Monday, June 15, 2009

शास्त्री फिलिप जी से मुलाकात : सारथी ही तो हैं वे

बीते महीने की पंद्रह तारीख को सपरिवार मैं केरल और लक्ष्यद्वीप की यात्रा पर थी ! दिल्ली से हवाई जहाज की मात्र चार घंटे की यात्रा के बाद जिस ज़मीन पर हम थे उसका रंग हरा था और नाम था देवभूमि केरल - गॉड्स ओन कंट्री ! कोचीन हवाई अड्डा ! बस कंवेयर बेल्ट से आता हुआ अपना सामान उठाना था और बाहर स्वागत में खडे ट्रेवल एजेंट के साथ गाडी तक जाना था ! बाकी सब इंतज़ाम पहले से ही तय थे !

गाडी में बैठते ही हमने शास्त्री जी को फोन किया और अपने पहुंच जाने की इत्तला दी ! मिलने की जगह तय हुई हमारे ठहरने की जगह होटल सी लॉर्ड ! रात आठ बजे का समय तय हुआ था - ठीक दो घंटे बाद का ! दिल्ली से हजारों किलोमीटर दूर उस जगह पर हमारे कोई परिचित रहते हैं और उनसे पहली बार वर्चुअल स्पेस से बाहर मुलाकात होगी - हम रोमांचित थे ! ठीक आठ बजे होटल की लॉबी में दरवाज़ा खोल कर प्रवेश करते हुए शास्त्री जी ने हमें और हमने शास्त्री जी को पहली ही नज़र में पहचान लिया ! मसिजीवी से जीभर गले मिलते हुए और मुझसे आत्मीय अभिवादन का आदान -प्रदान करते हुए शास्त्री जी बेहद चिर -परिचित लगे ! अचंभित और रोमांचित होते हुए उन्होंने दो तीन बार इस बात को अलग अलग अंदाज़ में दोहराया " तुम लोग तो बहुत छोटे हो , बिल्कुल बच्चे हो , जैसे फोटो में दिखते हो उससे दस साल छोटे लगते हो ... " ! मैंने कहा कि लेकिन आप जैसे फोटो में दिखते हैं वैसे ही दिखते हैं - उत्साह , जीवंतता, तेज और फुर्ती से भरे हुए !

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शीशे की तरह आर-पार देखे जा सकने वाला उनका दिल और चेहरा ! ज़िदगी को लेकर सकारात्मक नज़रिया , विवादित मुद्दों और अपनी बेहद मौलिक मान्यताओं पर उठाए गए मसिजीवी के सवालों का बेहद ईमानदार ,साफ और सहज उत्तर ! न थकने वाले , और सक्रियता में जीवन का सार ढूंढने वाले शक्स हैं शास्त्री जी !

लॉबी  के चिकने फर्श पर तेज़ी से भाग भागकर फिसलने और शोर मचाने वाले हमारे दोनों बच्चों से शास्त्री जी की बातचीत में उनका बालसुलभ हृदय झलक रहा था ! ज़िदगी की व्यर्थ राजनीति , संसाधनों को जुटाने की मारामारी और खोखली चमक से दूर सादगी और निष्टा का जीवन जीने वाला व्यक्ति ही पहली मुलाकात में छोटे बच्चों के इतने नज़दीक पहुंच सकता है !  उनके भेंट किए ऎतिहासिक महत्व के चांदी सिक्के मेरे बच्चों की अब तक की सबसे अमूल्य निधि हैं जिन्हें वे दिन में कई बार देखते और सहेजते हैं  ! बारह दिन के घूमने जाने की भागदौड में हम शास्त्री जी के लिए कोई भेंट नहीं ले जा सके ! शास्त्री जी को पुराने ऎतिहासिक सिक्कों के संग्रह का शौक है !  पुरातत्वीय महत्व के पांच सिक्के शास्त्री जी ने बहुत श्रम से जुटाए थे ! इनमें से एक उन्होंने अपने पास रखा तथा एक-एक सिक्का अपने बेटे आनंद तथा आशा को और हमारे बच्चों प्रभव तथा मिष्टी को दिया है !

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जिस अपनत्व को शास्त्री जी में पाया वह इतना सहज और गहरा था कि मैं मुग्ध थी ! उनकी पत्नी शांता जी से मुलाकात नहीं हो सकी पर लगा उनसे भी हम मिल लिए हों !  शास्त्री जी ने कहा कि शांता जी जी कि इच्छा थी कि हम उनके घर पर ही जाते पर उन्होंने हमारे कार्यक्रम में समय, दूरी और घंटों का हिसाब लगाकर देखा पर मुलाकात उनके यहां संभव नहीं हो पा रही थी ! हम कोचीन शाम पांच पहुंचे थे अगली सुबह हमें अगाती ( लक्षयद्वीप) के लिए हवाई जहाज़ में सवार होना था ! हमें काफी खेद हुआ क्योंकि इस मुलाकात और कोचीन को देखने के लिए हमारे पास बहुत कम समय था !

