tag:blogger.com,1999:blog-36523763.post1433273452233143730..comments2023-08-24T19:38:13.436+05:30Comments on आँख की किरकिरी: सिर्फ चरसी लौंडे लौंडियां ही नहीं हैं देश में.....Neelimahttp://www.blogger.com/profile/14606208778450390430noreply@blogger.comBlogger17125tag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-15952765907918218792007-05-28T10:09:00.000+05:302007-05-28T10:09:00.000+05:30अच्छा विषय है..और चिंतन भी..ऊपर से नई पीढी की सोच ...अच्छा विषय है..और चिंतन भी..ऊपर से नई पीढी की सोच को उजागर करती कलमकारी...जिस पर खुद ब खुद ध्यान जाकर ठहर जाता है..विजेंद्र एस विजhttps://www.blogger.com/profile/06872410000507685320noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-34275722289437177652007-05-23T13:47:00.000+05:302007-05-23T13:47:00.000+05:30आपकी बात से असहमती का सवाल ही नही उठता। पर दर्द जह...आपकी बात से असहमती का सवाल ही नही उठता। पर दर्द जहां पर होता है, निगाह वहां जाती ही है। आपने इस बारे में हमारा ध्यान खींचा, इसके लिये आप बधाई की हकदार हैं।Dr. Zakir Ali Rajnishhttps://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-670042571090537792007-05-04T21:26:00.000+05:302007-05-04T21:26:00.000+05:30Thanks fot you work and have a good weekendThanks fot you work and have a good weekenddavid santoshttps://www.blogger.com/profile/08976825493652779441noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-85172798719664963492007-05-03T01:31:00.000+05:302007-05-03T01:31:00.000+05:30मूल प्रश्न है भारत बनाम इंडिया का.स्पष्ट तौर पर ह...मूल प्रश्न है भारत बनाम इंडिया का.<BR/>स्पष्ट तौर पर हमारे यहा पूरा समाज दो हिस्सोँ मेँ बंटा हुआ है.<BR/>जाहिर है 'चरसी...'इंडिया वर्ग से आते है,बल्कि वहाँ के भी इलीट वर्ग से.<BR/>भारत अभी विकास की दौड़ मँ है.हा, कुछ लोग यहा भी शौर्ट कट ढ़ूंढते हैँ.<BR/> कुछ तो भारत वर्ग से निकल कर इंडिया वर्ग मेँ शामिल हुए है.यही वो वर्ग है जो सबसे ज्यादा पश्चिम परस्त है.<BR/><BR/>भारत बनाम इंडिया का यह संघर्ष जारी रहेगा और यह विभेद आसानी से मिटने वाला नही है.<BR/><BR/>अरविन्द चतुर्वेदी<BR/>http://bhaarateeyam.blogspot.comडा.अरविन्द चतुर्वेदी Dr.Arvind Chaturvedihttps://www.blogger.com/profile/01678807832082770534noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-80846240236210430382007-05-02T23:06:00.000+05:302007-05-02T23:06:00.000+05:30अच्छा लिखा है ।आपका लेख यही दर्शाता है कि युवा अपन...अच्छा लिखा है ।आपका लेख यही दर्शाता है कि युवा अपने आसपास के परिवेश से कितने प्रभावित होते हैं । शायद पर्वतों की गोद में रहने वाले ये युवा, महानगरीय जिंदगी में प्रवेश करते तो वो भी उस संस्कृति से अपने आप को मुक्त ना कर पाते ।Manish Kumarhttps://www.blogger.com/profile/10739848141759842115noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-26400966079667452012007-05-02T21:28:00.000+05:302007-05-02T21:28:00.000+05:30अच्छा चिंतन है और सुंदर प्रस्तुतिकरण.अच्छा चिंतन है और सुंदर प्रस्तुतिकरण.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-3082018352219081162007-05-02T19:46:00.000+05:302007-05-02T19:46:00.000+05:30जब अखबारों और टीवी पर सनसनी, वारदात, लड़ाई, झगड़े, ह...जब अखबारों और टीवी पर सनसनी, वारदात, लड़ाई, झगड़े, हिन्दू- मुसलमान, हिन्दू ईसाई के झगड़े आदि समाचार देखते हैं तब ऐसे में इस तरह की बातें मन को एक सुखद अहसास देती है, और उम्मीदें जगाती है कि अभी दुनियाँ में बहुत कुछ अच्छा बचा है। <BR/>धन्यवाद नीलीमाजीSagar Chand Naharhttps://www.blogger.com/profile/13049124481931256980noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-6660521636937157512007-05-02T17:53:00.000+05:302007-05-02T17:53:00.000+05:30अच्छा लेख है। प्रकृति का सान्निध्य सम्वेदनशीलता को...अच्छा लेख है। प्रकृति का सान्निध्य सम्वेदनशीलता को जन्म देता है। शहरी युवा उससे कट कर "स्व" के क्षुद्र खोल में ही जी रहे हैं।Pratik Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/02460951237076464140noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-25387829439507616642007-05-02T16:29:00.000+05:302007-05-02T16:29:00.000+05:30"...पर्वतः स्तन मण्डले, विष्णु पत्नी नमस्तुभ्यं......"