tag:blogger.com,1999:blog-36523763.post6357120403621963299..comments2023-08-24T19:38:13.436+05:30Comments on आँख की किरकिरी: का करूं सजनी..... आए ना बालम.........Neelimahttp://www.blogger.com/profile/14606208778450390430noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-68066712544441498872009-05-09T18:50:46.345+05:302009-05-09T18:50:46.345+05:30yaa khuda sachchai itni sanjida kuoe hota hai........yaa khuda sachchai itni sanjida kuoe hota hai.......Asif Iqbalhttps://www.blogger.com/profile/15506800956160564861noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-62240665718251198762009-05-09T18:47:00.000+05:302009-05-09T18:47:00.000+05:30yaa khuda schchai itna sanjida kueo hota hai.........yaa khuda schchai itna sanjida kueo hota hai.......Asif Iqbalhttps://www.blogger.com/profile/15506800956160564861noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-80141290825332912252007-02-21T17:55:00.000+05:302007-02-21T17:55:00.000+05:30लीजिए नीलिमा हों गईं विवादित, समीर होते तो कहते बध...लीजिए नीलिमा हों गईं विवादित, समीर होते तो कहते बधाई मैं नहीं ही कहूँगा वरना प्रियंकर 'हादसे पर ठिठोली' करार दे देंगे-<BR/>चिट्ठा चर्चा का कहना है <BR/>और निलिमा द्वारा पेश का करूँ सजनी आये न बालाम यह पोस्ट विवादित होने की पूरी काबिलियत रखती है और अच्छा हुआ हमारे पहुँचने के पहले हमारे प्रिय प्रियंकर जी हाजिर थे वरना हम तो आदतन कह आये होते, वाह क्या भाव हैं :)<BR/>प्रियंकर जी कहे:<BR/><BR/><BR/><BR/><BR/>आतंकवादी घटना ...........<BR/><BR/><BR/><BR/>चलो, यह सब तो होता रहता है, निपट ही जायेगा. पहले भी इससे बड़े बड़े विवाद निपट गये मगर मैं अभी शोध कर रहा हूँ कि मसिजिवी ने किस तरह जवाब दिया. इसी में डूबा हूँ.<BR/><BR/><BR/>तो भाईसाहब (भैये से आहत दिखे आप....:) क्षमा, आहत करने का इरादा नहीं था) वैसे हम आपकी कविताओं के प्रशंसक हैं इसलिए आपके संवेदनाक्षम होने में हमें किसी किस्म का संदेह नहीं है। न ही पी एचडी पर व्यंग्य की कोई जरूरत क्योंकि वह तो हमने खुद ही कर लिया था। पी एचडी एक गलती थी अब हो गई तो हो गई....<BR/><BR/>बाकी इसी पोस्ट से बाकी का उत्तर भी<BR/><BR/>....खैर छोडिए भी .... .....बडे बडे पंडितों से, पढने लिखने वाले समझदारों से,ताकत के मुंशियों से ,इससे- उससे सबसे पूछते फिरे .................ठीक-ठीक तो कोई भी नहीं बताता है<BR/><BR/>मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि नीलिमाजी ने इस मिर्ची गद्यांश ( पता नहीं मैं कब सीखूँगा, फिर पुल्लिंग में ईकारांत विशेषण लगा दिया...सरजी सॉरी) में ही प्रियंकरजी को संबोधित कर दिया इसलिए अब गायब हैं।मसिजीवीhttps://www.blogger.com/profile/07021246043298418662noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-75337007652867521162007-02-21T16:31:00.000+05:302007-02-21T16:31:00.000+05:30भैये मसिजीवी, क्रोध में आदमी मुम्बइया फ़...भैये मसिजीवी,<BR/> क्रोध में आदमी मुम्बइया फ़िल्म में गाता हो तो गाता हो . असली जिंदगी में तो संयत से संयत आदमी भी क्रोध में चिल्लाता ही है . ठुमरी तो बिल्कुल नहीं गाता . <BR/><BR/>आपके लिये एक और सूचना है कि 'गद्य' पुल्लिंग है अतः आपकी टिप्पणी में गद्य के पहले इकारांत विशेषण 'कवितामयी' और 'विषादमयी' थोड़े अटपटे लग रहे हैं . आशा है सुधार करेंगे. आप हिंदी के पीएच.डी. हैं इसलिए लिख रहा हूं वरना ऐसे सौ दोष माफ़.<BR/><BR/>हर तरह की भाषा का अपना व्यवहार क्षेत्र (डोमेन)होता है . चाहे वह अखाड़े की भाषा हो,कारखाने की भाषा हो,कार्यालय की भाषा हो या फिर साहित्य की भाषा . आतंकवादियों के प्रति क्रोध को 'ठुमरी' और 'निर्गुण' के माध्यम से अभिव्यक्त करना अभी हिंदी जगत में नया है इसलिये थोड़ा अटपटा लगा . वरना भैये जिसके जो जी में आये करे अपन को क्या . हां!, लगता है अब इस नई विधा के जन्म पर सोहर गाने के दिन आ गये हैं.<BR/><BR/>अरे पर इस सब बातचीत में चिट्ठाकार जी कहां हैं ? उनका क्या कहना है?Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-57471444160530764832007-02-20T15:20:00.000+05:302007-02-20T15:20:00.000+05:30ओह ।।। प्रियंकरभैये अगर क्रोध केवल मुगदल और गदे की...ओह ।।। प्रियंकर<BR/>भैये अगर क्रोध केवल मुगदल और गदे की भाषा में ही व्यक्त हो पाता तो भाषा अखाड़ों में जन्मती हृदयों में नहीं।<BR/>'.....कहते हैं आधी सदी से भी पहले एक बार उसके आने का शोर हुआ था--आधी रात के सन्नाटे में चुप्पी साधे हम उसकी राह तकते रहे ...सुबह हुई...और किसी खुमारी में हम यह समझ बैठे कि वह आया था....'<BR/><BR/>कौन सा बालम होगा ? इतने मर्मस्पर्श्सी गद्य की चीरफाड़ कर उसकी मार्मिकता के संघात का पाप मुझ पर न चढ़ाओं। बस समझ लो यहॉं भी क्रोध ही है बस उतना मॉंसल नहीं है, वेसे वियोग शृंगार भी उतना मॉंसल नहीं ही होता।मसिजीवीhttps://www.blogger.com/profile/07021246043298418662noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-2320054230486057652007-02-20T13:57:00.000+05:302007-02-20T13:57:00.000+05:30आतंकवादी घटना जिस पर क्रोध आना चाहिये और जिसकी कड़े...आतंकवादी घटना जिस पर क्रोध आना चाहिये और जिसकी कड़े-से-कड़े शब्दों में तीव्र भर्त्सना होनी चाहिये उसके संदर्भ में आपको विप्रलम्भ श्रंगार की भावुकता से भरी ठुमरी का मुखड़ा याद आ रहा है यह देख कर कुछ अज़ीब सा लगा . आपका शीर्षक 'पोस्ट' और 'पोस्ट के साथ लगी फोटो' के साथ कतई न्याय नहीं करता. पता नहीं आपने इस घटना को किस तरह लिया और लिखा है .Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-22491724145653344232007-02-20T11:38:00.000+05:302007-02-20T11:38:00.000+05:30bahut khub,kavitamayi, vishadmayi gadyajaari rahei...bahut khub,<BR/><BR/>kavitamayi, vishadmayi gadya<BR/>jaari raheinमसिजीवीhttps://www.blogger.com/profile/07021246043298418662noreply@blogger.com