Thursday, July 17, 2008

जेंडर इनइक्वैलिटी - डोंट हाइड विहाइंड साइंस

 

ab inconvenienti  ने विज्ञान की लाठी से स्त्रीवाद के कई अहम सवालों को एकसाथ भांज कर रख दिया है !सुजाता ने चोखेर बाली में इन मान्याताओं का खंडन करते हुए मजबूत तर्क दिया है ! जिन भिन्नाताओं को वे जेंडर आधारित साबित कर रहे हैं वे शुद्धत: विज्ञान आधारित हैं और नारीवाद का कोई भला नहीं करतीं ! कई वैज्ञानिक तथ्यों की दलील उन्होंने दी है ! इन तथ्यों से निकलने वाले नतीजे स्त्री की मौजूदा हालत को स्बाभाविक सिद्ध करते हैं !स्त्री के स्त्रीत्व और पुरुष के पुरुषत्व को जस्टीफाइड और नैचुरल मानते हुए ab inconviventi लिखते हैं -

"तो भी या सीधा सा सच सामने है:   पुरूष होना और स्त्री होना यानि मानव संरचना का अलग पुर्जा होना है, अदला बदली कम से कम मानव द्वारा तो मुश्किल है.'

दरअसल ab inconvenienti   की दलीलें स्त्रीवाद के सामाजिक संघर्ष को वैज्ञानिक प्रमाणों से निरुत्तर करने का प्रयास हैं पर उनकी इस मान्याता से कई भ्रम पैदा होते हैं और कई सामाजिक शोषण की परंपराओं के पैटर्न सही सिद्ध हो जाते हैं -----

जॆंडर की अवधारणा सामाजिक है ! आप वैज्ञानिक प्रमाणों के आधार पर इस सामाजिक अवधारणा के साथ घपला नहीं कर सकते !

नारीवाद सेक्सुऎलिटी की अदला बदली या संक्रमण की कामना नहीं है ! जैसा कि आप मान रहे हैं ! नारीवाद अवसरों और अधिकारों की समान रूप से ऎक्सेसिबिलिटी का संघर्ष है !

स्त्रीवाद स्त्री पुरुष की जड भूमिकाओं में फ्लेक्सिबिलिटी की बात करता है ! आप विज्ञान द्वारा इन भूमिकाओं को और अधिक जड सिद्ध कर रहे हैं !

ममता वर्सेस आक्रामकता , शक्ति वर्सेस कोमलता जैसे समाजीकरण के फंदों से स्त्री पुरुष दोनों की मुक्ति ज़रुरी है न कि विज्ञान के सहारे इन्हें और मजबूत नहीं किया जाना चाहिए !

लिंग आधारित भूमिकाओं को समाज का आधार बानाना लिंग आधारित शोषण को जस्टीफाई करना ही है ! स्त्री की शारीरिक क्षमता को पुरुष से कम आंकने के पीछे विज्ञान का आश्रय लेना यौन हिंसा और घरेलू हिंसा के आधारों को स्वाभाविक मानना है !

दरअसल स्त्रीवादी आंदोलन को सिर्फ और सिर्फ सामाजिक आधारों पर ही समझा जा सकता है ! आप जेंडर जस्टिस के लिए विज्ञान की  गोद में जाकर स्त्री का ही नहीं पुरुष का भी अहित करेंगे ! विज्ञान मनुष्य को शरीर मात्र मानता है उसके लिए तो खेल कोशिकाओं और रसायनों का है ! लेकिन सामाजिक शोषण और विभेदों की कोई व्याख्या विज्ञान नहीं कर सकता ! समाज की अलग अलग सीढियों पर खडे स्त्री और पुरुष को अलग मकसदों से बनाए गए कलपुर्जे मानना सामाजिक असमानता को स्वाभाविक मानना नहीं तो और क्या है ?

.....और.अंत में ... स्त्री और पुरुष में सिर्फ गर्भाशय का अंतर है और कोई अंतर नहीं है  !

Thursday, July 10, 2008

आप अपने ऑफिस में बलात्कार करते हैं या सुहागरात मनाते हैं ?

समाजवादी पार्टी के जनरल सेक्रेटेरी अमर सिंह कई मायनों में जानी मानी हस्ती हैं ! आज के बाद उनको जिस एक अन्य जरूरी कारण  से जाना जाएगा वह है सामाजिक जीवन में स्त्री के लिए उनके मन में बसने वाला सम्मान भाव !  एक औपचारिक बातचीत में उन्होंने कांग्रेस पार्टी की लीडर सोनिया गांधी से हुई रजनीतिक मुलाकात के लिए "सुहागरात " और "बलात्कार" जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया ! कई स्त्री -संगठनों ने इसपर आपत्ति व्यक्त की है और अमर सिंह से उनके इस मासूस शाब्दिक प्रतीक के इस्तेमाल के एवज में सार्वजनिक माफी की मांग की है !