...पर्वतः स्तन मण्डले, विष्णु पत्नी नमस्तुभ्यं..." पर्वत ही माता लक्ष्मी के स्तनमण्डल हैं, जिनसे दुग्धधार रूप गंगाएँ बहकर समग्र संसार का पालन करती हैं। पर्वतों में लक्ष्मी भरी है। आज विश्व में 'हेल्थ इण्डस्ट्री' सबसे अधिक कमाऊ पूत है। पर्वतीय क्षेत्रों में यदि "औषधीय वनस्पतियों" की खेती के काम में इन युवकों को लगाया जाए तो इनको भी रोजगार मिलेगा और राष्ट्रीय आय भी बढ़ेगी तथा लोगों को अच्छा स्वास्थ्य...हरिरामhttps://www.blogger.com/profile/12475263434352801173noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-6039092338737994922007-05-02T16:27:00.000+05:302007-05-02T16:27:00.000+05:30This comment has been removed by the author.हरिरामhttps://www.blogger.com/profile/12475263434352801173noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-23010904238921665852007-05-02T16:25:00.000+05:302007-05-02T16:25:00.000+05:30विचारों को आपने अच्छी तरह से अभिव्यक्त किया है पर ...विचारों को आपने अच्छी तरह से अभिव्यक्त किया है पर ये शीर्षक चुराने की क्या आवश्यकता पड़ गयी, कुछ विशेष प्रभाव डालने के लिये क्या...RC Mishrahttps://www.blogger.com/profile/06785139648164218509noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-9996924625779655252007-05-02T16:17:00.000+05:302007-05-02T16:17:00.000+05:30उन दो तस्वीर मे हम तुम लोग है सब से नीचे वाली तस्व...उन दो तस्वीर मे हम तुम लोग है सब से नीचे वाली तस्वीर मै पेज३ वाले लोग हैAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-2369585507257560532007-05-02T16:14:00.000+05:302007-05-02T16:14:00.000+05:30नीलिमा जी पहाड़ का युवक देशभक्त है ही इसमें कोई शक ...नीलिमा जी पहाड़ का युवक देशभक्त है ही इसमें कोई शक नहीं। गढ़वाल राइफल्स पुराने समय से ही अपनी शूरता के लिए प्रसिद्ध रही है। लेकिन सेना में भर्ती होने का एक और कारण है बेरोजगारी। पहाड़ी युवकों के पास पढ़लिखकर एक ही रास्ता है, नौकरी तलाशने बाहर जाओ, कुछ फौज में भर्ती हो जाते हैं।<BR/><BR/>अगर वहाँ बेरोजगार न होती तो आज मैं अपनी जन्मभूमि में होता। :(<BR/><BR/>इस विषय में विस्तार से फिर कभी।ePandithttps://www.blogger.com/profile/15264688244278112743noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-49189386615319320342007-05-02T15:35:00.000+05:302007-05-02T15:35:00.000+05:30ऐसी बातें दिल को सुकून देती है नयी पीढी पर हमारे व...ऐसी बातें दिल को सुकून देती है नयी पीढी पर हमारे विश्वास को जगाये रखती है नही तो यहां विश्वास रोज टूटता है कभी टीवी देखकर तो कभी समाचार पत्र पढकर तो कभी पडोसी से सुनकर, धन्यवाद दोनो पहलू की शव्दमय चित्रमय प्रस्तुति के लिए36solutionshttps://www.blogger.com/profile/03839571548915324084noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-45453226801893126722007-05-02T14:39:00.000+05:302007-05-02T14:39:00.000+05:30पहाडी परिवेश में रहने वाले युवजन, जो पहाडों को अपन...पहाडी परिवेश में रहने वाले युवजन, जो पहाडों को अपनी जननी मानते हुए, अभावों से युक्त जीवन जीने को मजबूर हैं। इनके लिये दो जून की रोटी का जुगाड करने का प्रबन्ध करने के बारे में सोचना चाहिये नही तो वह दिन दूर नही कि जब चरस शहर से बस, रिक्शा, तांगा पकड कर इन पहाडों में पहुंच जाए।संतोष कुमार पांडेय "प्रयागराजी"https://www.blogger.com/profile/10148309928175371052noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-85421611007215072712007-05-02T13:39:00.000+05:302007-05-02T13:39:00.000+05:30वे सिर्फ बाजार के इस्तेमाल के लिए पैदा किए गए जीव ...वे सिर्फ बाजार के इस्तेमाल के लिए पैदा किए गए जीव हैं ..या बाज़ार के द्वारा इस्तेमाल के लिये पैदा किये गये.. यही सोचने का विषय है.. <BR/><BR/>अच्छा ध्यानाकर्षण किया है आपने..अभय तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-3502744490336081092007-05-02T13:19:00.000+05:302007-05-02T13:19:00.000+05:30नीलिमा जी ,काफी अच्छा लिखा है आपने। सचमुच दिल्ली ज...नीलिमा जी ,<BR/>काफी अच्छा लिखा है आपने। सचमुच दिल्ली जैसे शहरों की युवा पीढी बाज़ार ने इस तरह से पैदा की है कि वह अपनी मूल संवेदनाओं और सामाजिक सरोकारों से कट गयी है। "स्थूलता की संस्कृति" इसे ही तो कहते हैं।विकास दिव्यकीर्तिhttps://www.blogger.com/profile/17366860051397972408noreply@blogger.com