स्त्री विमर्श वाले बहसते विमर्शते रह गये और उधर लडकियों ने घोषणा कर डाली कि अब उनके अच्छे बने रहने का जमाना गया ! वे गा उठी 'वी आर बैड बैड गर्ल्स....जमाने को सुनना पडा कि वे कह रही हैं कि वे गंदी लडकियां हैं...."चक दे इंडिया "फिल्म की हॉकी टीम की लडकियां उद्बबाहु धोषणा करते हुए जो गीत गाती हैं वह है -
ना तो रोटियां पकाऎगी
ना छ्त पे बुलाऎगी
ना नंगे पैर आऎगीं
ना हंस के रिझाऎंगी
ना सर पे बिठाऎंगी
ना गोरी होके आंऎंगी
ना नखरे उठाऎंगी.....उन्हें नहीं दिखना सुन्दर -नाजुक और गोरी ,उन्हें नहीं तैयारी करनी पूरा बचपन एक दूल्हे को रिझा लेने की ,वे नहीं करेंगी सेवा , उन्हें नहीं चाहिए तारीफ या आपकी छाया ,आपका नाम ! वे नहीं अपने सपने छोडकर बाकियों के सपनों को पूरा करने की मशीन बनेगीं वे आपकी दी हुई जिंदगी नहीं जिऎंगी ....ये जिद की पक्की ,बहुत खूंखार ,बेशर्म ,अडियल , बेखौफ लडकियां हैं...
आह...... भौंह कटीली -आंखे गीली- घर की सबसे बडी पतीली भरकर भात पसाने वाली परंपरागत भारतीय लडकियों की बुद्धि कैसे भ्रष्ट हो गई ? संरक्षणशील लज्जाशील कर्तव्यशील शीलवती भारतीय लडकियां अब घरबार को दुत्कारकर इतनी बेपरवाह होकर निकल पडेगीं अपनी पसंद के रास्ते पर ! परिवार का क्या होगा ? समाज का क्या होगा ? मर्दवादी संसचना का क्या होगा ?
उफ............. उफ ये छुट्टी लडकियां वह सब नहीं करेंगी जो अब तक करती आई हैं तो क्या करेंगी ? क्या पा लेंगी ? क्यों पा लेंगी ? वे साफ कह रही हैं कि वे अच्छी लडकियां नहीं हैं इसलिए उनसे कोई भी कोई उम्मीद न रखे ! वे अब वह करेंगी जो वे हमेशा से करना चाहती थी ! वे अब नहीं मानेगी किसी भी सत्ता को और न ही किसी संरचना से कोई भी उम्मीद करेंगी ! वे आपके बनाए खांचे को तोडकर बाहर निकल गई हैं और अब किसी भी खांचे को अपने आसपास नहीं बनने देगी ! वे खुद कह रहीं हैं और बहुत साफ साफ कह रही हैं कि वे गंदी लडकियां हैं ! गंदी इसलिए क्योंकि आपके लिए अच्छी लडकियां जैसी होनी चाहिए वैसी वे नहीं हो सकती अब ! गंदी लडकियां कहलाने में जो आजादी है उसका भरपूर इस्तेमाल कर वे आपको और आपके ढांचों को ठेंगा दिखा देंगी !..................तब आप केंद्र में बैठे रहते थे जनाब और उन्हें अपने आसपास उलझाऎ रखते थे अब वे आपमें नहीं उलझॆगी ! अपने रास्ते चुनेंगी और अपने भरोसे अपने तरीके से चलेंगी !
आप क्या सोच रहे हैं कि ये क्रांति है उनकी या कि जंग है ? नहीं जी ये आपका और आपके ढांचों का उपहास है जिन्हें आपने बडे जतन और चालाकी से बनाए रखा अबतक ! जिन जडों में आपने नापतोल कर सिंचाई की वे अब आपकी करतूत पहचान गईं हैं इसलिए वे फैलेग़ीं जी भर फैलेंगी ......उन्होंने गंदी लडकियां होने के रिस्क को चुना है जानते बूझते चुना है.....वे आपकी मूल्य व्यवस्था को धता बताकर चल पडी हैं और आप उन मूल्यों की पोटली सर पर धरे बीच बाजार खडे हैं कि अब आपका क्या होगा ....? नहीं उन्हें गंदी लडकियां कहलाने में कोई ऎतराज नहीं ये उनके लिए गाली नहीं ! अच्छेपन के बोझ तले दबे रहना अब और नहीं गंदेपन के खिताब का वे पुरजोर स्वागत कर रहीं हैं !लडकियां आपको चुनौती रहीं हैं खबरदार उनके रास्ते में मत आना ...उन्हें रोकने की कोशिश मत करना ...उन्हें बांधने का ख्वाब मत देख लेना ....
वो देखो ...वे चमक रहीं ..वे हंस रहीं हैं ...उनपर अब कोई भार नहीं है ..कोई नकली आवरण अब नहीं ढोना है उन्हें....वे अपने बूते उडेंगी डूबेंगी तैरेंगी आप रोक नहीं पाऎगे.....सिर्फ इतना कह पाऎंगे .....वो देखो वो रही ...,.गंदी लडकियां ......येस दे आर बैड बैड गर्ल्स....
19 comments:
और इन लड़कियों के फ़ैन्स भी हैं..
excellent piece of writing neelima . i hope the satire that i can see is visible to others also
keep the good work going
बुरी मुद्रा अच्छी मुद्रा को चलन से बाहर कर देतीं है. अब ये बुरी लड़कियां अच्छी लड़कियों को चलन से बाहर कर देगीं.