अमर सिंह की बात जाने दें ! ये दो बडे बडों के बीच का मसला है और कई मोर्चों से विरोध के स्वर भी उठ रहे हैं ! बात सुलट जाएगी ! सबकुछ पीसफुल हो ही जाएगा !पर  एक आम कामकाजी औरत के व्यावसायिक जीवन में इस प्रकार के भाषिक यौन उत्पीडन की कल्पना करें तो हमारा स्वयं को कटघरे में पाते हैं ! कामकाजी जीवन में पुरुष सहकर्मियों के साथ बराबर की भागीदारिता करने वाली हर स्त्री कभी न कभी इस तरह की वाचिक हिंसा का शिकार हो ही जाती है ! बहुत बार स्त्री अपने लिए कहे गए जुमलों और व्यंग्यों के भीतर छिपी यौन हिंसा को पहचान नहीं पाती ! प्रोफेशनल प्रतिस्पर्धा में पुरुष से खुद को हीन न मान ने वाली औरतें हों या पुरुष को स्वाभाविक तौर पर स्त्री से बेहतर जीव मानने में संतोष करने वाली औरतें - दरअसल दोनों तरह की औरतें पुरुषों के द्वारा किए गए भाषिक हमले का शिकार होती हैं ! कभी कभी तो महज हल्के लगने वाले माहौल में हल्की बातचीत, लतीफागिरी , चुहलबाजी , प्रोफेशनल बातचीत आदि में पुरुष मित्रों और सहकर्मियों के द्वारा इस्तेमाल की गई भाषा व प्रतीक स्त्री के प्रति उनके नजरिये को दर्शाते हैं !

मैंने अक्सर देखा है अपने लिए इस्तेमाल की गई सेक्सिस्ट भाषा व आपत्तिअजनक जुमलों का विरोध करने का नतीजा बहुत त्रासद होता है ! आपके प्रतिरोध के उपहार स्वरूप आपके लिए कहा जाएगा  - य़े औरत तो पागल हो गई  या फिर इस औरत का  घरेलू जीवन ही बडा खराब है जिसका गुस्सा यह यहां उतार रही है या  कमाल है इसका कौन सा पल्ला खींच लिया है या कहा जा सकता है यहाँ औरत झूठा इल्जाम लगा रही है किसी शत्रु सहकर्मी के भडकाने पर फंसा रही है ...वगैरह वगैरह...

अमर सिंह की सार्वजिक रूप से की गई बयानबाजी के राजनीतिक गैरराजनीतिक पाठ भी हो सकते हैं और इस्तेमाल भी ! पर एक आम औरत जब अपने लिए नागवार गुजरने वाले आपत्तिजनक जुमलों का अकेला प्रतिरोध करती है तो उसके निहितार्थ घोर निजी होते हैं ! यहां घर परिवार ,मित्र, निकट की स्त्रियां व्यवस्था के सहयोग की मात्रा भी बहुत कम होती है ! यौन उत्पीडन का आरोप दर्ज करने वाली स्त्री को हर कदम पर अपने चरित्र और इरादों की सफाई भी देनी होती है ! इस विरोध के झंझटों से बच कर चलने वाली हर स्त्री कामकाज के स्थलों पर यह मानकर चलने लगती है कि जब बाहर निकलोगी तो यह सब तो होगा ही ...!

पुरुष अपने अवचेतन में स्वयं स्त्री का यौन -नियंता समझता है ! उसके मन की भीतरी परतों मे स्त्री मात्र यौन- उपकरण है जिसपर बलपूर्वक अधिग्रहण किया जा सकता है !  सो कबीलाई समाज के संस्कार जाते जाते भी नहीं जा पाते ! उसके लिए स्त्री एक यौन प्रतीक है ,जिसकी कोई यौनिक आइडेंटिटी नहीं है ! इस अवचेतन मन के दबावों में सुहागरात बलात्कार ,संभोग ,स्त्री की देह सब प्रतीक है जिनका इस्तेमाल पुरुष किसी भी गंभीर अभिव्यक्ति के लिए भी जाहिर तौर पर कर बैठते हैं ! अमर सिंह ने भी समझा होगा इस भाषा के इस्तेमाल से वे सोनिया गांधी के राजनीतिक समीकरणों को आम भोली भाली जनता तक आसानी से पहुंचा पाऎंगे ! वे शायद भारतीय जनता के सार्वजनिक अवचेतन की गहरी समझ रखते होंगे ! या ये उनकी ज़बान की फायडियन स्लिप भी हो सकती है !.....जाने दें ..!

जाहिर है स्त्री जितना सिकुडॆगी उतनी ही उसके लिए जगह कम होती जाएगी ! उसे अपने स्तर पर यौन हिंसा के इस रूप का विरोध करना ही होगा ! पर वह यह भी जानना चाहेगी कि ऎसे में स्त्री से इतर समाज का क्या स्टैंड है ? क्या हमें उस दिन का इंतज़ार है जब  स्त्री की भाषा उन यौन प्रतीकों से बनी होगी जो पुरुष के लिए तकलीफदेह होंगे और उसकी कार्यकुशलता को सेक्सुअल आधारों पर कमतर सिद्ध करते होंगे !