हम सब इस चिट्ठाजगत की संतानें हैं। ये चिट्ठाजगत हमारी कर्म- भूमि भी है और रंग (रण)–भूमि भी । यहां विवादों को पैदा करने का अपना मजा है(चाहे ये विवाद हमारी जारज संतानें ही क्यों न हों) । यदि विवाद न उठा पा रहे हों तो विवाद मे पडना भी कोई कम मजेदार नहीं है (यह आ बैल मुझे मार न प्लीज वाली कहावत को चरितार्थ करने वाला काम है जनाब!) और ऎसी बैलों की मार खाने का आनंद गूंगे के गुड के समान है ! अभी हाल में ही हुए _मुखौटा विवाद , मोहल्ला विवाद , रसोई विवाद , इरफान विवाद आदि विवादों में विवादकर्ताओं ने और इन विवादों में टांग अडाऊ टिप्पणीकारों ने बहुत-बहुत मजे लूटे हैं।
इन बहसी मसलों में नामी-गिरामी कमेंटकारों के अलावा बहुत से गुप्त रोगियों अ अ मुआफ करें गुप्त टिप्पणिकारों ने अफवाहों के तीतर लडवाए हैं अब यही वजह है कि मसिजीवी, आलेचक , खुद मैं ,निर्मल जी ,( काकेश जी का पता नहीं) आदि ने , जो कि बिंदास पोस्ट मारा करते हैं ( थोडी देर को मौजें लेना छोडकर) टिप्पणी बाधक-शोधक तकनीकों की शरण गही। निर्मल आनंद में बहते एक पोस्टकार को तो सेंत मेंत में अपने गिरेबान में झांकना पडा साहब।;);) (दो-दो इस्माइली चेपी हैं सर जी नोटपैड की सोहबत से अकल लेके)
हां तो हम कह रहे थे कि यह विवाद-भूमि हमें प्राणों से भी प्यारी है जब से हम इस विवाद रस को टेस्ट किए हैं घर –पडोस- दफ्तर के रगडे- झगडे बेमजा लगने लगे हैं। अब तो बाहर कोई टांट मारे या कि टांग खींचे हमें बिल्कुल परवाह नहीं होती ! यही सब से आजू – बाजू वाले सामाजिकों को यह अंदेशा हो गया है कि हम किंही बाबा या मां के चंगुल में फंस गए हैं जिससे हमारे सारे सांसारिक मोह सिमटते जा रहे हैं। हे हे हे। मूर्ख प्राणी सब- के –सब। भौतिक जगत के टंटों में पडे ये क्या जानें हमें किस स्वर्गिक आनंद की प्राप्ति होने लगी है आजकल कसम से ! यहां कइयों की पीठ में खुजली उठती है कइयों उसे खुजाते हैं ,कइयों के हाथ की अंगुलियों में चरपरी खुजली होती है , कोई गुप्त पीडा का सार्वजनिक प्रदर्शन करता है तो कोई( जिनकी बातों को बाहर कोई सीरियसली नहीं लेता) हास्य-व्यंग्य के बाण-पे-बाण मारके वहवाही लूटते नहीं अघाते----एक से एक यूनीक पीस ! ;)
सबकी अपनी डफ्ली अपना-अपना राग और तो और किसी की अपनी डफली फटी हुई है तो किसी आन की डफली पे दो - दो हाथ मारने की उतावली में हांफ रहा है ! अपन की कहानी अलग है ! हम तो अपने चिट्ठाबाज शिरीमान जी की चिट्ठाखोरी से उकता के त्रिलोचन की चंपा की तर्ज पे बोल बैठे -- चिट्ठाजगत पे बजर गिरे... पर फिर ठंडे दिमाग से सोचा इत्ती जल्दी भी क्या है जरा देखें तो क्या बला है ये जगह! एक दिन हम देख्ते हैं कि हम भी चिट्ठा बना रहे हैं - वाद-संवाद ....पर राम कसम वाद किया संवाद किया पर विवाद कभ्भी नहीं ! अब क्या हैं कि जैसे हमारे भारतीय शास्त्रीय संगीत में वादी संवादी विवादी तीनों स्वर होते हैं तो भाई जी यहां क्या न हों !
