Thursday, August 16, 2007

गुजरिए भूख, वासना और गंदगी के बाजार से - जरा दामन बचाके

गरीबी और शरीर की भूख की बैकग्राउंड में मेट्रो का नई दिल्ली स्टेशन ! एक का मैलापन और एक का उजलापन ! नहीं नहीं.... कोई दिक्कत नहीं होती हमें अपने साहित्य के विद्यार्थियों को विरोध और विरोधाभास अलंकार को समझाने में !

ये मेट्रो का नई दिल्ली स्टेशन है जहां से आप भारतीय रेल सेवा की कोई भी ट्रेन पकडकर पूरे भारत में कहीं भी जा सकते हैं ! नहीं जाना कहीं  ...? तो जनाब कोई हर्ज नहीं क्नॉट प्लेस की लकदक के साक्षी तो बन ही सकते हैं ! ..तो जनाब हाइटेकनीक और एयरकंडीशंड स्टेशन से बाहर की दुनिया में कदम रखना बडा जिगर का काम है दिल्ली घूमने वालों या दिल्ली में नए नए आए के लिए ! पर हमारा तो रोज का काम है यहां ! आप यहां आऎं ये भारत की राजधानी की भी राजधनी को घेरे एक अजब इलाका है ! इलाका क्या है विरुद्धों का सामंजस्य है !.... काले -सफेद का गैर आभिजात्य-आभिजात्य का हाशिए और केन्द्र का .... यहां मेट्रो के कर्मचारी आपको हर समय इसकी टाइलों -शीशों को चमकाते मिलेंगे ! कहीं गंदगी- धूल का कोई निशान नहीं....स्टेशन से बाहर निकलते ही आप एकदम उलट जहान में खडे पाऎगे खुद को .....! दिल्ली आपका स्वागत करेगी ...मूत्र की बदबू से बचने के लिए आप मुंह पर फटाफट रूमाल रख लेंगे  ,अपने कपडे बचाने की फिक्र में लग जाऎगे ... आप नाक कान मुंह सब बंद कर लेंगे पर आंख तो नहीं न बंद कर सकते ! आपकी आंखें देखेंगी सडक पर उलटे सीधे तरीके से रुके चलते वाहनों की भीड ,मैल में डूबे सैंकडों रिक्शे वाले , दीवार पर किए गए मूत्र की बहती धारों से अटी पडी पटरी पर मृत्यु की सी निंद्रा में सोए लावारिस नंगे लोग , कहीं कोई भूखी बेहद मैली विकृत चेहरे वाली रोती पछ्ताती बुढिया आपको शिकायत और एतराज से देखती होगी ...............!! भई ये सब आप देखॆगे हम तो रोज देखकर ये सबक लें चुके हैं कि बच्चू अगर देखा अटके भी और भटके भी ...और फिर ठीक 5 मिनट बाद शुरू होने वाली क्लास में क्या खाक पढा पाओगे.....,सो हमारी आंखें देखती हैं पर देखती नहीं ....पर कभी कभी रिक्शे वाले के फफोले भरे हाथों में पांच रुपये के सिक्के थमाते हुए उसके लाचार बीमार हारे हुए चेहरे और  उसकी मैल के मानवीकरण अलंकार हो जाने के साक्षी बन जाना पडता है !

..तो आप सोच लें कि आप यहां से निकलकर कहां मुडेंगे एक तरफ चमक की दुनिया दूसरी तरफ पहाडगंज के तंग इलाके और दिल्ली का "गंदा" इलाका जी बी रोड है ! आप नहीं सोचेंगे तो रिक्शे वाला आपकी आंख में आंख डालकर इशारों में ही पूछेगा ! यदि आप स्त्री हैं तो आपका पूरा हुलिया कई कई आंखों द्वारा जांचा जा रहा होगा1.,.... ये आंखें आपके पहनावे और चालढाल से आपके भीतर नगरवधू और कुलवधू के फर्क के सबूतों को खोज रहीं होंगी ! आप कुछ भी हों ये अंदाज लगाने में क्या जाता है कि आपका रेट क्या होगा एक बार का 10- 20 या 50 या 100 ....!!

उफ ...नहीं ...हम रोज दुखी नहीं हो सकते ...रोज रोज नहीं रो सकते ..हर वक्त सोचते भी नहीं रह सकते ...पर पढाना तो है हमें आधुनिक भारत का यथार्थ बारास्ता कविता ,उपन्यास ,कहानी........! यहां बच लेंगे, आंख मूंद लेंगे ,पक्के हो लेंगे.. पर क्लास में ये साहित्य पढाते हुए जब उसकी भावपूर्ण व्याख्या पर जाएगे .....तब कहां जाऎगे ....नहीं बच सकते .....फंस ही जाऎगे भाई ......!

