Saturday, August 11, 2007

साउंड प्रूफ लेबर रूम्स

"सिस्टर ऎडमिशन पेपर्स तैयार करवाओ , इमिजिऎट एन एस टी.. ऎनीमा..क्लीनिंग.."

पर डक्टर मुझे डर लग रहा है मुझे लगता है ये फाल्स पेन हैं मैं मैं..." नहीं भई  नहीं ..ये तो बहुत अच्छी दरद हैं..डाक़्टर अपने साउथ इंडियन लहजे में बोली .'फिफ्टीन मिनट्स के इंटवेल पर पेन हो रही हैं अब ऎर्‍डमिट होना होगा बच्ची.."

दया के चेहरे पर अनजाना कहर टूटता दिखाई देता है उसकी सास पूछती है 'अरी बता तो दर्द कमर से उठ रहा है या पेट से ..कमर से उठता है तो लडका होता है ..बता ?" नहीं मुझे नहीं पता मुझे कुछ नहीं पता मुझे बचाओ कोई बस .." सास का चेहरा निर्दयी हो उठता है "ऎरी तू अनोखी नहीं जनने जा रही है बच्चा सारी दुनिया जनती है". पास से गुज़रती सिस्टर कहती है नहीं दुनिया का हर डिलेवरी केस अलग होता है माता जी ,अब चलो तुम व्हील चेयर पर बैठो. "

डिलीवरी रूम  की ट्रेनी यंग डाक्टर नीचे के हिस्से में जाँचं पड़ताल में लगी थी एक के चेहरे पर मरीज के दर्द से पैदा हुआ दर्द था तो दूसरी अपने खून लगे कोट से बिना घिन्नाए दया के केस को पढ रही थी -" सुनो दर्द बढाने की दवाई डाल दी है जितनी जल्दी अच्छे दर्द होंगे उतनी जल्दी आजाद हो जाओगी .." दया बिना हिले डुले लेटी है मुहं से बीच बीच में कराह निकलती है नजर दौडाती है लेबर रूम में ! पेट फुलाए पडी कराहती रोती औरतें ही औरतें ! दर्द का इंजार करती , दर्द के बढने की दुआ मनाती दाँत भींचती औरतें ही औरतें ! ...................दर्द बहुत जरूरी है ! दर्द के बिना यहीं पडी रहोगी पेट काट्ना पडेगा तो ज्यादा तकलीफ होगी ! दया चिल्लाती है हिस्टीरिक होकर ..मुझे जाने दो मुझे छोड दो यहां की चीखों से दिल दहलता है इन औरतों के दर्द में विकृत हो गए चेहरों  को देखने से मितली आ रही  है ............देखो ये साउंड फूफ कमरे हैं यहां की दीवारें चीखों को बाहर नहीं जाने देतीं ......तुम भी दर्द के और बढने पर चीखोगी ....शायद कोई नर्स बोली थी ! उठो घूम लो पडी रहने से दर्द जमेगा ..."मैं नहीं खड़ी हो सकती ....टांगे कांप रही हैं मेरे पति को बुलाओ..."यहां किसी की एंट्री एलाउड नहीं है !"नर्स उदासीन भाव से जवाब दे रही थी !


