वर्षों पहले भारती का यह निबंध पढ़ा था जिसका केंद्रीय भाव यह था कि हिम ही तो हिमालय के सौंदर्य का आधार है। और सच ही है, हिम की धवलता ही हिमालय को उसका रहस्य उसका आकर्षण प्रदान करती है। इसलिए हाल के हमारे किन्नौरी अनुभवों में सबसे ऊपर इसी हिम का आकर्षण है। हिम का प्रथम दर्शन सरहन के निकट शुरू हुआ और फिर लगातार बना रहा। आप भी देखें-
6 comments:
बढ़िया लगी चित्र प्रदर्शनी.
मज़ा आया, सही में चित्र भी सुन्दर हैं और सभी शीर्षक भी सर्वथा उपयुक्त व काव्यात्मक हैं। सच में, आपकी पोस्ट व मसिजीवी जी के चित्र के शीर्षक से मेरी पसन्दीदा, सुन्दर शब्दों से अलंकृत, नागार्जुन जी की बादल को घिरते देखा है, दुर्गम बर्फानी घाटी में, शत-सहस्र फुट ऊँचाई पर... ...वंशी पर फिरते देखा है, लगभग पूरी कविता का स्मरण करा दिया। चित्रों और कविता का यह संयोग पोस्ट को और भी बेहतर बना देता है।
वाह वाह ..आपने तो घर की याद दिला दी.पहाड़ मेरा घर है..मेरे लिये पहाड़ का सौन्दर्य उन अर्थों में सुन्दरतम नहीं है जिन अर्थों में दिल्ली के एक आम पर्यटक के लिये ..जो अपने कैमरे में बस उस सौन्दर्य को कैद कर लेना चाहता है .. वह अप्रतिम सुन्दर किसी कमरे में कैद हो ही नहीं सकता...उसको महसूस करना है तो उसका आंलिगन करना पड़ेगा..पहाड़ जो एक पर्यटक के लिये बहुत सुन्दर है वही वहां रहने वाले आमजन के लिये काफी तकलीफदेह भी ..लेकिन सौन्दर्य को देखने के चक्कर में हम वहां के लोगों के जीवन , उनकी पहाड़ सम जीवन शैली ..उनके संघर्ष और पृकति के साथ प्रतिकूलताओं के बाबजूद रहने की चाह को अनदेखा कर देते हैं .. चलिये इस पर फिर कभी...
आपके चित्र अच्छे हैं ...आपको और मसिजीवी जी को धन्यवाद...
आपने मुझे मेरे हिमालय की याद दिला दी. वाकई बचपन के वे क्या दिन थे, जब हम पहाड़ों के बीच रहते थे.
हिमालय का दर्शन बिल्कुल 'शिवालय' जैसा लगा। यों लगा ज्यों हेलीकॉप्टर में बैठकर चित्र खींचे गए हों।
वैरी सुन्दर,
पर फोटो ब्लर्ट क्यों हैं ?
अगली बार अच्छे से लेना ....
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