....हां हां  ... ठीक वैसे ही जैसे मेट्रो से निकलकर क़ोलेज तक जाने में नहीं बच सकते ! ये सच जो आंखों के आगे पसरा पडा है ऎसे नहीं तो वैसे ..अब नहीं तो तब ...गलाऎगा ही...तपाऎगा भी ... सिर्फ मुझे ही क्यों ....आप सब को भी तो ...!!

 

( आगे भी पर बाद में )

10 comments:

kamlesh madaan said...

नीलिमा जी आप सच्चाई की मिसाल पेश कर रहीं है.
जो दिल्ली सरकार कॉमन्वेल्थ की तैयारी में जुटी हुई है उसे मैट्रो,होटल्स और स्टेडियम बनाने में फ़ुर्सत कहां?
आगरा से दिल्ली की तरफ़ आने पर जब हजरत निजामुद्दीन के नाले के ऊपर से गुजरते हुये दिल्ली में एन्ट्री होती है तो वहाँ सब दिखायी देता है कि किस तरह लोग और उस नाले पर रहने वाले जानवरों कोई फ़र्क नहीं है. आगे बढ्ने पर ओखला के शार्ट्कट पर रेलवे के किनारे शौच,नशा करती नौजवान गरीब पीढी जो 'शाइनिगं इन्डिया' को चरित्रार्थ करती है. वहीं खुद के नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन से पहले जब लोकल ट्रेन रूकती है तब आप देखेंगे कि किस-किस तरह के लोग पटरियों के किनारे स्मैक,दारू और अजीबोगरीब हालात में मिलते है.

ये सब आप ने जो लिखा है वो दिल्ली का वर्तमान है भविष्य का पता नहीं! बस अब नहीं लिख् सकता आगे

आपका प्रिय
कमलेश मदान

ePandit said...

जीवंत लेखन, जारी रखें।

ePandit said...

जीवंत लेखन, जारी रखें।

Sanjeet Tripathi said...

बहुत सही!!

sanjay patel said...

राजधानी का ये सच धृतराष्ट्रों को नज़र नहीं आता ?
लानत है व्यवस्था के नाम पर करोड़ों डकार जाने वाले पर...इसके बाद भी वित्त मंत्री सोचते हैं कि ईमानदारी से कर जमा करना चाहिये...आख़िर किसके लिये ?

Udan Tashtari said...

सही है. कई बार लगा वाकई नई दिल्ली स्टेशन के बाहर पहुँच गये. बहुत जिंदा चित्रण शैली है, बधाई. चिन्तन विषय तो खैर उचित है ही.

Reetesh Mukul said...

आपके लेख पढता हूँ. सही में वे काफी अच्छे रहते हैं. यह लेख भी अच्छा था और पिछला भी काफी समीचीन था. समस्या चाहे नारी की स्थिती को लेकर हो, अथवा देश की दुरावस्था को लेकर हो, उनके समाधान तो चाहिए ही. दर असल सब कुछ ठहर जाता हैं, इस बिन्दु पर की हम कितना सोचते हैं, हर उस कदम के बारे में जिसे हम कर रहे होते हैं. नारी के साथ एक मौलिक समस्या यह भी हैं की उसमें एकाग्रता का आभाव हैं, कतिपय वह सफलता अथवा खुशी को अपने भीतर घुलाने का माद्दा नहीं रखती. जानता हूँ मेरे यह शब्द सही नहीं लगे, पर नारी की समस्या काफी हद तक पदार्थवाद की सूचक हैं. हिन्दी काफी दिनों बाद लिख रहा हूँ, सो अशुद्धि के लिए क्षमा कीजिये.

Rajanikant Verma said...

Nilima ji

Aaapkr vichar
"गुजरिए भूख, वासना और गंदगी के बाजार से - जरा दामन बचाके"

I liked u r article and somewhere it realised our poverty level, dirty environmet, mixed culture, economy etc.

Rajanikant Verma

हरिराम said...

यथार्थ का वर्णन करने में महारथी हैं आप। किन्तु ये दृश्य हमें गरीबी-अमीरी, नर्क और स्वर्ग, गन्दगी और सफाई के बीच निरपेक्ष रहने की शक्ति प्रदान कर जाते हैं।

Anonymous said...

World Of Warcraft gold for cheap
wow power leveling,
wow gold,
wow gold,
wow power leveling,
wow power leveling,
world of warcraft power leveling,
world of warcraft power leveling
wow power leveling,
cheap wow gold,
cheap wow gold,
buy wow gold,
wow gold,
Cheap WoW Gold,
wow gold,
Cheap WoW Gold,
world of warcraft gold,
wow gold,
world of warcraft gold,
wow gold,
wow gold,
wow gold,
wow gold,
wow gold,
wow gold,
wow gold
buy cheap World Of Warcraft gold z3g6o7ie