हाल ही में हमने एक लाल प्यारी सी कार खरीदी है ! हर मध्य वर्गीय का - एक घर एक कार वाला सपना होता है ! कार हमारे लिए एक बडा सपना थी ! सपना पूरा हुआ ! हम खुश थे ! इस कार से हम कई दुर्गम पर्वतीय स्थानों पर घूमघामकर आए! कार ने हर जगह हमारा साथ दिया !नई कार हमारी हाउसिंग सोसायटी की अनेकों कारों की लाइन में पार्क की गई !पर जैसे ससुराल में नई दुल्हन की और कॉलेज में फ्स्ट ईयर के छात्र की रैगिंग होती है वैसे ही इस कार की भी खूब रैगिंग हुई !नई चमकती हुई कार हर सुबह कहीं न कहीं से खरोंची हुई मिलती !
हमारा घर तीसरी मंज़िल पर है सो कार जब भी पार्क होती किसी ग्राउंफ्लोर वाले घर के आगे ही पार्क करनी होती !यूं तो सोसायटी की सडकों पर सबका बराबर हक है पर ग्राउंडप्लोरवासी अपने घर के बाहर की जमीन पर किसी भी पराई कार को देखकर वैसे ही बिदक जाते जैसे मध्यवर्गीय घरों के पिता अपनी बेटी के क्लास के लडके का फोन आने से असहज हो जाते हैं !चूंकि आजकल जमाना शरीफाई का है सो कोई भी जमीनी फ्लैटवाला मुंह से कुछ नहीं कहता है ! वह रात के अंधेरे में चुपचाप उठता है और कार पर चाभी ,चाकू या पत्थय के टुकडे से सौहार्द की डेढी मेढी लकीरें खींच देता है ! आप सुबह उठते हैं और अपनी नई किस्तों वाली कार पर ऎसी साइन लैंग्वेज देखकर चुपचाप अपनी कार वहां से हटा लेते हैं !
जब से बेकार से हम कार वाले हुए हमें गरीबी ,आतंकवाद,असमानता जैसी राष्ट्रीय समस्याओं में एक समस्या और जोडने का मन कर रहा है - शहर में घरों के बाहर खडी असुरक्षित कारों की बढती समस्या !आप हंसेंगे अगर आपने आपके पैरों में यह बिवाई नहीं फटी होगी ! पर समस्या वाजिब है !अब अगर नैनों आ गई और एक लाख रुपल्ली की कारों की बाढ से सडकों पार्किंग स्थलों की कमी पडेगी तो कारों पर निशानदेही छोडने वाले लोगों को खुल्लमखुल्ला बदमाशी करनी पड जाएगी !ठीक वैसे ही जैसे हमारी सोसायटी के एक भद्र आदमी को करनी पडी !उन्होंने अपने घर के आगे वाली जमीन खुद ही अपनी कार के नाम की हुई थी और वे चाह रहे थे कि यह संदेश आसपास के कार वालों के पास सहजबुद्धि से पहुंच जाना चाहिए ! पर कई कार मालिक इस सहज संदेश को पाने की योग्यता नहीं रखते थे सो उन्होंने अपनी कार वहां पार्क कर दी थी !जब वह भद्र आदमी घर लौटा तो उसे अपने घर के आगे पराई कार पार्क देखकर एक गमला उठाकर उस कार का शीशा तोडना पडा ! चूंकि वे भद्र आदमी थे इसलिए उन्होंने टूटे शीशे के पैसे कार मालिक को चुकाए ! अगली सुबह सब पडोसियों को अपनी कार वहां न खडी करने संबंधी संदेश मिल चुका था !