दया को याद आता है बॉस का व्यंग्य से भरा चेहरा ! प्रेगनेंनसी की बात सुनते ही बोला था "यू टिपिकल इंडियन लेडीज..जॉब मिलते ही मैरिज, मैरिज होते ही प्रेगनेंनसी...कैरियर स्टेगनेंट हो जाएगा तुम्हारा समझी ...प्रीकाशन नहीं ले सकती थी ?..."  दया पानी पनी चिल्ल्लाती है दर्द उसे जकड रहा है बेड पैन हाथ में लिए पास से जाती सफाई कर्मचारी उसे पानी देती है ! दया झिझकती है पर फिर लपककर पी जाती है "थें..क्स..आह आह ..........अब कितनी देर और.....दर्द बेकाबू ....हो रहा है ... डाक्टर को भेजो ...वक्त क्या हु...आ है ?  मुझे पेनलेस डिलीव..री चाहिए ............."सांस फूल रही थी दया की मुट्ठियाँ भिंच रही थीं! पति पर बहुत गुस्सा आ रहा था !मेरा हाथ थाम ले एक बार वह ..देखे मेरा हाल कमर से ऊपर उठे डेलीवरी गाउन में टांगे फैलाए पलंग के किनारों से भिडते मुंह सूख रहा है.... सिस्टर सिस्टर......! डाक्टर लोबो आती हैं बहुत सामान्य भाव लिए आवाज में गुस्सा लिए कह रही हैं "क्यों तुम्हें चाहिए दरद दूर करने का टीका ...तुमहारी मां ने तुम्हें टीका लगवाकर पैदा किया था क्या ..वैसे भी सेफ कहां यह टीका सुन्न हो जाएगा रास्ता तो बच्चा अंदर रह सकता है और ऑपरेशन की जरूरत पड सकती है ..बच्चे को खतरा हो सकता है ..."

पता नहीं मुझे मैं इस समय मुझे अपनी जान जाती लग रही है मुझे या तो मार दो या मर जाने दो डाक्टर " दया के होंठ चिपकने लगते हैं आंखें आंसुओं का लगातार बहना बढ जाता है पेन का इंटरवेल अभी बढ रहा है ! मां तो कहती थी बस ज्यादा पता नहीं चलता तू बस बच्चे के बारे में सोचना ! सास कहती थी लडका होगा सोचना तो दरद महसूस नहीं होगा ! सब झूठ था मुझे यहां धकेलने का षडयंत्र.... ..बेड पर नजर जाती है खून ही खून कोई नर्स कह रही है  ओह ये मरीज 'शो' दिखा रही है  ! जूनियर डाक्टर देखती है  डाइलेशन फोर इंचिज हुआ है इस हिसाब से अभी फाइव ऑवर्स लगेंगे नर्स सुबह छ्ह के आसपास !  डाक्टर चली जाती हैं दया नर्स का हाथ पकडकर झिंझोड देती है  ....." नहीं इससे ज्यादा दर्द नहीं सह सकती मैं ...इससे ज्यादा दरद हो ही कैसे सकता है किसी को ....कोई बच ही कैसे सकता है इस दर्द के बाद ......बताओ बताओ " दया देखती है नर्स का चेहरा उसके दर्द से अछूता है ! दया चाहती है कि कोई तो उसे सहला कर कह दे कि हाँ मैं महसूस कर रहा हूँ तुम्हारा दर्द ...वह नर्स झाँक रही है भीतर और कह रही है  " देखो सिर दिख्नने लगा है डाइलेशन इंप्रूवड है साँसे लंबी लो ए चिल्लाओ मत इतना ..करते वक्त नहीं पता था कि जनते वक्त इतना दर्द होगा ? ! "

दया बीच में जाने हताश हो रही है या सो रही है ! इंद्रियाँ शिथिल पड़ रही हैं दिमाग अजीब अजीब चित्र बना रहा है ! गुस्सा ,नफरत, तडप ,प्रतिरोध के चित्र डाक्यूमेंट्री से शुरू होकर कोलाज में बदल जाने वाले चित्र ! एक में वह बच्ची है माँ के स्तन से चिपकी ,एक में वह जतिन की बाहों में है और जतिन कह रहे हैं कि वह उनके किए दुनिया की सबसे खूबसूरत उपलब्धि है ,एक में वह ग़िड़्गिड़ा रही है "जतिन तुम अपने परिवार को समझते हो मुझे भी समझो जरा ..." जतिन  जतिन जतिन......आओ मुझे तुम्हारी ज़रूरत है ...मैं लड़ते -लड़ते हार रही हूँ हर मोर्चे पर ..तुम साथ होकर भी साथ महसूस नहीं होते ...क्या प्यार का शादी में बदलना गलत रहा...मैं कब तक सहेजती रहूँ यह रिश्ता अकेले ......कहो ...कुछ तो कहो ......तुम्हारी चुप्पी.......! दया हाँफ रही है बाल नोंच रही है हाथ पटक रही है !

