Wednesday, April 09, 2008

इन औरतों का इंकलाब ज़िंदाबाद बंद कराओ

सुनिए आप सब अनाम सनाम महाशयों ! अब तो आप सब की ही तरह इस नारीवादी औरतवादी नारेबाजी - बहसबाजी से  मैं भी तंग आ चुकी हूं ! आप सब सही कह रहे हैं ये इंकलाबी ज़ज़्बा हम सब औरतों के खाली दिमागों और नाकाबिलिय़त का धमाका भर है बस ! हम बेकार में दुखियारी बनी फिर रही हैं ! सब कुछ कितना अच्छा ,और मिला मिलाया है ! पति घर बच्चे ! हां थोडी दिक्कत हो तो पति की कमाई से मेड भर रख लें तो सारी कमियां दूर हो जांगी ! फिर हम सब सुखी सुहागिनें अपने अपने सुखों पर नाज़ अकर सकेगीं ! सब रगडे झगडे हमारी गलतफहमियों या ऎडजस्टमेंट की आदत न होने से होते हैं !  पर एक बात बताओ -हम कितने सुखी हैं ये फहमी तभी तक क्यों बनी रहती है जब तक हम सारी घरेलू जिम्मेदारियां हंसते संसते उठाती रहतीं हैं ! काश जब हम पति की कमीज बटन न टांकें और फिर भी घर की खुशहाली बनी रहे और हमारे बारे में नाकाबिल औरत औरत का फतवा न जारी किया जाए !

बकवास है सब साली ! फेमेनिज़्म सब धरा रह जाएगा जब बटन न टांकने , समय पर रोटी न देने पर पति घूर कर देखेगा चांटा मारने को उसका हाथ उठेगा ! कमीना फेमेनिज़्म आपके रिश्ते की पैरवी में नहीं आएगा तब और आप सोचेगी हाय एक बटन टांक ही देती तो क्या हर्ज हो जाता ??

अब एक पति महाशय दलील दे रहे थे कि मैं अगर कमाकर लाने से इंकार कर दूं तो ? सारा दिन बाहर खटता हूं मैं भी तो खुद को मजदूर मान सकता हूं ? मुझे घर मॆं चैन की दो वक्त की रोटी भी न मिले तो क्यों मैं घर लौट के आना चाहूं ?बडा गंदा ज़माना आ गया है घरों की शांति खत्म हुए चली जा रही है ! हर बात में दमन ,शोषण देखने की आदत पद चुकी है इन औरतों को !

सही बात कहूं तो मैं अब सुधरने की सोच रही हूं - एक खुशहाल, पति सेविका परिवार की धुरी बन सब कुछ संभालने वाली औरत ! पर क्या करूं ये सब सोच ही रही कि  मृणाल पांडॆ का लिखा पाठ " मित्र से संलाप " पर स्लेबस के लिए लिखने का ज़िम्मा ले डाला ! अब उन्होंने आप सब के द्वारा नारीवाद पर लगाए आरोपों की लिस्ट बताई है ! आप भी गौर करें और हो सके तो अपनी अपनी दलीलें -आरोप आदि को लिस्ट करें ! वाकई अब निर्णायक दौर आ गया है इस फेमेनिज़्म पर कुछ फैसला लेने का --

औरत ही औरत की दुश्मन होती है !

सारी फेमेनिस्ट औरतें तर्क विमुख होती हैं !

फेमेनिज़्म एक पश्चिमी दर्शन है ! कोकाकोला की तरह     झागदार और लुभावना आयात भर है!

नारी संगठन बस नारेबाज़ी और गोष्ठियों का आयोजन भर करते हैं !गावों में इनकी कोई रुचि नहीं !

मध्यवर्गीय कामकाजी औरतें घर से बाहर कामकाज के लिए नहीं मटरगश्ती के लिए निकलती हैं !

पारिवारिक शोषण की शिकायत करने वाली स्त्रियां ऎडजस्ट करना नहीं जानती !

{ प्लीज़ अपनी राय या आरोप लिस्ट में  जोडना न भूलें }

Friday, April 04, 2008

सेक्सुअली वॉट आय ऎम ??

स्त्री और सेक्सुऎलिटी का आपसी संबंध क्या है ?यह सवाल अब स्त्री विमर्शों में यदा कदा उठने लगा है ! इस समाज में  औरत अपनी सेक्सुएलिटी पर अपना ही अधिकार खो देती हैं ! यह पितृसत्ता ही है जो हमारी सामाजिक आर्थिक राजनीतिक और सेक्सुअल आइडेंटिटी को काबू में रखती है ! किसी स्त्री या लडकी का अपनी सुक्सुएलिटी , शरीर और प्रजनन पर नियंत्रण समाज को ,पेट्रीआरकी को सबसे खुली चुनौती होता है ! इसीलिए हमारे समाज के सबसे वर्जित सवालों में से एक सवाल है - किसी स्त्री के द्वारा  अपनी यौनिक पहचान को जबरिया डिफाइन करने वाली संरचनाओं पर उठाया गया सवाल !