चूंकि भारत में मुफ्त सलाह दिए जाने की पुरानी संस्कृति रही है सो हमें भी सलाह मांगने न कहीं जाना पडा न कोई खर्चा हुआ ! हमें कार कवर खरीद लेने , सोसायटी के नो मेंस ज़ोनों की तलाश कर वहीं कार पार्क करने , बच्चों की छोटी बडी कबाडा साइकिलों को इकट्ठाकर उनपर एक गीला तौलिया सुखाकर छोड देने के जरिए पार्किंग की जमीन पर कब्जा घोषित करने ,सोसायटी के गेट के बाहर कार लगाने जैसे कई ऎडवाइज़ मिले ! और तो और स्क्रेच लगी पुरानी गाडियों के मालिकों ने इस सत्य को निगल लेने की सलाह भी दी कि दिल्ली में तो गाडियां स्क्रेचलेस हो ही नहीं सकती !हमारी ही सोसायटी क्यों हर जगह का यही हाल है ! नए पे कमिशन में पी बी -4 की तंखवाह की खबर पाकर हमारे कई साथियों ने कार खरीदी थी ! आज हमारे दुख में वे ही हमारे सच्चे साथी साबित हो रहे हैं ! किसकी कार को कहां से खरोंचा गया औरै उसके प्रतिरोध ने किसने कितनी बार चुप्पी लगाई और कितनी बार सडक पर खडे होकर अनाम स्क्रेचकारी को जी भर कोसा हमारी बातचीत में अक्सर ये चर्चाए भी उठ जाती हैं !
हमारी भी आंखें खुलीं हमने देखा कि वाकई कार लेने से हमें कितने बडे सामाजिक सत्य के बारे में पता चला है ! कार न ली होती तो हमें कैसे पता चलता कि समाज में आज भी कितनी असहनशीलता है ,कितनी प्रतिद्वंद्विता है ,कितनी असमानता है और कितना उत्पीडन है ! घर की दहलीज के बाहर जब कार का ये हाल है तो हमारी अकेली बेटियां कितनी असुरक्षित होंगी ! हम आसानी से समझ पाते हैं कि क्यों एक कवि कह गए थे
सांप तुम सभ्य तो हुए नहीं / शहर में रहना भी तुम्हें नहीं आया /फिर कहां से सीखा डसना /विष कहां पाया ?
आज एक और कवि पंक्तियां भी याद आ रही हैं -
कितने रिक्शे,कितनी गाडियां ,कितनी सडकें कितने लोग / हे राम ! / हे रावण !
आज किस्तों वाली गाडी पर पडते स्क्रेचों से हम उतने उदास नहीं होते जितने पहले होते थे ! वो क्या है न हर मध्यम वर्गीय बुद्धिजीवी के पास दुखों के उदात्तीकरण वाली एक तरकीब होती है ! बस ठीक वही हमने भी अपना ली है ! साथ ही हम कार के जिस्म पर खरोंचों को समाज रूपी बुढऊ के शरीर की खरोंचों के रूप में देख रहे हैं !
18 comments:
कार और बेटिया.. कमाल का संतुलन है..
अगर शब्दो के बीच गॅप दिया जाए तो पढ़ने में सुविधा होगी..
सलाहें पा चुकी है तो क्या कहें :) वैसे हम तो नई कार की मिठाई के लालच में आए थे....
हमने एक बार ग़लती कर दी. खरोंचों को पुनः पैंट करवा दिया. फिर पछताना पड़ा. हम भी आपको मुफ़्त की सलाह दे रहे हैं कि उन्हें उसी हालत पे रहने दें. पढ़कर तसल्ली हुई. हम अकेले नहीं हैं. आभार.
http://mallar.wordpress.com
बात थोड़ी चुभने वाली है....पर लोगों अपनी पार्किंग स्पेस का इन्तेजाम नहीं है तो कार का शौक ही क्यों पालते हैं? अब मेरे मकान के आगे कोई कार खड़ी कर आधा गेट घेर ले तो मैं भी रोज़ चरों टायरों में खील ठोंक दूं. क्या हाल होगा जब नैनो शहरों और तंग मध्यम/निम्नमध्यवर्गीय तंग बस्तियों में लगभग हर घर में आ जायेगी? भारतीय मध्यवर्ग सबसे उथला है, 'अरे वो तो कार वाले हैं की मानसिकता', कार और स्टेटस को जोड़ने की मानसिकता, आज के दमघोटू युग में गई नहीं बल्कि मजबूत हुई हैं. कार जैसी निर्जीव संपत्ति से आप जब बेटी की तुलना करती हैं तो दिल में कुछ चुभ सा जाता है. कार रखने से किसी को ऐतराज़ नहीं, पर किसी और की जगह का इस्तेमाल बिना अनुमति करना ग़लत है. आप ग्राउंडफ्लोर पर होतीं तो आप को भी दूसरों की पार्किंग पर खासा ऐतराज़ होता, ख़ुद के घर के गेट के सामने रोजाना कार पार्क मिलती तो आप ख़ुद ही तोड़ डालतीं. शहर वालों में ज़हर है, तो आप कौन सी गाँव की हैं?