दया की चीखें बढ़ती जा रही हैं ! उसे लग रहा है ज़रूर उसका चिललाना इन दीवारों के बाहर खड़े जतिन को सुनाई दे रहा होगा ...वह रो रहा होगा मेरे लिए...वह दीवार तोड़कर यहाँ आ जाना चाहता होगा वैसे ही जैसे मुझसे प्रेम विवाह के लिए वह एक बार सारे जमाने से लड़ गया था .....! डाक्टर डाक्टर भगदड़ मच जाती है रेस्ट रूम से डाक्टर भागती आती हैं स्ट्रेचर आ यहा है "हरि अप जल्दी डिलीवरी टेबल पर शिफ्ट करो ...रोको अभी जोर नहीं लगाओ साँस अंदर खींचो ..." दया की टाँगें खोलकर लटका दी जाती हैं वह जीवित और मृत के बीच की सी देख रही है "वे कह रही हैं "सुनो हाथ टाँगों पर लपेटकर छाती से टाँगें चिपकाकर जोर लगाओ ....रोको जब दर्द की लहर उठेगी तब लगाना खाली नहीं ...." दया गला फाडकर चिल्लाती है मम्मी  मम्मी मम्मी  ! सीनियर डाक्टर फटकार रही है ए मुंह बंद करो बच्चा नीचे से निकलेगा मुंह से नहीं ! मुंह भीचो ...' अचानक दर्द की तेज लहर उठती है दया का चेहरा और भी रौद्र हो जाता है ,वहां खडी सब औरतें समवेत स्वर में गाती हैं हाँ हाँ लगाओ लगाओ लगाओ लगाओ  बस ....हां लगाओ लगाओ लगओ लगाओ लगाओ.....ऊँचा रिवाज़िया पर भावहीन समवेत गायन... धान की कटाई के समय का सा.....लो यह आ गया बाहर लो देख लो क्या है फिर काटेंगे प्लेसेंटा को ...लो यह काट दी नाल वह पडी है ट्रे में देखो .....वे रूई ठूंस रहे हैं दया में ! अब कुछ बाहर नहीं आना चाहिए !कुछ भी नहीं ! वे कह रही हैं आफ्टर पेन्स आतें हैं पर तुम हिलो नहीं नहीं तो टेडी सिल जाएगी फिर रोओगी बैठकर तुम ..  .....दया देख रही है ट्रे में पडी गर्भनाल को सिलाई का धागा खाल में से निकलता साफ सुनाई दे रहा है बाकी की डाक्टर्स व नर्सें जा चुकी हैं दूसरे डेलीवरी टेबल पर!


 एक बेहोशी सी......दर्द की खुमारी सी दिमाग पर चढ रही है बच्चा लपेटा जा चुका है कपड़े में वह धीरे -धीरे कराह रही है उसे लग रहा है वह एक फिल्म देख रही है !
पूरी डूबकर ! दर्द के दरिया में डूबी वह कोई और दया है ! बहे चली जा रही है !
किनारे पर जतिन खडा है बच्चा हाथ में झुलाता बुला रहा है उसे-." लौट आओ दया वापिस देखो तुम्हारा बच्चा ...किनारे की ओर लौट आओ ....हाँ हाँ जोर लगाओ तुम्हें आता है जोर लगाना दया......
दया पानी को काटती चली आओ....
 और और और  जोर लगाओ दया.........!

14 comments:

Anonymous said...

Bahut dardnaak.

Ankit Mathur said...