हमारे समाज में स्त्री का शरीर और उसकी आजादी पितृसत्ता का सबसे बडा हथियार भी हैं और उसके लिए सबसे बडा खतरा भी ! जिस समाज में पुरुष का सेक्सुअल सेल्फ हावी रहता है उसी समाज में औरत का सेक्सुल आत्म लगातार दबाया और कुंठित किया जाता है ! इसी समाज की ट्रेनिंग के फलस्वरूप स्त्री हमेशा अपनी इस आइडेंटिटी को पुरुष की थाती मान लेती है ! स्त्री के पास अपने सेक्सुअल आत्म को अभिव्यक्त करने के न अवसर हैं न भाषा और न ही आत्मविश्वास ! परिवार ,समाज संस्कृति ,नैतिकता ,मर्यादा का दायित्व एकमात्र उसके उउपर लादकर चल रही हमारी ये संरचनाऎ बेफिक्र हैं !

स्त्री अपने शरीर के प्रति कितनी सहज और सजग है  या फिर उसकी सेल्फ की परिभाषा में उसकी अपनी यौनिकता को क्या जगह देती है ? स्त्री अपनी यौनिक आइडेंतिटी की अभिव्यक्ति को लेकर कितनी कुंठित ,दमित या पराश्रित है ?-- आदि कुछ सवाल हैं जो हमारे पितृसंरचनात्मक समाज की देन हैं ! इन सवालों को सवाल की तरह देखा जाना अभी कहां शुरू हुआ है -?-केवल वृहद विमर्शों की सुलझी हुई तहों के भीतर ये दबे हुए हैं !

एक आम स्त्री की ज़िंदगी की तमाम उलझनों ,पीडाओं , समस्याओं से इन सवालों को क्या लेना देना --मैं जानती हूं आपमें से काई सुधी पाठकों के मन में यह सवाल उठ रहे होंगे ! आप स्त्री की जिंदगी और जिस्म को कई अलग-अलग टुकडों में देखने के आदी हो गए होंगे सो उसकी सामाजिक राजनीतिक और यौनिक आजादी ( और अभिव्यक्ति ) को आप अलग अलग संघर्षों के रूप में देख रहे होंगे ! ज़ाहिर है आपको यह भी लगता होगा को बेचारी स्त्री कहां कहां लडेगी ??465_2

Thursday, April 03, 2008

आखिर मैं इतने दिन से कहां थी ?

 

बहुत दिन तक  कोई भी पोस्ट न लिखने के क्या फायदे हैं इसका विश्लेषण करते हुए फुरसतिया जी ने बहुत सी राज की बातें बताई हैं ! वे हमसे बतियाते हुए बोले कि अच्छा है कि आपकी वजह से चिट्ठा पढने वाले लोग कम परेशान हुए ! बहरहाल उनकी बात सुनकर कई दिनों से न लिख पाने से परेशान मन को बहुत राहत मिली ! :)

दरअसल पिछले 3-4 सप्ताह से स्त्री विमर्श पर आयोजित एक पुनश्चर्या कार्यक्रम मॆं हिस्सा ले रही थी ! इस कार्यक्रम के तहत कई नामी विद्वानों और सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ताओं को सुनना हुआ ! कमला भसीन ,अपर्णा बासु ,विभा चतुर्वेदी ,कविता श्रीवास्तव ,निर्मला बैनर्जी ,ऎन स्टीवर्ट ,राकेश चन्द्रा , उमा चक्रवर्ती सरीखे कई वक्ताओं को सुनने का मौका मिला ! इस पूरे कार्यक्रम में दिल्ली विशवविद्यालय के  शिक्षकों के साथ साथ कई अन्य विश्वविद्यालयों के शिक्षक भी थे !

इस कार्यक्रम में मैंने अपना पर्चा "हिंदी जनपद का ब्लॉगफेमेनिज़्म " पर तैयार किया और पढा !  यहां मौजूद श्रोताओं ने साइबर फेमेनिज़्म को एक बिल्कुल नये फिनामिमा के रूप में ग्रहण किया ! इस पर्चे में ब्लॉग जगत की सत्ता संरचना में पितृसत्तामकता के सबूतों की पडताल की ! चोखेरबाली के उदय के ऎतिहासिक दबावों पर बात हुई ,ब्लॉग जगत की स्त्री लेखिकाओं के लेखन पर विमर्श हुआ ! जो एक महत्वपूर्ण सवाल रामजस कॉलेज के इतिहास विभाग के वरिष्ठ और स्त्री संघर्षों के बहुत सक्रिय चिंतक मुकुल ने पूछा वह था -कि क्या इस साइबर स्त्री विमर्श एक पत्नीवाद या सुक्सुऎलिटी के विमर्श उठते हैं ?

यह रिफेशर कोर्स मेरे लिए बहुत अहम रहा ! स्त्री आंदोलनों ,स्त्री विमर्श , पितृसत्तामकता , जेंडर इक्वेलिटी और जेंडर जस्टिस , फेमिनिटी और मस्क्युलिनिटी ,स्त्री और मीडिया ,यौन उत्पीडन और स्त्री ,जेंडर और साइकॉलोजी ,फैमिली लॉ ,ट्रैफिकिंग एंड वुमेन लॉ अगेंस्ट डॉमेस्टिक वॉयलेंस --जैसे कई अहम मुद्दों पर वक्तव्य हुए !इन सब विमर्शों के प्रभावस्वरूप स्त्री विमर्श से जुडे कई आयामों पर एक समझ बनाने का मौका मिला !

यहां हुए कई अनुभव आपसे साझा करने का मन है ! खासकर सेक्सुऎलिटी पर हुई वर्कशॉप के कुछ गंभीर और कुछ हास्यास्पद अनुभव ! बिना इस डर के कि रियाज जी फिर न कह दें कि आप औरतें स्त्रियों और बच्चों के अलावा और कुछ नहीं लिख सकतीं क्या ?:)