खैर छोडें जनाब चिट्ठाकारी का लुत्फ हो या अपने भाई बंदों की पोस्टों को आपरेशन टेबल पर लिटाकर उनकी चीराफाडी का मजा हो या विवादों की चिंगारियों को हवा देने का भीतरी सुख हो – चिट्ठाजगत में आए हैं तो इनके लिए ही तो ! तो फिर क्यों न करें हम अपनी इस चिट्ठा-भूमि को शत-शत नमन !
12 comments:
मण्ठा के बारे में कहावत है कि 'सोर' में डालने पर पौधा नष्ट हो जाता है ।
बढिया कही है जिज्जी!
अपन तो पहले से ही मुरीद है आपके। सो आपको भी शत शत नमन!!
solid thoughts and good language to match. congrats.
Interesting!
ghughutibasuti
लिखे तो काफी अच्छा हैं नीलिमा जी पर एकठो बात हमरे समझ में कोन्नी आयी कि आप लिखें है "धूमकेतु" ..ई नाम पे तो हमरा कॉपीराईट है ( जो शिल्पी जी हमको भोतही प्यार से दिये हैं ) .हम सोचे रहें आप भी प्यार से हमरा ही नाम लिखी हुईंगी पर क्लिक कर देखी तो मुआ कोनो दूसरी साईट खुलत रही वहां बोलत रहन की ई साईट ना मिलल.. तनि बतलाऎं आप हम को ही लिखत रही ना.. हमार पता है kakesh.wordpress.com ..तनि ठीक कर दें..
काकेश जी आपको ही लिखे थे हम लिंक गलत दे दिए पर वो क्या है कि हम तो तब से आपको धूमकेतू जी समझे रहे हमें का पता था शिल्पी दा आपको इस नाम से नवाजे हैं वैसे नाम तो जोरदार रहा;))लिंक ठीक कर दिए हैं हम
लेखनी जम रहेली है.
चिट्ठाकारी की खुजली खत्म नहीं होने वाली. विवाद-सिवाद तो बहाने हैं नजदीक आने के.
ह्म्म!
बहुत तै ही सही लिखे हो। मौज मे ही लिखना चाहिए, नही तो चिट्ठा साहित्य ना बन जाएगा। अगर हम लोग साहित्यकारों की तरह लिखने लगेंगे तो वो लोग डन्डा लेकर विवाद करने आ जाएंगे।
इसलिए मस्ती से लिखो, और इ वाद विवाद तो चलता ही रहेगा, इनसे टैन्शनियाओ नही। इतिहास गवाह है जिन चिट्ठाकारों का आपस मे वाद-विवाद हुए, बाद मे वही सबसे ज्यादा गहरे दोस्त हुए।
लिखे रहो, मस्त रहो।
नीलिमा जी...बहुत सही लिखा है आप ने.. और वैसे भी
"प्यार का समा, कम है जहां, लडते हैं लोग, क्यूं यहां वहां "
अफलातूल जी जरा खुल के कहें तो बात की गहराई समझे
घुघूती जी ,अनोनेमस जी नोटपैड जी धन्यवाद
मोहिन्दर जी सराहना के लिए शुक्रिया
संजय जी आप की बात शत प्रतिशत सही है
जितेन्द्र जी शुक्रिया .लाख लाख जिए हमारा ये चिट्ठा जगत..
सही है. एक मस्त चला इस बस्ती में की तर्ज पर लिखती रहें- मौज मजा चलता रहे, बस हो ही गया समझो फिर तो उद्देश्य पूरा. बढ़िया लिखा है. :)
वाह! अच्छा लगा आपका यह लेख। मजेदार। वाद-विवाद-संवाद तो चलते ही रहने चाहिये। संवादहीनता से बेहतर है वाद-विवाद होते रहना। ऐसे ही लिखतीं रहे! बिंदास!
Post a Comment