जो भी लीक को तोड़ता है वह बुरा ही कहलाता है.
बहुत अच्छा नीलिमा जी आपके विचार से मैं बिल्कुल सहमत हूं। यह भी एक संयोग है कि आज सुबह एक मित्र के साथ इसी मुद्दे पर काफी देर तक बहस हुई। इसके तुरंत बाद आपका विचार पढा मजा आ गया।
नही जी ये गलत है आप शिक्षक होकर गलत आदतो को बढावा दे रही है..? आपकॊ तो इस बिगडने के खिलाफ़ मुहिम चलानी चाहिये..एक मोर्चा बनाना चाहिये अपने पुराने मूल्यो की स्थापना के लिये ..आप चाहेगी तो हम अपने अति व्यस्त समय मे से भी समय निकाल कर एक आधी क्लास लेने को तैयार है..आखिर समाज को सुधारने का सवाल है जी..:)
@arun
आखिर समाज को सुधारने का सवाल है जी..:)
he he he
वैसे अच्छा किया आपने कि स्त्री विमर्श वाले में हमारा लिंक नहीं डाला। नहीं तो लोग देखते और कहते कि साले यही सब हैं, फालतू की बतकही करने वाले। वैसे ये ऐलान हम तक पहुंच गया है और हमने स्त्री विमर्श को रोक दिया है। अब चे फिर आज आ जाएंगे।
बहुत बढ़िया लिखा है । हम भी बैड ग्रैनी बनने की सोच रहे हैं । कोई परेशान होगा तो आपके चिट्ठे पर भेज देंगे । :)
घुघूती बासूती
"आँसू से भीगे आँचल पर मन का सब कुछ रखना होगा,तुमको निज स्मित रेखा से ये सन्धिपत्र लिखना होगा ।" नीलिमा जी आपके इस लेख ने ना जाने क्यूं मुझे ये पंक्तिया याद दिला दीं । लेख बहुत कुछ कह गया । बधायी ……
ओह! पर शायद "चक दे इंडिया" एक फ़िल्म है. लड़किया क्या सझने-सँवरने से दूर रह सकती हैं ?
बैड गर्ल्स क्यों ? इन लडकियों को बैड भी क्यों कहा जाय ? ये ही तो हैं जैसी लडकियों को होनी चाहिये ..आज की लडकियाँ !
बढ़िया और विचारोत्तेजक लेख. उपर इतना कहा जा चुका है कि अब इन सबमें मैं सिर्फ सहमति ही जता सकता हूं.
पहली बात तो यही समझ नहीं आई कि वो अपने आपको बुरा क्यूँ कह रही हैं?
जब तक खुद के मन को काम सही न लगे -बेहतर है कि उसे न किया जाये क्योंकि उसकी उम्र लम्बी नहीं होती और बोझ ढ़ोने जैसी स्थिती हो जायेगी.
अव्वल तो वो सिनेमा की बातें हैं और उसकी अधिकतर बातें आपको बहलाने के लिये रोजमर्रा से तोड़ कर उड़ाकर दूर ले जाने वाली ही होती हैं ताकि आप एन्जॉय करें.
मगर इसमें तो कोई अजूबा भी नहीं है? क्या यही पाश्चात्य जीवन शैली नहीं है जिसके पीछे इस वक्त एक बहुत बड़ा वर्ग भाग रहा है बिना सोचे समझे. बिना अच्छे बुरे की फिक्र किये.
पहले भी इस दौड़ के बड़े बड़े भुगतान किये गये हैं, अभी भी किये जा रहे हैं और आगे भी करते रहेंगे.
मगर निश्चित तौर पर बहुत सी प्राप्तियाँ भी हुई हैं. कई ढ़्कोसले खत्म हुये हैं. कई जिन्दगियाँ और वर्ग का बेहतरीनीकरण भी हुआ है. स्त्रियों की दशा में तो यूँ भी इसी के चलते कितना सुधार हो चुका है पुराने समय से.
इस दौड़ को रोका नहीं जा सकता और न ही रोकना चाहिये. बस अच्छाई/बुराई का अनुपात आत्मसात करना होगा-आगे आगे देखिये-होता है क्या.
विचार और मुद्दा अच्छा है.
ये बैड बैड गर्ल्स समाज में कुछ गुड गुड करेंगी, हमें पूरा भरोसा है ।
वी आर विद देम ।
acha vishay par bahut acha likha hai...
The Change is happening slowly but steadily .
Girls can do everything.
Retain their femininty along with being dynamic
There are new path ways on which Females will
walk .
To each their own .
Nothing wrong in being bad . So why cry from the roof-top ?
If you are bad, so be it.
और एक सच्ची बात कहूं..? लडकियां बुरी ही अच्छी लगती हैं.
good.
यदि ये चलन आप अपनी लड़की में भी पसन्द करें और इसे अपने व्याव्हारिक जीवन के आस पास पसन्द करें तो अलग बात है।आम तौर मे देखा जाता है लोग भगत सिंह पैदा हो तो चाहते है पर अपने घर पैदा हो ये नहीं।फ़िल्मी बातों को आम ज़िन्दगी का नज़रिया बनाने से फ़ायेदा कम नुक्सान ज़्यादा हो सकता है। आग्याकारी,संयमी,सदाचारी और म्रिदुभाशी होनें से लडकियों (लड़कों को भी) को एक भी नुकसान होता हो तो क्रिपया मुझे ज़रूर बताएं।
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