पता नही कैसे आपने इस पीड़ा दायक प्रकरण को
अपनी लेखनी से शब्द प्रदान करे होंगे?
इस कदर पीडा़दायी हो सकता है मात्रत्व
सुख प्राप्त करने का ये अनुभव?
नारी की इस पीड़ा सह कर जीवन
देने की क्षमता को हज़ार सलाम...
बधाई...

ePandit said...

कहानी पढ़कर एक ही बात दिमाग में आई - राम, बक्श दिए तन्नै हम।

kamlesh madaan said...

नीलिमा जी आप हमेशा से मेरे जज्बात की परछाई रहीं हैं. आपका लेखन किसी भी संवाद यां भाषा की जरूरत नहीं समझता. बस समझता है तो इस पुरूषों के इस संसार में नारी शक्ति और त्याग का आईना दिखाना जो आज की जरूरत है।

आपका प्रिय
कमलेश मदान
http://sunobhai.blogspot.com

Divine India said...

नहीं पढ़ सका पूरा… सहन नहीं हुआ…।

vishesh said...

अलग अलग मोर्चों पर प्रतिक्रियाएं लें

ले‌खन माइंड ब्लागिंग है
विषय बेहतरीन है

इसके अलावा

मैंने एक अकेली या कहें लावारिस महिला को प्रसव में मदद की है
आपने वे द्रश्य ताजा कर दिए
सचमुच मुझे हिला दिया

ePandit said...

औऱ हाँ याद आया, एक बार जब छोटा था तो बीमार होने पर अस्पताल में दाखिल हुआ था, उसी कमरे में रात को दो प्रैगनैंसी के केस आए। बीच में हरा पर्दा था, सारी रात उनकी चीखों से सो नहीं पाया। परंतु सुबह दोनों स्त्रियों के चेहरों पर परम संतोष था।

स‌चमुच मातृत्व का दायित्व प्रकृति ने स्त्री को सोच-समझ कर दिया है। केवल वही इस महान दायित्व को निभा स‌कती थी।

vishesh said...

ऊपर दर्ज प्रतिक्रिया में माइंड ब्‍लॉगिंग को माइंड ब्‍लोइंग पढ़ा जाय

shashi said...

नीलीमाज़ी एक बेहद निजी अनुभव की ऐसी सुंदर और पारदर्शी अभिव्यक्ति बहुत कम परणे को मिलती हैं, बढ़ाई. शशि भूषण द्विवेदी

Anonymous said...

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Anonymous said...

सच मज़ा आ गया ऐसा जीवंत चित्रण पढ़कर. मैं हमेशा ही नारियों की इज्ज़त करता रहा हूँ. इसका एक कारण नारियों की माँ बनने की क्षमता है. हम बेचारे पुरूष अछूते हैं इन दर्दों से :-(
यही वो हसीन दर्द हैं जिनके लिए कहा जा सकता है --- वो हसीन दर्द दे दो जिसे मैं गले लगा लूँ.
ऐसे लेख के लिए आप को शत-शत नमन

L.Goswami said...

अंतर्जाल पर भटकते भटकते अचानक इस पृष्ट पर आना हुआ है ..पढ़कर आपकी लेखनी के प्रति नतमस्तक हूँ ...कहना चाहती थी कुछ पर यहाँ नही कह रही ..फिर भी सिर्फ इतना कहती हूँ , आप दुबारा लिखें नीलिमा जी.

बंटी said...

हर एक वाक्य दर्द से भिंगा हुआ है...हम लोग पैदा हो जाते है लेकिन उस दर्द को सिर्फ माँ ही समझ पाती है...आपने उस दर्द को शब्दों में अभिव्यक्त किया है..तारिफे काबिल है.

अन्तर सोहिल said...

बार-बार अपनी बिटिया के जन्मसमय की घटनायें याद आ रही हैं।
दूसरे बच्चे के जन्म पर अस्पताल के आसपास रुकने का साहस नहीं हुआ।