tag:blogger.com,1999:blog-36523763.post6140331430069538590..comments2023-08-24T19:38:13.436+05:30Comments on आँख की किरकिरी: पल्लू के साए में राष्ट्रपति भवनNeelimahttp://www.blogger.com/profile/14606208778450390430noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-44229871025244056192007-07-27T18:07:00.000+05:302007-07-27T18:07:00.000+05:30ही ही ही ही ...सुनिये ...आप नाराज़ मत हुआ कीजिये......ही ही ही ही ...<BR/>सुनिये ...आप नाराज़ मत हुआ कीजिये....<BR/>मुझे अच्छा नहीं लगता ....<BR/>हान वैसे लेख अच्छा लगा :)Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-56462567850401041142007-06-21T05:12:00.000+05:302007-06-21T05:12:00.000+05:30नीलिमा जीक्या टिका करके धोया है, मज़ा आ गया. इसे क...नीलिमा जी<BR/>क्या टिका करके धोया है, मज़ा आ गया. इसे कहते हैं तल्ख़ी-तेवर और त्यौरियाँ. क्या बात है मज़ा आ गया. यही हमारी राष्ट्रपति? जी हैं जिन्होंने परदे के बारे में कमेंट करके बवाल मचा दिया है और ख़ुद बरसों से सिर पर पल्लू रखकर परंपरा का पालन कर रही हैं. साड़ी एक बेहतरीन पोशाक है लेकिन उसे सुष्मिता सेन की तरह भी तो पहना जा सकता है. ख़ैर, शशि थरूर वाला लेख तो आपने पढ़ा होगा, साड़ी के बारे में और भी बहुत कुछ है लिखने को, लिखिए कभी. आनंद आया, साधुवाद.अनामदासhttps://www.blogger.com/profile/10451076231826044020noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-9374712082255831192007-06-20T20:33:00.000+05:302007-06-20T20:33:00.000+05:30जनता की नजर में चमकने के लिए सब होता है जी, नेतागि...जनता की नजर में चमकने के लिए सब होता है जी, नेतागिरी के लिए जींस-टीशर्ट पहनने वाले जवान छोरे कुर्ता-पाजामा पहनने लगते हैं। हमारे यहाँ के एमएलए जवान जहान बंदे हैं, चुनाव के दिनों में और विधान सभा के दिनों कुर्ता-पाजामा पहनते हैं बाकी दिनों जींस-टीशर्ट आदि। यही हाल और जगह भी है, राहुल गांधी को देख लो।<BR/><BR/>इसी ढोंग की खातिर ये लोग मंदिर, मजारों, गुरुद्वारों में मत्था टेकने जाते हैं।ePandithttps://www.blogger.com/profile/15264688244278112743noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-68759118792979978722007-06-20T16:49:00.000+05:302007-06-20T16:49:00.000+05:30प्रजावत्सल भगवान राम ने तो एक धोबी मात्र के कहने प...प्रजावत्सल भगवान राम ने तो एक धोबी मात्र के कहने पर अपनी अग्निपरीक्षित सती सीता को भी त्याग दिया था। इन्दिरा गांधी जी भी जहाँ, जिस प्रान्त में जाती थीं, वहाँ की वेष-भूषा धारण करती थीं, अपने भाषण की एकाध पहली पंक्तियाँ वहाँ की भाषा में देती थीं। यह सब जनता में लोकप्रियता हासिल करने के सरल उपाय हैं प्रजातन्त्र में। और अनिवार्य भी।<BR/><BR/>हम अपनी वेष-भूषा को सरलता से बदल सकते हैं। किन्तु करोड़ों लोगों की मानसिकता, भावनाओं तथा ज्ञान को नहीं। सैंकड़ों वर्षों तक लाखों करोड़ रुपयों की लागत से वैज्ञानिक शिक्षा देने पर भी शायद ही सफलता मिले...<BR/><BR/>आज भी करोड़ों की संख्या में आम भारतीय जनता की जिस वेष-भूषा, आचरण के प्रति आस्था है, यदि उसी में सजकर कैमरे के सामने आया जाए तो कितना सस्ता सौदा है, टके भर में सौ मन सोना जैसा...<BR/><BR/>यदि 110 करोड़ में से 90 करोड़ मल्लिका शेरावत की वेषभूषा के प्रति अधिक आस्था रखें, तो राजनेतागण उसे भी तत्काल अपना लेंगे शायद...हरिरामhttps://www.blogger.com/profile/12475263434352801173noreply@blogger.com