शास्त्री जी ने बताया कि उनके बेटे आनंद को बहुत दुख हुआ जब उन्हें पता चला कि हम होटल सी लॉर्ड में ठहर रहे हैं ! किसी समय कोचीन का सबसे शानदार होटल अब व्यसन करने वाले ग्राहकों की वजह से अपनी गरिमा में गंवा चुका है ! यदि उन्हें पहले पता होता कि हम वहां ठहर रहे हैं तो वे हमें कोई अन्य सुझाव दे पाते !

शास्त्री जी से देर रात ग्यारह बजे तक बातें होती रहीं ! मैंने हिन्दी, हिन्दुस्तान एवं ईसा के चरणसेवक शास्त्री फिलिप का बौद्धिक शास्त्रार्थ चिट्ठा ही पढा था ! आज उनसे मिलने का गौरव प्राप्त हो रहा था ! मैं ज़्यादा मुखर नहीं थी ! मसिजीवी और शास्त्री जी की गर्मजोशी ,आत्मीयता से चल रहे संवादों को एक मुग्ध श्रोता की तरह सुन रही थी ! मानो एक दिव्य अनुभव से गुज़र रही हूं ! मैं एक कैमरा हो गई थी !  उस अविस्मरणीय बातचीत के तालमेल ,लय और उत्साह में एक चमक थी ! जब मैंने कहा कि " आसपास जब टुच्चेपन की बहार हो ऎसे में आप जैसे व्यक्तित्व से मिलना बहुत सुखकारी है ' तो शास्त्री जी उन्मुक्त हंसी हंसे ! IMG_2134

ईसाईत्व , धर्म ,मनुष्यत्व ,  हिंदी भाषा के प्रति प्रेम , उनकी गहरी देश -निष्ठा , राष्ट्रीय संस्कृति के लिए प्रतिबद्धता ,ब्लॉगरी में आस्था ,उनका अध्यवसाय , केरल की जलवायु , आगे का कार्यक्रम ..अनेक बातें हुईं ! सबका पता दे पाना यहां एक पोस्ट में कठिन है ! प्राणपण से इन उद्देश्यों के लिए लगे हुए इस कर्मठ योद्धा से मिलकर लगा कि नौकरी और निजता के उद्देश्यों से ऊपर उठकर किसी महत सामाजिक उद्देश्य के लिए जीना ही असली जीना है ! उनके सिद्धांत और जीवन में जैसी गहरी एकता दिखी वैसी एकता आज के ज़माने में मिलना बहुत कठिन है ! उनसे बातचीत दिल से दिल की बातचीत थी ! पुराने सगे मित्रों सी ! खोट , दुराव ,      छिपाव , दुराग्रह राजनीति   नहीं केवल निश्चल आत्मीय संवाद ! IMG_2136IMG_2137

शास्त्री जी ने दो अच्छी सूचनाएं दीं ! पहली यहाँ कि उनका चिट्ठा आज से सारथी.इंफो पर चला गया है और दूसरा यह कि जल्द ही उनकी बिटिया का ब्याह होने वाला है ! वे कहने लगे कि ' अब तो जल्द ही उनका घोंसला सूना हो जाएगा ..किंतु तुरंत ही प्रभव और मिष्टी की ओर देखकर बोले कि कोई बात नहीं इन बच्चों की उमर अभी बहुत छोटी है ये और ज़रा से बडे हो जाएं तो अकेले ही यहां हमारे घोंसले में आ जाया करेंगे .मैं हवाई अड्डे से इन्हें ले लिया लूंगा..! वे कह रहे थे कि आगे जब कभी हमें केरल आना हो तो उनके घोंसले में ही रुकें ,होटल में नहीं !'

पिछ्ले दो तीन महीने से ब्लॉगिंग से मन उठा सा गया था लग रहा था कि क्या पाते हैं हम यहां अपने को नष्ट करके  ....केवल व्यक्तिगत जीवन पर प्रहार ..और कटुता और राजनीति के गर्द में सनना ही होता है क्या ! पर शास्त्री जी जैसे व्यक्तित्व से मिलकर लगा कि यहां रहना व्यर्थ कहां रहा बहुत कुछ तो मिल रहा है जो अन्यथा कैसे मिलता.... ?