वह फडफडाती अपने सतरंगी पंख
और चहचहाती कहती-
उड आऊं आकाश में तनिक
वह कहता गहराये टिके अंदाज में
लौट आना लेकिन जल्द ही
इंतजार करूंगा बेसब्र मैं तुम्हारा..
जब कोई झुंड नारे लगाता गुजरता
उसके हरियाये आंगन के बाहर
चूल्हे पर खौलती चाय भूल
दौड पडती वह दरवाजे की ओर
ठिठका देते स्वर में वह पुकारता
क्या हुआ चाय का....?
अल्लसुबह नींद से उठ वह
सुनाती अधूरे रह गए सपने उसे
सपने - जिनमें बेखौफ अकेली वह
गहन समुद्र के नील अंधकार में उतर जाती है
या फिर किसी बहुत ऊंचे सफेद शिखर पर
पैर टिकाए निहारती है
डूबता उगता चमकीला सूरज
वह ध्यान से सुनता
उसकी लटों में अपनी अंगुलियां फिराते
कहता पुचकारती आवाज में
प्रिये ! ऎसे सपने देखना तो अच्छा शगुन नहीं
बेफिक्र सोया करो तुम.....
वह अक्सर कविता करता लपलपाती आग की
ऊंची लहरों में घिरी नौका की जिसमें
सवार होती जूझती एक अकेली औरत
वह कहती आओ बात करें आग की
तूफान में घिरी उस औरत की
वह नेह भरी झिडकी देता
पगली ! आग की बात सिर्फ कविता में अच्छी लगती है
वह छिपा देता है
आग और जूझ की अपनी कविता और
उसके लिए रचता है
रोमानी सुरों में ढले गीत
रात के गहराऎ कालेपन में जब वह
उतर रहा होता है
नींद की तलहटी में धीमे धीमे
वह अपने भीतर उतार डालती है
कागजों में छिपा पडा
बेताला रुद्र आदि गीत
आग का...
13 comments:
बढिया !
वाह! वाह! नीलिमा जी बहुत खूब! बहुत खूब!
अच्छा लगी कविता....बधाई
अच्छी रचना है।बधाई।
vahh, Prem ki ek alag hi abhivakti,
good
href="http://www.aarambha.blogspot.com" target=_new>Aarambha
सुंदर!!!!
सच में यह पढ़कर एक शेर याद आ गया
नाम भूल रहा हूँ कोई पाकिस्तानी शायरा हैं
अब तो इस राह से वो शख्स गुजरता भी नहीं
दिल की गलियाँ बड़ी सुन्सान हैं आये कोई
पगली ! आग की बात सिर्फ कविता में अच्छी लगती है
-वाह, क्या खूब बात कही है कवियत्री महोदया. बधाई स्विकारें.
अच्छा है आपके कहना का ढंग, बहुत अच्छी लगी.
कुछ सोंच है यहाँ एक तर्क भी मौजूद है…
लिखने का आपका जो अंदाज है उसमें भी
एक बड़ा भारी संवाद है।
गहनता है आपकी इस रचना में मुझे समझने में थोड़ा वक्त लगा पर उतरा तो सही इस झील में भले चांद को उसमें निकला मान छलांग ही लगा लिया हो उसे महसूस करने के लिए…।बहुत अच्छी रचना बधाई स्वीकारें।
यहाँ कवि कौन है और कविता कौन ?
:)
आलोक धन्वा और क्रान्ति को पहचान पा रही हूं ।पर दोनो को एक ओर भी कर दें तो कविता एक मार्मिक सत्य को उजागर करती है निर्ममता से ।बढिया !
बढि़या है। अच्छा लगा इसे पढ़कर।
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