Thursday, May 31, 2007

एक चिडि़या....अनेक चिडि़या

दूरदर्शन पर अक्‍सर यह कार्टून व गीत आता था। बचपन में मैं इस गीत को बेहद पसंद करती थी। आप लोगों में से भी कुछ को यह जरूर याद होगा। पिछले दिनों यू-ट्यूब पर यह दिखा तो जैसे स्‍मृतिओं का उफान सा आ गया और मैं सहज ही इस गीत को गुनगुनाने लगी। देखा तो बिटिया को भी यह पसंद आ रहा था, ठीक वैसे ही जैसे हमें आया करता था। लीजिए पेश है...एक चिडि़या ...अनेक चिडि़या


Friday, May 25, 2007

ठेले पर हिमालय

वर्षों पहले भारती का यह निबंध पढ़ा था जिसका केंद्रीय भाव यह था कि हिम ही तो हिमालय के सौंदर्य का आधार है। और सच ही है, हिम की धवलता ही हिमालय को उसका रहस्‍य उसका आकर्षण प्रदान करती है। इसलिए हाल के हमारे किन्‍नौरी अनुभवों में सबसे ऊपर इसी हिम का आकर्षण है। हिम का प्रथम दर्शन सरहन के निकट शुरू हुआ और फिर लगातार बना रहा। आप भी देखें-


Wednesday, May 02, 2007

सिर्फ चरसी लौंडे लौंडियां ही नहीं हैं देश में.....

अभी पिछले दिनों लैंसडाउन जाना हुआ ! वहां के नैसर्गिक प्राकृतिक सौंदर्य के कई विवरण सचित्र आपने यहां देखे, एक, दो, तीन, चार, पॉंच किस्‍तों में ! जब कमल शर्मा जी हम सबसे पूछ रहे थे कि इन चरसी लौंडे लौंडियों का क्या करे देश ठीक तभी लैंसडाउन में गढवाल राइफल्स में सैनिकों की भर्ती के लिए कच्ची उम्र के युवकों का जमावडा लगा हुआ था ! ये सभी खेतिहर घरों के युवक थे जहां खेती से खाना जुटाना तक दुशवार होता है ! सारे लैंसाडाउन में बिखरे ये युवक, पहाड़ की रात बाहर खुले में ही बिताने वाले थे.....अगले चार दिनों तक। इनके लिए गावों में रोजगार नहीं है पर्यटन भी इन्हें रोजगार नहीं दे सकता क्योंकि इन्हें पहाड से मातृत्व मिलता है उससे पैसा कमाने का सबक इन्हें अपने पुरखों से नहीं मिला है ! अपने अभावों को अभाव भी मानना इन्हें नहीं आता ! पहाड ही इन्हें सिखाता है अपने संसाधनों पर रश्क न करना , उसी सीमितता में जी जाना , अडिग आस्था के साथ ! यहां जीवन प्रकृति से है बाजार से नहीं ! उसी प्रकृति से जो साल में एकाध बार हमें अपनी ओर खींच लेती है..... पर हमारी महानगरीय आस्था और बाजार का पाश हमें दोबारा खींच लाता है इन शहरों में ........





चारों ओर ये युवक कमर पर छोटे- छोटे बैग टांगे घूमते दिखाई दे रहे थे ! हमने जिस भी आंख में झांका उत्साह की मणिमय चमक ही दिखाई दी ! उन आंखों में सपने थे , उन चेहरों पर तेज था , उनकी पतली -लंबी कायाओं में पहाड की पैदा की हुई फुर्ती थी ! बारहवीं का इम्तहान देकर यहां जुटे ये पहाडी बेटे चारों ओर बिखरे थे ! एक छोटे समूह से हमने बात की तो पता चला कि कल इनकी भर्ती प्रक्रिया का पहला टेस्ट होगा ! आखिरी टेस्ट में केवल कुछ सौ चुने जांएगे जबकि यहां आए युवकों संख्या पांच- छ्ह हजार है ! पहले दौर में सौ- सौ युवकों को एक साथ दौडना होगा और छांटे गए युवकों को आगे की शारीरिक परीक्षाओं से गुजरना होगा ! उन युवकों की मजबूत देह और निष्कलंक कोमल चेहरे देखकर अपने शहराती नवयुवक याद आए ! पीजा हट ,बरिस्ता , मेकदोनाल्ड , मालों की सीडियों पर या फिर पार्कों में बैठे फिल्मी प्रेम दृश्यों को साकार करते , पार्टियों में उमडे उधडे ये नवयुवा जिनके लिए देश , साहित्य , समाज ,संस्कृति, भावनाओं का कोई मूल्य नहीं है ! वे सिर्फ बाजार द्वारा इस्तेमाल के लिए पैदा किए गए जीव हैं जिनके लिए खुद से ऊपर जहान में न कुछ है और वे मानते हैं कि न कभी हो सकता है !...... नहीं .......हम अपना ध्यान झटक देते हैं !


तो इन नन्हों की जीवनी शक्ति पर रहेंगे हम सुरक्षित , देश की सीमाएं बनी रहेंगी ! ये पहाड को बचाए रखेगे ताकि हमारे मैदान बचे रहें ! इनमें से पता नहीं कौन कब बलिदान दे जाएगा अपना बिना हमारे जाने ....हम कभी पता नहीं जान पाएंगे कि आज हमारे लिए इनमें से कौन शहीद हो गया.......... ..हम जस -के -तस जिऎगे ........जीते जाऎगे........ जब तक कि किसी गंदी बिमारी , सडक दुर्धटना या फिर किसी आत्म हत्यारे खयाल का शिकार नहीं हो जाऎगे........हम जीते जाऎगे .........और ये हमारी चरसी लौंडे लौंडियों की खरपतवार..........इसे बढाते जाऎगे.........