इसका अर्थ तो यह हुआ कि नैनों के आ जाने से लोगों को काफी मुश्किलों का सामना करना पडेगा।
सुंदर | खरोंच पर हम तो इतना कहेंगें कि जैसे प्रेमी प्रेमिका पेडों पर अपना नाम कुरेद कर जातें हैं वैसे ही कार पर लोग खरोंच बना देते हैं | कुल मिला कर लोगों का दुलार कराने का तरीका है ये |
अब बनीं साहित्यकार !
कुछा खरोंचे और उनसे उत्पन्न इतना बेहतरीन तुलनात्मक आलेख. खरोंचे लगाने वालों को आभार और साधुवाद कह देने का मन करता है.
वैसे ये खरोंचूजन अपनी कुण्ठा की इबारत खरोंच के रुप में उकेरते हैं.
pahale scratch par bahut dard hota he.. baad me sab chalta he..
सवाल पेचीदा है ओर वाजिब भी.....खरोंचे शुरू में चुभेंगी फ़िर आदत हो जायेगी ...ई एम आई लोगो को सपनो को पूरा कर रही है पर ओर कई मुश्किलें से भी रूबरू करवा रही है......वैसे आपके यहाँ गाड़ी खरीदने पर मिठाई बाटने का चलन नही है ????
पार्किग का दर्द दिल्ली का सामुहिक दर्द है तो इसे भोगना ही पडेगा.
हां लडकियों के बारे में कहना चाहूंगा कि इतनी पाबन्दियों के बावजूद वो आगे बढ रही हैं जिसदिन उन्हें लड़कों के बराबर समझा जाने लगेगा वो आगे निकल चुकी होंगी.
सबसे पहले बधाई.. कार के लिये भी और साहित्यकार के लिये भी(अफलातून जी के कमेंट से)..
लेख मजेदार था.. हम कार वाले हैं भी और नहीं भी हैं.. जब चेन्नई में होते हैं तो बेकार हो जाते हैं, और जब घर पर होते हैं तो कार वाले हो जाते हैं.. हां हमे आप जैसी समस्या से दो-चार अभी तक नहीं होना पड़ा है.. हमारे कार के आस-पास हमेशा पापाजी के बॉडीगार्ड या फिर उनका ड्राईवर घूमता ही रहता है.. अगले साल रिटायर हो जायेंगे सो उसके बाद का पता नहीं.. :)
भाई कार खरीदने की बधाई . चीज तो बाद में सभी ख़राब हो जाती है रंज नही करना चाहिए.
अच्छा है। ab inconvenienti की टिप्पणी काबिले गौर है। परसाई जी का लेख
आवारा भीड़ के खतरे याद आ गया।
सच को साथॆक तरीके से अिभव्यक्त िकया है । अच्छा िलखा है आपने ।
http://www.ashokvichar.blogspot.com
सच को साथॆक तरीके से अिभव्यक्त िकया है । अच्छा िलखा है आपने ।
http://www.ashokvichar.blogspot.com
उस दिन को नमस्कार
जिसने इस लाल कार को जन्म दिया,
उस सोसायटी को सलाम
जिसने इस कार को खरोच दिया,
यो नमस्कार तो सबके सब
कार-ट्रक-बस निर्मातओ को है,
पर उस निलमा मात को नमस्कार
जिसने इस सडक जात को अमर बना दिया॥
( जैसे आपने अपनी अभिव्यक्ति अपनी भाषा मे देश के सामने रखी,आपके साहस की दाद देना चाहता हु। परन्तु एक कार के लिये वैचारिक/शब्दिक कठोर भाषा के उपयोग को भी हि॑सा माना गया है। आप जैसे सुन्दर लेखको को इस सम्बन्ध मे और जवाबदार बनना चाहिये, तभी हम अच्छे भारत को नैनो मे बसा सकेगे। मेरी बात अन्यथा न ले, कही आपके मन को ठेस पहुचाई हो तो क्षमा करे।)
महावीर बी सेमलानी" भारती"
मुम्बई
बहुत अच्छा लिखा है..एक छोटी सी बात से कई सवाल उठ गये
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