Thursday, February 07, 2008

कह लूं ज़रा दर्द आधी धरती का

दुनिया आधी है अधूरी है ! पूरी क्यों नहीं है का सवाल भी मेरा है और पूरी कैसे हो की सारी छटपटाहट भी मेरी है ! क्या आधी दुनिया में सिर्फ पानी है और बाकी की आधी दुनिया बनी है चट्टानों की बेलौस ताकत से, कैक्टसों शानदार अनगढता से ! बाकी की आधी दुनिया  क्या पाने को छटपटा रही है ?

वो हाट लगा के बैठे हैं मेरी छटपटाहट का ! यहां मेरा दर्द भी बिकेगा और मेरे दर्द की कहानी भी ! क्या करुं ?

मुझे नहीं होना चट्टान नही होना है कैक्टस ! तो क्या होना है मुझे ? मुझे सोच लेना होगा वरना वह सोच लेगा कि मैं क्या होना चाहती हूं ! देखो न वह मेरे दर्द से मतवाला हुआ जा रहा है ! वो कहता है कि वो जानता है मेरे मन को ...उसकी एक एक परत को उघाड लेना चाहता है वह ताकि वह रच सके कोई गीत !

मैं उसकी कहानी की नायिका हूं ! वही नायिका जिसे वह दर्द भी देता है और दवा भी देता है खुद ही ! वह मदमाता है कि वह कंटीला कैक्टस है और वह कहता है कि हे प्रिय तुम फूल हो फूल ही रहो !  वह मेरे पुष्पत्व का अकेला माली और रखवाला ! उसकी चट्टानता और उसकी महानता से दुनिया के सहमे हुए जलस्रोत खुद को अंजुली का पानी समझ रहे हैं ! वह मेरा दर्द मेरे अनगढ शब्दों में मुझसे नहीं सुन पाता पर मेरे दर्द पर लिखे गीतों किस्सों में खूब मन रमा पाता है !

मैं सिलसिलेवार नहीं , मैं कथाकार नहीं ! कैद है मेरी हंसी , मेरा दर्द , मेरा सपना तुम्हारी तिजोरी में ! तुम रचते हो ,पिरोते हो करीने से मेरे इस कैदी स्व को और सुनाते हो मुझी को ! कहते हो हे प्रिये ! पीडा का सृजन, सृजन की पीडा सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे लिए ..

..मैं खामोश हूं अभी ....वहां ठीक उस चट्टान की तली से बह रहा है पानी.....

Saturday, February 02, 2008

मेरा उलझा फेमेनिज़्म और चुगली करती गोल रोटियां

क्या कभी कोई स्त्री खुद से यह सवाल पूछ्ती होगी कि अगर उसे दोबारा मौका मिले तो वह स्त्री ही होना चाहेगी ? पता नहीं ऎसा बेतुका प्रसंगहीन सवाल क्योंकर मेरे मन में उठता रहता है मैं अपना मन इसमें नहीं उलझाना चाहती पर कभी लगता है कि इसका कोई ठीक ठीक तार्किक जवाब ढूंढ ही लूं ! 

मुझे हमेशा से गोल रोटी बेलने से सख्त चिढ रही है और मैंने कभी कायदे से घर गृहस्थी के काम करना नहीं सीखा ! कभी कभी अपने इस खस्ता हाल से कुंठा होती है तो कभी यह किसी तमगे से कम नहीं लगता ! कभी लगता है मैं एक कंफ्यूज्ड स्त्री हूं जो अपनी जिम्मेदारियों में मन नहीं लगाती !कामकाजी हूं ! सो फुर्तीली और अपटूडेट बने रहने का प्रयास जरूर करती हूं ! मेरे कुलीग्स जब मेरी इस पर्स्नेलिटी की तारीफ करते हैं तो सोचती हूं कि काश मैं इन वाहवाहियों को पसंद कर पाती ,पर जानती हूं कि स्त्री को उसकी  अच्छी सामाजिक छवि का चक्कर महंगा भी पड सकता है ! मैं जानती हूं कि यह एक ट्रैप है ! मैं किसी भी छवि के ट्रैप में फंस जाने से डरती हूं ! मैं अपने आसपास ऎसी औरतों को बहुत हैरत से देखती हूँ जो यह दावा करती हैं कि वे एक बहुत सफल कुक ,ट्यूटर , मां ,पत्नी , मेजबान और बेहद जागरूक कामकाजी महिला हैं!   अचानक अपने स्त्रीत्व पर उठता प्रश्नवाचक चिह्न दिखाई देने लगता है !  मै सोचती हूं कि जब मैं प्रसव पीडा सह सकती हूं तो ये अच्छी स्त्री वाली छवि की पीडा से क्यों डरती हूं !

सडक पर अकेले चलना ,चलते जाना बिना किसी वजह के ! या कि फिर सडक पर चलते रुक कर किसी ऊंची शाख या बनते बिगडते बादलों के झुंड को देखना है मुझे ! पर नहीं अचानक लगता है कई आँखें देख रही हैं ! सडक पर चलते रिक्शे वालों , खोमचे वालों गुजरती कारों में बैठे लोंगों की कई जोडी आंखों का मैं लक्ष्य बन सकती हूं ! मैं बडी गुस्सैल ,बददिमाग और अडियल हूं !  कामकाज के माहौल के हर मुद्दे में अपनी टांग अडाती रहती हूं ! जबकि अक्सर कई कुलीग्स गोलमोल लहजे में मेरी इस गंदी आदत के बारे मॆं चिंतित होते हैं क्योंकि उनका मानना हैं कि कम उम्र की बाल बच्चॉं वाली औरतों को पंगों में नहीं पड़ना चाहिए ! मैं गालीबाज हूं पर वे कहते हैं -"अगर गाली देने का इतना ही शौक है तो साला या उल्लू का पट्ठा भी कोई गाली है थोडा और आगे बढो "! वे एक फार्वड ,बेलौस, वाचाल औरत के साथ मानकर चलते है कि इसके कंधे पर हाथ रखकर बतियाने जैसी उनकी हरकतें तो बहुत जायज हैं !

खैर ..जाने दें ! मेरा यह खिचडी आत्मालाप बोझिल हो रहा होगा आपके लिए ! यदि दोबारा मौका मिले तो मैं स्त्री ही होना चाहूंगी का जबाव ..उफ ..फिर कभी ! पर इतना तो है कि अब आपको अपनी पत्नी बहुत सुघड़, सुलझी हुई संस्कारी ,कर्तव्यशीला स्त्री लग रही होगी ! आप तो अपना टिफिन खोलिए गोल रोटियों को खाने का लुत्फ उठाइए !  आपके द्वारा खाई जा रहीं रोटियों का आकार आपके दांपत्य संबंधों की चुगली तो नहीं कर रहा है ....!