://www.desipundit.com/2007/09/04/kyaa-tum-mere-yaar-ho/

ePandit said...

बाज आए हम तो इस यारी से, इसके चलते चिट्ठाकार समूह पर बैन होते होते बचे। खुद ही आपकी एड्रैस बुक के सभी कॉन्टैक्ट्स को आपसे बिना पूछे यारी का इन्वीटेशन भेज देता है।

आपको भी जो ज्यादातर इन्वीटेशन मिले सब इसी टाइप के होंगे।

अभय तिवारी said...

बढ़िया लिखा..

ghughutibasuti said...

अच्छी पोस्ट है पर बेटी बनाने की उम्र वालों से कैसे यारी करें ? कुछ अजीब सा लगता है । मित्रता चलेगी ?
घुघूती बासूती