tag:blogger.com,1999:blog-36523763.post1429062578103237154..comments2023-08-24T19:38:13.436+05:30Comments on आँख की किरकिरी: मेरा उलझा फेमेनिज़्म और चुगली करती गोल रोटियांNeelimahttp://www.blogger.com/profile/14606208778450390430noreply@blogger.comBlogger10125tag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-88541139830479503262008-02-14T16:33:00.000+05:302008-02-14T16:33:00.000+05:30मन के भीतर की तमाम गलियों -पगडंडियों से आपकी गुजरन...मन के भीतर की तमाम गलियों -पगडंडियों से आपकी गुजरने की ख्वाहिशों को सलाम . कई सालों पहले कृष्णा सोबती के उपन्यास मित्रों मरजानी की मित्रों याद आ गई जिसे उस समय अश्लीलता के सम्मानों से नवाजने की कोशिश की गई थी मगर आज मित्रों की एक पूरी पीढ़ी खड़ी हो गई है लेकिन पुरुषों को अभी इंसान बनने के लिए लंबा सफर तय करना है . इस तरह की कोशिशें आइना दिखने का बेहतर प्रयास है .mahinder palhttps://www.blogger.com/profile/03781830070416241947noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-22315251962494412362008-02-02T20:21:00.000+05:302008-02-02T20:21:00.000+05:30मामला बहुत उलझा हुआ है इसका कोई दो टूक हल आप भी नह...मामला बहुत उलझा हुआ है इसका कोई दो टूक हल आप भी नहीं खोज रही होंगी, मिलेगा भी नहीं. हाँ, मुद्दे के विस्तार देने की ज़रूरत है, अभी तो लोगों को ऐसी बातें सुनने की भी आदत नहीं है. और लिखिए.अनामदासhttps://www.blogger.com/profile/10451076231826044020noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-22113716748935319732008-02-02T18:37:00.000+05:302008-02-02T18:37:00.000+05:30स्त्री का आधुनिका अथवा सशक्त होना या स्वातन्त्र्य-...स्त्री का आधुनिका अथवा सशक्त होना या स्वातन्त्र्य- चेतना से समन्वित होना न तो उसके पहरावे,न आधुनिक जीवनशैली या न ही रोटी बेलने, न बेलने की निपुणता से पता चलता है। कोई साड़ी में भी मॊड व चेतना-सम्पन्न हो सकता है व कोई टॊप- जीन्स में भी नहीं। इसी प्रकार रोटी ठीक-ठाक न बेलने वाली लड़की या महिला भी बहुत पर-निर्भर,पराधीन-चेतना से भरी या कमजोर,परतन्त्र हो सकती है। इसी प्रकार सही रोटी बेलती स्त्री भी स्वतन्त्र, आत्म-निर्भर, सशक्त हो सकती है। किसी भी ‘स्किल’को व्यक्ति-चेतना की पैमाइश का पैमाना मानना दो बिल्कुल अलग वस्तुओं को एक साथ बिठाने जैसा है। .....और इस प्रकार के तर्क स्त्री-विमर्श की दिशा को भ्रमित करते हैं। स्त्री भी अपने को तोलने के भ्रान्त उपकरणों में भटकती रह सकती है।<BR/><BR/>http://kvachaknavee.spaces.live.com<BR/>http://360.yahoo.com/kvachaknaveeAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-44084352526017339412008-02-02T18:25:00.000+05:302008-02-02T18:25:00.000+05:30क्या सिर्फ गोल रोटियां ही अच्छी स्त्री होने की कसौ...क्या सिर्फ गोल रोटियां ही अच्छी स्त्री होने की कसौटी हैंनीलिमा सुखीजा अरोड़ाhttps://www.blogger.com/profile/14754898614595529685noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-63443921614108794202008-02-02T17:01:00.000+05:302008-02-02T17:01:00.000+05:30नीलिमा तुम तो बहुत ही असरदार तरीके से गहरी बात ,बा...नीलिमा तुम तो बहुत ही असरदार तरीके से गहरी बात ,बातों-बातों में कह गयी ।anuradha srivastavhttps://www.blogger.com/profile/15152294502770313523noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-75202757970805812032008-02-02T15:57:00.000+05:302008-02-02T15:57:00.000+05:30स्री या दलित होने का इतना बोझिल एहसास कहीं न कहीं ...स्री या दलित होने का इतना बोझिल एहसास कहीं न कहीं हमारी सामाजिक कमजोरियों और आर्थिक परनिर्भरता की उपज है। आपने बड़े आहिस्ते-से एक गंभीर प्रश्न को कंफ्यूजन की हद तक तान मारा है। शब्दों की रवानी के साथ विचारों की स्पष्टता किसी निष्कर्ष या सिरे तक ले जाती तो ज्यादा बेहतर होता।सीता खानhttps://www.blogger.com/profile/11947430108519365490noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-39398538909649995682008-02-02T15:51:00.000+05:302008-02-02T15:51:00.000+05:30मैने तो कई बार सोचा कि महिला नहीं बन सकता तो महिला...मैने तो कई बार सोचा कि महिला नहीं बन सकता तो महिला का काम तो कर ही सकता हूं। अपनी पत्नी से भी कहा कि आप नौकरी करें और मैं घर का सारा काम संभालता हूं। वह योग्य हैं लेकिन बाहर काम ही नहीं करना चाहती। कहती हैं कि जहां हूं सुखी हूं। आप अपना काम देखिए। पागल हो रहे हैं क्या?<BR/>दुख है कि काम को लेकर ही सारा बवाल है। मैं देखना भी चाहता हूं काम करके लेकिन लगता है कि सपना पूरा नहीं होगा।Satyendra PShttps://www.blogger.com/profile/06700215658741890531noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-21796926748740725992008-02-02T15:31:00.000+05:302008-02-02T15:31:00.000+05:30अच्छा लिखा. वैसे मैं काफी अच्छी गोल रोटियां बेल ...अच्छा लिखा. वैसे मैं काफी अच्छी गोल रोटियां बेल लेता हूं.azdakhttps://www.blogger.com/profile/11952815871710931417noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-88810537697842336362008-02-02T15:03:00.000+05:302008-02-02T15:03:00.000+05:30और जिन स्त्रियों को खिचडी बनाना नहीं आता उन्हे तो ...और जिन स्त्रियों को खिचडी बनाना नहीं आता उन्हे तो कुछ भी नहीं आता । मेरे अविवाहित रहने मे खिचडी की भूमिका सबसे अहम हैAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-36523763.post-25531000574886938152008-02-02T14:27:00.000+05:302008-02-02T14:27:00.000+05:30कहना होगा अब कि स्त्री की चिंता करना छोड दें \ वह ...कहना होगा अब कि स्त्री की चिंता करना छोड दें \ वह जैसी है खुद को सम्भाल सकती है । और ऐसी सलाहों व संरक्षण के बिना बेशक बेहतर कर सकती है । परमपरागत छवि बनाए रखने की अपेक्षा कहीं ज़रूरी है इस छवि के भंजन का प्रयास करना । वह भी सचेष्ट । बहुत हुई लर्निंग । अब ज़रूरत है डीलर्निंग की ।सुजाताhttps://www.blogger.com/profile/10694935217124478698noreply@blogger.com